Usha's Posts - Open Books Online2024-03-28T13:34:19ZUshahttps://openbooks.ning.com/profile/Ushahttps://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3685477761?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1https://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=1rf5cc07btho1&xn_auth=noऐसी सादगी भरी शोहरत को सलाम। (अतुकांत कविता)tag:openbooks.ning.com,2019-12-06:5170231:BlogPost:9972832019-12-06T03:39:23.000ZUshahttps://openbooks.ning.com/profile/Usha
<p><span>शोहरतों का हक़दार वही जो,</span><br></br><span>न भूले ज़मीनी-हकीक़त, </span><br></br><span>न आए जिसमें कोई अहम्,</span><br></br><span>न छाए जिसपर बेअदबी का सुरूर,</span><br></br><span>झूठी हसरतों से कोसों दूर,</span><br></br><span>न दिल में कोई फरेब,</span><br></br><span>न किसी से नफ़रत,</span><br></br><span>पलों में अपना बनाने का हुनर,</span><br></br><span>ज़ख्मों को दफ़न कर,</span><br></br><span>सींचे जो ख़ुशियों को,</span><br></br><span>चेहरे पर निराला नूर,</span><br></br><span>आवाज़ में दमदार खनक,</span><br></br><span>अंदर भी…</span></p>
<p><span>शोहरतों का हक़दार वही जो,</span><br/><span>न भूले ज़मीनी-हकीक़त, </span><br/><span>न आए जिसमें कोई अहम्,</span><br/><span>न छाए जिसपर बेअदबी का सुरूर,</span><br/><span>झूठी हसरतों से कोसों दूर,</span><br/><span>न दिल में कोई फरेब,</span><br/><span>न किसी से नफ़रत,</span><br/><span>पलों में अपना बनाने का हुनर,</span><br/><span>ज़ख्मों को दफ़न कर,</span><br/><span>सींचे जो ख़ुशियों को,</span><br/><span>चेहरे पर निराला नूर,</span><br/><span>आवाज़ में दमदार खनक,</span><br/><span>अंदर भी रोशन,</span><br/><span>बाहर भी जगमग रहे,</span><br/><span>न रखे कोई दंभ,</span><br/><span>न करे कोई आडम्बर,</span><br/><span>ऐसी सादगी भरी शोहरत को सलाम।</span></p>
<p></p>
<p><span>मौलिक व अप्रकाशित।</span></p>ज़िन्दगी - एक मंच । (अतुकांत कविता)tag:openbooks.ning.com,2019-12-02:5170231:BlogPost:9971942019-12-02T05:57:29.000ZUshahttps://openbooks.ning.com/profile/Usha
<p>ख़ूबसूरत मंच है, ज़िन्दगी,<br></br>हर राह, एक नया तज़ुर्बा,<br></br>ख़ुदा की नेमतों से,<br></br>मिला ये मौका हमें,<br></br>कि बन एक उम्दा कलाकार,<br></br>अदा कर सकें अपना किरदार,<br></br>कर लें वह सब,<br></br>जो भी हो जाए मुमकिन,<br></br>खुद भी मसर्रत हासिल रहे,<br></br>औरों के चेहरे की ख़ुशी भी कायम रहे,<br></br>और न रहे रुख़सती पर यह मलाल,<br></br>कि हम क्या कुछ कर सकते थे,<br></br>चूक गए, और वक़्त मिल जाता,<br></br>तो ये कर लेते, कि वो कर लेते,<br></br>इस मंच को जी लें हम भरपूर,<br></br>और हो जाएँ फना फिर सुकून से<br></br>एक ख़ूबसूरत मुस्कुराहट के…</p>
<p>ख़ूबसूरत मंच है, ज़िन्दगी,<br/>हर राह, एक नया तज़ुर्बा,<br/>ख़ुदा की नेमतों से,<br/>मिला ये मौका हमें,<br/>कि बन एक उम्दा कलाकार,<br/>अदा कर सकें अपना किरदार,<br/>कर लें वह सब,<br/>जो भी हो जाए मुमकिन,<br/>खुद भी मसर्रत हासिल रहे,<br/>औरों के चेहरे की ख़ुशी भी कायम रहे,<br/>और न रहे रुख़सती पर यह मलाल,<br/>कि हम क्या कुछ कर सकते थे,<br/>चूक गए, और वक़्त मिल जाता,<br/>तो ये कर लेते, कि वो कर लेते,<br/>इस मंच को जी लें हम भरपूर,<br/>और हो जाएँ फना फिर सुकून से<br/>एक ख़ूबसूरत मुस्कुराहट के साथ।</p>
<p></p>
<p><br/>मौलिक और अप्रकाशित।</p>उल्फत या कि नफ़रत। (अतुकांत कविता)tag:openbooks.ning.com,2019-11-26:5170231:BlogPost:9969282019-11-26T03:30:00.000ZUshahttps://openbooks.ning.com/profile/Usha
