Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul''s Posts - Open Books Online2024-03-29T11:23:24ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakulhttps://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/10015706065?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1https://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=2q0bzm4buxcxd&xn_auth=noगीतिकाtag:openbooks.ning.com,2020-05-12:5170231:BlogPost:10070872020-05-12T04:30:00.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p>छंद- आल्ह, विधान- 31 मात्रा, (चौपाई +<span>15), अंत 21</span></p>
<p><span><strong>. </strong></span></p>
<p><span>ढाई आखर प्रेम सत्य है, स्वीकारो पहचानो मित्र.</span></p>
<p><span>धन बल सुख-दुख आने-जाने, प्रीत बढ़ाओ जानो मित्र.</span></p>
<p><span><strong> </strong></span></p>
<p><span>कहते हैं लँगड़े घोड़े पर, दुनिया नहीं लगाती दाँव,</span></p>
<p><span>भाग्य आजमाने के बदले, स्वेद बहाओ मानो मित्र.</span></p>
<p><span><strong> </strong></span></p>
<p><span>युग बदले हैं हुए खंडहर, थी…</span></p>
<p>छंद- आल्ह, विधान- 31 मात्रा, (चौपाई +<span>15), अंत 21</span></p>
<p><span><strong>. </strong></span></p>
<p><span>ढाई आखर प्रेम सत्य है, स्वीकारो पहचानो मित्र.</span></p>
<p><span>धन बल सुख-दुख आने-जाने, प्रीत बढ़ाओ जानो मित्र.</span></p>
<p><span><strong> </strong></span></p>
<p><span>कहते हैं लँगड़े घोड़े पर, दुनिया नहीं लगाती दाँव,</span></p>
<p><span>भाग्य आजमाने के बदले, स्वेद बहाओ मानो मित्र.</span></p>
<p><span><strong> </strong></span></p>
<p><span>युग बदले हैं हुए खंडहर, थी इमारतें कभी बुलंद,</span></p>
<p><span>अहंकार ने लूटा है मत, झूठी शान बखानो मित्र,</span></p>
<p><span><strong> </strong></span></p>
<p><span>कर न सको अच्छा जीवन में, बुरा करो न कभी हर हाल,</span></p>
<p><span>हर दुष्कर्म है दलदल कीचड़, हाथ कभी मत सानो मित्र,</span></p>
<p><span> </span></p>
<p><span>जीवन क्षण भंगुर है साहस, कर न सको तो रखना धैर्य,</span></p>
<p><span>हद से ज्यादा नहीं कभी भी, चादर लंबी तानो मित्र.</span></p>
<p></p>
<p><span>(मौलिक एवं अप्रकाशित)</span></p>भ्रष्टाचारtag:openbooks.ning.com,2020-04-18:5170231:BlogPost:10044892020-04-18T12:32:53.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p>राजा विक्रमादित्य फिर वेताल को कंधे पर ले कर जंगल से चला. रास्ते में वेताल विक्रम से बोला- '<span>राजा</span>, <span>तुम चतुर ही नहीं बुद्धिमान् भी हो</span>, <span>लेकिन आज विश्व में जो कोविड-19 के कारण लाखों लोग मर रहे हैं और अनेक मौत के मुँह में जाने को हैं. छोटा क्या बड़ा क्या</span>, <span>अमीर क्या गरीब क्या</span>, <span>डॉक्टर क्या वैज्ञानिक क्या</span>, <span>नेता क्या अभिनेता क्या</span>, <span>दोषी</span>, <span>निर्दोष सभी इस बीमारी से हताहत हो रहे हैं. मनुष्य ने…</span></p>
<p>राजा विक्रमादित्य फिर वेताल को कंधे पर ले कर जंगल से चला. रास्ते में वेताल विक्रम से बोला- '<span>राजा</span>, <span>तुम चतुर ही नहीं बुद्धिमान् भी हो</span>, <span>लेकिन आज विश्व में जो कोविड-19 के कारण लाखों लोग मर रहे हैं और अनेक मौत के मुँह में जाने को हैं. छोटा क्या बड़ा क्या</span>, <span>अमीर क्या गरीब क्या</span>, <span>डॉक्टर क्या वैज्ञानिक क्या</span>, <span>नेता क्या अभिनेता क्या</span>, <span>दोषी</span>, <span>निर्दोष सभी इस बीमारी से हताहत हो रहे हैं. मनुष्य ने ऐसा कौनसा अपराध कर दिया है</span>, <span>जो संसार के अधिकतर देश इस महामारी का दंड भुगत रहे है</span>? <span>यदि तुमने इसका सही जवाब नहीं दिया तो तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगे.' राजा विक्रम थोड़ी देर चुप रहा.</span></p>
<p></p>
<p><span>वेताल का जवाब उसने एक शब्द में दिया-</span> ‘<span>भ्रष्टाचार.</span>’</p>
<p></p>
<p>वेताल बोला- '<span>वह कैसे राजा</span>?'</p>
<p> </p>
<p>राजा बोला- '<span>मनुष्य को आडम्बर वाला जीवन उसे भ्रष्टाचार की ओर धकेलता है. जहाँ ग़रीब अपनी नौकरी</span>, <span>मजदूरी के लिए प्रलोभन का सहारा लेता है</span>, वहीं <span>सर्वोच्च शिखर पर बैठा मनुष्य शिखर पर बने रहने के लिए भ्रष्टाचार का सहारा लेता हे. अपना काम निकालने के लिए मनुष्य हर स्तर पर</span>, <span>हर क्षेत्र में अपनी पहचान</span>, <span>अपने सम्बंधों</span>, <span>अपनी पहुँच की दुहाई दे कर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है. आज मानव का व्यवहार ही मानव का शत्रु बन गया है. यही कारण है आज विश्व जिस संक्रमण से गुज़र रहा है</span>, <span>यह व्यवहार ही मनुष्य के भ्रष्टाचार का मूल स्रोत है</span>, <span>इसीलिए इस संक्रमण को निष्प्रभावी करने का निदान वर्तमान में सामाजिक दूरी के अतिरिक्त कुछ नहीं. जब तक भ्रष्टाचार है</span>, <span>इस प्रकार के वायरसों से प्रकृति अपना संतुलन बनाती रहेगी. कहावत भी है</span>, <span>गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है</span>, <span>इसलिए</span> '<span>भ्रष्टाचार से दोषी निर्दोष</span>, <span>बच्चे बूढ़े सभी प्रभावित होते हैं</span>, <span>परिणाम स्वरूप आज कोविड-19 से सम्पूर्ण विश्व इस वायरस ग्रसित दंड भुगत रहा है.</span></p>
<p> </p>
<p>वेताल ने अट्टहास किया और बोला- '<span>राजा तुमने चतुराई से अपनी जान बचा ली. मैं चला. वह छूट कर फिर पेड़ पर जा कर लटक गया.</span></p>
<p> </p>
<p>-आकुल, <span>कोटा</span> </p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>
<p> </p>लिव इन रिलेशनशिपtag:openbooks.ning.com,2014-11-09:5170231:BlogPost:5863382014-11-09T04:00:00.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p>रविवार का दिन था। सज्जनदासजी के घर पड़ौसी प्रकाश चौधरी आ कर चाय का आनंद ले रहे थे।</p>
<p>बातों बातों में प्रकाशजी ने कहा- ‘क्या जमाना आ गया, देखिए न अपने पड़ौसी, वे परिमलजी, कोर्ट में रीडर थे, उनके बेटे आशुतोष की पत्नी को मरे अभी साल भर ही हुआ है, मैंने सुना है, उसने दूसरी शादी कर ली है। बेटा है, बहू है और एक साल की पोती भी। अट्ठावन साल की उम्र में क्या सूझी दुबारा शादी करने की। पत्नी नौकरी में थी, इसलिए पेंशन भी मिल रही थी। अब शादी करने से पेंशन बंद हो जाएगी। यह तो अपने पैरों पर…</p>
