Maharshi tripathi's Posts - Open Books Online
2024-03-29T10:54:15Z
maharshi tripathi
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मेरा वो घर मुझे मिला उजड़ा मुझे जो घर बसाना था
tag:openbooks.ning.com,2017-10-31:5170231:BlogPost:893498
2017-10-31T10:30:00.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
बह्र 1222/1222/1222/1222<br />
<br />
अकेला ही रहा था मैं मेरा छप्पर उठाना था<br />
हजारों लोग तब आये मेरा जब घर गिराना था<br />
<br />
वो बोतल फेंक देते है गरम जब हो गया पानी<br />
तड़पकर मर गया देखो जिसे पानी पिलाना था<br />
<br />
तड़पकर और रो कर के बताओ क्या मिला तुमको<br />
मोहब्बत थी तुम्हें हमसे नही तुमको छिपाना था<br />
<br />
मुझे तो देखना ये था कि मेरे हीर कितने है<br />
ये मैंने कब कहा था की मुझे रिश्ता निभाना था<br />
<br />
<br />
तुम्हारी ही दुआओं का असर है माँ बुलंदी पर<br />
जहाँ मैं आज पहुचा हूँ यही तुमको बताना था<br />
<br />
रही क्या जिंदगानी खूब फिर भी है कसक मन में<br />
मुझे बिछड़े हुए…
बह्र 1222/1222/1222/1222<br />
<br />
अकेला ही रहा था मैं मेरा छप्पर उठाना था<br />
हजारों लोग तब आये मेरा जब घर गिराना था<br />
<br />
वो बोतल फेंक देते है गरम जब हो गया पानी<br />
तड़पकर मर गया देखो जिसे पानी पिलाना था<br />
<br />
तड़पकर और रो कर के बताओ क्या मिला तुमको<br />
मोहब्बत थी तुम्हें हमसे नही तुमको छिपाना था<br />
<br />
मुझे तो देखना ये था कि मेरे हीर कितने है<br />
ये मैंने कब कहा था की मुझे रिश्ता निभाना था<br />
<br />
<br />
तुम्हारी ही दुआओं का असर है माँ बुलंदी पर<br />
जहाँ मैं आज पहुचा हूँ यही तुमको बताना था<br />
<br />
रही क्या जिंदगानी खूब फिर भी है कसक मन में<br />
मुझे बिछड़े हुए टूटे हुए दो दिल मिलाना था<br />
<br />
हमारी दोस्ती तो है अमीरों से मगर हमको<br />
ये जो सड़कों पे पलते हैं उन्हें अपना बनाना था<br />
<br />
यकी तो था 'अतुल' हमको के जिंदा है वफ़ा लेकिन<br />
मेरा वो घर मिला उजड़ा मुझे जो घर बसाना था<br />
-----©महर्षि त्रिपाठी'अतुल'<br />
**************************<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
वो इक बार दिल में हमें दाखिला दें
tag:openbooks.ning.com,2016-06-15:5170231:BlogPost:776067
2016-06-15T07:36:40.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
बहर- 122*4<br />
<br />
सभी आज शरमों हया हम मिटा दें<br />
हमें है मुहब्बत उन्हे हम बता दें<br />
<br />
<br />
सजोंये सदाचार है जो अभी तक<br />
अनोखा मेरा गाँव तुमको दिखा दें<br />
<br />
<br />
नज़र लग न जाये बड़ी खूबसूरत<br />
ये तस्वीर उनकी कहीँ हम छुपा दें<br />
<br />
<br />
न हो दुश्मनी साथ मिलकर रहे हम<br />
कोई फूल यारो हम ऐसा खिला दें<br />
<br />
<br />
डिग्री साथ होगी हमारी विदाई<br />
वो इक बार दिल में हमें दाखिला दें<br />
<br />
यही आरजू है हमारी खुदा से<br />
हमें हर जनम में उन्ही का बना दें<br />
<br />
<br />
गरीबों पे करके सितम क्या मिलेगा<br />
करे हम मदद ताकि हमको दुआ दें<br />
<br />
<br />
रखा है छिपाकर 'अतुल' ऐब सारे<br />
चलो अब इसे होलिका में जला…
बहर- 122*4<br />
<br />
सभी आज शरमों हया हम मिटा दें<br />
हमें है मुहब्बत उन्हे हम बता दें<br />
<br />
<br />
सजोंये सदाचार है जो अभी तक<br />
अनोखा मेरा गाँव तुमको दिखा दें<br />
<br />
<br />
नज़र लग न जाये बड़ी खूबसूरत<br />
ये तस्वीर उनकी कहीँ हम छुपा दें<br />
<br />
<br />
न हो दुश्मनी साथ मिलकर रहे हम<br />
कोई फूल यारो हम ऐसा खिला दें<br />
<br />
<br />
डिग्री साथ होगी हमारी विदाई<br />
वो इक बार दिल में हमें दाखिला दें<br />
<br />
यही आरजू है हमारी खुदा से<br />
हमें हर जनम में उन्ही का बना दें<br />
<br />
<br />
गरीबों पे करके सितम क्या मिलेगा<br />
करे हम मदद ताकि हमको दुआ दें<br />
<br />
<br />
रखा है छिपाकर 'अतुल' ऐब सारे<br />
चलो अब इसे होलिका में जला दें<br />
************************<br />
<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशित
दुरुपयोग
tag:openbooks.ning.com,2016-06-08:5170231:BlogPost:774175
2016-06-08T08:36:02.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
"हेलो,बहना क्या हाल है,ससुराल में सब ठीक है ना "<br />
"क्या ठीक है भैया "<br />
"अरे क्या हो गया,किसी नें कुछ कहा क्या ?<br />
"अभी 2 सप्ताह ही हुए हैं आये और सभी खाना बनाने को कह रहे हैं "<br />
"अच्छा,किसकी इतनी हिम्मत है,जो तुमसे खाना बनवायेगा "<br />
"अरे,ये जो बुड्डी है ना वही,आप तो जानते हो भैया मुझे खाना बनाना......"<br />
"रो,मत पगली,तू चिंता ना कर,ज्यादा बोलेंगे तो....तू जानती है ना "<br />
"क्या भैया मैं समझी नही "<br />
"अरे तू टेंशन ना ले,तेरा ये वकील भाई कब काम आयेगा .ज्यादा जुबान चलेगी तो घरेलू हिंसा,दहेज प्रथा........<br />
तू समझ…
"हेलो,बहना क्या हाल है,ससुराल में सब ठीक है ना "<br />
"क्या ठीक है भैया "<br />
"अरे क्या हो गया,किसी नें कुछ कहा क्या ?<br />
"अभी 2 सप्ताह ही हुए हैं आये और सभी खाना बनाने को कह रहे हैं "<br />
"अच्छा,किसकी इतनी हिम्मत है,जो तुमसे खाना बनवायेगा "<br />