<p>सुना था मसले,<br/> दो तरफा हुआ करते हैं,<br/> पर हैरानगी का आलम तब हुआ कि,<br/> जब वे अकेले ही ख़फा हो, बैठ गए।<br/> हमने भी यह सोच कर,<br/> ज़िक्र न छेड़ा कि,<br/> ख़ामोशी कई मर्तबा,<br/> लौटा ही लाती है, मुहब्बते-इज़हार,<br/> पर अफसोस कि,<br/> पासा ही पलट गया, <br/> अपना तो मजमा लग गया,<br/> और वे जो उल्फ़तों के किस्से गढ़ा करते थे,<br/> नफ़रतों की मीनारें खड़ी करते चले गए।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व् अप्रकाशित।</p>
<p>सुना था मसले,<br/> दो तरफा हुआ करते हैं,<br/> पर हैरानगी का आलम तब हुआ कि,<br/> जब वे अकेले ही ख़फा हो, बैठ गए।<br/> हमने भी यह सोच कर,<br/> ज़िक्र न छेड़ा कि,<br/> ख़ामोशी कई मर्तबा,<br/> लौटा ही लाती है, मुहब्बते-इज़हार,<br/> पर अफसोस कि,<br/> पासा ही पलट गया, <br/> अपना तो मजमा लग गया,<br/> और वे जो उल्फ़तों के किस्से गढ़ा करते थे,<br/> नफ़रतों की मीनारें खड़ी करते चले गए।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व् अप्रकाशित।</p>क्षणिकाएं।tag:openbooks.ning.com,2019-11-24:5170231:BlogPost:9966832019-11-24T04:48:10.000ZUshahttps://openbooks.ning.com/profile/Usha
<p><span>क्षणिकाएं।</span><br></br><br></br><span>इतने बड़े जहां में,</span><br></br><span>क्यों तू ही नहीं छिप सका,</span><br></br><span>ऐसा क्या खास तुझमें हुआ किया,</span><br></br><span>कि, हर नए ज़ख्म पर,</span><br></br><span>नाम तेरा ही छपा पाया।............. 1</span><br></br><br></br><span>सुना-सुना सा लगता है,</span><br></br><span>वो सदा है उसके वास्ते,</span><br></br><span>जीया-जीया सा सच है,</span><br></br><span>वो खुद ही है खुद के वास्ते,</span><br></br><span>हाँ, और कोई नहीं, कोई नहीं।............. 2</span><br></br><br></br><span>कहते…</span></p>
<p><span>क्षणिकाएं।</span><br/><br/><span>इतने बड़े जहां में,</span><br/><span>क्यों तू ही नहीं छिप सका,</span><br/><span>ऐसा क्या खास तुझमें हुआ किया,</span><br/><span>कि, हर नए ज़ख्म पर,</span><br/><span>नाम तेरा ही छपा पाया।............. 1</span><br/><br/><span>सुना-सुना सा लगता है,</span><br/><span>वो सदा है उसके वास्ते,</span><br/><span>जीया-जीया सा सच है,</span><br/><span>वो खुद ही है खुद के वास्ते,</span><br/><span>हाँ, और कोई नहीं, कोई नहीं।............. 2</span><br/><br/><span>कहते थे,</span><br/><span>भरोसा करके देखो।</span><br/><span>किया, तो,</span><br/><span>नज़ारा ही बदल गया।......... 3</span><br/><br/><span>अजीब हो दोस्त,</span><br/><span>रिश्ते की परतें उधेड़ रहे हो,</span><br/><span>पर ख़्याल रहे,</span><br/><span>परत जो ज़िन्दगी ने बदली,</span><br/><span>सह न पाओगे ।............. 4</span></p>
<p></p>
<p><span>मौलिक व अप्रकाशित।</span></p>क्षणिकाएँtag:openbooks.ning.com,2019-11-18:5170231:BlogPost:9962742019-11-18T03:00:00.000ZUshahttps://openbooks.ning.com/profile/Usha
<p>दिन ढलते, शाम चढ़ते,<br></br> उसका डर बढ़ने लगता है,<br></br> क़िस्मत, दस्तक भी देगी और<br></br> भीनी यादें तूफान भी उठायेंगी ,<br></br> फिर भी होगा कुछ भी नया नहीं,<br></br> बस यह अहसास कराते हुए<br></br> कि वो किसी और पर मेहरबान है,<br></br> उसके पास से धीरे से सरक जाएगी<br></br> और चूम लेगी किसी और को।.............1</p>
<p></p>
<p>अटपटा दीवानापन सा,<br></br> महसूस तू करवाता है,<br></br> हर नए दिन,<br></br> हर नई शाम,<br></br> यकीन दिलाकर,<br></br> तू सिर्फ उसका है,<br></br> बाहों में किसी और की,<br></br> चला जाता है ।............…</p>
<p>दिन ढलते, शाम चढ़ते,<br/> उसका डर बढ़ने लगता है,<br/> क़िस्मत, दस्तक भी देगी और<br/> भीनी यादें तूफान भी उठायेंगी ,<br/> फिर भी होगा कुछ भी नया नहीं,<br/> बस यह अहसास कराते हुए<br/> कि वो किसी और पर मेहरबान है,<br/> उसके पास से धीरे से सरक जाएगी<br/> और चूम लेगी किसी और को।.............1</p>