<p>रविवार का दिन था। सज्जनदासजी के घर पड़ौसी प्रकाश चौधरी आ कर चाय का आनंद ले रहे थे।</p>
<p>बातों बातों में प्रकाशजी ने कहा- ‘क्या जमाना आ गया, देखिए न अपने पड़ौसी, वे परिमलजी, कोर्ट में रीडर थे, उनके बेटे आशुतोष की पत्नी को मरे अभी साल भर ही हुआ है, मैंने सुना है, उसने दूसरी शादी कर ली है। बेटा है, बहू है और एक साल की पोती भी। अट्ठावन साल की उम्र में क्या सूझी दुबारा शादी करने की। पत्नी नौकरी में थी, इसलिए पेंशन भी मिल रही थी। अब शादी करने से पेंशन बंद हो जाएगी। यह तो अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना हुआ।‘</p>
<p>‘हाँ, सुना तो मैंने भी है। पर बात कुछ अलग है, और है भी कायदे की।‘</p>
<p>‘क्या है, इस उम्र में शादी करने की कोई तुक है।‘ प्रकाशजी ने अतिउत्साह से कहा।</p>
<p>’अरे, प्रकाश जी, आशुतोष बहुत समझदार हैं, मेरी उससे बातचीत हुई थी। हम साथ ही तो नौकरी पर लगे थे। मैं इसी महीने रिटायर हुआ हूँ और आशुतोष अगले साल रिटायर हो रहा है। वह बता रहा था बेटा आवारा है, कुछ करता-धरता नहीं हैं, लाखों गँवा दिये, मुकदमे चल रहे हैं। आगे भी सम्हल पाएगा, लगता नहीं है। इसलिए उसने सोच समझ कर बेटे बहू से पूछ कर फैसला किया है। जो औरत उनके साथ रह रही है, उससे उसने अभी शादी नहीं की है। समाज और जाति बिरादरी की ही है, अभी ‘लिव इन रिलेशनशिप’ के अंतर्गत कानूनी कार्यवाही कर समाज के बीच में बाकायदा वरमाला पहना कर, और रिटायरमेंट से पहले विवाह का वादा करके ले कर आया है आशुतोष।‘</p>
<p>’क्या कह रहे हैं, सज्जनजी, ऐसा है क्या?’</p>
<p>’हाँ, अभी वह घर के वातावरण्ा में ढल जाएगी। बेटे बहू की सामंजस्यता भी बैठ जाएगी। आशुतोष की पहली पत्नी परिणीताजी की पैंशन भी मिलती रहेगी। रिटायरमेंट के छ:-सात महीने पहले शादी घोषित कर देंगे और सरकारी खाते में बतौर पत्नी दर्शाने से वह भी भविष्य में पेंशन की हकदार हो जाएगी, ताकि लंबे समय तक परिवार को भरण पोषण की चिंता नहीं रहेगी।</p>
<p>‘वाह, यह तो बहुत बुद्धिमानी की आशुतोष ने।‘</p>
<p>‘घर में जवान बेटे बहू हैं, बच्चे छोटे हैं, इसलिए एक जिम्मेदार औरत का होना जरूरी भी है, शारीरिक सम्बंध ही तो सबकुछ नहीं, घर की और भी कई जिम्मेदारियाँ है, बेटा आवारा है, घर में अकेली बहू, छोटी बच्ची, शायद यही सोच कर आशुतोष ने यह निर्णय लिया होगा। नौकरी से थके हारे घर आने पर अपने मन की बात कहने सुनने वाला भी तो होना चाहिए न।‘ सज्जन जी बोले।</p>
<p>उन्हेांने बात ऐसे ढंग से कही कि प्रकाश जी हँसे बिना नहीं रह सके। चाय की चुसकी के साथ दोनों ठहाके मार कर हँस रहे थे।</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>छँट गये अँधेरेtag:openbooks.ning.com,2014-10-21:5170231:BlogPost:5829902014-10-21T05:17:24.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p>दीप जले हैं जब-जब</p>
<p>छँट गये अँधेरे।</p>
<p></p>
<p>अवसर की चौखट पर</p>
<p>खुशियाँ सदा मनाएँ</p>
<p>बुझी हुई आशाओं के</p>
<p>नवदीप जलाएँ</p>
<p>हाथ धरे बैठे</p>
<p>ढहते हैं स्वर्ण घरौंदे</p>
<p>सौरभ के पदचिह्नों पर</p>
<p>जीवन महकाएँ</p>
<p>क़दम बढ़े हैं जब-जब</p>
<p>छँट गये अँधेरे।</p>
<p></p>
<p>कलघोषों के बीच</p>
<p>आहुति देते जाएँ</p>
<p>यज्ञ रहे प्रज्ज्वलित</p>
<p>सिद्ध हों सभी ॠचाएँ</p>
<p>पथभ्रष्टों की प्रगति के</p>
<p>प्रतिमान छलावे</p>
<p>कर्मक्षेत्र में जगती रहतीं</p>
<p>सभी…</p>
<p>दीप जले हैं जब-जब</p>
<p>छँट गये अँधेरे।</p>
<p></p>
<p>अवसर की चौखट पर</p>
<p>खुशियाँ सदा मनाएँ</p>
<p>बुझी हुई आशाओं के</p>
<p>नवदीप जलाएँ</p>
<p>हाथ धरे बैठे</p>
<p>ढहते हैं स्वर्ण घरौंदे</p>
<p>सौरभ के पदचिह्नों पर</p>
<p>जीवन महकाएँ</p>
<p>क़दम बढ़े हैं जब-जब</p>
<p>छँट गये अँधेरे।</p>
<p></p>
<p>कलघोषों के बीच</p>
<p>आहुति देते जाएँ</p>
<p>यज्ञ रहे प्रज्ज्वलित</p>
<p>सिद्ध हों सभी ॠचाएँ</p>
<p>पथभ्रष्टों की प्रगति के</p>
<p>प्रतिमान छलावे</p>
<p>कर्मक्षेत्र में जगती रहतीं</p>
<p>सभी दिशाएँ</p>
<p>अडिग रहे हैं जब-जब</p>
<p>छँट गये अँधेरे।</p>
<p></p>
<p>आतिशबाजी से मन के</p>
<p>मनुहार जताएँ</p>
<p>घर-घर देहरी आँगन</p>
<p>दीपाधार सजाएँ</p>
<p>जहाँ अँधेरे भाग्य बुझाते</p>
<p>रहते सपने</p>
<p>फुलझड़ियों से गलियों में</p>
<p>गुलज़ार सजाएँ</p>
<p>हाथ मिले हैं जब-जब</p>
<p>छँट गए अँधेरे।</p>
<p></p>
<p>मन मंजूषा में गोखरु के</p>
<p>मनके नहीं पिरोएँ</p>
<p>गढ़ के कंगूरों में अब</p>
<p>संगीनें नहीं पिरोएँ</p>
<p>विश्वांसों के पतझड़ में</p>
<p>शिकवा क्या फूलों से</p>
<p>तुलसी माला में गुंजा के</p>
<p>मनके नहीं पिरोएँ</p>
<p>संकल्प लिए हैं जब-जब</p>
<p>छँट गये अँधेरे।</p>
<p></p>
<p>सभी विद्वज्जनों को प्रकाशपर्व की शुभकामनायें</p>
<p></p>
<p>'मौलिक एवं अप्रकाशित'</p>विश्वदृष्टि दिवस पर रचनाtag:openbooks.ning.com,2014-10-09:5170231:BlogPost:5801642014-10-09T03:46:05.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p class="Bodytext">बचें दृष्टि से दृष्टिदोष फैला हुआ है चहुँ दिश।</p>
<p class="Bodytext">निकट या दूर दृष्टि सिंहावलोकन हो चहुँ दिश।</p>
<p class="Bodytext">दृष्टि लगे या दृष्टि पड़े जब डिढ्या बने विषैली।</p>
<p class="Bodytext">तड़ित सदृश झकझोरे मन जब दृष्टि बने पहेली।</p>
<p class="Bodytext">गिद्धदृष्टि से आहत जन-जन वक्र दृष्टि से जनपथ।</p>
<p class="Bodytext">जन प्रतिनिधि, सत्ताधीशों के कर्म अनीति से लथपथ।</p>
<p class="Bodytext">रखें दृष्टिगत हो जन-जाग्रति, जन-निनाद, जन-क्रांति।…</p>
<p class="Bodytext">बचें दृष्टि से दृष्टिदोष फैला हुआ है चहुँ दिश।</p>
<p class="Bodytext">निकट या दूर दृष्टि सिंहावलोकन हो चहुँ दिश।</p>
<p class="Bodytext">दृष्टि लगे या दृष्टि पड़े जब डिढ्या बने विषैली।</p>
<p class="Bodytext">तड़ित सदृश झकझोरे मन जब दृष्टि बने पहेली।</p>
<p class="Bodytext">गिद्धदृष्टि से आहत जन-जन वक्र दृष्टि से जनपथ।</p>
<p class="Bodytext">जन प्रतिनिधि, सत्ताधीशों के कर्म अनीति से लथपथ।</p>
<p class="Bodytext">रखें दृष्टिगत हो जन-जाग्रति, जन-निनाद, जन-क्रांति।</p>
<p class="Bodytext">है विकल्प बस दृष्टि रखें ना फैलायें दिग्भ्रांति।</p>
<p class="Bodytext">सर्वप्रथम संक्रामक, जन जीवन के हटें प्रदूषण।</p>
