Shubhra sharma's Posts - Open Books Online2024-03-28T09:29:25Zshubhra sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/shubhrasharmahttps://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991282491?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1https://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=26mh7f0xwqa2f&xn_auth=noलघुकथा -बहुरूपियाtag:openbooks.ning.com,2014-01-25:5170231:BlogPost:5036662014-01-25T11:53:28.000Zshubhra sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/shubhrasharma
हनुमान के रूप मे लोगों से भिक्षा माँग गुजर बसर कर रहे बहुरूपिये पर बङे आतंक वादी गिरोह के लिए काम करने वालों की नजर पङी।उनका आदमी बहुरूपिये से गणतंत्र दिवस के अवसर पर परेड स्थल पर कमंडल बम जगह जगह रखकर दहशत फैलाने के लिए सबसे उपयुक्त और सुरक्षित आदमी समझकर एकांत मे डील करने के लिए बात की।<br />
आदमी-बाबा ! आपको केवल दस से पंद्रह जगहों पर कमंडल रखने है , बदले मे इतने पैसे मिलेंगे कि आपको रूप बदलकर भीख माँगने की जरूरत नहीं पङेगी ।<br />
बाबा- (कुछ रूक कर) बेटा ! पेट के लिए गरीबी मे बहुरूपिया बन सकता हं , भीख…
हनुमान के रूप मे लोगों से भिक्षा माँग गुजर बसर कर रहे बहुरूपिये पर बङे आतंक वादी गिरोह के लिए काम करने वालों की नजर पङी।उनका आदमी बहुरूपिये से गणतंत्र दिवस के अवसर पर परेड स्थल पर कमंडल बम जगह जगह रखकर दहशत फैलाने के लिए सबसे उपयुक्त और सुरक्षित आदमी समझकर एकांत मे डील करने के लिए बात की।<br />
आदमी-बाबा ! आपको केवल दस से पंद्रह जगहों पर कमंडल रखने है , बदले मे इतने पैसे मिलेंगे कि आपको रूप बदलकर भीख माँगने की जरूरत नहीं पङेगी ।<br />
बाबा- (कुछ रूक कर) बेटा ! पेट के लिए गरीबी मे बहुरूपिया बन सकता हं , भीख नहीं मिलने पर भूखे मर सकता हू , भिखारी , निक्कमे का ताना सुन सकता हू , पर जीते जी देशद्रोही नहीं बन सकता ।<br />
<br />
मौलिक और अप्रकाशित<br />
शुभ्रा शर्मा 'शुभ'लघु कथा - लिहाज (शुभ्रा शर्मा 'शुभ ')tag:openbooks.ning.com,2013-09-05:5170231:BlogPost:4287972013-09-05T06:42:32.000Zshubhra sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/shubhrasharma
<p></p>
<p>राधे श्याम जी पान की दूकान पर हाथ में सिगरेट छुपाये खड़े थे | तभी आठ -नौ साल का लड़का राजा दूकान से गुटखा खरीद खा कर चल दिया |</p>
<p>एक महोदय दुकानदार से -जब अठारह साल से कम उम्र के लोगों को तंबाकू पदार्थ ना देने का बोर्ड लगाये हैं फिर भी आपने क्यों दे दिया ?<br></br>दुकानदार -मुझे क्या मालूम की ये अपने लिए ले रहा है या घर के बड़ों के लिए | और यदि जान भी जाएँ कि ये खुद खायेगा तब भी मैं नहीं दूंगा तो किसी और दूकान से ले लेगा , मैं नुकसान में क्यों रहूँ ,खीं -खीं करते हुए बोला…</p>
<p></p>
<p>राधे श्याम जी पान की दूकान पर हाथ में सिगरेट छुपाये खड़े थे | तभी आठ -नौ साल का लड़का राजा दूकान से गुटखा खरीद खा कर चल दिया |</p>
<p>एक महोदय दुकानदार से -जब अठारह साल से कम उम्र के लोगों को तंबाकू पदार्थ ना देने का बोर्ड लगाये हैं फिर भी आपने क्यों दे दिया ?<br/>दुकानदार -मुझे क्या मालूम की ये अपने लिए ले रहा है या घर के बड़ों के लिए | और यदि जान भी जाएँ कि ये खुद खायेगा तब भी मैं नहीं दूंगा तो किसी और दूकान से ले लेगा , मैं नुकसान में क्यों रहूँ ,खीं -खीं करते हुए बोला |</p>