"अरे,ये जो बुड्डी है ना वही,आप तो जानते हो भैया मुझे खाना बनाना......"<br />
"रो,मत पगली,तू चिंता ना कर,ज्यादा बोलेंगे तो....तू जानती है ना "<br />
"क्या भैया मैं समझी नही "<br />
"अरे तू टेंशन ना ले,तेरा ये वकील भाई कब काम आयेगा .ज्यादा जुबान चलेगी तो घरेलू हिंसा,दहेज प्रथा........<br />
तू समझ गयी ना..."<br />
<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशित
अपने मित्रों को समर्पित एक गज़ल
tag:openbooks.ning.com,2016-06-03:5170231:BlogPost:772892
2016-06-03T18:00:00.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>बहर - 222 221 221 22<br/> <br/> माला के मोती बिखर जा रहे हैं<br/> सब एक एक कर अपने घर जा रहे हैं<br/> <br/>कर आँखें नम छोड़कर यूँ अकेला<br/> देकर इतनें गम किधर जा रहे हैं<br/> <br/> ढूंढेगें फ़िर भी नही अब मिलेंगे<br/> हमसा कोई भी जिधर जा रहे हैं<br/> <br/> देखो पूरी हो गयी है पढ़ाई<br/> ले बिस्तर वापस शहर जा रहे हैं<br/> <br/> भगवन मेरे यार रखना सलामत<br/> साथी मेरे जिस डगर जा रहे हैं<br/><br/> .<br/> मौलिक व अप्रकाशित<br/> (बी.टेक पूरा होने पर अपने मित्रों के जाने पर लिखी गज़ल )</p>
<p>बहर - 222 221 221 22<br/> <br/> माला के मोती बिखर जा रहे हैं<br/> सब एक एक कर अपने घर जा रहे हैं<br/> <br/>कर आँखें नम छोड़कर यूँ अकेला<br/> देकर इतनें गम किधर जा रहे हैं<br/> <br/> ढूंढेगें फ़िर भी नही अब मिलेंगे<br/> हमसा कोई भी जिधर जा रहे हैं<br/> <br/> देखो पूरी हो गयी है पढ़ाई<br/> ले बिस्तर वापस शहर जा रहे हैं<br/> <br/> भगवन मेरे यार रखना सलामत<br/> साथी मेरे जिस डगर जा रहे हैं<br/><br/> .<br/> मौलिक व अप्रकाशित<br/> (बी.टेक पूरा होने पर अपने मित्रों के जाने पर लिखी गज़ल )</p>
सदा ही ख्वाब में आऊ सदा जगाऊ मैं तुमको
tag:openbooks.ning.com,2016-06-01:5170231:BlogPost:772390
2016-06-01T17:40:00.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>बहर -1222 1222 1212 2222</p>
<p>सदा ही ख्वाब में आऊ सदा जगाऊ मैं तुमको <br></br> खुले जब आँख लूँ जब नाम पास पाऊ मैं तुमको</p>
<p>तेरी जब गोद में रखकर के सर गजल मैं पढता था <br></br> मेरा अरमान है इक बार फिर सुनाऊ मैं तुमको</p>
<p>गये जब से अकेला छोड़ हम तभी से रोते हैं <br></br> नहीं हसरत मेरी रोऊँ नहीं रुलाऊ मैं तुमको</p>
<p>भटकता दर-ब-दर हूँ फिर रहा कहाँ हो बोलो ना<br></br> सहा क्या क्या गवायाँ क्या मिलो गिनाऊ मैं तुमको</p>
<p>सहा जाता न अब हमसे विरह भरा मेरा जीवन <br></br> मेरी बाहें खुली आओ गले लगाऊ मैं…</p>
<p>बहर -1222 1222 1212 2222</p>
<p>सदा ही ख्वाब में आऊ सदा जगाऊ मैं तुमको <br/> खुले जब आँख लूँ जब नाम पास पाऊ मैं तुमको</p>
<p>तेरी जब गोद में रखकर के सर गजल मैं पढता था <br/> मेरा अरमान है इक बार फिर सुनाऊ मैं तुमको</p>
<p>गये जब से अकेला छोड़ हम तभी से रोते हैं <br/> नहीं हसरत मेरी रोऊँ नहीं रुलाऊ मैं तुमको</p>
<p>भटकता दर-ब-दर हूँ फिर रहा कहाँ हो बोलो ना<br/> सहा क्या क्या गवायाँ क्या मिलो गिनाऊ मैं तुमको</p>
<p>सहा जाता न अब हमसे विरह भरा मेरा जीवन <br/> मेरी बाहें खुली आओ गले लगाऊ मैं तुमको</p>
<p>सताओ ना हमें आओ तुम्हें दिखा दूँ मैं दुनिया <br/> चलो अब पास आओ गोद में उठाऊ मैं तुमको <br/>
********************************</p>
<p>मौलिक व् अप्रकाशित</p>
छोटे भगवान्
tag:openbooks.ning.com,2016-04-12:5170231:BlogPost:757182
2016-04-12T05:09:05.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>अदभुत अकथनीय वातावरण</p>
<p>आज भगवान स्वयं घर पधारे हैं ,</p>
<p>चारों –ओर खुशियाँ ही खुशियाँ लाये है</p>
<p>भगवान् या देवी जो भी हों</p>
<p>घर को खुशियों से भर दिया है </p>
<p>आज अम्बर भी ,देव वियोग में आसूं बहा रहा है</p>
<p>हवायें भी व्याकुल हो</p>
<p>प्रभु को ढूढने चली आ रही हैं</p>
<p>इससे अनभिज्ञ ,अंजान हैं</p>
<p>हमारे छोटे भगवान् जी</p>
<p>घरवालों के प्रान जी</p>
<p>पर क्या इनकी पूजा होगी ?</p>
<p>क्या इनकी किलकारियां ,नटखट अदाएं यूँ ही रहेंगी ?</p>
<p>ऐसा प्रश्न क्यूँ आया</p>
<p>आना…</p>
<p>अदभुत अकथनीय वातावरण</p>
<p>आज भगवान स्वयं घर पधारे हैं ,</p>
<p>चारों –ओर खुशियाँ ही खुशियाँ लाये है</p>
<p>भगवान् या देवी जो भी हों</p>
<p>घर को खुशियों से भर दिया है </p>
<p>आज अम्बर भी ,देव वियोग में आसूं बहा रहा है</p>
<p>हवायें भी व्याकुल हो</p>
<p>प्रभु को ढूढने चली आ रही हैं</p>
<p>इससे अनभिज्ञ ,अंजान हैं</p>
<p>हमारे छोटे भगवान् जी</p>
<p>घरवालों के प्रान जी</p>
<p>पर क्या इनकी पूजा होगी ?</p>
<p>क्या इनकी किलकारियां ,नटखट अदाएं यूँ ही रहेंगी ?</p>
<p>ऐसा प्रश्न क्यूँ आया</p>
<p>आना चाहिए हम ऐसे ही समाज में तो जी रहे हैं,</p>
<p>जो जल हमारी प्यास बुझाता है</p>
<p>कभी-कभी बाढ़ का खूंखार रूप भी लाता है</p>
<p>सब अपने जन्मदाता जैसे नहीं होते,</p>
<p>कुछ नज़रें शिकार भी ढूढती हैं</p>
<p>जब इंसान के अन्दर का भगवान् मरता है</p>
<p>फिर किसे बच्चों में भगवान् दिखता है</p>
<p>क्या भविष्य है छोटे भगवान् का ?</p>
<p>सरल है ,सीधा है</p>
<p>दरिंदों के चंगुल से कब तक बचेंगे</p>
<p>आज खेल रहे हैं जिसकी गोदी में</p>
<p>उसके अन्दर शैतान पनप रहा है</p>
<p>कुछ समझ भी तो नही सकते</p>
