सूबे सिंह सुजान's Posts - Open Books Online2024-03-28T13:09:44Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3qhttps://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/139834534?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1https://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=2fvsz8v20bb3q&xn_auth=noग़ज़ल : एक तन्हा ग़ज़ल रहा हूँ मैंtag:openbooks.ning.com,2020-05-03:5170231:BlogPost:10055672020-05-03T14:30:00.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>एक तन्हा ग़ज़ल रहा हूँ मैं <br></br> उसकी यादों में चल रहा हूँ मैं (1)</p>
<p></p>
<p>तेरी यादों में ज़िन्दगी जी कर,<br></br> ज़िन्दगी को मसल रहा हूँ मैं (2)</p>
<p></p>
<p></p>
<p>कैसी हो ज़िन्दगी बताओ तुम?<br></br> तेरे ग़म में उबल रहा हूँ मैं (3) </p>
<p></p>
<p></p>
<p>प्यार में इक महीन सा काग़ज़,<br></br> भीग आँसू से गल रहा हूँ मैं (4) </p>
<p></p>
<p></p>
<p>तुम मुझे देख मुस्कुराते हो,<br></br> सारी दुनिया को खल रहा हूँ मैं (5) </p>
<p></p>
<p></p>
<p>वो मेरी राह में खड़ी होगी ,<br></br> इसलिए तेज चल रहा हूँ…</p>
<p>एक तन्हा ग़ज़ल रहा हूँ मैं <br/> उसकी यादों में चल रहा हूँ मैं (1)</p>
<p></p>
<p>तेरी यादों में ज़िन्दगी जी कर,<br/> ज़िन्दगी को मसल रहा हूँ मैं (2)</p>
<p></p>
<p></p>
<p>कैसी हो ज़िन्दगी बताओ तुम?<br/> तेरे ग़म में उबल रहा हूँ मैं (3) </p>
<p></p>
<p></p>
<p>प्यार में इक महीन सा काग़ज़,<br/> भीग आँसू से गल रहा हूँ मैं (4) </p>
<p></p>
<p></p>
<p>तुम मुझे देख मुस्कुराते हो,<br/> सारी दुनिया को खल रहा हूँ मैं (5) </p>
<p></p>
<p></p>
<p>वो मेरी राह में खड़ी होगी ,<br/> इसलिए तेज चल रहा हूँ मैं (6) </p>
<p></p>
<p>दोपहर का उमस भरा मौसम,<br/> धीरे धीरे बदल रहा हूँ मैं (7) </p>
<p></p>
<p></p>
<p>दूरियों का असर बताता हूँ ,<br/> वो सुलगते हैं,जल रहा हूँ मैं (8) </p>
<p></p>
<p></p>
<p>हर जगह तुम दिखाई देते हो,<br/> इस खुशी में उछल रहा हूँ मैं (9) </p>
<p></p>
<p></p>
<p>चाँद,सूरज,हवा तेरे चेहरे,<br/> तेरे चेहरों में पल रहा हूँ मैं (10) </p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p></p>ग़ज़ल -:- ख़ुद ही ख़ुद को निहारते हैं हमtag:openbooks.ning.com,2020-03-22:5170231:BlogPost:10023812020-03-22T08:32:16.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>ख़ुद ही ख़ुद को निहारते हैं हम <br></br>आरती ख़ुद उतारते हैं हम</p>
<p></p>
<p></p>
<p>फिर भी वैसे के वैसे रहते हैं <br></br>ख़ुद को कितना सँवारते हैं हम</p>
<p></p>
<p></p>
<p>दूसरों का मजाक करते हैं <br></br>ख़ुद की शेखी बघारते हैं हम</p>
<p></p>
<p></p>
<p>सिर्फ़ अपनी किसी जरूरत में <br></br>दूसरों को पुकारते हैं हम</p>
<p></p>
<p></p>
<p>डाल कर दूसरों में अपनी कमी <br></br>दूसरों को विचारते हैं हम</p>
<p></p>
<p></p>
<p>जीतने से ज़ियादा आये मज़ा <br></br>जब महब्बत में हारते हैं हम</p>
<p></p>
<p></p>
<p>इस खुशी…</p>
<p>ख़ुद ही ख़ुद को निहारते हैं हम <br/>आरती ख़ुद उतारते हैं हम</p>
<p></p>
<p></p>
<p>फिर भी वैसे के वैसे रहते हैं <br/>ख़ुद को कितना सँवारते हैं हम</p>
<p></p>
<p></p>
<p>दूसरों का मजाक करते हैं <br/>ख़ुद की शेखी बघारते हैं हम</p>
<p></p>
<p></p>
<p>सिर्फ़ अपनी किसी जरूरत में <br/>दूसरों को पुकारते हैं हम</p>
<p></p>
<p></p>
<p>डाल कर दूसरों में अपनी कमी <br/>दूसरों को विचारते हैं हम</p>
<p></p>
<p></p>
<p>जीतने से ज़ियादा आये मज़ा <br/>जब महब्बत में हारते हैं हम</p>
<p></p>
<p></p>
<p>इस खुशी का कहीं ठिकाना नहीं <br/>स्वर्ग जब भी सिधारते हैं हम</p>
<p></p>
<p></p>
<p>आपके इंतजार में कैसे?<br/>इक सदी को गुजारते हैं हम</p>
<p></p>
<p></p>
<p>जो बुराई समाज ने दी,उसे <br/>अपने अंदर ही मारते हैं हम</p>
<p></p>
<p></p>
<p>ग़ल्तियों को उठा के अपनी "सुजान"<br/>कुछ न कुछ तो सुधारते हैं हम ।</p>
<p></p>
<p>सूबे सिंह सुजान </p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित. </p>
<p></p>ग़ज़ल - गण हुए तंत्र के हाथ कठपुतलियाँtag:openbooks.ning.com,2019-01-25:5170231:BlogPost:9710432019-01-25T00:57:34.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>ग़ज़ल </p>
<p></p>
<p>गण हुए तंत्र के हाथ कठपुतलियाँ <br></br>अब सुने कौन गणतंत्र की सिसकियाँ</p>
<p> </p>
<p>इसलिए आज दुर्दिन पड़ा देखना <br></br>हम रहे करते बस गल्तियाँ गल्तियाँ </p>
<p></p>
<p>चील चिड़ियाँ सभी खत्म होने लगीं <br></br>बस रही हर जगह बस्तियाँ बस्तियाँ </p>
<p></p>
<p>पशु पक्षी जितने थे, उतने वाहन हुए <br></br>भावना खत्म करती हैं तकनीकियाँ. </p>
<p></p>
<p>कम दिनों के लिए होते हैं वलवले <br></br>शांत हो जाएंगी कल यही आँधियाँ </p>
<p></p>
<p>अब न इंसानियत की हवा लग रही <br></br>इस तरफ आजकल बंद…</p>
<p>ग़ज़ल </p>
<p></p>
<p>गण हुए तंत्र के हाथ कठपुतलियाँ <br/>अब सुने कौन गणतंत्र की सिसकियाँ</p>
<p> </p>
<p>इसलिए आज दुर्दिन पड़ा देखना <br/>हम रहे करते बस गल्तियाँ गल्तियाँ </p>
<p></p>
<p>चील चिड़ियाँ सभी खत्म होने लगीं <br/>बस रही हर जगह बस्तियाँ बस्तियाँ </p>
<p></p>
<p>पशु पक्षी जितने थे, उतने वाहन हुए <br/>भावना खत्म करती हैं तकनीकियाँ. </p>
<p></p>
<p>कम दिनों के लिए होते हैं वलवले <br/>शांत हो जाएंगी कल यही आँधियाँ </p>
<p></p>
<p>अब न इंसानियत की हवा लग रही <br/>इस तरफ आजकल बंद हैं खिड़कियाँ </p>
<p></p>
<p>क्रोध की आग है आग से भी बुरी <br/>फूँक दो आग में मन की सब तल्ख़ियाँ. </p>
<p></p>
<p>इक नज़र खुश्क मौसम पे जो डाल दो <br/>बोलना सीख जायेंगी खामोशियाँ. </p>
<p></p>
<p>रास्ता अपने जाने का रखने लगीं <br/>आजकल घर बनाती हैं जब लड़कियाँ. </p>
<p></p>