<p class="Bodytext">हरित क्रांति, हर प्राणी रक्षित हों ना करें परीक्षण।</p>
<p class="Bodytext">सर्वहिताय, जन सुखाय सर्वतोभद्र दृष्टि हो एक।</p>
<p class="Bodytext">बिना दृष्टि बन जायेंगे धृतराष्ट्र अनेकानेक।</p>
<p class="Bodytext">विश्वदृष्टि दिन है संकल्प करें लिख दें इक लेख।</p>
<p class="Bodytext">पहुँचे दृष्टि क्षितिज तक खींचे सुख समृद्धि की रेख।</p>
<p class="Bodytext"></p>
<p class="Bodytext">‘मौलिक एवं अप्रकाशित’ </p>कलtag:openbooks.ning.com,2014-09-24:5170231:BlogPost:5776232014-09-24T14:54:01.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p>यदि मैं आज हूँ</p>
<p>आज के बाद भी हूँ मैं</p>
<p>तो वह अवश्य होगा।</p>
<p>यदि जीवन की गूँज</p>
<p>जीने की अभिलाषा</p>
<p>लय भरा संगीत है, तो</p>
<p>वह अवश्य होगा।</p>
<p>यदि उसमें नदी का</p>
<p>कलकल नाद है</p>
<p>पंखियों का कलरव है</p>
<p>कोयल का कलघोष है, तो</p>
<p>वह अवश्य होगा।</p>
<p>यदि हम उत्तराधिकारी हैं</p>
<p>हमसे वंशावली है</p>
<p>हम योग का एक अंश हैं, तो</p>
<p>वह अवश्य होगा।</p>
<p>ब्रह्माण्ड की धधकती आग से</p>
<p>निकल कर शब्द ब्रह्म का</p>
<p>निनाद यदि है, तो</p>
<p>वह…</p>
<p>यदि मैं आज हूँ</p>
<p>आज के बाद भी हूँ मैं</p>
<p>तो वह अवश्य होगा।</p>
<p>यदि जीवन की गूँज</p>
<p>जीने की अभिलाषा</p>
<p>लय भरा संगीत है, तो</p>
<p>वह अवश्य होगा।</p>
<p>यदि उसमें नदी का</p>
<p>कलकल नाद है</p>
<p>पंखियों का कलरव है</p>
<p>कोयल का कलघोष है, तो</p>
<p>वह अवश्य होगा।</p>
<p>यदि हम उत्तराधिकारी हैं</p>
<p>हमसे वंशावली है</p>
<p>हम योग का एक अंश हैं, तो</p>
<p>वह अवश्य होगा।</p>
<p>ब्रह्माण्ड की धधकती आग से</p>
<p>निकल कर शब्द ब्रह्म का</p>
<p>निनाद यदि है, तो</p>
<p>वह अवश्य होगा।</p>
<p>जो उत्पत्ति का एक मात्र</p>
<p>मूक साक्षी रहा हो और</p>
<p>जो प्रलय का भी एक मात्र</p>
<p>साक्षी होगा, तो</p>
<p>निर्विवाद, शाश्वत और</p>
<p>अक्षुण्ण है, यह कि</p>
<p>वह कल था !</p>
<p>वह आजकल है !!</p>
<p>और</p>
<p>अवश्य ही कल होगा !!!</p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित* </p>3 क्षणिकाएँtag:openbooks.ning.com,2014-09-23:5170231:BlogPost:5775232014-09-23T16:31:33.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p>1- शत्रु के सत्रह हार</p>
<p></p>
<p>काम<sup>1</sup>, क्रोध<sup>2</sup>, मद<sup>3</sup>, लोभ<sup>4</sup>, मोह<sup>5</sup>,</p>
<p>मत्सर<sup>6</sup>, रिपु के संचार।</p>
<p>द्वेष<sup>7</sup>, असत्य<sup>8</sup>, असंयम<sup>9</sup>, गल्प<sup>10</sup>,</p>
<p>प्रपंच<sup>11</sup>, करे संहार<sup>12</sup>।</p>
<p>स्तेय<sup>13</sup>, स्वार्थ<sup>14</sup>, उत्कोच<sup>15</sup>, प्रवंचना<sup>16</sup>,</p>
<p>विषधर अहंकार<sup>17</sup>।</p>
<p>जो धारें ये अवगुण सारे </p>
<p>सत्रहों हैं शत्रु…</p>
<p>1- शत्रु के सत्रह हार</p>
<p></p>
<p>काम<sup>1</sup>, क्रोध<sup>2</sup>, मद<sup>3</sup>, लोभ<sup>4</sup>, मोह<sup>5</sup>,</p>
<p>मत्सर<sup>6</sup>, रिपु के संचार।</p>
<p>द्वेष<sup>7</sup>, असत्य<sup>8</sup>, असंयम<sup>9</sup>, गल्प<sup>10</sup>,</p>
<p>प्रपंच<sup>11</sup>, करे संहार<sup>12</sup>।</p>
<p>स्तेय<sup>13</sup>, स्वार्थ<sup>14</sup>, उत्कोच<sup>15</sup>, प्रवंचना<sup>16</sup>,</p>
<p>विषधर अहंकार<sup>17</sup>।</p>
<p>जो धारें ये अवगुण सारे </p>
<p>सत्रहों हैं शत्रु हार।</p>
<p> </p>
<p>2- बसंत</p>
<p></p>
<p>बसंत</p>
<p>बस अंत</p>
<p>सभी दर्द, व्यथा, घृणा,</p>
<p>द्वेष, दम्भ, स्वार्थ और</p>
<p>भ्रष्टाचार का।</p>
<p>बस अंत, बस अंत</p>
<p>तभी सार्थक</p>
<p>बसंत</p>
<p> </p>
<p>3- जीवन</p>
<p></p>
<p>‘जी वन’ चाहे,</p>
<p>‘जीव न’ चाहे</p>
<p>‘जी’ व ‘न’ की</p>
<p>दुविधा में</p>
<p>’जीवन’</p>
<p>बीता जाये। </p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित*</p>हाइकुtag:openbooks.ning.com,2014-09-14:5170231:BlogPost:5752352014-09-14T17:21:57.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p>1- </p>
<p>संस्कार होंगे</p>
<p>राम राज्य के स्वप्न</p>
<p>साकार होंगे !</p>
<p>2- </p>
<p>बेच ज़मीर</p>
<p>बनता है तब ही</p>
<p>कोई अमीर !</p>
<p>3- </p>
<p>स्वतंत्र हुए</p>
<p>बगल के नासूर</p>
<p>हैं पाले हुए !</p>
<p>4- </p>
<p>है नारी वो क्या</p>
<p>न सिर पे पल्लू न</p>
<p>आँखों में हया !</p>
<p>5- </p>
<p>क्या नाजायज</p>
<p>सत्ता, युद्ध, प्रेम में</p>
<p>सब जायज !</p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित*</p>
<p> </p>
<p>1- </p>
<p>संस्कार होंगे</p>
<p>राम राज्य के स्वप्न</p>
<p>साकार होंगे !</p>
<p>2- </p>
<p>बेच ज़मीर</p>
<p>बनता है तब ही</p>
<p>कोई अमीर !</p>
<p>3- </p>
<p>स्वतंत्र हुए</p>
<p>बगल के नासूर</p>
<p>हैं पाले हुए !</p>
<p>4- </p>
<p>है नारी वो क्या</p>
<p>न सिर पे पल्लू न</p>
<p>आँखों में हया !</p>
<p>5- </p>
<p>क्या नाजायज</p>
<p>सत्ता, युद्ध, प्रेम में</p>
<p>सब जायज !</p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित*</p>
<p> </p>शहरों की भीड़ भाड़ मेंtag:openbooks.ning.com,2014-09-10:5170231:BlogPost:5737862014-09-10T04:10:16.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p>शहरों की भीड़ भाड़ में</p>
<p>बस आदमी ही आदमी।</p>
<p>चलता ही जा रहा है</p>
<p>थकता नहीं है आदमी।</p>
<p></p>
<p>वाहनों की दौड़ भाग से</p>
<p>नहीं इसे परहेज</p>
<p>न है इसे प्रतिद्वंद्विता</p>
<p>न द्वेष रखता है सहेज</p>
<p>इसका तो अपना ध्येय है</p>
<p>पीढ़ियों से अपराजेय है</p>
<p>फिर भी देवताओं सा</p>
<p>लगता नहीं है आदमी।</p>
<p></p>
<p>इसकी अभिलाषाओं का</p>
<p>अभी न अंत होना है</p>
<p>अभी न तृप्त होगा यह</p>
<p>अभी न संत होना है</p>
<p>अभी इसे विकास के</p>
<p>सोपानों पर चढ़ना है…</p>
<p>शहरों की भीड़ भाड़ में</p>
<p>बस आदमी ही आदमी।</p>
<p>चलता ही जा रहा है</p>
<p>थकता नहीं है आदमी।</p>
<p></p>
<p>वाहनों की दौड़ भाग से</p>
<p>नहीं इसे परहेज</p>
<p>न है इसे प्रतिद्वंद्विता</p>
<p>न द्वेष रखता है सहेज</p>
<p>इसका तो अपना ध्येय है</p>
<p>पीढ़ियों से अपराजेय है</p>
<p>फिर भी देवताओं सा</p>
<p>लगता नहीं है आदमी।</p>
<p></p>
<p>इसकी अभिलाषाओं का</p>
<p>अभी न अंत होना है</p>