<p></p>
<p>अटपटा दीवानापन सा,<br/> महसूस तू करवाता है,<br/> हर नए दिन,<br/> हर नई शाम,<br/> यकीन दिलाकर,<br/> तू सिर्फ उसका है,<br/> बाहों में किसी और की,<br/> चला जाता है ।............ 2</p>
<p></p>
<p>ज़िन्दगी लिख रही,<br/> हर पल इक नया फलसफा,<br/> क्यों कर हो चले हो तुम,<br/> इतने कमज़ोर-दिल से कि,<br/> दर्द को सीने में बसा,<br/> हर खुशी को कर देते हो फना।............ 3)</p>
<p></p>
<p>मौलिक व् अप्रकाशित।</p>कैसा घर-संसार?tag:openbooks.ning.com,2019-11-15:5170231:BlogPost:9961442019-11-15T03:30:00.000ZUshahttps://openbooks.ning.com/profile/Usha
<p>दोनों पति-पत्नि अपने लव-कुश के साथ खुश थे। माताजी और पिताजी इस छोटे से परिवार में खुश तो थे लेकिन और पैसा कमाने के लिए बेटे समीर को दिन-रात औरों के बेटों की कहानियाँ सुना-सुना ताना देते रहते। रोज़ सुबह और शाम डायनिंग टेबल पर बैठ, एक बयौरा सा देते हुए बताया करते कि फलां के बेटे की तनख़्वाह इतनी हो गयी, फलां के बेटे ने फलैट बुक करवा दिया और फलाने ने तो कैश पेमैंट पर बड़ी गाड़ी खरीद ली।<br></br> ये सब सुन-सुनकर समीर परेशान हो गया और अपने ही घर में बेइज्जत होने से थककर बाहर जाने की तैयारी करने…</p>
<p>दोनों पति-पत्नि अपने लव-कुश के साथ खुश थे। माताजी और पिताजी इस छोटे से परिवार में खुश तो थे लेकिन और पैसा कमाने के लिए बेटे समीर को दिन-रात औरों के बेटों की कहानियाँ सुना-सुना ताना देते रहते। रोज़ सुबह और शाम डायनिंग टेबल पर बैठ, एक बयौरा सा देते हुए बताया करते कि फलां के बेटे की तनख़्वाह इतनी हो गयी, फलां के बेटे ने फलैट बुक करवा दिया और फलाने ने तो कैश पेमैंट पर बड़ी गाड़ी खरीद ली।<br/> ये सब सुन-सुनकर समीर परेशान हो गया और अपने ही घर में बेइज्जत होने से थककर बाहर जाने की तैयारी करने लगा।<br/> माताजी-पिताजी के सांसारिक लोभ ने बेटे को अनुराधा और लव-कुश को छोड़ दूर किसी और शहर जाने पर विवश कर दिया। सब ठीक-ठाक ही चल रहा था लेकिन जल्द ही नये शहर, नयी नौकरी के साथ-साथ समीर जी को प्रेम भी नया हो गया।<br/> एक ओर माताजी-पिताजी नोटों की चकाचौंध में होश खो चुके थे तो दूसरी ओर बेटे को इश्क का नशा चढ़ गया।<br/> समीर जी पैसे से धनी होने के साथ-साथ दिल से भी धनी होते जा रहे थे। याद ही नहीं रहा कि उनका एक खुशनुमा घर-संसार है, जिसके ना होने पर सब खोखला हो जाएगा।<br/> एक बार अनुराधा पर दिल हारे थे अबकी बार दीप्ति पर हार बैठे। दीप्ति मैडम के ये बॉस अपनी पहली प्रेमिका, जो अब इनकी पत्नि बन चुकी थी, जिसके साथ मिलकर इन्होंने एक प्यारा सा, छोटा सा घर-संसार बसाया था, जिसमें दो राजकुमार भी थे जिन्हें माता-पिता दोनों की ज़रूरत थी, वो भी याद नहीं रहे।<br/> माताजी को कुछ नोट क्या ज़्यादा मिलने लगे, उनके लिए यही काफी हो गया था कि रिश्तेदारी में, समाज में, इज्जत में चार चाँद लग गये, कि उनका सुपुत्र औरों की तुलना में दोगुना कमाता है।<br/> समीर साहब पर नया प्रेम ऐसा रंग चढ़ा गया कि अब उनका घर-संसार दीप्ति जी बन गयीं। अनुराधा का घर-संसार लव-कुश और लव-कुश का घर-संसार अनुराधा।<br/> माताजी-पिताजी आज अपने हँसते-खेलते घर-संसार को बेटे की कमाई से ताजमहल बनाने का आनन्द ले रहे हैं। एक प्यारा सा घर-संसार, तीन भागों में बँट गया।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व् अप्रकाशित।</p>क्षणिकाएँ।tag:openbooks.ning.com,2019-11-13:5170231:BlogPost:9960442019-11-13T13:39:03.000ZUshahttps://openbooks.ning.com/profile/Usha
<p></p>
<p></p>
<p>करके वादा,<br/>किसी से न कहेंगे,<br/>दिल का दर्द मेरे जान लिया।<br/>ढोंग था सब,<br/>तब समझे हम कि,<br/>महफ़िल में सरे-आम बदनाम हो गए।...........1</p>