<p>छोटे भगवान् जो ठहरे ,</p>
<p>माँ-बाप को कुछ बयाँ भी नहीं कर सकते</p>
<p>फिर होगा यही,</p>
<p>जहाँ प्यार है ,चंचलता है ,मासूमियत है</p>
<p>वहां अपनों का शिकार बनकर</p>
<p>हँसना ,खेलना भूलकर</p>
<p>सहमे हुए ,दुबककर,पीर सागर के संग</p>
<p>नन्ही आँखों में भयावह मंजर लिए</p>
<p>बैठे होंगे किसी कोने में</p>
<p>छोटे भगवान्</p>
<p>इसी डर में कि कोई अपना,</p>
<p>अपना शिकार न बना ले |</p>
<p>***********************</p>
<p> </p>
<p></p>
<p>मौलिक व् अप्रकाशित </p>
भारतीय वीरों को समर्पित गजल (महर्षि त्रिपाठी )
tag:openbooks.ning.com,2016-01-10:5170231:BlogPost:731538
2016-01-10T12:50:00.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>२२१२ २२१ २२२ </p>
<p></p>
<p>जय हिन्द की आवाज़ सीमा पर </p>
<p>होगा समर आगाज़ सीमा पर </p>
<p></p>
<p>सुधरेंगे कब हालात सीमा पर </p>
<p>कबतक मरें जाबाँज सीमा पर </p>
<p></p>
<p><span>जारी रही यूँ सेंध दुश्मन की </span></p>
<p>बदलेंगे हम अल्फाज सीमा पर </p>
<p></p>
<p>कुर्बा किया है जान वीरों नें </p>
<p>रखकर वतन की लाज सीमा पर </p>
<p></p>
<p>काटेंगे सर-ओ-हाथ दुश्मनों की </p>
<p>पहना शरम का ताज सीमा पर </p>
<p> </p>
<p>जबतक रहें यूँ वीर भारत में </p>
<p>तबतक करें हम नाज सीमा…</p>
<p>२२१२ २२१ २२२ </p>
<p></p>
<p>जय हिन्द की आवाज़ सीमा पर </p>
<p>होगा समर आगाज़ सीमा पर </p>
<p></p>
<p>सुधरेंगे कब हालात सीमा पर </p>
<p>कबतक मरें जाबाँज सीमा पर </p>
<p></p>
<p><span>जारी रही यूँ सेंध दुश्मन की </span></p>
<p>बदलेंगे हम अल्फाज सीमा पर </p>
<p></p>
<p>कुर्बा किया है जान वीरों नें </p>
<p>रखकर वतन की लाज सीमा पर </p>
<p></p>
<p>काटेंगे सर-ओ-हाथ दुश्मनों की </p>
<p>पहना शरम का ताज सीमा पर </p>
<p> </p>
<p>जबतक रहें यूँ वीर भारत में </p>
<p>तबतक करें हम नाज सीमा पर </p>
<p></p>
<p>********************************</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>"मौलिक व् अप्रकाशित "</p>
<p></p>
प्राकृतिक सौन्दर्य पर हमने दाग लगाया है (कविता )
tag:openbooks.ning.com,2015-10-02:5170231:BlogPost:704446
2015-10-02T09:22:44.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>चहुँ ओर फैली हरियाली </p>
<p>देती जो हमको खुशहाली </p>
<p>पर यह कब तक बनी रहेगी </p>
<p>जब न मोटर - कार रहेगी </p>
<p>इसे चलाकर हमने दूषित वायु किया </p>
<p>जानबूझकर हमने छोटा आयु किया </p>
<p>कर वायु प्रदूषित हमने महाप्रलय बुलाया है </p>
<p>प्राकृतिक सौन्दर्य पर हमने दाग लगाया है |</p>
<p></p>
<p>भारतवासी पवन गंगा जिससे बुलाते हैं </p>
<p>पापतारने हेतु इसी गंगा में डुबकी लगाते हैं</p>
<p>भूल गए पावन गंगा ,हम भूल गये कहानी को</p>
<p></p>
<p>अपवित्र करडाला गंगा लाकर गंदे पानी को</p>
<p>खुद की…</p>
<p>चहुँ ओर फैली हरियाली </p>
<p>देती जो हमको खुशहाली </p>
<p>पर यह कब तक बनी रहेगी </p>
<p>जब न मोटर - कार रहेगी </p>
<p>इसे चलाकर हमने दूषित वायु किया </p>
<p>जानबूझकर हमने छोटा आयु किया </p>
<p>कर वायु प्रदूषित हमने महाप्रलय बुलाया है </p>
<p>प्राकृतिक सौन्दर्य पर हमने दाग लगाया है |</p>
<p></p>
<p>भारतवासी पवन गंगा जिससे बुलाते हैं </p>
<p>पापतारने हेतु इसी गंगा में डुबकी लगाते हैं</p>
<p>भूल गए पावन गंगा ,हम भूल गये कहानी को</p>
<p></p>
<p>अपवित्र करडाला गंगा लाकर गंदे पानी को</p>
<p>खुद की खुशियाँ नहीं सोहाती जीवों का तो ख्याल करो</p>
<p>याद रखो प्यारे खग को ,जलचर का तो ख्याल करो </p>
<p>इस हँसते गाते जीवन में हमने आग लगाया है </p>
<p>प्राकृतिक सौन्दर्य पर हमने दाग लगाया है |</p>
<p></p>
<p>पढ़िए और जानते रहिये क्या क्या दूषित कर डाला </p>
<p>'महर्षि 'तो यही जानता जीवन को नर्क बना डाला </p>
<p>अबभी सुधार हो सकता है कुछ नए क्रियाकलापों से</p>
<p>मुक्ति मिल सकती है हमको इन दूषित संतापों से</p>
<p>हमको मोटर-कार छोड़कर साईकिल को अपनाना है</p>
<p>नदियों में प्रेषित दूषित जल का शोधन करवाना है </p>
<p>रोगमुक्त जीवन के लिये शुद्ध उदक को पीना है </p>
<p>रोककटाई वन की हमको खुली हवा में जीना है </p>
<p>मैंने प्राकृतिक पीड़ा को एक आवाज़ बनाया है </p>
<p>प्राकृतिक सौन्दर्य पर हमने दाग लगाया है ||</p>
<p>*******************************************</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>"मौलिक व् अप्रकाशित "</p>
<p></p>
सुनो-सुनाओ, दर्द घटाओ अपनी अपनी प्रेम कहानी
tag:openbooks.ning.com,2015-07-22:5170231:BlogPost:679497
2015-07-22T13:30:00.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>है सजी महफ़िल यारों </p>
<p>फिर से जख्मों को उठाओ </p>
<p>याद फिर कर लो उसे </p>
<p>जिससे मोहब्बत की थी यारों</p>
<p>फिर वही कुछ हँसते गाते </p>
<p>रुठते और फिर मनाते </p>
<p>अश्क़ जब आँखों में आये </p>
<p>गीत बन जब दर्द जाये</p>
<p>जख्म तुम सबको दिखाओ</p>
<p>फिर वही अपनी पुरानी</p>
<p>सुनो-सुनाओ, दर्द घटाओ</p>
<p>अपनी अपनी प्रेम कहानी |</p>
<p></p>
<p>उसको भी बतलाओ यारों</p>
<p>वो कहाँ और हम कहाँ हैं </p>
<p>हमने तो जख्मों को अपने </p>
<p>जीने का जरिया बनाया</p>
<p>गिर के खुद संभले जहाँ…</p>
<p>है सजी महफ़िल यारों </p>