<p>अभी न तृप्त होगा यह</p>
<p>अभी न संत होना है</p>
<p>अभी इसे विकास के</p>
<p>सोपानों पर चढ़ना है शेष</p>
<p>गगन गिरा गननकुसुम</p>
<p>बागानों पे चढ़ना है शेष</p>
<p>दौड़ मैराथन की है</p>
<p>रुकता नहीं है आदमी।</p>
<p> </p>
<p>खाली हाथ आया है</p>
<p>खाली ही हाथ जाएगा।</p>
<p>प्रकृति के दस्तूर को</p>
<p>कभी न तोड़ पाएगा।</p>
<p>कैसा आकर्षण इसे</p>
<p>बाँधे हुए है आज तक</p>
<p>धरा की है महानता</p>
<p>साधे हुए है आज तक</p>
<p>उसकी दुर्दशा को बस</p>
<p>तकता नहीं है आदमी।</p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित*</p>
<p> </p>भाईचारा बढ़ेtag:openbooks.ning.com,2014-09-06:5170231:BlogPost:5731382014-09-06T06:53:13.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p>भाईचारा बढ़े संग हम सब त्योहार मनायें।</p>
<p>इक ही घर परिवार शहर के हैं सबको अपनायें।</p>
<p></p>
<p>क्यूँ आतंक घृणा बर्बरता गली गली फैली है।</p>
<p>क्यों बरपाती कहर फज़ा यह तो यहाँ बढ़ी पली है।</p>
<p>पैठी हुईं जड़ें गहरी संस्कृति की युगों युगों से,</p>
<p>आयें कभी भी जलजले यह कभी नहीं बदली है।</p>
<p>भूले भटके मिलें राह में, उनको राह बतायें।</p>
<p>भाईचारा बढ़े---------------</p>
<p><b> </b></p>
<p>दामन ना छूटे सच का ना लालच लूटे घर को।</p>
<p>हिंसा मज़हब के दम जेहादी बन शहर शहर…</p>
<p>भाईचारा बढ़े संग हम सब त्योहार मनायें।</p>
<p>इक ही घर परिवार शहर के हैं सबको अपनायें।</p>
<p></p>
<p>क्यूँ आतंक घृणा बर्बरता गली गली फैली है।</p>
<p>क्यों बरपाती कहर फज़ा यह तो यहाँ बढ़ी पली है।</p>
<p>पैठी हुईं जड़ें गहरी संस्कृति की युगों युगों से,</p>
<p>आयें कभी भी जलजले यह कभी नहीं बदली है।</p>
<p>भूले भटके मिलें राह में, उनको राह बतायें।</p>
<p>भाईचारा बढ़े---------------</p>
<p><b> </b></p>
<p>दामन ना छूटे सच का ना लालच लूटे घर को।</p>
<p>हिंसा मज़हब के दम जेहादी बन शहर शहर को।</p>
<p>शह देते जो अमन वफ़ा को काफ़िर हैं दुश्मन हैं,</p>
<p>गले लगाना और बचाना है हर दीद-ए-तर को।</p>
<p>बात तभी है घर घर को हम एक मिसाल बनायें।</p>
<p>भाई चारा बढ़े-----------------</p>
<p></p>
<p>राखी होली दिवाली, मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे।</p>
<p>मिसल सभी की बेमिसाल, मंजि़ल इक रस्ते सारे।</p>
<p>देते हैं सब सीख एक ईश्वर है एक खुदा है,</p>
<p>हम जमीन पर सारे इक आकाश तले लख तारे।</p>
<p>सच्चाई की राह चलें जीवन रोशन कर जायें।</p>
<p>भाई चारा बढ़े-----------------</p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित*</p>
<p> </p>हिन्दी पखवाड़े पर 2 कुण्डलिया छंदtag:openbooks.ning.com,2014-09-04:5170231:BlogPost:5729392014-09-04T09:30:00.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p align="center" class="Bodytext" style="text-align: left;">1-</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">मोबाइल की क्रांति से, सम्मोहित जग आज।</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">वैसी ही इक क्रांति की, बहुत जरूरत आज।</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">बहुत जरूरत आज, देश समवेत खिलेगा।</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">कितनी है परवाज, तभी संकेत मिलेगा।</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">आए वैसा दौर, अब हिन्दी की क्रांति से।</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">आया जैसे दौर, मोबाइल की क्रांति से।…</p>
<p class="Bodytext" align="center" style="text-align: left;">1-</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">मोबाइल की क्रांति से, सम्मोहित जग आज।</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">वैसी ही इक क्रांति की, बहुत जरूरत आज।</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">बहुत जरूरत आज, देश समवेत खिलेगा।</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">कितनी है परवाज, तभी संकेत मिलेगा।</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">आए वैसा दौर, अब हिन्दी की क्रांति से।</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">आया जैसे दौर, मोबाइल की क्रांति से।</p>
<p class="Jabsemankinaavchali"><span lang="HI" xml:lang="HI"> </span></p>
<p class="Bodytext"><span lang="HI" xml:lang="HI">2-</span></p>
<p class="Jabsemankinaavchali">हिन्दी की बस बात ही, करें न अब हम लोग।</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">मिलजुल कर अब साथ ही, देना है सहयोग।</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">देना है सहयोग, राजभाषा है अपनी।</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">कैसे हो पहचान, राष्ट्रभाषा से अपनी।</p>
<p>होगा जन जन नाद, प्रखर तब होगी हिन्दी।</p>
<p>लेंगे सब संकल्प, शिखर पर होगी हिन्दी। </p>
<p class="Jabsemankinaavchali"></p>
<p class="Bodytext">*मौलिक एवं अप्रकाशित*</p>हिन्दी दिवस पखवाड़े पर एक नवगीतtag:openbooks.ning.com,2014-09-03:5170231:BlogPost:5725002014-09-03T03:11:15.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p class="Jabsemankinaavchali">जन निनाद से ही</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">मंजिल तय हो</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">निश्चय ही। </p>
<p class="Jabsemankinaavchali">विश्वभाषाओं संग हो</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">हिंदी निश्चय ही। </p>
<p class="Jabsemankinaavchali"> </p>
<p class="Jabsemankinaavchali">हिन्दी विश्वपटल पर चर्चित</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">पर्व मनायें </p>
<p class="Jabsemankinaavchali">अब समवेत स्वरों में</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">गौरवगाथा…</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">जन निनाद से ही</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">मंजिल तय हो</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">निश्चय ही। </p>
<p class="Jabsemankinaavchali">विश्वभाषाओं संग हो</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">हिंदी निश्चय ही। </p>
<p class="Jabsemankinaavchali"> </p>