<p>राधेश्याम जी अपनी चुप्पी तोड़ते हुए बोले -ये मेरे विद्यालय में कक्षा चार का विद्यार्थी है ,मैं इसके ही लिहाज से सिगरेट नहीं जला रहा था , पर वो तो .......................</p>
<p>शुभ्रा शर्मा 'शुभ '</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>लघुकथा - अनुष्ठान (शुभ्रा शर्मा 'शुभ ')tag:openbooks.ning.com,2013-09-02:5170231:BlogPost:4263942013-09-02T06:47:49.000Zshubhra sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/shubhrasharma
<p></p>
<p>बहुत उपचार के बाद भी चित्रा की गोद सूनी थी |पूरा परिवार चिंतित रहता था |चित्रा यज्ञं हवन के लिए पति राजेश पर दवाब देती तो नोक-झोक हो जाती थी |राजेश को पूजा पाठ पर विश्वास नहीं था | काफी मेहनत के बाद चित्रा की माँ अपने भगवान् तुल्य गुरूजी मायाराम बाबू से मिली |गुरूजी चित्रा के कुंडली में संतान के घर में अनिष्टकारी ग्रह देख एक ग्रह शांति का ख़ास अनुष्ठान कराने के लिए उनके घर आने को राजी हो गए |चित्रा भी उत्साहित हो गुरूजी की आवभगत की सारी तैयारियाँ कर ली थी | गुरूजी और चित्रा को पूजा…</p>
<p></p>
<p>बहुत उपचार के बाद भी चित्रा की गोद सूनी थी |पूरा परिवार चिंतित रहता था |चित्रा यज्ञं हवन के लिए पति राजेश पर दवाब देती तो नोक-झोक हो जाती थी |राजेश को पूजा पाठ पर विश्वास नहीं था | काफी मेहनत के बाद चित्रा की माँ अपने भगवान् तुल्य गुरूजी मायाराम बाबू से मिली |गुरूजी चित्रा के कुंडली में संतान के घर में अनिष्टकारी ग्रह देख एक ग्रह शांति का ख़ास अनुष्ठान कराने के लिए उनके घर आने को राजी हो गए |चित्रा भी उत्साहित हो गुरूजी की आवभगत की सारी तैयारियाँ कर ली थी | गुरूजी और चित्रा को पूजा करते करते रात हो गयी, तभी चित्रा रोते हुए माँ से लिपट कर कहने लगी, 'मुझे माँ नहीं बनना .....</p>
<p></p>
<p></p>
<p>शुभ्रा शर्मा 'शुभ '</p>
<p></p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>कविता - आरजूtag:openbooks.ning.com,2013-08-30:5170231:BlogPost:4247252013-08-30T12:00:00.000Zshubhra sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/shubhrasharma
<p><br></br> सुहानी सुबह में <br></br> खिली थी नन्ही कली <br></br> बगिया गुलजार थी</p>
<p>मेरी मौजूदगी से <br></br> आने जाने वाले <br></br> रोक न पाते खुद को <br></br> नाजुक थी कोमल थी <br></br> महका करती थी <br></br> माली ने सींचा था <br></br> खून पसीने से <br></br> देखा था सपना <br></br> सजोगी कभी आराध्य पर <br></br> कभी शहीदों के सीने पर <br></br> फूल भी गौरवान्वित थी <br></br> अपनी इस कली पर <br></br> कर रही थी रक्षा कांटे भी <br></br> पते ढक कर सुलाती थी <br></br> कली तो अभी कली थी <br></br> उसने खुद के लिए कुछ <br></br> सोचा भी नहीं था <br></br> लापरवाह थी भविष्य से…</p>
<p><br/> सुहानी सुबह में <br/> खिली थी नन्ही कली <br/> बगिया गुलजार थी</p>