<p>फिर से जख्मों को उठाओ </p>
<p>याद फिर कर लो उसे </p>
<p>जिससे मोहब्बत की थी यारों</p>
<p>फिर वही कुछ हँसते गाते </p>
<p>रुठते और फिर मनाते </p>
<p>अश्क़ जब आँखों में आये </p>
<p>गीत बन जब दर्द जाये</p>
<p>जख्म तुम सबको दिखाओ</p>
<p>फिर वही अपनी पुरानी</p>
<p>सुनो-सुनाओ, दर्द घटाओ</p>
<p>अपनी अपनी प्रेम कहानी |</p>
<p></p>
<p>उसको भी बतलाओ यारों</p>
<p>वो कहाँ और हम कहाँ हैं </p>
<p>हमने तो जख्मों को अपने </p>
<p>जीने का जरिया बनाया</p>
<p>गिर के खुद संभले जहाँ पर</p>
<p>ऐसा एक दुनिया बनाया </p>
<p>हमने त्यागे पुष्प हृदय के</p>
<p>शूल को अपना बनाया</p>
<p>त्यागें वांछित प्रेम स्वप्न और</p>
<p>कंठ को अपना बनाया</p>
<p>रच के पीर ग्रन्थ अपनी</p>
<p>पूरी दुनिया को सुनाओ</p>
<p>अपनी -अपनी मुहजुबानी </p>
<p>सुनो-सुनाओ, दर्द घटाओ</p>
<p>अपनी अपनी प्रेम कहानी |</p>
<p></p>
<p>दिन भी कट जातें हैं अब तो </p>
<p>अब नही रातों को जगना</p>
<p>अपने -अपने गुण दोष पर </p>
<p>अब नही लड़ना झगड़ना</p>
<p>है नही इस इश्क़ में कुछ</p>
<p>दिल मेरा अब मानता है </p>
<p>इश्क़ है मुस्कान मन की </p>
<p>बस यही अब जानता है </p>
<p>इश्क़ है अपने वतन से </p>
<p>इश्क़ है अपने चमन से</p>
<p>इश्क़ है अपने कुटुम्ब से</p>
<p>आज ये सबको बताओ</p>
<p>जिस के दिल बसती हैं रानी </p>
<p>सुनो-सुनाओ, दर्द घटाओ</p>
<p>अपनी अपनी प्रेम कहानी |</p>
<p>****************************</p>
<p></p>
<p></p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित "</p>
<p></p>
गलत संगति
tag:openbooks.ning.com,2015-06-06:5170231:BlogPost:662773
2015-06-06T14:30:00.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>"अरे मिश्रा जी ,इतना सामान कहाँ ले जा रहे हैं "-पड़ोस के एक सज्जन ने पूछा |</p>
<p>"कुछ नही ,भाई रमेश ,मेरे बेटे का बी.टेक में सिलेक्शन हो गया है न ,उसे हास्टल छोड़ने जा रहा हूँ"-मिश्रा जी ने बड़े गर्व से कहा |</p>
<p>"देखो ,बेटे ,वहां सभी गन्दी चीज़ों से दूर रहना ,अब तक तो हम तेरे साथ थे ,अब तुझे खुद ही सब कुछ करना होगा "-बेटे को समझाते हुए मिश्रा जी ने कहा |</p>
<p>बेटा जो अभी कच्ची मिटटी था ,अपने माँ बाप से कभी दूर नही हुआ आँखों में आंसू भरकर बोला "जी,पिता जी"</p>
<p>इतना कह कर बेटा…</p>
<p>"अरे मिश्रा जी ,इतना सामान कहाँ ले जा रहे हैं "-पड़ोस के एक सज्जन ने पूछा |</p>
<p>"कुछ नही ,भाई रमेश ,मेरे बेटे का बी.टेक में सिलेक्शन हो गया है न ,उसे हास्टल छोड़ने जा रहा हूँ"-मिश्रा जी ने बड़े गर्व से कहा |</p>
<p>"देखो ,बेटे ,वहां सभी गन्दी चीज़ों से दूर रहना ,अब तक तो हम तेरे साथ थे ,अब तुझे खुद ही सब कुछ करना होगा "-बेटे को समझाते हुए मिश्रा जी ने कहा |</p>
<p>बेटा जो अभी कच्ची मिटटी था ,अपने माँ बाप से कभी दूर नही हुआ आँखों में आंसू भरकर बोला "जी,पिता जी"</p>
<p>इतना कह कर बेटा हास्टल के लिए रवाना हुआ |</p>
<p> 4 साल बाद मिश्रा जी अपनी पथराई आँखों से बेटे के उज्जवल भविष्य की कल्पना कर रहे थे ,तभी एक ऑटो आकर रुकी | मिश्रा जी का धयान उस तरफ गया | ऑटो से उनका बेटा तो निकला पर उज्जवल भविष्य की जगह 'जुबान पे गाली और ,हाथों में शराब की बोतल' जरुर थी |</p>
<p></p>
<p></p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित "</p>
सजा पायी है
tag:openbooks.ning.com,2015-06-03:5170231:BlogPost:661883
2015-06-03T12:31:43.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>क्या कहूँ सच का हाल इस दौर में मित्रों </p>
<p>मैंने अपनों से सच कहने की सजा पायी है </p>
<p>अब तो हद है जुल्मों सितम गरीबों पर </p>
<p>आम को इमली न कहने की सजा पायी है </p>
<p>अब तो जुर्म करने वाले भी बेबाक घूमते हैं</p>
<p>कईयों ने तो जुर्म सहने की सजा पायी है</p>
<p> बक्शा नही प्रभु ने मेरे आलिन्द गिरा दिए </p>
<p>मैंने माँ को बेघर करने की सजा पायी है </p>
<p>टूटा है दिल मेरा आँखों में सिर्फ पानी है </p>
<p>हाँ मैंने इश्क़ करने की सजा पायी है </p>
<p>कैद हैं पिजड़े में, माँ संग नीड में रहने…</p>
<p>क्या कहूँ सच का हाल इस दौर में मित्रों </p>
<p>मैंने अपनों से सच कहने की सजा पायी है </p>
<p>अब तो हद है जुल्मों सितम गरीबों पर </p>
<p>आम को इमली न कहने की सजा पायी है </p>
<p>अब तो जुर्म करने वाले भी बेबाक घूमते हैं</p>
<p>कईयों ने तो जुर्म सहने की सजा पायी है</p>
<p> बक्शा नही प्रभु ने मेरे आलिन्द गिरा दिए </p>
<p>मैंने माँ को बेघर करने की सजा पायी है </p>
<p>टूटा है दिल मेरा आँखों में सिर्फ पानी है </p>
<p>हाँ मैंने इश्क़ करने की सजा पायी है </p>
<p>कैद हैं पिजड़े में, माँ संग नीड में रहने वाले </p>
<p>बस खुले आसमान में उड़ने की सजा पायी है </p>
<p>****************************************</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित "</p>
भारत -मेरी कल्पना
tag:openbooks.ning.com,2015-04-06:5170231:BlogPost:638689
2015-04-06T17:30:00.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<div>सुबह हो हमारी अपनों के बीच रहकर हो </div>
<div>हमारे ख्वाब और कोलाहल वाले नभचर हों </div>
<div>चहचहाती चिड़ियों के आनंदित लम्हें हों </div>
<div>सुगन्धित वायु से परिपूर्ण सब पुष्प सुनहरे हों </div>