<p class="Jabsemankinaavchali">हिन्दी विश्वपटल पर चर्चित</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">पर्व मनायें </p>
<p class="Jabsemankinaavchali">अब समवेत स्वरों में</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">गौरवगाथा गायें </p>
<p class="Jabsemankinaavchali">इससे ही कुछ ऐसा</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">यदि हो जाय कदाचित् </p>
<p class="Jabsemankinaavchali">जल्दी पहली सीढ़ी का</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">हम उत्स मनायें </p>
<p class="Jabsemankinaavchali"></p>
<p class="Jabsemankinaavchali">अभियानों से</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">दिग्विजयी हो</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">हिन्दी निश्चय ही। </p>
<p class="Jabsemankinaavchali"> </p>
<p class="Jabsemankinaavchali">चिट्ठे पत्र पत्रिका</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">अंतर्जाल सुलभ है </p>
<p class="Jabsemankinaavchali">जिनने किया प्रशस्त</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">मार्ग न अब दुर्लभ है </p>
<p class="Jabsemankinaavchali">भावशैली कैसी भी हो</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">बस बोलें हिन्दी (24)</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">हिन्दी भाषा शब्दकोश की</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">स्वर सौरभ है </p>
<p class="Jabsemankinaavchali"> </p>
<p class="Jabsemankinaavchali">दशों दिशा ध्वज</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">फहराये</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">हिन्दी निश्चय ही। </p>
<p class="Jabsemankinaavchali"> </p>
<p class="Jabsemankinaavchali">विश्वगुरु के लिए</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">सन्मार्ग प्रशस्त करेगी </p>
<p class="Jabsemankinaavchali">हिन्दी से ही हिन्दोस्ताँ</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">आश्वस्त करेगी </p>
<p class="Jabsemankinaavchali">विश्व ख्याति फैलेगी इसकी</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">अतुलित अगणित </p>
<p class="Jabsemankinaavchali">बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को</p>
<p class="Jabsemankinaavchali">विश्वस्त करेगी </p>
<p class="Jabsemankinaavchali"> </p>
<p>इक दिन शीर्ष</p>
<p>शिखर पर हो</p>
<p>हिन्दी निश्चय ही।</p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित*</p>
<p> </p>जनता जागरूक नहींtag:openbooks.ning.com,2014-09-01:5170231:BlogPost:5724182014-09-01T09:30:00.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p>विक्रमादित्य ने वेताल को पेड़ से उतार कर कंधे पर लादा और चल पड़ा। वेताल ने कहा-‘राजा तुम बहुत बुद्धिमान् हो। व्यर्थ में बात नहीं करते। जब भी बोलते हो सार्थक बोलते हो। मैं तुम्हें देश के आज के हालात पर एक कहानी सुनाता हूँ।</p>
<p>विक्रमादित्य ने हुँकार भरी।</p>
<p></p>
<p>वेताल बोला- ‘देश भ्रष्टाचार के गर्त में जा रहा है। भ्रष्टाचार की परत दर परत खुल रही हैं। बोफोर्स सौदा, चारा घोटाला, मंत्रियों द्वारा अपने पारिवारिक सदस्यों के नाम जमीनों की खरीद फरोख्त, राम मंदिर-बाबरी मस्जिद की वोट…</p>
<p>विक्रमादित्य ने वेताल को पेड़ से उतार कर कंधे पर लादा और चल पड़ा। वेताल ने कहा-‘राजा तुम बहुत बुद्धिमान् हो। व्यर्थ में बात नहीं करते। जब भी बोलते हो सार्थक बोलते हो। मैं तुम्हें देश के आज के हालात पर एक कहानी सुनाता हूँ।</p>
<p>विक्रमादित्य ने हुँकार भरी।</p>
<p></p>
<p>वेताल बोला- ‘देश भ्रष्टाचार के गर्त में जा रहा है। भ्रष्टाचार की परत दर परत खुल रही हैं। बोफोर्स सौदा, चारा घोटाला, मंत्रियों द्वारा अपने पारिवारिक सदस्यों के नाम जमीनों की खरीद फरोख्त, राम मंदिर-बाबरी मस्जिद की वोट बैंकिंग राजनीति, संसद–विधानसभा में कुश्तम-पैजार, न्यायाधीशों पर उठती उँगलियाँ, महँगाई-जनसंख्या पर नियंत्रण खोती सरकार, धराशायी हरित क्रांति, बापू के मायूस तीन बंदर, आरक्षण की बंदरबाँट, विदेशी कंपनियों द्वारा भारतीय बाजार हड़पने के नये नये प्रलोभन, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, हिंदी भाषा-हिंदी साहित्यकारों का दर्द, दिन पे दिन बढ़ती जा रही आपराधिक प्रवृत्तियाँ, स्टिंग ऑपरेशंस, विदेशी बैंकों में भारतीयों की जमा करोड़ों की अघोषित दौलत, कबूतर बाजी, आतंकवाद, बम कांड, पुलिस की मजबूरी, बढ़ता गुण्डाराज, ऐसा है हमारा देश । आखिर इसका कारण क्या है राजा? यदि तुमने इसका सही जवाब नहीं दिया तो तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे।'</p>
<p></p>
<p>विक्रमादित्य ने जवाब दिया- ‘जनता जागरूक नहीं है!!’ राजा कह कर चुप हो गये। थोड़ी देर शांति छाई रही।</p>
<p>वेताल ने अट्टहास किया और बोला- ‘राजा तुम बहुत चतुर हो। एक ही बात में सबका जवाब दे दिया। मैं च--ला--।‘ विक्रमादित्य सम्हलते उसके पहले ही वेताल छूट भागा और पेड़ पर लटक गया।</p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित*</p>याद बहुत ही आती है तूtag:openbooks.ning.com,2014-08-27:5170231:BlogPost:5702202014-08-27T02:30:00.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p><b>याद बहुत ही आती है तू, जब से हुई पराई।</b></p>
<p>कोयल सी कुहका करती थी, घर में सोन चिराई।</p>
<p>अनुभव हुआ एक दिन तेरी, जब हो गई विदाई।</p>
<p>अमरबेल सी पाली थी, इक दिन में हुई पराई।</p>
<p>परियों सी प्यारी गुड़िया को जा विदेश परणाई।।</p>
<p><b>याद बहुत ही आती है तू---------</b></p>
<p></p>
<p>लाख प्रयास किये समझाया, मन को किसी तरह से।</p>
<p>बरस न जायें बहलाया, दृग घन को किसी तरह से।</p>
<p>विदा समय बेटी को हमने, कुल की रीत सिखार्इ।</p>
<p>दोनों घर की लाज रहे बस, तेरी सुनें…</p>
<p><b>याद बहुत ही आती है तू, जब से हुई पराई।</b></p>
<p>कोयल सी कुहका करती थी, घर में सोन चिराई।</p>
<p>अनुभव हुआ एक दिन तेरी, जब हो गई विदाई।</p>
<p>अमरबेल सी पाली थी, इक दिन में हुई पराई।</p>
<p>परियों सी प्यारी गुड़िया को जा विदेश परणाई।।</p>
<p><b>याद बहुत ही आती है तू---------</b></p>
<p></p>
<p>लाख प्रयास किये समझाया, मन को किसी तरह से।</p>