<p>प्रश्न यह पूछना आसमाँ से "सुजान" <br/>निर्धनों पर ही क्यों गिरती हैं बिजलियाँ .</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>ग़ज़ल - गण हुए तंत्र के हाथ कठपुतलियाँtag:openbooks.ning.com,2019-01-24:5170231:BlogPost:9707342019-01-24T16:02:03.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p> ग़ज़ल </p>
<p>गण हुए तंत्र के हाथ कठपुतलियाँ <br></br>अब सुने कौन गणतंत्र की सिसकियाँ</p>
<p></p>
<p>इसलिए आज दुर्दिन पड़ा देखना <br></br>हम रहे करते बस गल्तियाँ गल्तियाँ</p>
<p></p>
<p></p>
<p>चील चिड़ियाँ सभी खत्म होने लगीं <br></br>बस रही हर जगह बस्तियाँ बस्तियाँ</p>
<p></p>
<p></p>
<p>पशु पक्षी जितने थे, उतने वाहन हुए <br></br>भावना खत्म करती हैं तकनीकियाँ</p>
<p></p>
<p></p>
<p>कम दिनों के लिए होते हैं वलवले <br></br>शांत हो जाएंगी कल यही आँधियाँ</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अब न इंसानियत की हवा लग…</p>
<p> ग़ज़ल </p>
<p>गण हुए तंत्र के हाथ कठपुतलियाँ <br/>अब सुने कौन गणतंत्र की सिसकियाँ</p>
<p></p>
<p>इसलिए आज दुर्दिन पड़ा देखना <br/>हम रहे करते बस गल्तियाँ गल्तियाँ</p>
<p></p>
<p></p>
<p>चील चिड़ियाँ सभी खत्म होने लगीं <br/>बस रही हर जगह बस्तियाँ बस्तियाँ</p>
<p></p>
<p></p>
<p>पशु पक्षी जितने थे, उतने वाहन हुए <br/>भावना खत्म करती हैं तकनीकियाँ</p>
<p></p>
<p></p>
<p>कम दिनों के लिए होते हैं वलवले <br/>शांत हो जाएंगी कल यही आँधियाँ</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अब न इंसानियत की हवा लग रही <br/>इस तरफ आजकल बंद हैं खिड़कियाँ</p>
<p></p>
<p></p>
<p>क्रोध की आग है आग से भी बुरी <br/>फूँक दो आग में मन की सब तल्ख़ियाँ</p>
<p></p>
<p></p>
<p>इक नज़र खुश्क मौसम पे जो डाल दो <br/>बोलना सीख जायेंगी खामोशियाँ</p>
<p></p>
<p></p>
<p>रास्ता अपने जाने का रखने लगीं </p>
<p>आजकल घर बनाती हैं जब लड़कियाँ </p>
<p></p>
<p><br/>प्रश्न यह पूछना आसमाँ से "सुजान" <br/>निर्धनों पर ही क्यों गिरती हैं बिजलियाँ. </p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p></p>नज़्म - नया सालtag:openbooks.ning.com,2018-12-31:5170231:BlogPost:9679042018-12-31T09:00:00.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>नज़्म नया साल</p>
<p></p>
<p>इन दिनों पिछले साल आया था <br></br> पेड़ की टहनी पर नया पत्ता <br></br> वक्त की मार से हुआ बूढ़ा <br></br> आज आखिर वह शाख से टूटा ।</p>
<p></p>
<p>जन्मदिन हर महीने आता था <br></br> और वो और खिलखिलाता था <br></br> वो मुझे देख मुस्कुराता था <br></br> मैं उसे देख मुस्कुराता था ।</p>
<p></p>
<p>जिन दिनों वो जवान होता था <br></br> पेड़ पौधों की शान होता था <br></br> उस तरफ सबका ध्यान होता था <br></br> और वो आंगन की शान होता था ।</p>
<p></p>
<p>उसके चेहरे में ताब होता था <br></br> मुस्कुराना गुलाब होता…</p>
<p>नज़्म नया साल</p>
<p></p>
<p>इन दिनों पिछले साल आया था <br/> पेड़ की टहनी पर नया पत्ता <br/> वक्त की मार से हुआ बूढ़ा <br/> आज आखिर वह शाख से टूटा ।</p>
<p></p>
<p>जन्मदिन हर महीने आता था <br/> और वो और खिलखिलाता था <br/> वो मुझे देख मुस्कुराता था <br/> मैं उसे देख मुस्कुराता था ।</p>
<p></p>
<p>जिन दिनों वो जवान होता था <br/> पेड़ पौधों की शान होता था <br/> उस तरफ सबका ध्यान होता था <br/> और वो आंगन की शान होता था ।</p>
<p></p>
<p>उसके चेहरे में ताब होता था <br/> मुस्कुराना गुलाब होता था <br/> और बदन पर शबाब होता था <br/> हर जगह कामयाब होता था ।</p>
<p></p>
<p>धीरे धीरे वो फिर पड़ा पीला <br/> क्यों हुआ ऐसा कुछ नहीं समझा <br/> पहले तो एक दाँत ही टूटा <br/> फिर हुआ उसका तन -बदन झूठा ।</p>
<p></p>
<p>हर कोई दिल को तोड़ जाता है <br/> आँसुओं को निचोड़ जाता है <br/> साथ आखिर में छोड़ जाता है <br/> फुर्र से वक्त दौड़ जाता है ।</p>
<p></p>
<p>वक्त की नींद धीरे से टूटी <br/> मेरी अस्मत तो वक्त ने लूटी <br/> मैं गिरा तो मेरी जगह छूटी</p>
<p>फिर मेरे बाद कोंपलें फूटी ।</p>
<p></p>
<p>सूबे सिंह सुजान</p>
<p></p>
<p>रचना मौलिक व अप्रकाशित है ।</p>कविता - कौओं के पितृ स्थानtag:openbooks.ning.com,2018-11-26:5170231:BlogPost:9636742018-11-26T17:30:00.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>कौए अब अपने पितृ स्थान के लिए <br></br> स्कूल के बच्चों के हिस्से में आई <br></br> अनुदान राशि को हड़प ले गये ।</p>
<p></p>
<p>और अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिए <br></br> राजनीति को यूँ अपनाया <br></br> कि विधायक, सरपंच मजबूर हैं <br></br> सरकारी सहायता को पितृों तक भेजने के लिए ।</p>
<p>अन्य पक्षियों को छोड़कर <br></br> केवल कौओं की वोटो की गिनती <br></br> के मायने जियादा हैं ।</p>
<p><br></br> शेर भी लाचार हैं <br></br> वे अब शिकार नहीं करते <br></br> वे शिकार हो जाते हैं ।<br></br> शेरों को हमेशा <br></br> कौओं ने सरकश में नचवाया…</p>
<p>कौए अब अपने पितृ स्थान के लिए <br/> स्कूल के बच्चों के हिस्से में आई <br/> अनुदान राशि को हड़प ले गये ।</p>
<p></p>
<p>और अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिए <br/> राजनीति को यूँ अपनाया <br/> कि विधायक, सरपंच मजबूर हैं <br/> सरकारी सहायता को पितृों तक भेजने के लिए ।</p>
<p>अन्य पक्षियों को छोड़कर <br/> केवल कौओं की वोटो की गिनती <br/> के मायने जियादा हैं ।</p>
<p><br/> शेर भी लाचार हैं <br/> वे अब शिकार नहीं करते <br/> वे शिकार हो जाते हैं ।<br/> शेरों को हमेशा <br/> कौओं ने सरकश में नचवाया ।</p>
<p></p>
<p>कबूतरों ने आँखें बंद कर ली हैं <br/> बंदर और तोते सबकी नकल करना भूल कर <br/> अब केवल कौओं की नकल करते हैं ।</p>
<p></p>
<p>कौओं के पेड़ों पर बैठे बैठे <br/> नीम के पेड़ <br/> सफेदों में तब्दील हो गये <br/> जामुन और आम <br/> अपने फलों का स्वाद <br/> बचाने में नाकाम हैं ।</p>
<p></p>
<p>दूब घास की जगह <br/> कांग्रेस घास जबरदस्ती <br/> से उगने लगी है <br/> वह बिना बीज बोए उगती है ।</p>