<div>हमारी जिद है ,भारत की सुबह बनाने की </div>
<div>जिद है हमारे दिल में ,एक भारत बनाने की |</div>
<div>लहलहाते हुए सब खेत और खलिहान गाते हों </div>
<div>न फ़िल्मी दुनिया के सब अपमान गाते हों </div>
<div>एकसाथ मिलकर हमसब राष्ट्रगान गाते हों </div>
<div>सुबह उठकर सभी अपने प्रभु गुणगान गाते…</div>
<div>सुबह हो हमारी अपनों के बीच रहकर हो </div>
<div>हमारे ख्वाब और कोलाहल वाले नभचर हों </div>
<div>चहचहाती चिड़ियों के आनंदित लम्हें हों </div>
<div>सुगन्धित वायु से परिपूर्ण सब पुष्प सुनहरे हों </div>
<div>हमारी जिद है ,भारत की सुबह बनाने की </div>
<div>जिद है हमारे दिल में ,एक भारत बनाने की |</div>
<div>लहलहाते हुए सब खेत और खलिहान गाते हों </div>
<div>न फ़िल्मी दुनिया के सब अपमान गाते हों </div>
<div>एकसाथ मिलकर हमसब राष्ट्रगान गाते हों </div>
<div>सुबह उठकर सभी अपने प्रभु गुणगान गाते हों </div>
<div>जिद है सुबह-ए-शाम वीरगान गाने की </div>
<div>जिद है हमारे दिल में ,एक भारत बनाने की |</div>
<div>भेदभाव न करके सब एकसाथ रहते हों </div>
<div>पिता को पिताजी और माँ को माँ कहते हों </div>
<div>बराबर भागीदारी में सुख-दुःख सहते हो </div>
<div>अपने पराये में भी एहमियत समझते हों </div>
<div>हमारी जिद है, भारत में ये पैगाम पहुचाने की </div>
<div>जिद है हमारे दिल में ,एक भारत बनाने की |</div>
<div>सभी धर्म की आड़ में दानव न बनते हों</div>
<div>ज्ञान ले लिया हो पर कभी रावण न बनते हों </div>
<div>मित्रता का झांसा देकर दरिन्दे न बनते हों </div>
<div>असफल हों फिर भी आत्महत्या न बनते हों </div>
<div>जिद है ,हिन्दुस्ता को अपने स्वर्ग बनाने की </div>
<div>जिद है हमारे दिल में ,एक भारत बनाने की ||</div>
<div>********************************************</div>
<div>"मौलिक वा अप्रकाशित "</div>
<p></p>
मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो
tag:openbooks.ning.com,2015-03-13:5170231:BlogPost:630347
2015-03-13T17:12:47.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो </p>
<p></p>
<p>मेरे आँखों की पानी तुम हो </p>
<p>मेरे ख्वाबों की रानी तुम हो </p>
<p>मेरे दर्द की कहानी तुम हो </p>
<p>हाँ तुम हो ,</p>
<p>मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो |</p>
<p></p>
<p>तुझसा कोई न आये</p>
<p>गर आये तो फिर न जाये </p>
<p>तेरे बिन जिया न जाये </p>
<p>ये दिल पाये जिसे पाये ,तुम हो </p>
<p>हाँ तुम हो </p>
<p>मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो |</p>
<p></p>
<p>हर जगह से था मैं हारा </p>
<p>था मैं वक़्त का मारा</p>
<p>मुझे मिला…</p>
<p>मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो </p>
<p></p>
<p>मेरे आँखों की पानी तुम हो </p>
<p>मेरे ख्वाबों की रानी तुम हो </p>
<p>मेरे दर्द की कहानी तुम हो </p>
<p>हाँ तुम हो ,</p>
<p>मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो |</p>
<p></p>
<p>तुझसा कोई न आये</p>
<p>गर आये तो फिर न जाये </p>
<p>तेरे बिन जिया न जाये </p>
<p>ये दिल पाये जिसे पाये ,तुम हो </p>
<p>हाँ तुम हो </p>
<p>मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो |</p>
<p></p>
<p>हर जगह से था मैं हारा </p>
<p>था मैं वक़्त का मारा</p>
<p>मुझे मिला तेरा किनारा </p>
<p>बन गया जो मेरा सहारा ,तुम हो </p>
<p>हाँ तुम हो </p>
<p>मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो |</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मेरे सुख-दुःख में भागीदारी </p>
<p>मोहब्बत में मिली सवारी </p>
<p>फीकी है ये दुनिया सारी</p>
<p>घर को स्वर्ग बना दे नारी ,तुम हो</p>
<p>हाँ तुम हो</p>
<p> मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो ||</p>
<p>*****************************************</p>
<p></p>
<p>"मौलिक वा अप्रकाशित "</p>
रख के गिरवी अपनी जाँ तुम्हें फिर माँग लूँगा मैं
tag:openbooks.ning.com,2015-02-26:5170231:BlogPost:622644
2015-02-26T16:30:00.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>बनके अश्रु जब टपकेगी दिल की बेचैनी<br></br> मोहब्बत है तुझे हमसे फिर मान लूँगा मैं |<br></br> <br></br> बयां कर न कर पढ़ के चेहरे की हालत<br></br> जरुरत है तुझे मेरी फिर जान लूँगा मैं |</p>
<p><br></br> जाके मिल गयी तुम गर सितारों में<br></br> देख चमकने की अदा फिर पहचान लूँगा मैं |<br></br> <br></br> पकड़ हाथों में हाथ बनाके दिल की रानी<br></br> जहाँ कोई न हो दुश्मन फिर जहान लूँगा मैं |<br></br> <br></br> सुनहरे केश और आँखों पे पलकों का ज़ेबा<br></br> बनाके तुझे भेजा उसका फिर एहसान लूँगा मैं |<br></br> <br></br> बुलावा आ गया तेरा गर मुझ से पहले…<br></br></p>
<p>बनके अश्रु जब टपकेगी दिल की बेचैनी<br/> मोहब्बत है तुझे हमसे फिर मान लूँगा मैं |<br/> <br/> बयां कर न कर पढ़ के चेहरे की हालत<br/> जरुरत है तुझे मेरी फिर जान लूँगा मैं |</p>
<p><br/> जाके मिल गयी तुम गर सितारों में<br/> देख चमकने की अदा फिर पहचान लूँगा मैं |<br/> <br/> पकड़ हाथों में हाथ बनाके दिल की रानी<br/> जहाँ कोई न हो दुश्मन फिर जहान लूँगा मैं |<br/> <br/> सुनहरे केश और आँखों पे पलकों का ज़ेबा<br/> बनाके तुझे भेजा उसका फिर एहसान लूँगा मैं |<br/> <br/> बुलावा आ गया तेरा गर मुझ से पहले<br/> रख के गिरवी अपनी जाँ तुम्हें फिर माँग लूँगा मैं |||<br/> <br/> **********************************<br/>"मौलिक व अप्रकाशित "</p>