<p>बरस न जायें बहलाया, दृग घन को किसी तरह से।</p>
<p>विदा समय बेटी को हमने, कुल की रीत सिखार्इ।</p>
<p>दोनों घर की लाज रहे बस, तेरी सुनें बड़ाई।</p>
<p>बिदा किया मन मन घन बरसे, फूटी कंठ रुलाई।।</p>
<p><b>याद बहुत ही आती है तू---------</b></p>
<p></p>
<p>कृष्ण काल का मोक्ष हुआ, ऐसा अनुतोष दिया है।</p>
<p>वंश बेल की नींव डाल, अप्रतिम परितोष दिया है।</p>
<p>कुल रोशन कर घर समाज में खूब प्रशंसा पाई।</p>
<p>घर की डोर सम्हाल, कुल मर्यादा प्रीत बढ़ाई।</p>
<p>मेरे घर का मान बढ़ा, तू रह सदैव सुखदाई।।</p>
<p><b>याद बहुत ही आती है तू--------------</b></p>
<p></p>
<p>इक-इक युग सा बीता है, हर साल परायों जैसा।</p>
<p>मरु में मृगमरीचिका सा, सहरा में सायों जैसा।</p>
<p>ज्यूँ-ज्यूँ दिन बीते हैं, बूढ़ी आँखें हैं पथराई।</p>
<p>कौन करेगा भाई की, शादी में बाट रुकाई।</p>
<p>अब घर आयें बच्चों के सँग बेटी और जमाई।।</p>
<p><b>याद बहुत ही आती है तू--------------</b></p>
<p> </p>
<p>सूद सहित खुशियाँ बाँटूँगा, तू आना बन ठन कर।</p>
<p>भाई की शादी में सँग नचना, गाना मन भर कर।</p>
<p>तुम लोगों से ही तो लेगा वो आशीष बधाई।</p>
<p>जीजाजी से ही तो बँधवायेगा पगड़ी टाई।</p>
<p>मेरे मन की अभिलाषा की तब होगी भरपाई।।</p>
<p><b>याद बहुत ही आती है तू--------------</b></p>
<p></p>
<p><b>*मौलिक एवं अप्रकाशित*</b></p>यह जीवन महावटवृक्ष हैtag:openbooks.ning.com,2014-08-26:5170231:BlogPost:5699852014-08-26T02:30:00.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p>यह जीवन महावटवृक्ष है।</p>
<p></p>
<p>सोलह संस्कारों से संतृप्त</p>
<p>सोलह शृंगारों से अभिभूत है</p>
<p>देवता भी जिसके लिए लालायित</p>
<p>धरा पर यह वह कल्पवृक्ष है।</p>
<p>यह जीवन महावटवृक्ष है।।</p>
<p></p>
<p>सुख-दु:ख के हरित पीत पत्र</p>
<p>आशा का संदेश लिए पुष्प पत्र</p>
<p>माया-मोह का जटाजूट यत्र-तत्र</p>
<p>लोक-लाज, मर्यादा,</p>
<p>कुटुम्ब, कर्तव्य, कर्म,</p>
<p>आतिथ्य, जीवन-मरण</p>
<p>अपने-पराये, सान्निध्य, संत समागम,</p>
<p>भूत-भविष्य में लिपटी आकांक्षा,</p>
<p>जिस में छिपा…</p>
<p>यह जीवन महावटवृक्ष है।</p>
<p></p>
<p>सोलह संस्कारों से संतृप्त</p>
<p>सोलह शृंगारों से अभिभूत है</p>
<p>देवता भी जिसके लिए लालायित</p>
<p>धरा पर यह वह कल्पवृक्ष है।</p>
<p>यह जीवन महावटवृक्ष है।।</p>
<p></p>
<p>सुख-दु:ख के हरित पीत पत्र</p>
<p>आशा का संदेश लिए पुष्प पत्र</p>
<p>माया-मोह का जटाजूट यत्र-तत्र</p>
<p>लोक-लाज, मर्यादा,</p>
<p>कुटुम्ब, कर्तव्य, कर्म,</p>
<p>आतिथ्य, जीवन-मरण</p>
<p>अपने-पराये, सान्निध्य, संत समागम,</p>
<p>भूत-भविष्य में लिपटी आकांक्षा,</p>
<p>जिस में छिपा जीवन का मर्म,</p>
<p>उस गृहस्थाश्रम का यह वंशवृक्ष है।</p>
<p>यह जीवन महावटवृक्ष है।।</p>
<p> </p>
<p>एक ब्रह्म, दो पक्ष निबंध,</p>
<p>त्रिदेवों का अप्रतिम प्रबन्ध,</p>
<p>चतुरानन की जीवन भक्ति,</p>
<p>पंचमहाभूतों से निर्मित मानवशक्ति,</p>
<p>षड् रिपु से संलिप्त देह आसक्ति,</p>
<p>सप्तऋषियों से प्रकाशित भूमंडल चराचर,</p>
<p>अष्टांगयोग का प्रभविष्णु कवचधर,</p>
<p>नवग्रहों के आशीष का यह दशकुल वृक्ष है।</p>
<p>यह जीवन महावटवृक्ष है।।</p>
<p></p>
<p>पुराण,उपनिषद, वेद, ब्राह्मण, दर्शन,</p>
<p>ब्रह्माण्ड का अनसूय प्रतीक,</p>
<p>धरा का एक अनोखा अवतार,</p>
<p>सहस्त्र रश्मियों से निखर</p>
<p>प्रकृति की गोद में पल्लवित,</p>
<p>ऋतुओं के समागम और</p>
<p>रत्ननिधि का अमूल्य रत्नजित,</p>
<p>कोटि-कोटि आशीष से परिपूर्ण,</p>
<p>देव भी अवतारित हुए लिए शरीर</p>
<p>कर्म से हुआ जर्जर भले ही,</p>
<p>संस्कारों से बना प्रवीण</p>
<p>सहस्त्र बाहुओं में निबद्ध महाशक्तिशाली,</p>
<p>यह कमल कुल वल्लभ का लक्ष्य है</p>
<p>अंत:सलिला के अजस्र प्रवाह से ,</p>
<p>झूमता फलता-फूलता तटवृक्ष है।</p>
<p>यह जीवन महावटवृक्ष है।। </p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित*</p>बस बात करें हम हिन्दी कीtag:openbooks.ning.com,2014-08-25:5170231:BlogPost:5697792014-08-25T14:14:18.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p>बस बात करें हम हिन्दी की।</p>
<p>न चंद्रबिन्दु और बिन्दी की।</p>
<p>ना बहसें, तर्क, दलीलें दें,</p>
<p>हम हिन्दुस्तानी, हिन्दी की।।</p>
<p></p>
<p>हों घर-घर बातें हिन्दी की।</p>
<p>ना हिन्दू-मुस्लिम-सिन्धी की।</p>
<p>बस सर्वोपरि सम्मान करें,</p>
<p>हम हिन्दुस्तानी, हिन्दी की।।</p>
<p></p>
<p>पथ-पथ प्रख्याति हो हिन्दी की।</p>
<p>ना जात-पाँत हो हिन्दी की।</p>
<p>बस जन जाग्रति का यज्ञ करें,</p>
<p>हम हिन्दुस्तानी, हिन्दी की।</p>
<p></p>
<p>एक धर्म संस्कृति हिन्दी…</p>
<p>बस बात करें हम हिन्दी की।</p>
<p>न चंद्रबिन्दु और बिन्दी की।</p>
<p>ना बहसें, तर्क, दलीलें दें,</p>
<p>हम हिन्दुस्तानी, हिन्दी की।।</p>
<p></p>
<p>हों घर-घर बातें हिन्दी की।</p>
<p>ना हिन्दू-मुस्लिम-सिन्धी की।</p>
<p>बस सर्वोपरि सम्मान करें,</p>
<p>हम हिन्दुस्तानी, हिन्दी की।।</p>
<p></p>
<p>पथ-पथ प्रख्याति हो हिन्दी की।</p>
<p>ना जात-पाँत हो हिन्दी की।</p>
<p>बस जन जाग्रति का यज्ञ करें,</p>
<p>हम हिन्दुस्तानी, हिन्दी की।</p>
<p></p>
<p>एक धर्म संस्कृति हिन्दी की।</p>
<p>बस ना हो दुर्गति हिन्दी की।</p>
<p>सम्प्रभुता का ध्वज फहरायें,</p>
<p>हम हिन्दुस्तानी, हिन्दी की।।</p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित*</p>किससे क्या शिकवाtag:openbooks.ning.com,2014-08-24:5170231:BlogPost:5695962014-08-24T13:30:00.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p>किससे क्या है शिकवा</p>
<p>किसको क्या शाबाशी।</p>
<p></p>
<p>नहीं कम हुए बढ़ते</p>
<p>दुष्कर्मों को पढ़ते</p>
<p>बेटे को माँ बापों पर</p>
<p>अहसाँ को गढ़ते</p>
<p>नेता तल्ख़ सवालों पर</p>
<p>बस हँसते-बचते</p>
<p>देख रहे गरीब-अमीर</p>
<p>की खाई बढ़ते</p>
<p>कितनी मन्नत माँगे</p>
<p>घूमें काबा काशी।</p>
<p> </p>
<p>फिर जाग्रति का</p>
<p>बिगुल बजेगा जाने कौन</p>
<p>फिर उन्नति का</p>
<p>सूर्य उगेगा जाने कौन</p>
<p>आएगी कब घटा</p>
<p>घनेरी बरसेगा सुख,</p>
<p>फिर संस्कृति की</p>
<p>हवा बहेगी…</p>
<p>किससे क्या है शिकवा</p>
<p>किसको क्या शाबाशी।</p>
<p></p>
<p>नहीं कम हुए बढ़ते</p>
<p>दुष्कर्मों को पढ़ते</p>
<p>बेटे को माँ बापों पर</p>
