Lata tejeswar's Posts - Open Books Online
2024-03-28T17:37:58Z
Lata tejeswar
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मैं दामिनी हूँ
tag:openbooks.ning.com,2013-09-13:5170231:BlogPost:434620
2013-09-13T15:00:00.000Z
Lata tejeswar
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<h5>मैं दामिनी हूँ<br></br> <br></br> आप की जैसी एक जिंदगानी हूँ<br></br> जीना था मुझे आप की तरह<br></br> रोज़ सवेरे उठकर ऑफिस जाना था<br></br> एक छोटा सा घर बनाना था।<br></br> <br></br> किसीकी बहन तो थी ही<br></br> किसीकी जननी भी कहलानी थी <br></br> माँ मुझे जीना था।<br></br> <br></br> आज जल गया मेरा सवेरा <br></br> टूट गये सारे अरमान मेरे <br></br> जा रही मैं इस दुनिया को छोड़ कर<br></br> मगर माँ मुझे जीना था<br></br> रोज़ सवेरे आप का पैर छूना था।<br></br> <br></br> उजाड़ गयी दुनिया मेरी<br></br> पर एक ख्वाब मुझे बुनना था<br></br> मगर माँ मुझे जीना था। <br></br> <br></br> कैसे…</h5>
<h5>मैं दामिनी हूँ<br/> <br/> आप की जैसी एक जिंदगानी हूँ<br/> जीना था मुझे आप की तरह<br/> रोज़ सवेरे उठकर ऑफिस जाना था<br/> एक छोटा सा घर बनाना था।<br/> <br/> किसीकी बहन तो थी ही<br/> किसीकी जननी भी कहलानी थी <br/> माँ मुझे जीना था।<br/> <br/> आज जल गया मेरा सवेरा <br/> टूट गये सारे अरमान मेरे <br/> जा रही मैं इस दुनिया को छोड़ कर<br/> मगर माँ मुझे जीना था<br/> रोज़ सवेरे आप का पैर छूना था।<br/> <br/> उजाड़ गयी दुनिया मेरी<br/> पर एक ख्वाब मुझे बुनना था<br/> मगर माँ मुझे जीना था। <br/> <br/> कैसे कहूँ, जो अब मैं चली गयी<br/> लोगों की दिल में चोट बनकर रह गयी<br/> इस चोट को दुनिया वालों, खुरेदना मत<br/> मैं जा रही, पर ख्याल आप की<br/> माँ बहन का रखना।<br/> <br/> जब भी लगे चोट उनको<br/> तो मुझे याद कर लेना,<br/> मैं दामिनी हूँ-<br/> लोगों, मुझे दिल में बसाए रखना,<br/> मैं आज जो जीत गयी<br/> ये जीत आप की बहन बेटी की होगी<br/> मुझे जीत जाने दो<br/> मुझे जीने दो।<br/> <br/> माँ मुझे जीना था।<br/> <br/> ....Lata Tej.....<br/> ९/१३/१३</h5>
<p></p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित"</p>
<p></p>
इंतज़ार
tag:openbooks.ning.com,2013-08-22:5170231:BlogPost:419109
2013-08-22T04:00:00.000Z
Lata tejeswar
https://openbooks.ning.com/profile/latatejeswar
<div><div><div><div><div><div>वह एक छोटा सा टुकड़ा<br></br>जिस में मैने आशाओं को कैद कर<br></br>तुम्हें समर्पित किया था,<br></br>क्या तुमने वह<br></br>कागज का दिल<br></br>स्वीकार किया है,<br></br>कान्हा …. ?<br></br>मेघमाला के द्वारा<br></br>जो संदेश तुम्हें भेज था -<br></br>क्या उस दिल की धड़कन<br></br>तुमने सुनी थी<br></br>प्रभु. … ?<br></br><br></br>हवा में लहराते<br></br>मेरे शब्दों की गूँज<br></br>क्या तुन तक<br></br>पहुँच पायी है,<br></br>नाथ … ?<br></br>चंद्रमा को देखते हुए<br></br>मेरे दिल में अंकित तुम्हारा रूप<br></br>जो मुझे नज़र आता है,<br></br>उस चंद्रमा में…</div>