<p></p>
<p>फ़सलें किसानों पर हँसते हुए कहती हैं <br/> कब तक जिओगे?<br/> बैंकों पर कौओं का कब्जा है <br/> अब मरने के लिये पानी और दवाओं की जरूरत है <br/> जीने के लिए नहीं ।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित रचना </p>ग़ज़ल - इधर उधर की बातेंtag:openbooks.ning.com,2017-12-22:5170231:BlogPost:9049572017-12-22T15:27:30.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>हमने भी की इधर-उधर की बातें... <br/> तुमने समझी इधर-उधर की बातें...</p>
<p></p>
<p>खो गये अर्थ वायदों के जब, <br/> याद आयी इधर-उधर की बातें...</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>जब सरेआम चोरी पकडी गई, <br/> फिर भी की इधर-उधर की बातें...</p>
<p></p>
<p></p>
<p>रोज वो ताश खेलने बैठें, <br/> धूप करती इधर-उधर की बातें..</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मुझ पे विश्वास कर महब्बत में, <br/> छोड पगली इधर-उधर की बातें..</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>हमने भी की इधर-उधर की बातें... <br/> तुमने समझी इधर-उधर की बातें...</p>
<p></p>
<p>खो गये अर्थ वायदों के जब, <br/> याद आयी इधर-उधर की बातें...</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>जब सरेआम चोरी पकडी गई, <br/> फिर भी की इधर-उधर की बातें...</p>
<p></p>
<p></p>
<p>रोज वो ताश खेलने बैठें, <br/> धूप करती इधर-उधर की बातें..</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मुझ पे विश्वास कर महब्बत में, <br/> छोड पगली इधर-उधर की बातें..</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल - क्या आपके दिल में है ?बता क्यों नहीं देते?tag:openbooks.ning.com,2016-09-19:5170231:BlogPost:8017182016-09-19T17:34:26.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
ग़ज़ल<br />
क्या आपके दिल में है,बता क्यों नहीं देते ?<br />
नजरों से मेरी पर्दा उठा क्यों नहीं देते ?<br />
<br />
ये किसलिये अहसान के नीचे है दबाया?<br />
मुझको मेरी कमियों की सज़ा क्यों नहीं देते ?<br />
<br />
कुछ गलतियाँ करवाती हैं मज़बूरियाँ सबसे<br />
तुम तो बड़े हो गलती भुला क्यों नहीं देते?<br />
<br />
हालाँकि सराबोर महब्बत से हूँ लेकिन<br />
मौसम ये बहारों के मज़ा क्यों नहीं देते?<br />
<br />
ये कौन ज़ुदा शख्स मेरे पीछे पड़ा है<br />
सब पूछते हैं मुझसे,बता क्यों नहीं देते ?<br />
<br />
जो शख्स यहाँ आहे महब्बत की वजह है<br />
उस शख्स को दुनिया से मिला क्यों नहीं देते ?<br />
<br />
ये दर्द…
ग़ज़ल<br />
क्या आपके दिल में है,बता क्यों नहीं देते ?<br />
नजरों से मेरी पर्दा उठा क्यों नहीं देते ?<br />
<br />
ये किसलिये अहसान के नीचे है दबाया?<br />
मुझको मेरी कमियों की सज़ा क्यों नहीं देते ?<br />
<br />
कुछ गलतियाँ करवाती हैं मज़बूरियाँ सबसे<br />
तुम तो बड़े हो गलती भुला क्यों नहीं देते?<br />
<br />
हालाँकि सराबोर महब्बत से हूँ लेकिन<br />
मौसम ये बहारों के मज़ा क्यों नहीं देते?<br />
<br />
ये कौन ज़ुदा शख्स मेरे पीछे पड़ा है<br />
सब पूछते हैं मुझसे,बता क्यों नहीं देते ?<br />
<br />
जो शख्स यहाँ आहे महब्बत की वजह है<br />
उस शख्स को दुनिया से मिला क्यों नहीं देते ?<br />
<br />
ये दर्द महब्बत का महब्बत के लिए है<br />
इस दर्द को और -और बढ़ा क्यों नहीं देते ?<br />
<br />
क्यों सामने अनजान के रोया है "सुजान"आज<br />
सीने में हुआ जख़्म दिखा क्यों नहीं देते ?<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशिततरह ग़ज़ल -याद रख अगर कच्चा रास्ता नहीं होताtag:openbooks.ning.com,2016-07-12:5170231:BlogPost:7837272016-07-12T19:39:37.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
तरह ग़ज़ल<br />
याद रख,अगर कच्चा रास्ता नहीं होता<br />
आज तू सड़क पर यूँ दौड़ता नहीं होता ।<br />
आदमी करेगा बेशर्म हरक़तें अक्सर,<br />
ना समझ नहीं है,के जानता नहीं होता!!<br />
तेज गति समय पहले मौत को बुलाती है<br />
आप धीरे चलते तो हादसा नहीं होता<br />
प्यार के मरासिम ऐसे निभाये जाते हैं<br />
फूल को देखना तो है तोड़ना नहीं होता<br />
क्यों ख़फा है दुनिया से,फैसला बदल अपना<br />
इस जहाँ में हर कोई बेवफ़ा नहीं होता वो तो खूबसूरत है,हर नज़र उसी पर है<br />
ग़म न कीजिए,वो गर आपका नहीं होता।<br />
वो हजारों मीलों से प्यार देख लेते हैं<br />
इश्क करने वालों में फासला…
तरह ग़ज़ल<br />
याद रख,अगर कच्चा रास्ता नहीं होता<br />
आज तू सड़क पर यूँ दौड़ता नहीं होता ।<br />
आदमी करेगा बेशर्म हरक़तें अक्सर,<br />
ना समझ नहीं है,के जानता नहीं होता!!<br />
तेज गति समय पहले मौत को बुलाती है<br />
आप धीरे चलते तो हादसा नहीं होता<br />
प्यार के मरासिम ऐसे निभाये जाते हैं<br />
फूल को देखना तो है तोड़ना नहीं होता<br />
क्यों ख़फा है दुनिया से,फैसला बदल अपना<br />
इस जहाँ में हर कोई बेवफ़ा नहीं होता वो तो खूबसूरत है,हर नज़र उसी पर है<br />
ग़म न कीजिए,वो गर आपका नहीं होता।<br />
वो हजारों मीलों से प्यार देख लेते हैं<br />
इश्क करने वालों में फासला नहीं होता<br />
झूठ के सहारे हम तो "सुजान "जीते हैं<br />
जिंदगी की सच्चाई का पता नहीं होता ।<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशित।<br />
सूबे सिंह "सुजान"ग़ज़ल -चाहता हूँ उसे कमल कहना ।tag:openbooks.ning.com,2016-04-01:5170231:BlogPost:7554412016-04-01T18:38:42.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
चाहता हूँ उसे कमल कहना<br />
चाँदनी और गंगा जल कहना<br />
उसकी तारीफ़ जो रहा करता<br />
भूल ही जाउंगा ग़ज़ल कहना<br />
मायने अब समझ नहीं आते<br />
अब विफल को नहीं विफल कहना<br />
दिल दुखाने में जो सफल हो जाए<br />
आजकल उनको ही सफल कहना<br />
मुस्कुराहट मुझे सिखाती है<br />
आँसुओं पर कोई ग़ज़ल कहना ।<br />