पीछे मेरी दुआ है |
tag:openbooks.ning.com,2015-02-19:5170231:BlogPost:619276
2015-02-19T17:00:00.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>वो आज है नही मेरी दुनिया में </p>
<p>फिर भी बसती है मेरे जिया में </p>
<p>लगता है आज भी याद करती है </p>
<p>मुझे पाने की फ़रियाद करती है</p>
<p>शायद खुश है ,जिन्दा है</p>
<p>क्यूंकि उसे कुछ हुआ है</p>
<p>वो आज जो है, जैसी है ,पीछे मेरी दुआ है |</p>
<p></p>
<p>मन करता है फिर से पाऊं उसे</p>
<p>दर्द भरी दुनिया से चुराऊं उसे</p>
<p>वो चली गयी पर कुछ कशिश तो है</p>
<p>चिराग न सही ,पर माचिस तो है</p>
<p>एहसास हो रहा है , उसने ख़त छुआ है</p>
<p> वो आज जो है, जैसी है ,पीछे मेरी दुआ है…</p>
<p>वो आज है नही मेरी दुनिया में </p>
<p>फिर भी बसती है मेरे जिया में </p>
<p>लगता है आज भी याद करती है </p>
<p>मुझे पाने की फ़रियाद करती है</p>
<p>शायद खुश है ,जिन्दा है</p>
<p>क्यूंकि उसे कुछ हुआ है</p>
<p>वो आज जो है, जैसी है ,पीछे मेरी दुआ है |</p>
<p></p>
<p>मन करता है फिर से पाऊं उसे</p>
<p>दर्द भरी दुनिया से चुराऊं उसे</p>
<p>वो चली गयी पर कुछ कशिश तो है</p>
<p>चिराग न सही ,पर माचिस तो है</p>
<p>एहसास हो रहा है , उसने ख़त छुआ है</p>
<p> वो आज जो है, जैसी है ,पीछे मेरी दुआ है |</p>
<p></p>
<p>वो लड़ना -झगड़ना बेमतलब की बातों का </p>
<p>अलग आनंद था आता तब उन रातों का </p>
<p>वो तेरा रूठना ,मेरा मनाना</p>
<p>वो छोटे से छोटे राज भी तुमको बताना </p>
<p>हँसना ,हँसाना और तेरा मुस्कुराना</p>
<p>पर अब हुआ मालूम प्यार एक जुआ है </p>
<p> वो आज जो है, जैसी है ,पीछे मेरी दुआ है ||</p>
<p>*******************************************</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित "</p>
रेलवे पुलिस (लघुकथा )
tag:openbooks.ning.com,2015-01-19:5170231:BlogPost:608162
2015-01-19T09:30:00.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>"साहब इस डिब्बे में एक आदमी अचेत पड़ा है,शायद जहरखुरानी का शिकार है " रेलवे पुलिस का कर्मचारी बोला |</p>
<p>"देख अपने लिए भी कुछ छोड़ा है या सब ले गए ?- अफसर </p>
<p>"सब ले गए साहब "- कर्मचारी </p>
<p>"कहता हूँ ,सालों से किसी की चीज मत खाया करो ,छोड़ ये सब चल एक कप चाय पिला "- अफसर कहते हुए बाहर निकल आते हैं |</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>"मौलिक व् अप्रकाशित "</p>
<p>"साहब इस डिब्बे में एक आदमी अचेत पड़ा है,शायद जहरखुरानी का शिकार है " रेलवे पुलिस का कर्मचारी बोला |</p>
<p>"देख अपने लिए भी कुछ छोड़ा है या सब ले गए ?- अफसर </p>
<p>"सब ले गए साहब "- कर्मचारी </p>
<p>"कहता हूँ ,सालों से किसी की चीज मत खाया करो ,छोड़ ये सब चल एक कप चाय पिला "- अफसर कहते हुए बाहर निकल आते हैं |</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>"मौलिक व् अप्रकाशित "</p>
मोहब्बत इस ज़माने में गुनाह हो गया
tag:openbooks.ning.com,2015-01-05:5170231:BlogPost:602928
2015-01-05T13:23:03.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>हम तुम्हारे थे पर तुम क्यूँ समझी नही<br></br>बेवजह सबकी बातों में उलझी रही<br></br>संदेहात्मक परिस्थिति भी सुलझी नही <br></br>तुम से जुड़ना ही मेरा गुनाह हो गया <br></br>मोहब्बत इस ज़माने में गुनाह हो गया |</p>
<p></p>
<p>तुम से मिलकर फ़कीर दिल भी राजा हुआ<br></br>मन का मुरझाया फूल भी ताजा हुआ <br></br>मेरे हर दुःख-दर्द का भी जनाजा हुआ <br></br>तुम्हारा पास आना भी गुनाह हो गया <br></br>मोहब्बत इस ज़माने में गुनाह हो गया |</p>
<p></p>
<p>तुमने दिए जो जख्म अब वो भरते नही<br></br>मेरी सांसे भी रुकने से अब तो डरते नही<br></br>मर चुके जो…</p>
<p>हम तुम्हारे थे पर तुम क्यूँ समझी नही<br/>बेवजह सबकी बातों में उलझी रही<br/>संदेहात्मक परिस्थिति भी सुलझी नही <br/>तुम से जुड़ना ही मेरा गुनाह हो गया <br/>मोहब्बत इस ज़माने में गुनाह हो गया |</p>
<p></p>
<p>तुम से मिलकर फ़कीर दिल भी राजा हुआ<br/>मन का मुरझाया फूल भी ताजा हुआ <br/>मेरे हर दुःख-दर्द का भी जनाजा हुआ <br/>तुम्हारा पास आना भी गुनाह हो गया <br/>मोहब्बत इस ज़माने में गुनाह हो गया |</p>
<p></p>
<p>तुमने दिए जो जख्म अब वो भरते नही<br/>मेरी सांसे भी रुकने से अब तो डरते नही<br/>मर चुके जो इश्क़ में अब वो मरते नही <br/>तेरे इश्क़ में मरना गुनाह हो गया <br/>मोहब्बत इस ज़माने में गुनाह हो गया |</p>
<p></p>
<p>हम बेगाने हुए कोई और आया <br/>हमारे सिवा कोई और भाया <br/>मेरे सपनों को कोई और लाया <br/>हमसफ़र पे भरोसा गुनाह हो गया <br/>मोहब्बत इस ज़माने में गुनाह हो गया ||</p>
<p>***************************************</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित "</p>
नया साल आया
tag:openbooks.ning.com,2015-01-03:5170231:BlogPost:602256
2015-01-03T13:21:47.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p style="text-align: center;"></p>