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<div><div><div><div><div><div>वह एक छोटा सा टुकड़ा<br/>जिस में मैने आशाओं को कैद कर<br/>तुम्हें समर्पित किया था,<br/>क्या तुमने वह<br/>कागज का दिल<br/>स्वीकार किया है,<br/>कान्हा …. ?<br/>मेघमाला के द्वारा<br/>जो संदेश तुम्हें भेज था -<br/>क्या उस दिल की धड़कन<br/>तुमने सुनी थी<br/>प्रभु. … ?<br/><br/>हवा में लहराते<br/>मेरे शब्दों की गूँज<br/>क्या तुन तक<br/>पहुँच पायी है,<br/>नाथ … ?<br/>चंद्रमा को देखते हुए<br/>मेरे दिल में अंकित तुम्हारा रूप<br/>जो मुझे नज़र आता है,<br/>उस चंद्रमा में -<br/>क्या मेरी एक झलक<br/>तुम्हे दिखाई देती है,<br/>कभी …?<br/><br/>तुम्हारे इंतज़ार में<br/>वह स्वर्ण चंपा के नीचे -<br/>बिताई हुई उन रातों का<br/>स्वप्निल नज़ारा<br/>तुम्हारे स्वप्न में<br/>अवलोकन नहीं करता,<br/>गोपाल …. ?<br/><br/>तुम्हारी बंसी से निकली<br/>वह प्यार की धुन -<br/>जो मुझे तुम्हारी ओर<br/>खींच लाती थी,<br/>क्या वह पल अब भी<br/>आप को याद है,<br/>वेणुधर ……. ?<br/><br/>सखी सहेली के संग<br/>स्नान करते समय,<br/>हमारे अंगवस्त्र जो तुम<br/>छुपा लिया करते थे,<br/>अनजान, बेखबर, मासूम बन<br/>वेणुनाद में रत रहते थे-<br/>क्या ये तुम्हें सोभा देता था,<br/>मुरलीधर ……?<br/><br/>फिर भी तुम्हारी चाह में मैने<br/>जो रातें अनिद्रा गुज़ारी हैं,<br/>क्या उन पलों ने कभी तुम्हारे मन को<br/>विचलित किया है,<br/>नंदलाल … ?<br/><br/>हाथों में रची मेहंदी में<br/>तुम्हारा नाम को दोहराते<br/>हुए काँपते ओंठ की चुभन,<br/>कभी आपको<br/>भाव विव्हल नहीं करती,<br/>स्वामी …. ?<br/><br/>मेरे पायल की वह झंकार<br/>क्या आज आपके ह्रदय को<br/>विचलित नहीं करती<br/>प्रभु …. ?<br/><br/>मेंरे कानों की बालियाँ<br/>जब आपकी वेणुनाद से<br/>मोहित होकर प्रकंपित होती थी,<br/>उस प्रकंपन से -<br/>आप कुछ क्षण ही सही<br/>हमारी तरफ मंत्र मुग्ध होकर<br/>अवलोकन करते थे …<br/>तब आपकी आँखों की<br/>चमक से मेरा तन<br/>संकुचित हो जाता था,<br/>तब आप क्या कहते थे<br/>भूल गए-<br/>कृष्ण … ?<br/><br/>गोपियों संग जब<br/>घड़े में पानी भरकर <br/>हम वापस लौटते थे,<br/>आप वेणु की धुन से<br/>हमारे पैरों को बाँध देते थे<br/>और हम मंत्र मुग्ध होकर<br/>आप की ओर चले आते थे,<br/>तब हाँ तब …….<br/>हमारे पल्लू को पकड़ कर<br/>आप अपने ओर खींच लेते थे न<br/>कान्हा …।<br/><br/>क्या वह सारी याद आप को नहीं सताती ….<br/>क्या आप की ह्रदय को नहीं झंझोड़ती …<br/>क्या कभी इस राधा की याद नहीं आती … ?<br/>क्या हमारे विरह की घड़ियाँ<br/>आपको नहीं तड़पाती …. ?<br/><br/>फिर.… चले आइए प्रभु --<br/>एक बार, एक बार फिर<br/>आपकी सुन्दरता को<br/>जी भर के देखलेने दीजिए …<br/><br/>बस्, वह पल को हम<br/>आँखों में ऐसे कैद कर लेंगे की<br/>कभी आप हम से अलग<br/>हो ही नहीं सकते ….<br/>चले आओ प्रभु,<br/>एक बार<br/>सिर्फ एक बार …….<br/>बस्। <br/><br/>© Lata Tejeswar<br/>8/7/2013<br/><br/>composed by, Lata tejeswar,<br/><br/><br/></div>
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<div><span style="text-decoration: underline;"><strong>"मौलिक व अप्रकाशित"</strong></span></div>
तुझे इकरार हो तो चली आना।
tag:openbooks.ning.com,2013-07-25:5170231:BlogPost:402324
2013-07-25T10:30:00.000Z
Lata tejeswar
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<p>कभी न आएँगे तेरे दर पे<br></br>कि तेरे बिना<br></br>जीना मंजूर है हमें<br></br>कभी न ताकेंगे तेरे राह<br></br>कि तेरे बिना <br></br>जीना मंजूर है हमें।<br></br><br></br>एक आशियाना मिला था,<br></br>एक फूल खिला था,<br></br>जो मुरझा गया समय से पहले<br></br>उस फूल को लेकर<br></br>अब मैं कहाँ जाऊँ।<br></br><br></br>जिसमे सजानी थी <br></br>बचपन की यादें,<br></br>समेटनी थी कुछ खुशियाँ<br></br>तेरे साथ उन खुशियों को<br></br>ढूंढने अब मैं कहाँ जाऊँ।<br></br><br></br>एक शाम बितानी थी तेरे संग<br></br>दुनिया को भूलकर<br></br>आसमान छूना था,<br></br>उन सपनों को लेकर<br></br>अब मैं कहाँ…</p>