<p></p>
<p>पहली नज़र में ही उनपर,<br/>हम दिल अपना हार बैठे,<br/>कहना कुछ चाहा था,<br/>कह कुछ और गए।.......... 2</p>
<p></p>
<p>अक्सर देखा है हमने,<br/>उनको रंग बदलते हुए,<br/>पर हैरान हैं कि,<br/>कोई तो पक्का होता।.......... 3</p>
<p><br/> मौलिक व् अप्रकाशित।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>करके वादा,<br/>किसी से न कहेंगे,<br/>दिल का दर्द मेरे जान लिया।<br/>ढोंग था सब,<br/>तब समझे हम कि,<br/>महफ़िल में सरे-आम बदनाम हो गए।...........1</p>
<p></p>
<p>पहली नज़र में ही उनपर,<br/>हम दिल अपना हार बैठे,<br/>कहना कुछ चाहा था,<br/>कह कुछ और गए।.......... 2</p>
<p></p>
<p>अक्सर देखा है हमने,<br/>उनको रंग बदलते हुए,<br/>पर हैरान हैं कि,<br/>कोई तो पक्का होता।.......... 3</p>
<p><br/> मौलिक व् अप्रकाशित।</p>कहो, तुम पुरुष कौन?tag:openbooks.ning.com,2019-11-02:5170231:BlogPost:9956092019-11-02T05:46:15.000ZUshahttps://openbooks.ning.com/profile/Usha
<p>काव्य-रुपी शब्दों का विनम्र समर्पण कविवर सुमित्रानंदन प॔त जी की कविता "कहो, तुम रूपसी कौन?" से प्रेरित हो मेरे द्वारा उनके सम्मान में किया गया एक प्रयास।</p>
<p></p>
<p>कहो, तुम पुरुष कौन?</p>
<p></p>
<p>निशक्त बतलाओ तो, क्या नाम दूँ तुम्हें ?<br></br>जान लो, पहचान लो, स्मरण कर लो,<br></br>प्रभावशाली, विराट, अखंडित,<br></br>अजेय एवं समृद्ध तुम।<br></br>हर क्षण रहे सुदृढ़, मजबूत और कर्मठ,<br></br>कुछ नहीं नामुमकिन, कठिन, दुष्कर।<br></br>प्रत्येक क्षण, रहे करनी सुदृढ़ व मजबूत,<br></br>कुछ नहीं नामुमकिन, कठिन, दुष्कर…</p>
<p>काव्य-रुपी शब्दों का विनम्र समर्पण कविवर सुमित्रानंदन प॔त जी की कविता "कहो, तुम रूपसी कौन?" से प्रेरित हो मेरे द्वारा उनके सम्मान में किया गया एक प्रयास।</p>
<p></p>
<p>कहो, तुम पुरुष कौन?</p>
<p></p>
<p>निशक्त बतलाओ तो, क्या नाम दूँ तुम्हें ?<br/>जान लो, पहचान लो, स्मरण कर लो,<br/>प्रभावशाली, विराट, अखंडित,<br/>अजेय एवं समृद्ध तुम।<br/>हर क्षण रहे सुदृढ़, मजबूत और कर्मठ,<br/>कुछ नहीं नामुमकिन, कठिन, दुष्कर।<br/>प्रत्येक क्षण, रहे करनी सुदृढ़ व मजबूत,<br/>कुछ नहीं नामुमकिन, कठिन, दुष्कर सा।<br/>नारी से हो पल्लवित, बने उसी का लौह-कवच,<br/>तुम बलवान, साहसी, संयमी एवं पालनहार।<br/>समय परिवर्तन-चक्र में पड़, कदापि भ्रमित न हो,<br/>नहीं तुम निर्बल, निशक्त, विचल व शक्तिहीन,<br/>कर बैठो खुद को विमुख, अपने पौरष से ।<br/>प्रतिभू, निश्चितता से प्रयास कर, जुट जाओ पुनः।<br/>सॄजन करो नवीन, ऐसा मनमोहक, दिव्य संसार,<br/>नारी की प्रबलता, बने तुम्हारा हथियार।<br/>साथ चलो, कि पुकारता अब युग ये नवीन है,<br/>रूपसी और पौरुष का संगम अद्धभुत, सृजित हो।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व् अप्रकाशित।</p>क्षणिकाएँ।tag:openbooks.ning.com,2019-10-29:5170231:BlogPost:9953242019-10-29T07:00:00.000ZUshahttps://openbooks.ning.com/profile/Usha
<p>काश ! ऐसा हो जाये कि,<br></br> ज़िंदगी एक पूरा नशा बन जाये,<br></br> नशे में सब कुछ माफ हो, और,<br></br> ज़िंदगी जीने का मज़ा आ जाये ।</p>
<p></p>
<p>जी लूँ कुछ,<br></br> इस तरह कि,<br></br> अगले जनम की भी,<br></br> चाह न रह जाए।</p>
<p></p>
<p>ऐ दुनियावालों !<br></br> क्यों है ये बेइन्तहा मुश्किल?<br></br> कि कह सकें-कर सकें वो,<br></br> जो दिल करना चाहता हो।</p>
<p></p>
<p>कभी हमें भी था,<br></br> भरोसा अपने सपनों पर,<br></br> अब अहसास हो गया है कि,<br></br> सपने दूसरो के ही र॔ग लाते हैं।</p>
<p></p>
<p>न सोचूँ, न मैं चाहूँ,<br></br> न ही…</p>
<p>काश ! ऐसा हो जाये कि,<br/> ज़िंदगी एक पूरा नशा बन जाये,<br/> नशे में सब कुछ माफ हो, और,<br/> ज़िंदगी जीने का मज़ा आ जाये ।</p>