<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशित ।
चाहता हूँ उसे कमल कहना<br />
चाँदनी और गंगा जल कहना<br />
उसकी तारीफ़ जो रहा करता<br />
भूल ही जाउंगा ग़ज़ल कहना<br />
मायने अब समझ नहीं आते<br />
अब विफल को नहीं विफल कहना<br />
दिल दुखाने में जो सफल हो जाए<br />
आजकल उनको ही सफल कहना<br />
मुस्कुराहट मुझे सिखाती है<br />
आँसुओं पर कोई ग़ज़ल कहना ।<br />
<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशित ।ग़ज़ल - सबके चेहरों को देखते आयेtag:openbooks.ning.com,2016-03-28:5170231:BlogPost:7536592016-03-28T17:30:00.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>आज बस में खड़े खड़े आये<br/> सबके चेहरों को देखते आये ।<br/> <br/> पिछली यादें तलाश करते हुए<br/> हम तेरे शहर में चले आये ।<br/> <br/> और कुछ काम भी नहीं मुझको,<br/> आज मिलने ही आपसे आये ।<br/> <br/> जैसे कुछ खो गया था मेरा यहाँ<br/> हर गली मोड़ देखते आये ।<br/> <br/> मेरी औक़ात क्या महब्बत में<br/> इस जहाँ में बड़े बड़े आये ।<br/> <br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>आज बस में खड़े खड़े आये<br/> सबके चेहरों को देखते आये ।<br/> <br/> पिछली यादें तलाश करते हुए<br/> हम तेरे शहर में चले आये ।<br/> <br/> और कुछ काम भी नहीं मुझको,<br/> आज मिलने ही आपसे आये ।<br/> <br/> जैसे कुछ खो गया था मेरा यहाँ<br/> हर गली मोड़ देखते आये ।<br/> <br/> मेरी औक़ात क्या महब्बत में<br/> इस जहाँ में बड़े बड़े आये ।<br/> <br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>गीत -मेरा देश भारत जवाँ हो रहा हैtag:openbooks.ning.com,2015-08-13:5170231:BlogPost:6884542015-08-13T04:38:00.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
122122122122<br />
मेरा देश भारत जवाँ हो रहा है<br />
कि बदलाव पल पल यहाँ हो रहा है<br />
<br />
नये लोग आये नई बात की है<br />
नये ही विचारों की बरसात की है<br />
बहुत कुछ बदलना,बहुत कुछ है करना<br />
अभी आए हैं बस शुरूआत की है<br />
हम आगे बढ़ेंगे,कदम ना रूकेंगे<br />
सितारों से आगे जहाँ हो रहा है .......<br />
<br />
सभी साथ लेकर हम आगे बढ़ेंगे<br />
कि दुर्गम कठिन राह को तोड़ लेंगे<br />
न अब तक हुआ जो वो करके रहेंगे<br />
अगर आप विश्वास हम पर करेंगे<br />
तभी तो हरिक मुश्किलों से लड़ेंगे<br />
नकारात्मक को गुमाँ हो रहा है<br />
मगर अब खुला आसमाँ हो रहा है ।<br />
मौलिक व अप्रकाशित
122122122122<br />
मेरा देश भारत जवाँ हो रहा है<br />
कि बदलाव पल पल यहाँ हो रहा है<br />
<br />
नये लोग आये नई बात की है<br />
नये ही विचारों की बरसात की है<br />
बहुत कुछ बदलना,बहुत कुछ है करना<br />
अभी आए हैं बस शुरूआत की है<br />
हम आगे बढ़ेंगे,कदम ना रूकेंगे<br />
सितारों से आगे जहाँ हो रहा है .......<br />
<br />
सभी साथ लेकर हम आगे बढ़ेंगे<br />
कि दुर्गम कठिन राह को तोड़ लेंगे<br />
न अब तक हुआ जो वो करके रहेंगे<br />
अगर आप विश्वास हम पर करेंगे<br />
तभी तो हरिक मुश्किलों से लड़ेंगे<br />
नकारात्मक को गुमाँ हो रहा है<br />
मगर अब खुला आसमाँ हो रहा है ।<br />
मौलिक व अप्रकाशितगीत -मेरा देश भारत जवाँ हो रहा हैtag:openbooks.ning.com,2015-08-12:5170231:BlogPost:6886142015-08-12T18:04:59.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
122122122122<br />
मेरा देश भारत जवाँ हो रहा है<br />
कि बदलाव पल पल यहाँ हो रहा है<br />
<br />
नये लोग आये नई बात की है<br />
नये ही विचारों की बरसात की है<br />
बहुत कुछ बदलना,बहुत कुछ है करना<br />
अभी आए हैं बस शुरूआत की है<br />
हम आगे बढ़ेंगे,कदम ना रूकेंगे<br />
सितारों से आगे जहाँ हो रहा है .......<br />
<br />
सभी साथ लेकर हम आगे बढ़ेंगे<br />
कि दुर्गम कठिन राह को तोड़ लेंगे<br />
न अब तक हुआ जो वो करके रहेंगे<br />
अगर आप विश्वास हम पर करेंगे<br />
तभी तो हरिक मुश्किलों से लड़ेंगे<br />
नकारात्मक को गुमाँ हो रहा है<br />
मगर अब खुला आसमाँ हो रहा है.....<br />
<br />
मेरा देश भारत जवाँ हो रहा…
122122122122<br />
मेरा देश भारत जवाँ हो रहा है<br />
कि बदलाव पल पल यहाँ हो रहा है<br />
<br />
नये लोग आये नई बात की है<br />
नये ही विचारों की बरसात की है<br />
बहुत कुछ बदलना,बहुत कुछ है करना<br />
अभी आए हैं बस शुरूआत की है<br />
हम आगे बढ़ेंगे,कदम ना रूकेंगे<br />
सितारों से आगे जहाँ हो रहा है .......<br />
<br />
सभी साथ लेकर हम आगे बढ़ेंगे<br />
कि दुर्गम कठिन राह को तोड़ लेंगे<br />
न अब तक हुआ जो वो करके रहेंगे<br />
अगर आप विश्वास हम पर करेंगे<br />
तभी तो हरिक मुश्किलों से लड़ेंगे<br />
नकारात्मक को गुमाँ हो रहा है<br />
मगर अब खुला आसमाँ हो रहा है.....<br />
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मेरा देश भारत जवाँ हो रहा है<br />
कि बदलाव पल पल यहाँ हो रहा है ।।<br />
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रचना -मौलिक व अप्रकाशित ।गजल -आदमी अपनी ही मर्जी का खुदा रखता है ।tag:openbooks.ning.com,2015-07-20:5170231:BlogPost:6791192015-07-20T14:50:12.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
कुछ भी हो,अपने मसीहा को बड़ा रखता है<br />
आदमी अपनी ही मर्जी का खुदा रखता है<br />
वो सरेआम हकीकत से मुकर जायेगा<br />
गिरगिटों जैसी बदलने की अदा रखता है<br />
तुम गरीबी को तो इनसान का गहना समझो<br />
जो फटेहाल है वो लब पे दुआ रखता है ।<br />
जुल्म पर जुल्म जो करता है यहाँ दुनिया में<br />
उसके हिस्से में भी भगवान सजा रखता है ।<br />
मार के कुंडली,खजाने पे अकेला बैठा<br />
हक गरीबों का यहाँ सेठ दबा रखता है<br />
एक दिन मैं तुझे आईना दिखा दूंगा "सुजान "<br />
मेरे बारे में जो तू ख्याल बुरा रखता है ।<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशित ।।
कुछ भी हो,अपने मसीहा को बड़ा रखता है<br />
आदमी अपनी ही मर्जी का खुदा रखता है<br />