<p>मेरी मौजूदगी से <br/> आने जाने वाले <br/> रोक न पाते खुद को <br/> नाजुक थी कोमल थी <br/> महका करती थी <br/> माली ने सींचा था <br/> खून पसीने से <br/> देखा था सपना <br/> सजोगी कभी आराध्य पर <br/> कभी शहीदों के सीने पर <br/> फूल भी गौरवान्वित थी <br/> अपनी इस कली पर <br/> कर रही थी रक्षा कांटे भी <br/> पते ढक कर सुलाती थी <br/> कली तो अभी कली थी <br/> उसने खुद के लिए कुछ <br/> सोचा भी नहीं था <br/> लापरवाह थी भविष्य से <br/> न देखी थी दुनिया <br/> बस सुन रखी थी <br/> आस पास के फूलों से <br/> मानव अब चाँद पर जा <br/> धरती को स्वर्ग बना <br/> दुनिया की दूरियाँ सिमटा <br/> आसमान में फूल खिलायेगे <br/> बिना दुनिया देखे <br/> दूसरों की बातों को सुन <br/> विस्वास और उम्मीद से लबरेज <br/> कभी इस डाल से कभी उस डाल तक<br/> हवा के झोंके के साथ <br/> खुद को फूल होने के इंतजार में <br/> ख़ुशी से गर्व में इतराकर इठलाकर <br/> चहकती महकती निहारना चाहती <br/> इंतजार में सावन का <br/> वारिश के बूंदों का <br/> सराबोर कर लुंगी खुद को <br/> पत्ते पर जो बुँदे ठहरेगी <br/> निहारूंगी अपनी अक्श <br/> देखेगी दुनिया मेरी <br/> रूप रंग श्रिंगार <br/> मदहोश होंगे मेरी खुशबू से <br/> सोच में थी मदमस्त <br/> तभी सूरज हुआ अस्त <br/> तेज तूफान का झोंका आया <br/> मुझे मसलकर उड़ा कर ,<br/> उठा कर ले गया अपने संग <br/> सारे सपने हुए भंग <br/> खिलने से पहले <br/> माली भी रोया देखकर <br/> रह न पाई सुरक्षित <br/> अपने घर में ,आँगन में <br/> हे भगवान ,<br/> फूल को सुन्दर कुछ कम बनाओ <br/> पर पंखुड़ियों में कांटे कुछ और लगाओ</p>
<p>शुभ्रा शर्मा 'शुभ '</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>लघु कथा - इज्जत (शुभ्रा शर्मा 'शुभ ')tag:openbooks.ning.com,2013-08-26:5170231:BlogPost:4211352013-08-26T07:14:44.000Zshubhra sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/shubhrasharma
<p>श्रवण की बहन श्रद्धा सरकारी अस्पताल में भर्ती थी | विधवा माँ श्रद्धा से मिलने को व्याकुल थी |श्रवण असमंजस में था कि माँ को कैसे रोके | उसके सास ससुर श्रावण पूर्णिमा में गंगा स्नान करने को आ रहे थे |<br></br>श्रवण - माँ :तुम जानती हो रेखा कैसे घर से आयी है, उसे काम करने की आदत नहीं है |समय पर खाना ,नाश्ता देने को तो तुम्हे खुद ही रुक जाना चाहिए था |पर तुम्हे हमारे घर की इज्जत से क्या लेना देना ? तुम्हे तो केवल श्रद्धा चाहिए , वो मरी तो नहीं जा रही है | उसे रोग बढ़ा चढ़ा कर बताने की आदत है |<br></br> दो…</p>
<p>श्रवण की बहन श्रद्धा सरकारी अस्पताल में भर्ती थी | विधवा माँ श्रद्धा से मिलने को व्याकुल थी |श्रवण असमंजस में था कि माँ को कैसे रोके | उसके सास ससुर श्रावण पूर्णिमा में गंगा स्नान करने को आ रहे थे |<br/>श्रवण - माँ :तुम जानती हो रेखा कैसे घर से आयी है, उसे काम करने की आदत नहीं है |समय पर खाना ,नाश्ता देने को तो तुम्हे खुद ही रुक जाना चाहिए था |पर तुम्हे हमारे घर की इज्जत से क्या लेना देना ? तुम्हे तो केवल श्रद्धा चाहिए , वो मरी तो नहीं जा रही है | उसे रोग बढ़ा चढ़ा कर बताने की आदत है |<br/> दो दिनों बाद रेखा के मम्मी पापा जाने ही वाले थे , तभी श्रद्धा के घर वालों का फोन आया कि दाह -संस्कार के समय घाट पर श्रद्धा के भाई को भेज दें , ये हमारी इज्जत का सवाल है |<br/> माँ की आँखों के आँशु अपने एकलौते बेटे बहु को देखकर मानो कह रहें हो कि तुमलोगों की इज्जत तो बच गयी पर मेरी श्रद्धा मर गयी |</p>