<p></p>
<p>जी लूँ कुछ,<br/> इस तरह कि,<br/> अगले जनम की भी,<br/> चाह न रह जाए।</p>
<p></p>
<p>ऐ दुनियावालों !<br/> क्यों है ये बेइन्तहा मुश्किल?<br/> कि कह सकें-कर सकें वो,<br/> जो दिल करना चाहता हो।</p>
<p></p>
<p>कभी हमें भी था,<br/> भरोसा अपने सपनों पर,<br/> अब अहसास हो गया है कि,<br/> सपने दूसरो के ही र॔ग लाते हैं।</p>
<p></p>
<p>न सोचूँ, न मैं चाहूँ,<br/> न ही दे सकूँ मैं, दर्द किसी को,<br/> पर ज़माने ने जैसे,<br/> ये ठेका, मेरे लिये ही उठा रखा है।</p>
<p></p>
<p>आ जाये जो हँसी,<br/> दिल भर आता है,<br/> गर आ गये जो आँसू,<br/> कहीं दम ही न निकल जाए।</p>
<p></p>
<p>अजीब है, यहां हर कोई पा जाता है,<br/> जो उसकी चाहत है,<br/> मज़ाक तो ये है कि,<br/> अपनी चाहतें ही मर गयी सारी l</p>
<p></p>
<p>आज सब याद आ गया,<br/> आता ही चला गया,<br/> अब तो कुछ ऐसा हो कि,<br/> यादें ही मिट जाएँ सारी। <br/> <br/> मौलिक व् अप्रकाशित।</p>फिर से जी लूँ ... अतुकांत कविताtag:openbooks.ning.com,2019-09-23:5170231:BlogPost:9928442019-09-23T09:52:41.000ZUshahttps://openbooks.ning.com/profile/Usha
<p>ज़िम्मेदारियों में उलझी ज़िंदगी,<br></br>सरक-सरक कर गुज़रने लगी।</p>
<p></p>
<p>हादसों का सिलसिला ऐसा चला,<br></br>उम्र का अहसास गहराता गया।</p>
<p></p>
<p>उड़ने की ख़्वाहिश और सारे ख़्वाब,</p>
<p>कहीं घुप अंधेरे में आंखें मूंदे बैठ गए।</p>
<p></p>
<p>अचानक तेज़ हवा के झोंके ने,<br></br>यूँ छू दिया कि नये अरमान उमड़ पड़े।</p>
<p></p>
<p>इस लम्बी रात का सुंदर सवेरा हुआ,<br></br>बादल छँट गए, इंद्रधनुष ने रंग बिखेरे।</p>
<p></p>
<p>फिर से जी लूँ, दिल ने तमन्ना की,<br></br>ऐ हवा के हसीं झोंके, रूख़ ना बदल लेना…</p>
<p>ज़िम्मेदारियों में उलझी ज़िंदगी,<br/>सरक-सरक कर गुज़रने लगी।</p>
<p></p>
<p>हादसों का सिलसिला ऐसा चला,<br/>उम्र का अहसास गहराता गया।</p>
<p></p>
<p>उड़ने की ख़्वाहिश और सारे ख़्वाब,</p>
<p>कहीं घुप अंधेरे में आंखें मूंदे बैठ गए।</p>
<p></p>
<p>अचानक तेज़ हवा के झोंके ने,<br/>यूँ छू दिया कि नये अरमान उमड़ पड़े।</p>
<p></p>
<p>इस लम्बी रात का सुंदर सवेरा हुआ,<br/>बादल छँट गए, इंद्रधनुष ने रंग बिखेरे।</p>
<p></p>
<p>फिर से जी लूँ, दिल ने तमन्ना की,<br/>ऐ हवा के हसीं झोंके, रूख़ ना बदल लेना ।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व् अप्रकाशित।</p>फिर से जी लूँ ... अतुकांत कविताtag:openbooks.ning.com,2019-09-22:5170231:BlogPost:9926792019-09-22T08:44:12.000ZUshahttps://openbooks.ning.com/profile/Usha
<p>ज़िम्मेदारियों में उलझी ज़िंदगी,<br></br> सरक-सरक कर गुज़रने लगी।<br></br> <br></br> हादसों का सिलसिला ऐसा चला,<br></br> उम्र का अहसास गहराता गया।<br></br> <br></br> उड़ने की ख़्वाहिश औ सारे ख़्वाब,<br></br> कहीं घुप अंधेरे में आंखें मूंदे बैठ गए।<br></br> <br></br> अचानक तेज़ हवा के झोंके ने,<br></br> यूँ छू दिया कि नये अरमान उमड़ पड़े।<br></br> <br></br> इस लम्बी रात का सुंदर सवेरा हुआ,<br></br> बादल छँट गए, इंद्रधनुष ने रंग बिखेरे।<br></br> <br></br> फिर से जी लूँ, दिल ने तमन्ना की,<br></br> ऐ हवा के हसीं झोंके, रूख़ ना बदल लेना ।</p>
<p></p>
<p>मौलिक…</p>
<p>ज़िम्मेदारियों में उलझी ज़िंदगी,<br/> सरक-सरक कर गुज़रने लगी।<br/> <br/> हादसों का सिलसिला ऐसा चला,<br/> उम्र का अहसास गहराता गया।<br/> <br/> उड़ने की ख़्वाहिश औ सारे ख़्वाब,<br/> कहीं घुप अंधेरे में आंखें मूंदे बैठ गए।<br/> <br/> अचानक तेज़ हवा के झोंके ने,<br/> यूँ छू दिया कि नये अरमान उमड़ पड़े।<br/> <br/> इस लम्बी रात का सुंदर सवेरा हुआ,<br/> बादल छँट गए, इंद्रधनुष ने रंग बिखेरे।<br/> <br/> फिर से जी लूँ, दिल ने तमन्ना की,<br/> ऐ हवा के हसीं झोंके, रूख़ ना बदल लेना ।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व् अप्रकाशित।</p>मेरे सवाल ... अतुकांत कविताtag:openbooks.ning.com,2019-09-07:5170231:BlogPost:9916992019-09-07T10:00:00.000ZUshahttps://openbooks.ning.com/profile/Usha