वो सरेआम हकीकत से मुकर जायेगा<br />
गिरगिटों जैसी बदलने की अदा रखता है<br />
तुम गरीबी को तो इनसान का गहना समझो<br />
जो फटेहाल है वो लब पे दुआ रखता है ।<br />
जुल्म पर जुल्म जो करता है यहाँ दुनिया में<br />
उसके हिस्से में भी भगवान सजा रखता है ।<br />
मार के कुंडली,खजाने पे अकेला बैठा<br />
हक गरीबों का यहाँ सेठ दबा रखता है<br />
एक दिन मैं तुझे आईना दिखा दूंगा "सुजान "<br />
मेरे बारे में जो तू ख्याल बुरा रखता है ।<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशित ।।गजल-मेरा मन मेरे सामने आइना हैtag:openbooks.ning.com,2015-06-27:5170231:BlogPost:6688412015-06-27T08:42:07.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
मेरा मन मेरे सामने आइना है<br />
मेरा आज खुद से हुआ सामना है<br />
तुम्हारे मिलन में मुझे फैलना है<br />
मगर किसलिये आज मन अनमना है<br />
तुम्हारी खुशी में हमारी खुशी है<br />
खुशी से खुशी को हमें बाँटना है<br />
महब्बत पनपती नहीं जकडनों में<br />
ये रस्मों का जंगल हमें तोड़ना है<br />
तुम्हारी महब्बत भी मंजिल थी लेकिन<br />
अभी जिंदगी है अभी दौड़ना है<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशित
मेरा मन मेरे सामने आइना है<br />
मेरा आज खुद से हुआ सामना है<br />
तुम्हारे मिलन में मुझे फैलना है<br />
मगर किसलिये आज मन अनमना है<br />
तुम्हारी खुशी में हमारी खुशी है<br />
खुशी से खुशी को हमें बाँटना है<br />
महब्बत पनपती नहीं जकडनों में<br />
ये रस्मों का जंगल हमें तोड़ना है<br />
तुम्हारी महब्बत भी मंजिल थी लेकिन<br />
अभी जिंदगी है अभी दौड़ना है<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशितगर्मियों में सर्दियाँtag:openbooks.ning.com,2015-04-17:5170231:BlogPost:6430292015-04-17T16:00:00.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>देखने में आ रही है गर्मियों में सर्दियाँ </p>
<p>मौसमों की दोस्ती हैं गर्मियों में सर्दियाँ </p>
<p></p>
<p>आम पर खामोश बैठी,झुरमटों से देखती </p>
<p>कोयलें कुछ सोचती हैं गर्मियों में सर्दियाँ </p>
<p></p>
<p>आओ चिंता सब करें अपने किसानों के लिये </p>
<p>क्यों फसल को लूटती हैं गर्मियों में सर्दिया </p>
<p></p>
<p>बादलों के साथ ओले ले, हवायें आ गई </p>
<p>देखो कितनी साहसी है गर्मियों में सर्दिया।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>देखने में आ रही है गर्मियों में सर्दियाँ </p>
<p>मौसमों की दोस्ती हैं गर्मियों में सर्दियाँ </p>
<p></p>
<p>आम पर खामोश बैठी,झुरमटों से देखती </p>
<p>कोयलें कुछ सोचती हैं गर्मियों में सर्दियाँ </p>
<p></p>
<p>आओ चिंता सब करें अपने किसानों के लिये </p>
<p>क्यों फसल को लूटती हैं गर्मियों में सर्दिया </p>
<p></p>
<p>बादलों के साथ ओले ले, हवायें आ गई </p>
<p>देखो कितनी साहसी है गर्मियों में सर्दिया।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल- बदलने को बदल जाना,मगर तहजीब जिंदा रख।tag:openbooks.ning.com,2015-04-15:5170231:BlogPost:6421632015-04-15T17:00:00.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>बदलने को बदल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख<br></br> हवा के साथ ढल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख<br></br> यहाँ रंगीन होती रोशनी है कौंधने वाली<br></br> खुशी के साथ जल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख<br></br> हमारे आम पर यह कूकती कोयल बताती है<br></br> नये मौसम मचल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख<br></br> हमारे नौजवानों की नई पीढी, नये रिश्ते<br></br> नशे में खुद को छल जाना मगर तहजीब जिंदा रख<br></br> महब्बत के लिये तो लाख पापड बेलने होंगे<br></br> महब्बत में उछल जाना मगर तहजीब जिंदा रख<br></br> बदलना भी जमाने का बडा हैरान करता है<br></br> बहुत आगे निकल जाना…</p>
<p>बदलने को बदल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख<br/> हवा के साथ ढल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख<br/> यहाँ रंगीन होती रोशनी है कौंधने वाली<br/> खुशी के साथ जल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख<br/> हमारे आम पर यह कूकती कोयल बताती है<br/> नये मौसम मचल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख<br/> हमारे नौजवानों की नई पीढी, नये रिश्ते<br/> नशे में खुद को छल जाना मगर तहजीब जिंदा रख<br/> महब्बत के लिये तो लाख पापड बेलने होंगे<br/> महब्बत में उछल जाना मगर तहजीब जिंदा रख<br/> बदलना भी जमाने का बडा हैरान करता है<br/> बहुत आगे निकल जाना मगर तहजीब जिंदा रख<br/> भटक कर आदमी इनसानियत को प्यार करता है<br/> कंही खुद को न छल जाना मगर तहजीब जिंदा रख<br/> ...........................सूबे सिंह सुजान.......................<br/> मौलिक तथा अप्रकाशित</p>गजल ,वो मुझे एकटक देखती रह गईtag:openbooks.ning.com,2015-03-17:5170231:BlogPost:6315562015-03-17T18:08:49.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
हाथ पर उसके ठोडी टिकी रह गई<br />
वो मुझे एकटक देखती रह गई<br />
<br />
वो हवा हो गई एक पल में कंही<br />
मुस्कुराहट यहाँ गूँजती रह गई<br />
<br />
मंजिलों की तरफ दौड़ते -दौड़ते,<br />
जिंदगी कट गई बेबसी रह गई<br />
<br />
आपकी याद जिंदा जलाई मगर,<br />
आँधियाँ फिर चलीं,अधजली रह गई<br />
<br />
सच का सूरज उजाला बहुत भर गया,<br />
रात आईं मगर रोशनी रह गई<br />
<br />
सूबे सिंह सुजान<br />
मौलिक व प्रकाशित
हाथ पर उसके ठोडी टिकी रह गई<br />
वो मुझे एकटक देखती रह गई<br />
<br />
वो हवा हो गई एक पल में कंही<br />
मुस्कुराहट यहाँ गूँजती रह गई<br />
<br />
मंजिलों की तरफ दौड़ते -दौड़ते,<br />
जिंदगी कट गई बेबसी रह गई<br />
<br />
आपकी याद जिंदा जलाई मगर,<br />
आँधियाँ फिर चलीं,अधजली रह गई<br />
<br />
सच का सूरज उजाला बहुत भर गया,<br />
रात आईं मगर रोशनी रह गई<br />