<p>कभी न आएँगे तेरे दर पे<br/>कि तेरे बिना<br/>जीना मंजूर है हमें<br/>कभी न ताकेंगे तेरे राह<br/>कि तेरे बिना <br/>जीना मंजूर है हमें।<br/><br/>एक आशियाना मिला था,<br/>एक फूल खिला था,<br/>जो मुरझा गया समय से पहले<br/>उस फूल को लेकर<br/>अब मैं कहाँ जाऊँ।<br/><br/>जिसमे सजानी थी <br/>बचपन की यादें,<br/>समेटनी थी कुछ खुशियाँ<br/>तेरे साथ उन खुशियों को<br/>ढूंढने अब मैं कहाँ जाऊँ।<br/><br/>एक शाम बितानी थी तेरे संग<br/>दुनिया को भूलकर<br/>आसमान छूना था,<br/>उन सपनों को लेकर<br/>अब मैं कहाँ जाऊँ।<br/><br/>तेरे यादों को जो ले आई थी<br/>झोली में भर कर<br/>उन यादों को दफ़नाने<br/>अब मैं कहाँ जाऊँ।<br/><br/>एक शाम जो गुज़री थी<br/>तेरे पलकों के साये<br/>उस शाम को आग देने<br/>अब मैं कहाँ जाऊँ।<br/><br/>तू याद न करना हमें,<br/>हम ने भी भूलाया है तुझे<br/>अगर देना है चिता उन यादों को <br/>तो तू भी चली आना।<br/><br/>बरसात तो होगा ही<br/>असमान भी रोयेगा,<br/>एक दुसरे के कंधे पर रखकर सिर <br/>कुछ देर आँहें भर लेंगे।<br/><br/>यादों की बारात सजेगी<br/>हाथों में तेरे, होगा कुछ भस्म<br/>कुछ मेरे हाथ होगा, <br/>उस भस्म से सजेगी मंडप।<br/><br/>तुझे इकरार हो तो चली आना।<br/><br/>.....लता तेजेश्वर</p>
<p></p>
<p><span style="text-decoration: underline;"><strong>"मौलिक व अप्रकाशित"</strong></span></p>
एक बेबस आत्मा
tag:openbooks.ning.com,2013-07-18:5170231:BlogPost:398735
2013-07-18T08:00:00.000Z
Lata tejeswar
https://openbooks.ning.com/profile/latatejeswar
<h5>शून्य की गहरा अन्धकार में<br></br> भटक रही एक बेबस आत्मा ..<br></br> न कोई अपना उसका<br></br> न कोई सपना ....<br></br> रोंदू एक मोम सी गुडिया<br></br> रो रही थी उन सीढियों पर<br></br> छोड़ गई थी कोई बेबस माँ<br></br> उस भगवान की द्वार ...<br></br> रोंदू सी वह गुडिया रोए जा रही थी ...<br></br> रोती हुई गुडिया को देख<br></br> वह आत्मा कुछ ऐसे बिल्ल्ख गई<br></br> बहक गई ...<br></br> ममता जो उसकी जगगई ...<br></br> बेबस वह बच्ची को गोद में लेने<br></br> तड़प रही ...<br></br> न था उसका हाथ,<br></br> न था उसका पैर<br></br> एक हवा बन कर सहलाती रही ..<br></br> न थी वह…</h5>
<h5>शून्य की गहरा अन्धकार में<br/> भटक रही एक बेबस आत्मा ..<br/> न कोई अपना उसका<br/> न कोई सपना ....<br/> रोंदू एक मोम सी गुडिया<br/> रो रही थी उन सीढियों पर<br/> छोड़ गई थी कोई बेबस माँ<br/> उस भगवान की द्वार ...<br/> रोंदू सी वह गुडिया रोए जा रही थी ...<br/> रोती हुई गुडिया को देख<br/> वह आत्मा कुछ ऐसे बिल्ल्ख गई<br/> बहक गई ...<br/> ममता जो उसकी जगगई ...<br/> बेबस वह बच्ची को गोद में लेने<br/> तड़प रही ...<br/> न था उसका हाथ,<br/> न था उसका पैर<br/> एक हवा बन कर सहलाती रही ..<br/> न थी वह समझाने की काबिल<br/> न ही मानानेकी<br/> लाख प्रयास कर थक गई ..<br/> उड़ती हुई एक मक्खी<br/> कहीं से आकर आँखों पर बैठ गई ...<br/> बेबस थी जो वह आत्मा ममता जो जाग गई..<br/> सूखे पत्ते बिखर गए<br/> मुलायम नाजुक सी वह कली<br/> खिलने से पहले मुरझा न जाए<br/> आँखों में उसकी आँसू भर आई...।।<br/> बेबश वह आत्मा बार बार करे गुहार<br/> माथा टेके भगवान के द्वार<br/> मोम सी वह पुतली को<br/> कोई तो गोद में भरले ...<br/> <br/> © ...लता तेजेश्वर ...</h5>
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<p><strong>"मौलिक व अप्रकाशित"</strong></p>
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