<p></p>
<p>मेरे सवाल .... अतुकांत कविता</p>
<p><br></br>वो तेरी प्यार भरी बातें,</p>
<p>तेरा रौबीला रूप,</p>
<p>गज़ब की मुस्कान औ दंभ,</p>
<p>बहुत रोका, बहुत सँभाला,</p>
<p>कुछ भी ना कर सकी,</p>
<p>ख़ुद ही ख़ुद से हार गयी।</p>
<p></p>
<p>अब वो प्यारी बातें मेरी हुईं,</p>
<p>तेरा रौब, मेरा सौंदर्य साथ हुए,</p>
<p>तू मुस्कुराया, में खिलखिलाकर हंसी,</p>
<p>तेरा वो दंभ, मेरा हुआ,</p>
<p>सात फेरों ने ज़िन्दगी दी,</p>
<p>तू मेरा औ मैं तेरी हुई।</p>
<p></p>
<p>कहा किया सदा, साथ ना छूटेगा,</p>
<p>मैं अकेली पड़…</p>
<p></p>
<p>मेरे सवाल .... अतुकांत कविता</p>
<p><br/>वो तेरी प्यार भरी बातें,</p>
<p>तेरा रौबीला रूप,</p>
<p>गज़ब की मुस्कान औ दंभ,</p>
<p>बहुत रोका, बहुत सँभाला,</p>
<p>कुछ भी ना कर सकी,</p>
<p>ख़ुद ही ख़ुद से हार गयी।</p>
<p></p>
<p>अब वो प्यारी बातें मेरी हुईं,</p>
<p>तेरा रौब, मेरा सौंदर्य साथ हुए,</p>
<p>तू मुस्कुराया, में खिलखिलाकर हंसी,</p>
<p>तेरा वो दंभ, मेरा हुआ,</p>
<p>सात फेरों ने ज़िन्दगी दी,</p>
<p>तू मेरा औ मैं तेरी हुई।</p>
<p></p>
<p>कहा किया सदा, साथ ना छूटेगा,</p>
<p>मैं अकेली पड़ जाऊँ, ये ना होने पाएगा,</p>
<p>मैं जहाँ - तू वहाँ, ये अहसास सदा रहेगा,</p>
<p>दो जिस्म - एक जां, यही प्यार होगा</p>
<p>मेरी हर ख़्वाहिश, हर तमन्ना तेरी होगी ,</p>
<p>कोई शिक़वा नहीं, प्रेम ही प्रेम होगा।</p>
<p></p>
<p>ऐ मेरे हमसफ़र, ऐ मेरे जीवन-साथी,</p>
<p>क्या हुआ कि तु यूँ मुँह मोड़ चला,</p>
<p>ज़माने में मुझे इस क़दर रुसवा कर दिया,</p>
<p>ज़रा तो सोचा-औ-याद किया होता,</p>
<p>अपनी ही बातों से फ़रेब कर दिया,</p>
<p>मुझे हर उलझन, हर दर्द से जोड़, ख़ुद उड़ चला।</p>
<p></p>
<p>मैं, आज भी नहीं जान-औ-समझ पायी,</p>
<p>सवालों में घिरी हूँ, पल-पल तड़पती हूँ,</p>
<p>एक बार तो लौट कर आ, कहीं से भी आ, कैसे भी आ,</p>
<p>बताता तो जा ऐ ज़ालिम,</p>
<p>मेरी चाहत ग़लत थी ?</p>
<p>तेरी वफ़ा में कमी थी ?</p>
<p></p>
<p>मौलिक व् अप्रकाशित।</p>
<p> </p>तू है यहीं..।।tag:openbooks.ning.com,2019-09-03:5170231:BlogPost:9916572019-09-03T05:00:00.000ZUshahttps://openbooks.ning.com/profile/Usha
<p>तू है यहीं..।।</p>
<p></p>
<p>दिन नया-नया सा है, ख़्वाहिशें सब पुरानी सी। <br></br>तेरा इंतज़ार था, इंतज़ार है, और इंतज़ार रहेगा।।</p>
<p></p>
<p>चाहतें हैं जो बदलती नहीं, आहें हैं, मिटती नहीं। <br></br>अहसास करवटें बदल-बदल कर सताते हैं।।</p>
<p></p>
<p>हर शाम पूछती है, बेधड़क दरवाज़ा खटखटाती है। <br></br>वो ख़ुद लौटा है, या सिर्फ़ उसकी यादें लौटी है?</p>
<p></p>
<p>यादें और यादें, तुम ही रुक जाओ, कम्बख़्त । <br></br>मुस्कराहटें ना सही, आँसू ही दे जाओ ज़रा।।</p>
<p></p>
<p>हर मशविरा वो देता है, आगे बढ़ जाओ। <br></br>बतला…</p>
<p>तू है यहीं..।।</p>
<p></p>
<p>दिन नया-नया सा है, ख़्वाहिशें सब पुरानी सी। <br/>तेरा इंतज़ार था, इंतज़ार है, और इंतज़ार रहेगा।।</p>
<p></p>
<p>चाहतें हैं जो बदलती नहीं, आहें हैं, मिटती नहीं। <br/>अहसास करवटें बदल-बदल कर सताते हैं।।</p>
<p></p>
<p>हर शाम पूछती है, बेधड़क दरवाज़ा खटखटाती है। <br/>वो ख़ुद लौटा है, या सिर्फ़ उसकी यादें लौटी है?</p>
<p></p>
<p>यादें और यादें, तुम ही रुक जाओ, कम्बख़्त । <br/>मुस्कराहटें ना सही, आँसू ही दे जाओ ज़रा।।</p>
<p></p>
<p>हर मशविरा वो देता है, आगे बढ़ जाओ। <br/>बतला तो जाता, आख़िर कहाँ बढ़ा जाये।।</p>
<p></p>