<br />
सूबे सिंह सुजान<br />
मौलिक व प्रकाशितमुक्तक- बेटियाँtag:openbooks.ning.com,2015-01-15:5170231:BlogPost:6062512015-01-15T17:42:56.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p> बेटियाँ </p>
<p>बेटियों की ज़मीन को सींचो</p>
<p>उग रही पौध को नहीं खींचो</p>
<p>ये हमारे समाज की जड हैं,</p>
<p>इन जडों के शरीर मत भींचो।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p> बेटियाँ </p>
<p>बेटियों की ज़मीन को सींचो</p>
<p>उग रही पौध को नहीं खींचो</p>
<p>ये हमारे समाज की जड हैं,</p>
<p>इन जडों के शरीर मत भींचो।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>ग़ज़ल- छुट्टियों के दिनtag:openbooks.ning.com,2015-01-04:5170231:BlogPost:6025952015-01-04T17:30:00.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>मस्कुराते हैं छुट्टियों के दिन <br></br> कम ही आते हैं छुट्टियों के दिन</p>
<p></p>
<p>कंपकंपाते हैं छुट्टियों के दिन </p>
<p>थरथराते हैं छुट्टियों के दिन </p>
<p></p>
<p>देखो सचमुच में थक गये हैं हम,<br></br> ये बताते हैं छुट्टियों के दिन</p>
<p><br></br> सैंकडों काम छोड कर बाकी <br></br> भाग जाते हैं छुट्टियों के दिन</p>
<p><br></br> सपनों के बोझ में दबे बच्चे <br></br> खेल पाते हैं छुट्टियों के दिन</p>
<p><br></br> चार दिन घर में रह नहीं पाये,<br></br> अब थकाते हैं छुट्टियों के दिन</p>
<p></p>
<p>आदतें और थकान,आलस…</p>
<p>मस्कुराते हैं छुट्टियों के दिन <br/> कम ही आते हैं छुट्टियों के दिन</p>
<p></p>
<p>कंपकंपाते हैं छुट्टियों के दिन </p>
<p>थरथराते हैं छुट्टियों के दिन </p>
<p></p>
<p>देखो सचमुच में थक गये हैं हम,<br/> ये बताते हैं छुट्टियों के दिन</p>
<p><br/> सैंकडों काम छोड कर बाकी <br/> भाग जाते हैं छुट्टियों के दिन</p>
<p><br/> सपनों के बोझ में दबे बच्चे <br/> खेल पाते हैं छुट्टियों के दिन</p>
<p><br/> चार दिन घर में रह नहीं पाये,<br/> अब थकाते हैं छुट्टियों के दिन</p>
<p></p>
<p>आदतें और थकान,आलस को </p>
<p>और बढाते हैं छुट्टियों के दिन </p>
<p></p>
<p>दफ़्तरों में छुपे कबूतर को </p>
<p>मुंह चिढाते हैं छुट्टियों के दिन </p>
<p></p>
<p>जैसे बरसों से भूखे-प्यासे थे </p>
<p>खूब खाते हैं छुट्टियों के दिन </p>
<p></p>
<p>सूबे सिंह सुजान</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p></p>दीपावली - चमकती फैलती दीपावली की रोशनी देखोtag:openbooks.ning.com,2014-10-23:5170231:BlogPost:5834522014-10-23T17:17:25.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>चमकती, फैलती, दीपावली की रोशनी देखो<br></br>जो फैलाई है तुमने इक नजर वो गन्दगी देखो<br></br>हमेशा दूसरों में तो निकाली हैं कमी लाखों, ...<br></br>पता चल जाएगा सच, जब कभी अपनी कमी देखो<br></br>खुशी अपनी जताने के तरीके तो हजारों हैं,<br></br>किसी की मुस्कुराती आँखों के पीछे नमी देखो<br></br>मसीहा ही समझता है हमारे दर्द के सच को<br></br>वो सबके दर्द लेकर खुश हुआ, उसकी खुशी देखो<br></br>वो कुदरत की तबाही, बेघरों के दर्द जाने है,<br></br>फरिश्ता ही मना सकता है यूँ दीपावली देखो।<br></br>^^^^^^^^^सूबे सिंह सुजान…</p>
<p>चमकती, फैलती, दीपावली की रोशनी देखो<br/>जो फैलाई है तुमने इक नजर वो गन्दगी देखो<br/>हमेशा दूसरों में तो निकाली हैं कमी लाखों, ...<br/>पता चल जाएगा सच, जब कभी अपनी कमी देखो<br/>खुशी अपनी जताने के तरीके तो हजारों हैं,<br/>किसी की मुस्कुराती आँखों के पीछे नमी देखो<br/>मसीहा ही समझता है हमारे दर्द के सच को<br/>वो सबके दर्द लेकर खुश हुआ, उसकी खुशी देखो<br/>वो कुदरत की तबाही, बेघरों के दर्द जाने है,<br/>फरिश्ता ही मना सकता है यूँ दीपावली देखो।<br/>^^^^^^^^^सूबे सिंह सुजान ^^^^^^^^^^^^^^^^</p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल- वहशतों का असर न हो जायेtag:openbooks.ning.com,2014-10-06:5170231:BlogPost:5799082014-10-06T15:30:00.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>वहशतों का असर न हो जाये<br></br> आदमी जानवर न हो जाये</p>
<p><br></br> शाम के धुंधलके डराने लगे हैं,<br></br> हमसे ओझल नगर न हो जाये</p>
<p><br></br> अपने रिश्तों को अपने तक रखना,<br></br> मीडिया को खबर न हो जाये</p>
<p><br></br> ग़म का पत्थर मुझे दबा देगा,<br></br> आपकी हाँ अगर न हो जाये<span class="text_exposed_hide">...</span></p>
<p><span class="text_exposed_show"><br></br> आप झुक जाएंगी जवानी में,<br></br> टहनियों सी कमर हो जाये</span></p>
<p><span class="text_exposed_show"><br></br> आपका इन्तजार जहर बना,<br></br> “सब्र वहशत असर…</span></p>
<p>वहशतों का असर न हो जाये<br/> आदमी जानवर न हो जाये</p>
<p><br/> शाम के धुंधलके डराने लगे हैं,<br/> हमसे ओझल नगर न हो जाये</p>
<p><br/> अपने रिश्तों को अपने तक रखना,<br/> मीडिया को खबर न हो जाये</p>
<p><br/> ग़म का पत्थर मुझे दबा देगा,<br/> आपकी हाँ अगर न हो जाये<span class="text_exposed_hide">...</span></p>
<p><span class="text_exposed_show"><br/> आप झुक जाएंगी जवानी में,<br/> टहनियों सी कमर हो जाये</span></p>
<p><span class="text_exposed_show"><br/> आपका इन्तजार जहर बना,<br/> “सब्र वहशत असर न हो जाये”</span></p>
<p></p>
<p><span class="text_exposed_show">अपना दामन बचा के रखना,</span></p>
<p><span class="text_exposed_show">आँधियों को खबर न हो जाये<br/></span></p>
<p></p>
<p><span class="text_exposed_show">मौलिक व अप्रकाशित</span></p>
<p><span class="text_exposed_show"><br/> <a class="nolink"></a><a href="http://openbooksonline.com/profile/2fvsz8v20bb3q">सूबे सिंह सुजान</a></span></p>ग़ज़ल- दर्द जब पत्थर को सुनाता था......सूबे सिंह सुजानtag:openbooks.ning.com,2014-09-18:5170231:BlogPost:5757742014-09-18T04:25:17.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p> दर्द पत्थर को जब सुनाता था</p>