<p>अहसाँ को गढ़ते</p>
<p>नेता तल्ख़ सवालों पर</p>
<p>बस हँसते-बचते</p>
<p>देख रहे गरीब-अमीर</p>
<p>की खाई बढ़ते</p>
<p>कितनी मन्नत माँगे</p>
<p>घूमें काबा काशी।</p>
<p> </p>
<p>फिर जाग्रति का</p>
<p>बिगुल बजेगा जाने कौन</p>
<p>फिर उन्नति का</p>
<p>सूर्य उगेगा जाने कौन</p>
<p>आएगी कब घटा</p>
<p>घनेरी बरसेगा सुख,</p>
<p>फिर संस्कृति की</p>
<p>हवा बहेगी जाने कौन</p>
<p>स्वप्न नहीं यह</p>
<p>अभिलषा के कुसुमाकाशी।</p>
<p> </p>
<p>छोड़ेंगे यदि</p>
<p>संस्कार होंगे बेहतर कब</p>
<p>पालेंगे यदि</p>
<p>बहिष्कार होगें कमतर कब</p>
<p>रिश्तों की गरमाहट को</p>
<p>लग गई नज़र कब,</p>
<p>भूलेंगे यदि</p>
<p>परिष्कार होंगे बरतर कब</p>
<p>कैसे बदले हवा</p>
<p>फूल कब हों पालाशी।</p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित*</p>
<p> </p>हिन्दी ज़िन्दाबादtag:openbooks.ning.com,2014-08-23:5170231:BlogPost:5693602014-08-23T02:52:35.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p><b>ज़िन्दाबाद--ज़िन्दाबाद।</b></p>
<p><b>राष्ट्रभाषा-मातृभाषा हिन्दी ज़िन्दाबाद।।</b></p>
<p><strong>ज़िन्दाबाद- जि़न्दाबाद।</strong></p>
<p></p>
<p>हिन्द की है शान हिन्दी</p>
<p>हिन्द की है आन हिन्दी</p>
<p>हिन्द का अरमान हिन्दी</p>
<p>हिन्द की पहचान हिन्दी</p>
<p><b>इसपे न उँगली उठे रहे सदा आबाद।</b></p>
<p></p>
<p><b>ज़िन्दाबाद-ज़िन्दाबाद।</b></p>
<p></p>
<p>वक़्त जन आधार का है</p>
<p>हिन्दी पर विचार का है</p>
<p>काम ये सरकार का है</p>
<p>जीत का न हार का है</p>
<p><b>हिन्दी से ही आएगा…</b></p>
<p><b>ज़िन्दाबाद--ज़िन्दाबाद।</b></p>
<p><b>राष्ट्रभाषा-मातृभाषा हिन्दी ज़िन्दाबाद।।</b></p>
<p><strong>ज़िन्दाबाद- जि़न्दाबाद।</strong></p>
<p></p>
<p>हिन्द की है शान हिन्दी</p>
<p>हिन्द की है आन हिन्दी</p>
<p>हिन्द का अरमान हिन्दी</p>
<p>हिन्द की पहचान हिन्दी</p>
<p><b>इसपे न उँगली उठे रहे सदा आबाद।</b></p>
<p></p>
<p><b>ज़िन्दाबाद-ज़िन्दाबाद।</b></p>
<p></p>
<p>वक़्त जन आधार का है</p>
<p>हिन्दी पर विचार का है</p>
<p>काम ये सरकार का है</p>
<p>जीत का न हार का है</p>
<p><b>हिन्दी से ही आएगा नया समाजवाद।</b></p>
<p></p>
<p><b>ज़िन्दाबाद- ज़िन्दाबाद।</b></p>
<p></p>
<p>हिन्दी को महत्व दें</p>
<p>हिन्दी को ममत्व दें</p>
<p>हिन्दी को निजत्व दें</p>
<p>हिन्दी को अपनत्व दें</p>
<p><b>हिन्दी में हो बातचीत और हर संवाद।</b></p>
<p></p>
<p><b>ज़िन्दाबाद- ज़िन्दाबाद।</b></p>
<p></p>
<p>(मौलिक एवं अप्रकाशित)</p>आज जो भी है वतनtag:openbooks.ning.com,2014-08-22:5170231:BlogPost:5693472014-08-22T15:30:00.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p>आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौगात है।</p>
<p>क्या दिया हमने इसे, ये सोचने की बात है।</p>
<p></p>
<p>कितने शहीदों की शहादत बोलता इतिहास है।</p>
<p>कितने वीरों की वरासत तौलता इतिहास है।</p>
<p>देश की खातिर जाँबाज़ों ने किये फैसले,</p>
<p>सुन के दिल दहलता है, वो खौलता इतिहास है।</p>
<p>देश है सर्वोपरि, न कोई जात पाँत है।</p>
<p>आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौगात है।</p>
<p></p>
<p>आज़ादी से पाई है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।</p>
<p>सर उठा के जीने की, कुछ करने की प्रतिबद्धता।</p>
<p>सामर्थ्य कर…</p>
<p>आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौगात है।</p>
<p>क्या दिया हमने इसे, ये सोचने की बात है।</p>
<p></p>
<p>कितने शहीदों की शहादत बोलता इतिहास है।</p>
<p>कितने वीरों की वरासत तौलता इतिहास है।</p>
<p>देश की खातिर जाँबाज़ों ने किये फैसले,</p>
<p>सुन के दिल दहलता है, वो खौलता इतिहास है।</p>
<p>देश है सर्वोपरि, न कोई जात पाँत है।</p>
<p>आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौगात है।</p>
<p></p>
<p>आज़ादी से पाई है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।</p>
<p>सर उठा के जीने की, कुछ करने की प्रतिबद्धता।</p>
<p>सामर्थ्य कर गुज़रने का, हौसला मर मिटने का,</p>
<p>काम आएँ देश के, कुछ करने की कटिबद्धता।</p>
<p>सर झुके न देश का, बस एक ही ज़ज़्बात है।</p>
<p>आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौगात है।</p>
<p></p>
<p>सोएँगे बेफिक्र हो, लुटेंगे यह सच्चाई है।</p>
<p>एक जुट होना ही होगा, देश पे बन आई है।</p>
<p>आतंक, भ्रष्टाचार ने, अम्नो वफ़ा पे घात कर</p>
<p>दी चुनौती है हमें, फ़ज़ा भी अब शरमाई है।</p>
<p>पत्थर जवाब ईंट का, घात का प्रतिघात है।</p>
<p>आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौगात है।</p>
<p></p>
<p>महँगाई, घूस, वोट की राजनीति, अत्यचार है।</p>
<p>कानून का मखौल भी अब, होता बार बार है।</p>
<p>जनतंत्र में जनता ही त्रस्त, खौफ़ में जीती रहे,</p>
<p>रक्षक बने भक्षक, तो कैसा, कौनसा उपचार है।</p>
<p>ख़ुशहाल हो, हर हाल में, वतन तो कोई बात है।</p>
<p>आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौगात है।</p>
<p></p>
<p>करें नमन शहीदों, हुतात्माओं और वीरों को।</p>
<p>बापू, जवाहर, लोहपुरुष और सैंकड़ों वज़ीरों को।</p>
<p>बनाना है सिरमौर, फहराना है परचम विश्व में,</p>
<p>अक्षुण्ण अपनी सभ्यता, संस्कृति की नज़ीरों को</p>
<p>गिद्ध दृष्टि डाले, ना किसी की भी औक़ात है।</p>
<p></p>
<p>आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौग़ात है।</p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित*</p>क्रांति का बिगुल ही अब नव चेतना जगाएगाtag:openbooks.ning.com,2014-08-21:5170231:BlogPost:5689932014-08-21T15:30:00.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p>लोकतंत्र कब तलक यूँ जनता को भरमाएगा।</p>
<p>स्वतंत्रता का जश्न अब न और देखा जाएगा।</p>
<p>भ्रष्टाचार दुष्कर्मों से घिरा हुआ है देश देखलो,</p>
<p>इतिहास कल का नारी के नाम लिखा जाएगा।</p>
<p>क्रांति का बिगुल ही अब नव-चेतना जगाएगा।</p>
<p></p>
<p>आ गया है फिर समय जुट एक होना ही पड़ेगा।</p>
<p>दुष्ट नरखांदकों से फिर दो चार होना ही पड़ेगा।</p>
<p>गणतंत्र और स्वतंत्रता की शान की खातिर हमें,</p>
<p>बाँध के सिर पे कफ़न घर से निकलना ही पड़ेगा।</p>
<p>सिर कुचलना होगा साँप जब भी फन…</p>
<p>लोकतंत्र कब तलक यूँ जनता को भरमाएगा।</p>