<p>ऐसा नहीं कि, कोशिश नहीं की मैंने । <br/>पर कोई बताये, मशीन कैसे बना जाये?</p>
<p></p>
<p>सांसें हैं, दिल की धड़कनें भी बेहिसाब। <br/>चल तो रही हैं, पर हैं नीरस औ वीराँ।।</p>
<p></p>
<p>ऐ सनम ! या तू समझ ले, या समझा जा।<br/>जीना तो होगा ही, पर कैसे? हाँ कैसे? <br/> <br/>अतुकांत कविता</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित।</p>अधिकारों की नई परिभाषाtag:openbooks.ning.com,2019-09-02:5170231:BlogPost:9918462019-09-02T06:30:00.000ZUshahttps://openbooks.ning.com/profile/Usha
<p>काफी प्रतीक्षा के बाद जनरल मैनेजर वनिता सिंह को अकेले देख कर शिवानी ठाकुर उनके चैंबर में प्रविष्ट हुयी। मैडम अपनी कार्य-शैली के अनुसार सिर झुकाये कुछ पढ़ने में व्यस्त बनी रहीं। शिवानी ने विनम्रता से बैंक जाकर ए टी एम् कार्ड रिसीव करने हेतु अनुमति माँगी।</p>
<p>उन्होंने सिर झुकाये ही कहा, “लिखित में लाइए।”</p>
<p>“मैडम, मैं अवकाश नहीं माँग रही हूँ , बैंक जाकर तुरंत वापसी कर लूंगी।</p>
<p>“सुना नहीं? लिखकर लाओ कि तुम कार्यालय के समय में अपना व्यक्तिगत कार्य करने जाना चाहती हो।”</p>
<p>शिवानी…</p>
<p>काफी प्रतीक्षा के बाद जनरल मैनेजर वनिता सिंह को अकेले देख कर शिवानी ठाकुर उनके चैंबर में प्रविष्ट हुयी। मैडम अपनी कार्य-शैली के अनुसार सिर झुकाये कुछ पढ़ने में व्यस्त बनी रहीं। शिवानी ने विनम्रता से बैंक जाकर ए टी एम् कार्ड रिसीव करने हेतु अनुमति माँगी।</p>
<p>उन्होंने सिर झुकाये ही कहा, “लिखित में लाइए।”</p>
<p>“मैडम, मैं अवकाश नहीं माँग रही हूँ , बैंक जाकर तुरंत वापसी कर लूंगी।</p>
<p>“सुना नहीं? लिखकर लाओ कि तुम कार्यालय के समय में अपना व्यक्तिगत कार्य करने जाना चाहती हो।”</p>
<p>शिवानी एक कर्मठ व आकर्षक कर्मचारी थी। उसकी खूबियां यदा-कदा उच्च अधिकारियों को हज़म नहीं हो पाती थीं। जिनमें से एक वनिता जी थीं।</p>
<p>वनिता जी के व्यवहार से शिवानी एक बार पुनः आहत हुई किंतु अधिकारी तो अधिकारी ही ठहरा, सो वह चुपचाप बाहर आ गयी।</p>
<p>कॉरिडोर में मिले अपने कनिष्ठ कर्मचारियों की खुशी का कारण जान शिवानी उल्टे पांव अधिकारी के कमरे में जा घुसी।</p>
<p>मैडम, आपसे जानना चाहती हूँ कि यदि मुझे अनुमति नहीं दी गयी तो उन्हें क्यूँ?</p>
<p>शिवानी जी, मैं आपकी अधिकारी हूँ, आप मेरी नहीं। यह मेरा निर्णय है की मैं किसके साथ कैसा सुलूक करुँ। इस संस्था की सर्वोच्च मुखिया होने की हैसियत से सारे अधिकार मेरे पास सुरक्षित हैं। आपको अहसास होना चाहिए कि मैं प्रशासनिक आधार पर कोई भी कार्यवाही कर आपका सुख-चैन सब छीन सकती हूँ।</p>
<p>शिवानी कहना तो बहुत कुछ चाहती थी किन्तु ...</p>
<p></p>
<p>मौलिक व् अप्रकाशित।</p>आख़िर कब तक?tag:openbooks.ning.com,2018-06-01:5170231:BlogPost:9325222018-06-01T04:04:33.000ZUshahttps://openbooks.ning.com/profile/Usha
<p>श्री लता को अचानक ऑय सी यू में भर्ती कराने की ख़बर सुन रानी अपने दफ़्तर से निकल, आनन् फ़ानन में कुछ इस तरह गाड़ी चलाते हुए अस्पताल की तरफ लपकी, जैसे वो अपनी बहन को आखिरी बार देखने जा रही हो। श्री लता कमरा नंबर १० जो की ऑय सी यू वार्ड था में भर्ती थी। दर और घबराहट के साथ रीना रिसेप्शन पर पहुंची और पहुँचते ही उसने डॉक्टर की सुध ली।</p>
<p>मैडम, डॉक्टर साहेब तो जा चुके हैं, आप कल आइएगा। </p>
<p>ये सुनना था कि रानी का कलेजा मुँह को आ गया। मेरी बहन अभी कुछ समय पहले ही ऑय सी यू में भर्ती हुई है, श्री…</p>
<p>श्री लता को अचानक ऑय सी यू में भर्ती कराने की ख़बर सुन रानी अपने दफ़्तर से निकल, आनन् फ़ानन में कुछ इस तरह गाड़ी चलाते हुए अस्पताल की तरफ लपकी, जैसे वो अपनी बहन को आखिरी बार देखने जा रही हो। श्री लता कमरा नंबर १० जो की ऑय सी यू वार्ड था में भर्ती थी। दर और घबराहट के साथ रीना रिसेप्शन पर पहुंची और पहुँचते ही उसने डॉक्टर की सुध ली।</p>