<p>मुझको पत्थर और आजमाता था।</p>
<p>बोलना,उसके सामने जाकर,</p>
<p>मैं तो अन्दर से काँप जाता था</p>
<p>वो समझता न था,मेरे अहसास,</p>
<p>मैं तो मिट्टी पे लेट जाता था</p>
<p>इतनी पूजा की विधि थी उसके पास,</p>
<p>हर किसी को वो लूट जाता था</p>
<p>आज मालूम हो गया मुझको,</p>
<p>एक पुतला मुझे डराता था।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p> दर्द पत्थर को जब सुनाता था</p>
<p>मुझको पत्थर और आजमाता था।</p>
<p>बोलना,उसके सामने जाकर,</p>
<p>मैं तो अन्दर से काँप जाता था</p>
<p>वो समझता न था,मेरे अहसास,</p>
<p>मैं तो मिट्टी पे लेट जाता था</p>
<p>इतनी पूजा की विधि थी उसके पास,</p>
<p>हर किसी को वो लूट जाता था</p>
<p>आज मालूम हो गया मुझको,</p>
<p>एक पुतला मुझे डराता था।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>आलेख- विकास ही गतिमान है।tag:openbooks.ning.com,2014-09-08:5170231:BlogPost:5738372014-09-08T16:57:36.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>भारतीय या किसी अन्य देश व प्रांत की भाषा,संस्कृति,धर्म व जीवन शैली वंहा की अपनी मौलिक व प्राकृतिक होती है । जिसका स्वतः विकास होना अति आवश्यक होता है। परंतु अन्य धर्मावलम्बियों द्वारा दूसरे राज्य,संस्कृति,धर्म,पर अनावश्यक दबाव मानवीय मूल्यों को क्षति तो पहुंचाता है साथ ही अनैतिक है। किसी भी सच्चे अर्थों में जो मानव होते हैं उन्हें यह अनैतिक दबाव सहन नहीं होता , जिसके कारण मानव आपस में लडते हैं और मानवीय मूल्यों का ह्रास होता है। सच्चे अर्थों में मानव के लिये ऐसा कार्य निंदनीय होता है। भारतीय…</p>
<p>भारतीय या किसी अन्य देश व प्रांत की भाषा,संस्कृति,धर्म व जीवन शैली वंहा की अपनी मौलिक व प्राकृतिक होती है । जिसका स्वतः विकास होना अति आवश्यक होता है। परंतु अन्य धर्मावलम्बियों द्वारा दूसरे राज्य,संस्कृति,धर्म,पर अनावश्यक दबाव मानवीय मूल्यों को क्षति तो पहुंचाता है साथ ही अनैतिक है। किसी भी सच्चे अर्थों में जो मानव होते हैं उन्हें यह अनैतिक दबाव सहन नहीं होता , जिसके कारण मानव आपस में लडते हैं और मानवीय मूल्यों का ह्रास होता है। सच्चे अर्थों में मानव के लिये ऐसा कार्य निंदनीय होता है। भारतीय समाजिक मूल्य ऐसे अमानवीय कार्यों के पक्षधर नहीं हैं । हमें भारतीय संस्कृति पर गर्व है कि हमारे पूर्वजों ने हमें सर्वहित,सर्वधर्म का पाठ पढाया है।</p>
<p>मनुष्य अपने प्रथम काल से ही विकास की गति तय करता आ रहा है। मनुष्य अपने विकास के पहलू के कारण ही मनुष्य बन पाया व आज के युग में पृथ्वी से बाहर आकाश व ब्रहमाण्ड के कार्यों को भी देखरेख कर रहा है। विकास ही गतिमान है। विकास ही मनुष्य की पहचान है।</p>
<p></p>
<p> मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़जल ( बेमौसमी बादल )tag:openbooks.ning.com,2014-09-03:5170231:BlogPost:5726622014-09-03T18:30:00.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>अब खतरनाक हो गया बादल<br/> या कहें बेलगाम है पागल<br/> <br/> कोई तो इन्द्र को ये समझाये,<br/> कर रहा है किसान को घायल<br/> <br/> आसमाँ ने कहा शराबी है,<br/> मेघ नाचे है बाँध कर पायल<br/> <br/> ओ रे मूर्ख खडी फ़सल को देख,<br/> बालियों में है धूधिया चावल<br/> <br/> गडगडाहट करे, डराये है,<br/> बिजलियाँ हो रही तेरी कायल<br/> <br/> .<br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>अब खतरनाक हो गया बादल<br/> या कहें बेलगाम है पागल<br/> <br/> कोई तो इन्द्र को ये समझाये,<br/> कर रहा है किसान को घायल<br/> <br/> आसमाँ ने कहा शराबी है,<br/> मेघ नाचे है बाँध कर पायल<br/> <br/> ओ रे मूर्ख खडी फ़सल को देख,<br/> बालियों में है धूधिया चावल<br/> <br/> गडगडाहट करे, डराये है,<br/> बिजलियाँ हो रही तेरी कायल<br/> <br/> .<br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>हिन्दी गीतtag:openbooks.ning.com,2014-09-02:5170231:BlogPost:5723862014-09-02T17:30:00.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>आओ हिन्दी पढें-पढायें हम..</p>
<p>मिलके हिन्दी के गीत गायें हम....</p>
<p></p>
<p>जैसा लिखते हैं वैसा उच्चारण,</p>
<p>इसलिये हिन्दी को करें धारण</p>
<p>विश्व को आओ सच बतायें हम..</p>
<p>मिलके हिन्दी के गीत गायें हम.....</p>
<p></p>
<p>सभ्यता लिप्त हिन्दी भाषा में</p>
<p>एक इतिहास जिसकी गाथा में </p>
<p>अपनी गाथायें मत भुलायें हम...</p>
<p>आओ हिन्दी पढें-पढायें हम.....</p>
<p></p>
<p>संस्कृत रक्त में समायी है</p>
<p>देव भाषा वही बनायी है</p>
<p>अपने सम्मान को बढायें हम..</p>
<p>आओ हिन्दी पढें…</p>
<p>आओ हिन्दी पढें-पढायें हम..</p>
<p>मिलके हिन्दी के गीत गायें हम....</p>
<p></p>
<p>जैसा लिखते हैं वैसा उच्चारण,</p>
<p>इसलिये हिन्दी को करें धारण</p>
<p>विश्व को आओ सच बतायें हम..</p>
<p>मिलके हिन्दी के गीत गायें हम.....</p>
<p></p>
<p>सभ्यता लिप्त हिन्दी भाषा में</p>
<p>एक इतिहास जिसकी गाथा में </p>
<p>अपनी गाथायें मत भुलायें हम...</p>
<p>आओ हिन्दी पढें-पढायें हम.....</p>
<p></p>
<p>संस्कृत रक्त में समायी है</p>
<p>देव भाषा वही बनायी है</p>
<p>अपने सम्मान को बढायें हम..</p>
<p>आओ हिन्दी पढें पढायें हम....</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल- लोगों को ईद पर खुशी होगी।tag:openbooks.ning.com,2014-07-29:5170231:BlogPost:5627052014-07-29T16:30:00.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>चाँद की आँख में नमी होगी</p>
<p>लोगों को ईद पर खुशी होगी</p>
<p> </p>
<p>चाँद हर रोज देखता है तुम्हें,</p>
<p>आपकी आज बेबसी होगी</p>
<p> </p>
<p>जिंदगी रोज खून से लथपथ,</p>
<p>आज कैसे ये जिंदगी होगी</p>
<p> </p>
<p>गर्दनें काट कर दिखाते हो,</p>
<p>क्या खुशी फिर भी ईद की होगी</p>
<p> </p>
<p>अन्ध-विश्वास से लडाई है,</p>
<p>अब लडाई ये रोकनी होगी </p>
<p> </p>
<p>छोड दो अपना-अपना कहना उसे,</p>