<p>शुभ्रा शर्मा 'शुभ '</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>लघु -कथा - अधूरा कामtag:openbooks.ning.com,2013-08-12:5170231:BlogPost:4130472013-08-12T08:00:00.000Zshubhra sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/shubhrasharma
<p>बूढी दादी अपने पोते गोलू को लेकर गाँव के प्राथमिक विद्यालय में गई . उनको देखकर मास्टर साहब कहने लगे कि आपने इतना कष्ट क्यों किया . दादी जी बोली -गोलू पढ़ेगा इसी विद्यालय में लेकिन दोपहर का खाना ये घर पर ही खायेगा . बस एक ही बात कहने को आयी हूँ कि इसके पिता ने हमें शहीद की माँ होने का गौरव दिया है और इसे उसके अधूरे काम को पूरा करने के लिए जिन्दा रहना है .</p>
<p></p>
<p></p>
<p>शुभ्रा शर्मा 'शुभ '</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
<p>बूढी दादी अपने पोते गोलू को लेकर गाँव के प्राथमिक विद्यालय में गई . उनको देखकर मास्टर साहब कहने लगे कि आपने इतना कष्ट क्यों किया . दादी जी बोली -गोलू पढ़ेगा इसी विद्यालय में लेकिन दोपहर का खाना ये घर पर ही खायेगा . बस एक ही बात कहने को आयी हूँ कि इसके पिता ने हमें शहीद की माँ होने का गौरव दिया है और इसे उसके अधूरे काम को पूरा करने के लिए जिन्दा रहना है .</p>
<p></p>
<p></p>
<p>शुभ्रा शर्मा 'शुभ '</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>लघु कथा - झूठtag:openbooks.ning.com,2013-08-01:5170231:BlogPost:4062822013-08-01T06:00:00.000Zshubhra sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/shubhrasharma
<div><p><span>अजान सुन हामिद की नींद खुली, उसे याद आया कि उसके मालिक ने </span><span>आज रात वध हेतु एक गाय लाने को कहा है</span><span>. हामिद मालिक से पैसे ले बाजार से गाय खरीदकर आ रहा था. रास्ते में हामिद कभी </span><span>गाय को पानी पिलाता तो कभी हरी घास </span><span>खिलाता । गाय को बृक्ष की छाया में बांध खुद भी आराम करने लगा .थके होने के वजह से </span><span> उसकी आँख </span><span> लग गयी. अचानक आँख खुलने पर वह घबरा कर गाय ढूंढने लगा, तभी उसकी नजर मंदिर के अहाते में गाय पर पड़ी. वह गाय को…</span></p>
</div>
<div><p><span>अजान सुन हामिद की नींद खुली, उसे याद आया कि उसके मालिक ने </span><span>आज रात वध हेतु एक गाय लाने को कहा है</span><span>. हामिद मालिक से पैसे ले बाजार से गाय खरीदकर आ रहा था. रास्ते में हामिद कभी </span><span>गाय को पानी पिलाता तो कभी हरी घास </span><span>खिलाता । गाय को बृक्ष की छाया में बांध खुद भी आराम करने लगा .थके होने के वजह से </span><span> उसकी आँख </span><span> लग गयी. अचानक आँख खुलने पर वह घबरा कर गाय ढूंढने लगा, तभी उसकी नजर मंदिर के अहाते में गाय पर पड़ी. वह गाय को मंदिर से निकालकर ले जाना चाहता था. लेकिन मंदिर के लोग इसे नन्दी कहकर विरोध कर रहे थे. बात गाँव में आग की तरह फ़ैल गयी. हामिद के मालिक भी अपने आदमियों के साथ मंदिर के पास पहूँचकर गाय अपने हवाले करने को कह रहे थे . माहौल काफी तनावपूर्ण हो गया. गाय चुपचाप हामिद को देख रही थी. तभी हामिद बीच में जाकर मालिक का पैर पकड़ गिडगिडाकर कहा कि मालिक मैंने गाय खरीदी ही नहीं है. मेरे पैसे तो रास्ते में ही गिर गए थे .</span></p>
<div><span>. <br/></span></div>
<div><span>मौलिक और अप्रकाशित </span></div>
<div><span>........शुभ्रा शर्मा 'शुभ ' </span></div>