<p style="text-align: left;">बीते वर्षों में जो भी मिला है मुझे <br></br>नहीं उससे कोई गिला है मुझे <br></br>नयन नीर मिले कुछ पीर मिले <br></br>दिल के राजा हैं ऐसे फ़कीर मिले <br></br>इन्हें राजा बना दें नया साल आया <br></br>खुशियाँ बिछा दें नया साल आया|</p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;">टुकड़े-टुकड़े किये जिनके सपनों को मैंने <br></br>खंडित किया जिनके अपनों को मैंने<br></br>व्यतित वर्ष में जिनका भी दिल दुखाया <br></br>हँसता हुआ मैंने जो महफ़िल जलाया<br></br>हँसी…</p>
<p style="text-align: center;"></p>
<p style="text-align: left;">बीते वर्षों में जो भी मिला है मुझे <br/>नहीं उससे कोई गिला है मुझे <br/>नयन नीर मिले कुछ पीर मिले <br/>दिल के राजा हैं ऐसे फ़कीर मिले <br/>इन्हें राजा बना दें नया साल आया <br/>खुशियाँ बिछा दें नया साल आया|</p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;">टुकड़े-टुकड़े किये जिनके सपनों को मैंने <br/>खंडित किया जिनके अपनों को मैंने<br/>व्यतित वर्ष में जिनका भी दिल दुखाया <br/>हँसता हुआ मैंने जो महफ़िल जलाया<br/>हँसी महफ़िल बना दें नया साल आया <br/>खुशियाँ बिछा दें नया साल आया |</p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;">इस नव वर्ष में बदल जायेंगे हम <br/>गिरते -गिरते अब संभल जायेंगे हम <br/>इमानदारी का पाठ हम पढ़ाएंगे <br/>हर गरीबों के ठाठ हम बढ़ाएंगे <br/>हर एब को मिटा दें नया साल आया <br/>खुशियाँ बिछा दें नया साल आया |</p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;">शत्रुओं को मित्र हम बनायेंगे <br/>एक उत्तम चरित्र हम बनायेंगे<br/>अपवित्र को पवित्र हम बनायेंगे <br/>खुद का अमिट चित्र हम बनायेंगे <br/>भ्रस्टाचार मिटा दें नया साल आया <br/>खुशियाँ बिछा दें नया साल आया ||</p>
<p style="text-align: left;">**********************************</p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;">"मौलिक व अप्रकाशित "</p>
<p style="text-align: left;"><br/></p>
बस तू साथ है |
tag:openbooks.ning.com,2014-12-25:5170231:BlogPost:598580
2014-12-25T15:08:31.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>हर जगह हर घडी बस तू साथ है <br></br>जहाँ मेरी नज़रे पडी बस तू साथ है<br></br> छोड़ा वक़्त ने जहाँ मुझ बदनसीब को<br></br>वहां पे मिली खड़ी बस तू साथ है</p>
<p><br></br>मेरे नये संसार में बस तू साथ है<br></br>प्यार के व्यवहार में बस तू साथ है<br></br>बदल गये जिसमें मेरे सब चाहने वाले <br></br>उस वक़्त के रफ़्तार में बस तू साथ है</p>
<p><br></br>मोहब्बत के इस कर्ज़ में बस तू साथ है<br></br>इंसानियत के फ़र्ज़ में बस तू साथ है<br></br>यूँ तो खुशियों के हमदर्द सब हैं मगर <br></br> मुझे मिले हर दर्द में बस तू साथ है</p>
<p><br></br>सावन का असर है जब तू…</p>
<p>हर जगह हर घडी बस तू साथ है <br/>जहाँ मेरी नज़रे पडी बस तू साथ है<br/> छोड़ा वक़्त ने जहाँ मुझ बदनसीब को<br/>वहां पे मिली खड़ी बस तू साथ है</p>
<p><br/>मेरे नये संसार में बस तू साथ है<br/>प्यार के व्यवहार में बस तू साथ है<br/>बदल गये जिसमें मेरे सब चाहने वाले <br/>उस वक़्त के रफ़्तार में बस तू साथ है</p>
<p><br/>मोहब्बत के इस कर्ज़ में बस तू साथ है<br/>इंसानियत के फ़र्ज़ में बस तू साथ है<br/>यूँ तो खुशियों के हमदर्द सब हैं मगर <br/> मुझे मिले हर दर्द में बस तू साथ है</p>
<p><br/>सावन का असर है जब तू साथ है <br/>यौवन भी अजर है जब तू साथ है <br/>ज़िन्दगी की मेरी कमाई हो तुम<br/>मौत का भी क्या डर है जब तू साथ है ||</p>
<p>***************************************</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित "</p>
बस तू साथ है |
tag:openbooks.ning.com,2014-12-25:5170231:BlogPost:598343
2014-12-25T06:30:00.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>हर जगह हर घडी बस तू साथ है </p>
<p>जहाँ मेरी नज़रे पडी बस तू साथ है</p>
<p> छोड़ा वक़्त ने जहाँ मुझ बदनसीब को</p>
<p>वहां पे मिली खड़ी बस तू साथ है</p>
<p></p>
<p>मेरे नये संसार में बस तू साथ है</p>
<p>प्यार के व्यवहार में बस तू साथ है</p>
<p>बदल गये जिसमें मेरे सब चाहने वाले </p>
<p>उस वक़्त के रफ़्तार में बस तू साथ है</p>
<p></p>
<p>मोहब्बत के इस कर्ज़ में बस तू साथ है</p>
<p>इंसानियत के फ़र्ज़ में बस तू साथ है</p>
<p>यूँ तो खुशियों के हमदर्द सब हैं मगर </p>
<p> मुझे मिले हर दर्द में बस तू साथ…</p>
<p>हर जगह हर घडी बस तू साथ है </p>
<p>जहाँ मेरी नज़रे पडी बस तू साथ है</p>
<p> छोड़ा वक़्त ने जहाँ मुझ बदनसीब को</p>
<p>वहां पे मिली खड़ी बस तू साथ है</p>
<p></p>
<p>मेरे नये संसार में बस तू साथ है</p>
<p>प्यार के व्यवहार में बस तू साथ है</p>
<p>बदल गये जिसमें मेरे सब चाहने वाले </p>
<p>उस वक़्त के रफ़्तार में बस तू साथ है</p>
<p></p>
<p>मोहब्बत के इस कर्ज़ में बस तू साथ है</p>
<p>इंसानियत के फ़र्ज़ में बस तू साथ है</p>
<p>यूँ तो खुशियों के हमदर्द सब हैं मगर </p>
<p> मुझे मिले हर दर्द में बस तू साथ है </p>
<p></p>
<p>सावन का असर है जब तू साथ है </p>
<p>यौवन भी अजर है जब तू साथ है </p>
<p>ज़िन्दगी की मेरी कमाई हो तुम</p>
<p>मौत का भी क्या डर है जब तू साथ है ||</p>