<p>इस तरह खत्म दुश्मनी होगी</p>
<p> </p>
<p>आज इनसानियत है खतरे में,</p>
<p>क्या वजह है ये सोचनी…</p>
<p>चाँद की आँख में नमी होगी</p>
<p>लोगों को ईद पर खुशी होगी</p>
<p> </p>
<p>चाँद हर रोज देखता है तुम्हें,</p>
<p>आपकी आज बेबसी होगी</p>
<p> </p>
<p>जिंदगी रोज खून से लथपथ,</p>
<p>आज कैसे ये जिंदगी होगी</p>
<p> </p>
<p>गर्दनें काट कर दिखाते हो,</p>
<p>क्या खुशी फिर भी ईद की होगी</p>
<p> </p>
<p>अन्ध-विश्वास से लडाई है,</p>
<p>अब लडाई ये रोकनी होगी </p>
<p> </p>
<p>छोड दो अपना-अपना कहना उसे,</p>
<p>इस तरह खत्म दुश्मनी होगी</p>
<p> </p>
<p>आज इनसानियत है खतरे में,</p>
<p>क्या वजह है ये सोचनी होगी</p>
<p> </p>
<p>इस तरफ ओट करके बैठे हो,</p>
<p>इस तरफ कैसे रोशनी होगी</p>
<p> </p>
<p>छोड दो अपना कहना दुनिया को,</p>
<p>सारी दुनिया फिर आपकी होगी ।</p>
<p>………….सूबे सिंह सुजान..29.07.2014...</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p> </p>
<p> </p>भीषण गरमी का मौसमtag:openbooks.ning.com,2014-06-29:5170231:BlogPost:5541382014-06-29T07:52:05.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>भीषण गरमी का मौसम( अतुकांत)</p>
<p></p>
<p>भीषण गरमी के मौसम में</p>
<p>हम करते हैं आराम।</p>
<p>लेकिन जिन्दगी में,</p>
<p>कैसे करें आराम ।</p>
<p></p>
<p>काली काली जामुन</p>
<p>सावन से पहले की मीठी मीठी</p>
<p>हमने खायी,नहाते नहाते</p>
<p></p>
<p>क्या बिन बिजली हम जीते नहीं थे</p>
<p>अब सब बिजली के बिन चिल्लाते हैं</p>
<p></p>
<p>मजदूरों को कभी गरमी नहीं लगती</p>
<p>न वो बोलते हैं</p>
<p>अगर बोलें भी , तो कोई नहीं सुनता।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>भीषण गरमी का मौसम( अतुकांत)</p>
<p></p>
<p>भीषण गरमी के मौसम में</p>
<p>हम करते हैं आराम।</p>
<p>लेकिन जिन्दगी में,</p>
<p>कैसे करें आराम ।</p>
<p></p>
<p>काली काली जामुन</p>
<p>सावन से पहले की मीठी मीठी</p>
<p>हमने खायी,नहाते नहाते</p>
<p></p>
<p>क्या बिन बिजली हम जीते नहीं थे</p>
<p>अब सब बिजली के बिन चिल्लाते हैं</p>
<p></p>
<p>मजदूरों को कभी गरमी नहीं लगती</p>
<p>न वो बोलते हैं</p>
<p>अगर बोलें भी , तो कोई नहीं सुनता।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित।</p>
<p></p>
<p></p>ग़ज़ल- तूने मुझे निकलने का जब रास्ता दियाtag:openbooks.ning.com,2014-05-17:5170231:BlogPost:5420392014-05-17T16:30:00.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया।</p>
<p>मैंने भी तेरे वास्ते सर को झुका दिया।।</p>
<p></p>
<p>सबके भले में अपना भला होगा दोस्तो,</p>
<p>जीवन में आगे आएगा, सबके, लिया दिया।।</p>
<p></p>
<p>हम प्रेम प्रेम प्रेम करें, प्रेम प्रेम प्रेम,</p>
<p>कटु सत्य, प्रेम ने हमें मानव बना दिया।।</p>
<p></p>
<p>हम क्रोध में उलझते रहे दोस्तो परन्तु,</p>
<p>परमात्मा ने प्रेम, हमें सर्वथा दिया।।</p>
<p></p>
<p>वो व्यस्त हैं गुलाब दिवस को मनाने में,</p>
<p>देखो गुलाब प्रेम में मुझको भुला…</p>
<p>तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया।</p>
<p>मैंने भी तेरे वास्ते सर को झुका दिया।।</p>
<p></p>
<p>सबके भले में अपना भला होगा दोस्तो,</p>
<p>जीवन में आगे आएगा, सबके, लिया दिया।।</p>
<p></p>
<p>हम प्रेम प्रेम प्रेम करें, प्रेम प्रेम प्रेम,</p>
<p>कटु सत्य, प्रेम ने हमें मानव बना दिया।।</p>
<p></p>
<p>हम क्रोध में उलझते रहे दोस्तो परन्तु,</p>
<p>परमात्मा ने प्रेम, हमें सर्वथा दिया।।</p>
<p></p>
<p>वो व्यस्त हैं गुलाब दिवस को मनाने में,</p>
<p>देखो गुलाब प्रेम में मुझको भुला दिया।।.</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित रचना</p>रसिया- - आज होली मनाओ रे रसियाtag:openbooks.ning.com,2014-03-09:5170231:BlogPost:5195852014-03-09T17:30:00.000Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p><strong>रसिया </strong></p>
<p></p>
<p>आज होली मनाओ रे रसिया</p>
<p>रंग में भीग जाओ रे रसिया </p>
<p>दिल से दिल को मिलाओ रे रसिया </p>
<p>दुश्मनी भूल जाओ रे रसिया.</p>
<p> आज होली मनाओ रे रसिया........</p>
<p></p>
<p>मस्तों की रंग - भंग है टोली </p>
<p>नैनों से मारे रंगों की गोली </p>
<p>छोड शर्मो हया मेरे हमजोली </p>
<p>आओ खेलेंगे मिल के हम होली...</p>
<p>दोस्तों को मिलाओ रे रसिया ..</p>
<p>प्यार दिल से जगाओ रे रसिया..</p>
<p>आज होली मनाओ रे रसिया..</p>
<p>रंग में भीग जाओ रे…</p>
<p><strong>रसिया </strong></p>
<p></p>
<p>आज होली मनाओ रे रसिया</p>
<p>रंग में भीग जाओ रे रसिया </p>
<p>दिल से दिल को मिलाओ रे रसिया </p>
<p>दुश्मनी भूल जाओ रे रसिया.</p>
<p> आज होली मनाओ रे रसिया........</p>
<p></p>
<p>मस्तों की रंग - भंग है टोली </p>
<p>नैनों से मारे रंगों की गोली </p>
<p>छोड शर्मो हया मेरे हमजोली </p>
<p>आओ खेलेंगे मिल के हम होली...</p>
<p>दोस्तों को मिलाओ रे रसिया ..</p>
<p>प्यार दिल से जगाओ रे रसिया..</p>
<p>आज होली मनाओ रे रसिया..</p>
<p>रंग में भीग जाओ रे रसिया.......</p>
<p></p>
<p>डांस करके दिखाओ रे रसिया</p>
<p>लटके-झटके दिखाओ रे रसिया</p>
<p>नैंनों के तीरों से जो पकडा है, </p>
<p>दूर हटके दिखाओ रे रसिया....</p>
<p>आज होली मनाओ रे रसिया..</p>
<p>रंग में भीग जाओ रे रसिया....</p>
<p></p>
<p>एक पल साथ आओ रे रसिया </p>
<p>दूरियों को मिटाओ रे रसिया </p>
<p>दुनियां को भूल जाओ रे रसिया </p>
<p>रंग ऐसा उडाओ रे रसिया </p>
<p>आज होली मनाओ रे रसिया </p>
<p>रंग में भीग जाओ रे रसिया.....</p>
<p></p>
<p>कोई छोटा - बडा नहीं होता</p>
<p>हम सही होते कोई न रोता</p>
<p>हमसफ़र मुफ़्लिसों के बन जाओ,</p>
<p>सबसे पहले खुद को समझाओ </p>
<p>मुफ़्लिसों को उठाओ रे रसिया..</p>
<p>आ गले से लगाओ रे रसिया...</p>
<p>आज होली मनाओ रे रसिया....</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित गीत</p>
<p></p>
<p></p>