</div>काश : होते परिंदेtag:openbooks.ning.com,2013-07-23:5170231:BlogPost:4011442013-07-23T06:30:00.000Zshubhra sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/shubhrasharma
<p><span>चाँद यहाँ भी ,</span></p>
<div>चाँद वहाँ भी </div>
<div>इंसान में लहू </div>
<div> यहाँ भी वहाँ भी</div>
<div>फिर भी क्यूँ है ?</div>
<div>सरहदों पर लकीरें </div>
<div>लोग बने क्यों फिर रहे </div>
<div>लकीर के फ़क़ीर </div>
<div>क्यूँ बना डाली </div>
<div>नफरतों की दीवार </div>
<div>कुछ वक्त पहले तक </div>
<div>थे दोनों एक </div>
<div>मुल्क एक दुःख एक </div>
<div>राज एक सुख एक </div>
<div>थे एक ही जगह के वाशिंदे </div>
<div>काश हम इंसान भी होते परिंदे </div>
<div>जो उड़ते यहाँ भी…</div>
<p><span>चाँद यहाँ भी ,</span></p>
<div>चाँद वहाँ भी </div>
<div>इंसान में लहू </div>
<div> यहाँ भी वहाँ भी</div>
<div>फिर भी क्यूँ है ?</div>
<div>सरहदों पर लकीरें </div>
<div>लोग बने क्यों फिर रहे </div>
<div>लकीर के फ़क़ीर </div>
<div>क्यूँ बना डाली </div>
<div>नफरतों की दीवार </div>
<div>कुछ वक्त पहले तक </div>
<div>थे दोनों एक </div>
<div>मुल्क एक दुःख एक </div>
<div>राज एक सुख एक </div>
<div>थे एक ही जगह के वाशिंदे </div>
<div>काश हम इंसान भी होते परिंदे </div>
<div>जो उड़ते यहाँ भी ,वहाँ भी </div>
<div>जिन्हें रोक न पाती लकीरें</div>
<div>छोटी पड़ जाती जहाँ </div>
<div>नफरतों की दीवारें </div>
<div>कभी गंगा कभी झेलम के पानी पी </div>
<div>फैलाते अमन चैन का सन्देश </div>
<div>.</div>
<div><strong>मौलिक और अप्रकाशित </strong></div>गंगा माँtag:openbooks.ning.com,2013-03-17:5170231:BlogPost:3345282013-03-17T04:18:25.000Zshubhra sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/shubhrasharma
<p>हिम शिखर से तू आती हो <br></br>गंगा सागर तक जाती हो <br></br>सारी नदियाँ तुमसे मिलकर <br></br>गंगा बन आगे बढ़ती है <br></br> गंगा तू सुखदायिनी <br></br>स्वर्गलोक से पाप हरने <br></br>धरती पर तू सतत बहने <br></br>सगर पुत्रों को मोक्ष देने <br></br>शिव जटा से आयी हो <br></br> गंगा तू मोक्ष दायिनी <br></br>जड़ी बूटी तू साथ लिए <br></br>कल -कल छल -छल बहती हो <br></br>जाति -धर्म का भेद न जाने <br></br>तत्पर पल -पल रहती हो <br></br> गंगा तू आनंद दायिनी <br></br>दूर करो माँ कटुता पशुता <br></br>भर आयी जो जन -जन में…</p>
<p>हिम शिखर से तू आती हो <br/>गंगा सागर तक जाती हो <br/>सारी नदियाँ तुमसे मिलकर <br/>गंगा बन आगे बढ़ती है <br/> गंगा तू सुखदायिनी <br/>स्वर्गलोक से पाप हरने <br/>धरती पर तू सतत बहने <br/>सगर पुत्रों को मोक्ष देने <br/>शिव जटा से आयी हो <br/> गंगा तू मोक्ष दायिनी <br/>जड़ी बूटी तू साथ लिए <br/>कल -कल छल -छल बहती हो <br/>जाति -धर्म का भेद न जाने <br/>तत्पर पल -पल रहती हो <br/> गंगा तू आनंद दायिनी <br/>दूर करो माँ कटुता पशुता <br/>भर आयी जो जन -जन में <br/>तेरे जल से अर्पण -तर्पण <br/>प्रेम भरो माँ तन -मन में <br/> गंगा तू जीवन दायिनी <br/>माफ़ करो मुझ कलिपुत्र को <br/>पत्थर रख प्रवाह अवरूध किया <br/>लोभ मूढता स्वार्थ वशीभूत<br/>तेरे जल को अशुद्ध किया <br/> गंगा तू अन्न दायिनी <br/>शहर बसी है तेरे तट पर <br/>अन्न जल रोजगार दिया <br/>शहरवासी के कचड़े ने <br/>खुद को ही शर्मसार किया <br/> गंगा तू क्षमा दायिनी <br/>भीष्म भागीरथ याद कर, माँ तुझे शत -शत नमन <br/>विश्व विजयी भारत बने , माँ तुझे शत -शत नमन <br/> <br/> शुभ्रा शर्मा </p>मेरे सपने मेंtag:openbooks.ning.com,2013-01-11:5170231:BlogPost:3076822013-01-11T04:30:00.000Zshubhra sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/shubhrasharma