<p>स्वतंत्रता का जश्न अब न और देखा जाएगा।</p>
<p>भ्रष्टाचार दुष्कर्मों से घिरा हुआ है देश देखलो,</p>
<p>इतिहास कल का नारी के नाम लिखा जाएगा।</p>
<p>क्रांति का बिगुल ही अब नव-चेतना जगाएगा।</p>
<p></p>
<p>आ गया है फिर समय जुट एक होना ही पड़ेगा।</p>
<p>दुष्ट नरखांदकों से फिर दो चार होना ही पड़ेगा।</p>
<p>गणतंत्र और स्वतंत्रता की शान की खातिर हमें,</p>
<p>बाँध के सिर पे कफ़न घर से निकलना ही पड़ेगा।</p>
<p>सिर कुचलना होगा साँप जब भी फन उठाएगा।</p>
<p></p>
<p>सिंह लंहड़ों में नहीं बढ़ने लगे हैं शृगाल दल।</p>
<p>खोने लगी है निष्ठा अब थकने लगे हैं हारावल।</p>
<p>लगता है पाखण्ड ही पाखण्ड है चारों तरफ़,</p>
<p>बोझिल धरा है पाप से उठने लगे हैं दावानल।</p>
<p>राह झूठ की है स्वर्ग कैसे पहुँचा जाएगा।</p>
<p></p>
<p>चरमरा रही हैं आज जन सुविधायें व्यवस्थायें।</p>
<p>कैसा था कल युग युवा-पीढ़ी को क्या बतायें।</p>
<p>हाथ में न ले लें अस्त्र, शस्त्र की न बोलें ज़ुबाँ,</p>
<p>खूनी दिवाली हो और बारूद की होली जलायें।</p>
<p>ऐसा हुआ तो देश का इतिहास बदल जाएगा।</p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित*</p>माँ की महिमाtag:openbooks.ning.com,2014-08-20:5170231:BlogPost:5690252014-08-20T17:34:08.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p>कविता गीत ग़ज़ल रूबाई।</p>
<p>सबने माँ की महिमा गाई।।</p>
<p></p>
<p>जल सा है माँ का मन निर्मल</p>
<p>जलसा है माँ से घर हर पल</p>
<p>हर रँग में रँग जाती है माँ</p>
<p>जल से बन जाता ज्यों शतदल</p>
<p>माँ गंगाजल, माँ तुलसीदल</p>
<p>माँ गुलाबजल, माँ है संदल</p>
<p>जल-थल-नभ, क्या गहरी खाई।</p>
<p>माँ की कभी नहीं हद पाई।</p>
<p>कविता गीत----------------</p>
<p></p>
<p>माँ फूलों की बगिया जैसी</p>
<p>रंगों में केसरिया जैसी</p>
<p>माँ भोजन में दलिया जैसी</p>
<p>माँ गीतों में रसिया जैसी</p>
<p>माँ…</p>
<p>कविता गीत ग़ज़ल रूबाई।</p>
<p>सबने माँ की महिमा गाई।।</p>
<p></p>
<p>जल सा है माँ का मन निर्मल</p>
<p>जलसा है माँ से घर हर पल</p>
<p>हर रँग में रँग जाती है माँ</p>
<p>जल से बन जाता ज्यों शतदल</p>
<p>माँ गंगाजल, माँ तुलसीदल</p>
<p>माँ गुलाबजल, माँ है संदल</p>
<p>जल-थल-नभ, क्या गहरी खाई।</p>
<p>माँ की कभी नहीं हद पाई।</p>
<p>कविता गीत----------------</p>
<p></p>
<p>माँ फूलों की बगिया जैसी</p>
<p>रंगों में केसरिया जैसी</p>
<p>माँ भोजन में दलिया जैसी</p>
<p>माँ गीतों में रसिया जैसी</p>
<p>माँ वीरा, माँ धी, माँ बहना</p>
<p>माँ अनमोल जड़ी, माँ गहना।</p>
<p>रूप स्वरूप धरे जब-जब भी</p>
<p>दूध दही मक्खन सी पाई।</p>
<p>कविता गीत-------------------</p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>
<p> </p>जन्माष्टमी के अवसर पर कुछ सवैया छंदtag:openbooks.ning.com,2014-08-18:5170231:BlogPost:5683862014-08-18T11:30:00.000ZDr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul'https://openbooks.ning.com/profile/DrGopalKrishnaBhattAakul
<p>यदा यदा हि धर्मस्य--------</p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>मानव देह धरी अवतारी, मन सकुचौ अटक्यो घबरायो।</p>
<p>सच सुनके कि देवकीनंदन हूँ मैं जसुमति पेट न जायो।</p>
<p>सोच सोच गोकुल की दुनिया, सब समझंगे मोय परायो।</p>
<p>सुन बतियन वसुदेव दृगन में, घन गरजो उमरो बरसायो।</p>
<p>कौन मोह जाऊँ गोकुल मैं, कौन घड़ी पल छिन इहँ आयो।</p>
<p>कछु दिन और रुके मधुसूदन, फिरहुँ विकल कल चैन न पायो।</p>
<p>परम आत्मा जानैं सब कछु, ‘आकुल’ मानव देह धरायो।</p>
<p>कर्म क्रिया मानव गुण अवगुण, श्यामहिं चित्त तनिक…</p>
<p>यदा यदा हि धर्मस्य--------</p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>मानव देह धरी अवतारी, मन सकुचौ अटक्यो घबरायो।</p>
<p>सच सुनके कि देवकीनंदन हूँ मैं जसुमति पेट न जायो।</p>
<p>सोच सोच गोकुल की दुनिया, सब समझंगे मोय परायो।</p>
<p>सुन बतियन वसुदेव दृगन में, घन गरजो उमरो बरसायो।</p>
<p>कौन मोह जाऊँ गोकुल मैं, कौन घड़ी पल छिन इहँ आयो।</p>
<p>कछु दिन और रुके मधुसूदन, फिरहुँ विकल कल चैन न पायो।</p>
<p>परम आत्मा जानैं सब कछु, ‘आकुल’ मानव देह धरायो।</p>
<p>कर्म क्रिया मानव गुण अवगुण, श्यामहिं चित्त तनिक भरमायो।</p>
<p> </p>
<p>2</p>
<p>रूप सरूप स्वाद मधु फीका, रसपल मानिक सुवरन हीरा।</p>
<p>ममता उघरि परै नैनन सों अब तो तुच्छ ये श्याम सरीरा।</p>
<p>कूल कदम्ब की छाँव बैठि के, सोचें घनश्यामा यमु तीरा।</p>
<p>कौन काम आये गोकुल सौं, कौन वचन सुन कै भइ पीरा।</p>
<p>आँखिन बंद करी सुई देखौ, जसुमति नंद को बिकल सरीरा।</p>
<p>सच कहो जाय ना होय अनर्था, कोविध मिटहिं न भाग लकीरा।</p>
<p>भ्रमित करी जग पुरसोत्तम ने, ‘आकुल’ आपहिं सह सब पीरा।</p>
<p>जसुमति जीवन गयौ वियोग में, नंद गाँव को जीव अधीरा।</p>
<p></p>
<p>3</p>
<p>लीला करी किशोर वयन की, पाछे गोकुल गये कभी ना।</p>
<p>माया सौं रचि रास निकुंजन, ब्रजमंडल बस गोकुल ही ना।</p>
<p>धार उद्धार करौ भूतल ब्रज, खाली कंस नगरिया ही ना।</p>
<p>महाभारती कहो इनहिं सब, योगी कृष्ण कभी दंभी ना।</p>
<p>पूर्ण पुरुस पुरसोत्तम भू पर, आये मानव देह धरी ना।</p>
<p>माया ही सब कूँ सच लागे, यामे द्वय मत होइ सकै ना।</p>
<p>योगी कृष्णा की लीला के, ‘आकुल’ समझहिं भेद कोई ना।</p>
<p>नाहिं नंद जसुमति के कृष्णा, जाय देवकी माँ के भी ना।</p>
<p> </p>
<p>4</p>
<p>सांख्य योग व कर्मदीक्षा, भगवद्गीता ज्ञान सुनायो।</p>
<p>जसुमति सुतम देवकी नंदन, सबहिं लुप्त कियो बिसरायो।</p>
<p>बालक्रिड़ा तक ही को वरनन, पढ्यों पुस्तकअन में आयो।</p>
<p>महाभागवत ही मूकहिं है, कहीं नहीं सबरौ समझायो।</p>
<p>कहा भयों जसुदा वसुदेवा कहा देवकी नंद ने पायो।</p>
<p>सुख दुख थोड़ो बहु जो भी के सारौ जीवन यूँ हि गँवायो।</p>
<p> </p>
<p>5</p>
<p>मानव देह धरी तबहिं तो, मानव के गुण अवगुण धारे।</p>
<p>कीन्हीं हिंसा लगे लांछन, कह लो भले सभी उद्धारे।</p>
<p>प्रेम रास मोह माया जगती, सब मानव ही के गुण न्यारे।</p>
<p>मानव कर्म करे धर्महि सौं, तीनों लोकन पाँव पखारे।</p>
<p>पूजौ सबने मानहि भगवन भाव भक्ति के वचन बघारे।</p>
<p>कवियन वक्ता श्रोता लेखक, सबहिं लक्षहि नाम पुकारे।</p>
<p>माया कहो कहो ‘आकुल’ कछु, समझो थोड़े छंद हमारे।</p>
<p>जब जब भू पर संकट आयो, प्रभु ही मानव देह पधारे। </p>
<p></p>
<p>(मौलिक एवं अप्रकाशित)</p>