<p>मैडम, डॉक्टर साहेब तो जा चुके हैं, आप कल आइएगा। </p>
<p>ये सुनना था कि रानी का कलेजा मुँह को आ गया। मेरी बहन अभी कुछ समय पहले ही ऑय सी यू में भर्ती हुई है, श्री लता। वो ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रही है और डॉक्टर साहेब ग़ायब हैं। वो गुस्से में बोली - मेरी फ़ोन पर बात कराइये। अपनी घडी की तरफ़ इशारा करते हुए वो बोली - 'अभी तो आठ भी नहीं बजे भाईसाहब, इतनी जल्दी कैसे डॉक्टर साहेब मरीज़ो को नज़रअंदाज़ करके जा सकते हैं ?'</p>
<p>मैडम ! उनके बेटे का आज जन्मदिन था इसलिए वो थोड़ा जल्दी चले गए। आप कहें तो मैं आपकी बात जूनियर डॉक्टर से करवा दूँ जो कि आपकी बहन के ट्रीट्मेंट में डॉक्टर साहेब के साथ थे ?</p>
<p>जी हाँ। जल्दी करवाइये, रीना के मन में भयंकर उथल पुथल चल रही थी, वो अपनी बाकि की दो बहनों और दो भाइयों में सबसे ज़्यादा श्री लता से ही नज़दीक थी। रीना सब जानती थी। अपनी सारी उलझनों के साथ वो डॉक्टर के केबिन में ऊँगली में दुपट्टे का कोना मरोड़ते हुए दाख़िल हुई ।</p>
<p>डॉ सिद्धार्थ राणे अपने केबिन में बैठे किसी एक्स रे का मुआयना कर रहे थे। रीना ने डॉक्टर को अपना परिचय दिया और बड़ी ही बदहवासी से अपनी बहन की स्तिथि के बारे में जानना चाहा। डॉक्टर के हाव भाव निराशाजनक देख रीना उतावली सी हो उठी। इससे पहले की डॉक्टर साहेब कुछ कह पाते एक नर्स भागती हुई डॉक्टर के केबिन में घुसी।</p>
<p>डॉक्टर - रूम नंबर १० का मरीज़। बस इतना सुनना था कि रानी की आंखें नम हो गयीं पर आँसू नहीं छलकने दिए उसने। वो भी नर्स और डॉक्टर के पीछे हो ली। तभी सामने से समीर आता नज़र आया, उसे देखते ही रानी के क़दम अनायास ही रुक गये,उसकी आँखों के सामने जैसे कुछ दृश्य आ गये हों । समीर के पास आने पर उसने पूछा - बेटा ! सच बता मम्मी के साथ क्या किया तुम सबने ? सुहेल कहाँ है ? तुम्हारा बाप कहाँ मर गया जाकर ? उसे तो जेल में सडाऊंगी।</p>
<p>मॉसी, मुझे तो कुछ पता नहीं। मैं तो दूध लेने गया था। रानी ने छह फुट अपने से भी क़द में ऊँचे भांजे को दो चांटे जड़ दिए। अभी वो खुद को संभाल भी नहीं पायी थी की दो और जूनियर डॉक्टर्स और नर्सेज और अटेंडेंट्स का जमावड़ा कमरा नंबर १० की तरफ लपका।कुछ पलों के लिये जैसे सन्नाटा छा गया। ये क्या था ! एक एक करके पूरी टीम के मेम्बर्स कमरा नंबर १० से ऐसी ख़ामोशी से निकले कि रानी के पैरों तले ज़मीन ख़िसक गयी और वो वहीं धराशायी हो गयी।</p>
<p>"मौलिक व् अप्रकाशित" </p>शिकवा - डॉ उषा साहनीtag:openbooks.ning.com,2016-05-25:5170231:BlogPost:7682482016-05-25T11:31:43.000ZUshahttps://openbooks.ning.com/profile/Usha
<p>कितनी बंदिशें ज़िन्दगी में,<br/> कितनी रुकावटें,<br/> दिल नाशाद <br/> दिमाग में रंजिशें। <br/> बेपरवाह होके जीना,<br/> इक गुनाह <br/> घुट घुट के जीना,<br/> इक सज़ा <br/> न यह सही है न यह ग़लत <br/> तिसपर भी ज़िन्दगी के हैं उसूल <br/> औ नियम ,...... अनगिनत। <br/> चाहा तो बहुत था <br/> सब रहे सलामत <br/> पर कब, कैसे बिगड़ गया,<br/> याद भी नहीं रह गया <br/> अब ये आलम है कि..... क्या है ,<br/> क्या नहीं ,<br/> पड़ता कहीं कोई फ़र्क़ नहीं।</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p>कितनी बंदिशें ज़िन्दगी में,<br/> कितनी रुकावटें,<br/> दिल नाशाद <br/> दिमाग में रंजिशें। <br/> बेपरवाह होके जीना,<br/> इक गुनाह <br/> घुट घुट के जीना,<br/> इक सज़ा <br/> न यह सही है न यह ग़लत <br/> तिसपर भी ज़िन्दगी के हैं उसूल <br/> औ नियम ,...... अनगिनत। <br/> चाहा तो बहुत था <br/> सब रहे सलामत <br/> पर कब, कैसे बिगड़ गया,<br/> याद भी नहीं रह गया <br/> अब ये आलम है कि..... क्या है ,<br/> क्या नहीं ,<br/> पड़ता कहीं कोई फ़र्क़ नहीं।</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>