<p>बह रही थी एक नदी मेरे सपने में <br/> रह गयी फिर भी प्यासी सपने में <br/> <br/> जी रही थी इस दुनिया में मगर <br/> देखती थी दूसरी दुनिया सपने में<br/> <br/> करती थी इंतेजार उसका दिनभर <br/> आता था जो आंसू पोछने सपने में <br/> <br/> यकीन था आएगा वो पूरा करने <br/> कर गया था वादे, जो सपने में <br/> <br/> ढूढती हूँ एक वही चेहरा भीड़ में <br/> बस गया था अक्श जिसका सपने में <br/> <br/> काश ।अब सूरज ना निकले कभी <br/> 'शुभ' देखती रहे हरवक्त उसे सपने में</p>
<p>बह रही थी एक नदी मेरे सपने में <br/> रह गयी फिर भी प्यासी सपने में <br/> <br/> जी रही थी इस दुनिया में मगर <br/> देखती थी दूसरी दुनिया सपने में<br/> <br/> करती थी इंतेजार उसका दिनभर <br/> आता था जो आंसू पोछने सपने में <br/> <br/> यकीन था आएगा वो पूरा करने <br/> कर गया था वादे, जो सपने में <br/> <br/> ढूढती हूँ एक वही चेहरा भीड़ में <br/> बस गया था अक्श जिसका सपने में <br/> <br/> काश ।अब सूरज ना निकले कभी <br/> 'शुभ' देखती रहे हरवक्त उसे सपने में</p>नए साल की नई सुबहtag:openbooks.ning.com,2012-12-29:5170231:BlogPost:3045592012-12-29T05:30:00.000Zshubhra sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/shubhrasharma
<p><b>पुराने</b> साल को अलविदा, <b>नए</b> साल का स्वागतम <br></br> <b>पुराने</b> अनुभवों से <b>नया</b> गीत गायेंगे हम <br></br> नई उमंगें, नई तरंगे लेकर आया नया साल <br></br> नए वादों, नए इरादों से नई कहानी लिखेंगे हम <br></br> <br></br> बुराइयों को मिटाकर<br></br> अच्छाइयों को अपनाकर<br></br> काँटों पर राह बनाकर<br></br> नई मंजिलें पाएंगे हम <br></br> <br></br> बेटियां दामिनी बन तड़प-तड़प नहीं मरेगी अब <br></br> कल्पना ,सुनीता बन चाँद को घर बनाएँगी अब <br></br> आतंकवादी ,बलात्कारी को फांसी पर चढ़ायेंगे अब <br></br> भ्रष्टाचार मिटाकर विकसित भारत…</p>
<p><b>पुराने</b> साल को अलविदा, <b>नए</b> साल का स्वागतम <br/> <b>पुराने</b> अनुभवों से <b>नया</b> गीत गायेंगे हम <br/> नई उमंगें, नई तरंगे लेकर आया नया साल <br/> नए वादों, नए इरादों से नई कहानी लिखेंगे हम <br/> <br/> बुराइयों को मिटाकर<br/> अच्छाइयों को अपनाकर<br/> काँटों पर राह बनाकर<br/> नई मंजिलें पाएंगे हम <br/> <br/> बेटियां दामिनी बन तड़प-तड़प नहीं मरेगी अब <br/> कल्पना ,सुनीता बन चाँद को घर बनाएँगी अब <br/> आतंकवादी ,बलात्कारी को फांसी पर चढ़ायेंगे अब <br/> भ्रष्टाचार मिटाकर विकसित भारत बनायेंगे हम <br/> <br/> सर्व धर्म समभाव बनाकर <br/> जाति धर्म का भेद मिटाकर <br/> रामराज का गीत गाकर <br/> विजयी भारत बनायेंगे हम <br/> <b><br/> नए</b> साल की नई सुबह में खाते है यही कसम <br/> नित <b>नए</b> पेड़ लगाकर धरा हरा रखेंगे हम <br/> भूख ,गरीबी ,बेकारी मूल से मिटायेंगे हम <br/> अमर शहीदों के वलिदानों को व्यर्थ नहीं गवाएंगे हम <br/> खाते है यही कसम</p>