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<p></p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित " </p>
<p></p>
बड़ी सीख (लघुकथा )
tag:openbooks.ning.com,2014-11-26:5170231:BlogPost:590373
2014-11-26T12:35:36.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>"यार मैं एक लड़की से प्यार करता हूँ "-सुजीत ने अपने दोस्त विपिन से कहा |</p>
<p>"प्यार, यार आजकल तो प्यार का ज़माना कहाँ हैं,बस मजे ले और उसे छोड़ दे"-विपिन ने उसे समझाते हुए कहा | </p>
<p>"पर ,यार मैं उस से प्यार करता हूँ,मैं किसी के साथ धोका नही कर सकता हूँ "-सुजीत ने उदास होते हुए कहा | विपिन -"यार इसी में तो मजा है ,खैर कौन है वो लड़की मैं भी तो जानूँ "</p>
<p>सुजीत-"तेरी बहन ,यार "</p>
<p>इतना सुन कर विपिन कुछ न बोल सका | उसे एक बड़ी सीख मिल चुकी थी |</p>
<p></p>
<p></p>
<p>"मौलिक व…</p>
<p>"यार मैं एक लड़की से प्यार करता हूँ "-सुजीत ने अपने दोस्त विपिन से कहा |</p>
<p>"प्यार, यार आजकल तो प्यार का ज़माना कहाँ हैं,बस मजे ले और उसे छोड़ दे"-विपिन ने उसे समझाते हुए कहा | </p>
<p>"पर ,यार मैं उस से प्यार करता हूँ,मैं किसी के साथ धोका नही कर सकता हूँ "-सुजीत ने उदास होते हुए कहा | विपिन -"यार इसी में तो मजा है ,खैर कौन है वो लड़की मैं भी तो जानूँ "</p>
<p>सुजीत-"तेरी बहन ,यार "</p>
<p>इतना सुन कर विपिन कुछ न बोल सका | उसे एक बड़ी सीख मिल चुकी थी |</p>
<p></p>
<p></p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित "</p>
<p> </p>
हमे भी इन सितारों में एक जगह बनानी है
tag:openbooks.ning.com,2014-11-23:5170231:BlogPost:589494
2014-11-23T13:25:32.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>जिसने दिया हमें आदर्श शिष्य की पहचान </p>
<p>गुरु को दे अंगूठा जब एकलव्य बने महान </p>
<p>हो लगन कुछ सीखने की इनसे सीखे हम</p>
<p>जग को हिला सकते नहीं किसी से पीछे हम</p>
<p>गुरु-शिष्य की फिर वही परम्परा जगानी है </p>
<p>हमे भी इन सितारों में एक जगह बनानी है |</p>
<p></p>
<p>अपने प्राणों की आहुति देकर जो चले गये </p>
<p>इन्कलाब का नारा दे ,गोली खाकर जो चले गये </p>
<p>स्वतंत्रता -गणतन्त्र दिवस पाठशाला तक सिमट गये </p>
<p>जिनके हाथों में बागडोर वो मधुशाला तक सिमट गये </p>
<p>जो भूल गये…</p>
<p>जिसने दिया हमें आदर्श शिष्य की पहचान </p>
<p>गुरु को दे अंगूठा जब एकलव्य बने महान </p>
<p>हो लगन कुछ सीखने की इनसे सीखे हम</p>
<p>जग को हिला सकते नहीं किसी से पीछे हम</p>
<p>गुरु-शिष्य की फिर वही परम्परा जगानी है </p>
<p>हमे भी इन सितारों में एक जगह बनानी है |</p>
<p></p>
<p>अपने प्राणों की आहुति देकर जो चले गये </p>
<p>इन्कलाब का नारा दे ,गोली खाकर जो चले गये </p>
<p>स्वतंत्रता -गणतन्त्र दिवस पाठशाला तक सिमट गये </p>
<p>जिनके हाथों में बागडोर वो मधुशाला तक सिमट गये </p>
<p>जो भूल गये भारत माँ को ,फिर उनको याद दिलानी है </p>
<p>हमे भी इन सितारों में एक जगह बनानी है |</p>
<p></p>
<p>आओ जरा इतिहास को पलटो </p>
<p>हर पापी की साख को पलटो </p>
<p>उदहारण तुम्हे बहुत मिलेंगे </p>
<p>आगे आओ ,साथ बहुत मिलेंगे </p>
<p>हमसब को मिलकर ,भारत की संस्कृति वापिस लानी है </p>
<p>हमे भी इन सितारों में एक जगह बनानी है ||</p>
<p></p>
<p></p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित "</p>
तो फिर बात ही क्या थी
tag:openbooks.ning.com,2014-11-07:5170231:BlogPost:586228
2014-11-07T15:57:00.000Z
maharshi tripathi
https://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
सफ़र तय किये हमने मोहब्बत में साथ चलकर<br />
इश्क़ में बुने सपने तुम्हारे साथ जो मिलकर<br />
हकीक़त हो गये होते ,तो फिर बात ही क्या थी<br />
होते तुम हमारे साथ ,तो फिर बात ही क्या थी |<br />
<br />
राह कांटों भरी मोहब्बत की फिर भी चल दिए हम तुम<br />
मिले जो दर्द ज़माने से उसे भी सह लिए हम तुम<br />
जहाँ देता न ये दर्द ,तो फिर बात ही क्या थी<br />
होते तुम हमारे साथ ,तो फिर बात ही क्या थी |<br />
<br />
तेरे ख्वाबों का वस्त्र धारण कर लिया मैंने<br />
तेरी चाहत रूपी शस्त्र धारण कर लिया मैंने<br />
स्वीकृत शस्त्र किया होता ,तो फिर बात ही क्या थी<br />
होते तुम हमारे साथ ,तो…
सफ़र तय किये हमने मोहब्बत में साथ चलकर<br />
इश्क़ में बुने सपने तुम्हारे साथ जो मिलकर<br />
हकीक़त हो गये होते ,तो फिर बात ही क्या थी<br />
होते तुम हमारे साथ ,तो फिर बात ही क्या थी |<br />
<br />
राह कांटों भरी मोहब्बत की फिर भी चल दिए हम तुम<br />
मिले जो दर्द ज़माने से उसे भी सह लिए हम तुम<br />
जहाँ देता न ये दर्द ,तो फिर बात ही क्या थी<br />
होते तुम हमारे साथ ,तो फिर बात ही क्या थी |<br />
<br />
तेरे ख्वाबों का वस्त्र धारण कर लिया मैंने<br />
तेरी चाहत रूपी शस्त्र धारण कर लिया मैंने<br />
स्वीकृत शस्त्र किया होता ,तो फिर बात ही क्या थी<br />
होते तुम हमारे साथ ,तो फिर बात ही क्या थी |<br />
<br />
कभी आंसूं ,कभी जहर,जब भी दिया तुमने<br />
बिना सोचे समझे सब कुछ पी लिया हमने<br />
अमर होते गरल पीकर ,तो फिर बात ही क्या थी<br />
होते तुम हमारे साथ ,तो फिर बात ही क्या थी |<br />
<br />
"मौलिक व अप्रकाशित"