Ajay Tiwari's Posts - Open Books Online2024-03-29T14:54:28ZAjay Tiwarihttps://openbooks.ning.com/profile/AjayTiwarihttps://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991299642?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1https://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=1hus2b1cd9wsr&xn_auth=noग़ज़ल - दुनिया का सबसे बड़ा झूठा, खुद को सच्चा कहता हैtag:openbooks.ning.com,2018-10-27:5170231:BlogPost:9583392018-10-27T01:30:09.000ZAjay Tiwarihttps://openbooks.ning.com/profile/AjayTiwari
<p></p>
<p>नादान से बच्चे भी हँसते हैं, जब वो ऐसा कहता है</p>
<p>दुनिया का सबसे बड़ा झूठा, खुद को सच्चा कहता है</p>
<p></p>
<p></p>
<p> </p>
<p>मुँह उसका है अपने मुंह से, जो कहता है कहने दो</p>
<p>कहने को तो अब वो खुद को, सबसे अच्छा कहता है</p>
<p></p>
<p></p>
<p> </p>
<p>चिकने पत्थर, फैली वादी, उजला झरना, सहमे पेड़</p>
<p>लहू से भीगा हर इक पत्ता, अपना किस्सा कहता है</p>
<p></p>
<p></p>
<p> </p>
<p>सूखे आंसू, पत्थर आँखें, लब हिलते हैं बेआवाज</p>
<p>लेकिन उन पे जो गुजरी है, हर इक चेहरा कहता…</p>
<p></p>
<p>नादान से बच्चे भी हँसते हैं, जब वो ऐसा कहता है</p>
<p>दुनिया का सबसे बड़ा झूठा, खुद को सच्चा कहता है</p>
<p></p>
<p></p>
<p> </p>
<p>मुँह उसका है अपने मुंह से, जो कहता है कहने दो</p>
<p>कहने को तो अब वो खुद को, सबसे अच्छा कहता है</p>
<p></p>
<p></p>
<p> </p>
<p>चिकने पत्थर, फैली वादी, उजला झरना, सहमे पेड़</p>
<p>लहू से भीगा हर इक पत्ता, अपना किस्सा कहता है</p>
<p></p>
<p></p>
<p> </p>
<p>सूखे आंसू, पत्थर आँखें, लब हिलते हैं बेआवाज</p>
<p>लेकिन उन पे जो गुजरी है, हर इक चेहरा कहता है</p>
<p></p>
<p></p>
<p> </p>
<p>इस पार मरें उस पार मरें, मरते तो हम-तुम ही हैं</p>
<p>दोनों तरफ इक क़ातिल बैठा, ख़ुद को राजा कहता है</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक/अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p><span>मुतदारिक मख़्बून मुसक्किन महज़ूज़ 16-रुक़्नी( बहरे-मीर का प्रतिबिम्ब)</span></p>
<p><span>फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा</span></p>
<p><span>22 22 22 22 22 22 22 2</span> </p>
<p></p>ग़ज़ल - सब में आग थी, लोहा भी था, नेक बहुत थे सारे हम - अजय तिवारीtag:openbooks.ning.com,2018-03-26:5170231:BlogPost:9216222018-03-26T06:19:28.000ZAjay Tiwarihttps://openbooks.ning.com/profile/AjayTiwari
<p>फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा</p>
<p> 22 22 22 22 22 22 22 2</p>
<p></p>
<p>सब में आग थी, लोहा भी था, नेक बहुत थे सारे हम</p>
<p>लेकिन तन्हा-तन्हा लड़ कर, तन्हा-तन्हा हारे हम</p>
<p> </p>
<p>ज़र्रा-ज़र्रा बिखरे है हम, चारो ओर खलाओं में</p>
<p>लेकिन जिस दिन होंगे इकठ्ठा, बन जायेंगे सितारे हम</p>
<p> </p>
<p>कितने दिन वो मूँग दलेंगे, कमजोरों की छाती पर</p>
<p>कितने दिन और चुप बैठेंगे, बनके यूं बेचारे हम </p>
<p> </p>
<p>कबतक और ये…</p>
<p>फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा</p>
<p> 22 22 22 22 22 22 22 2</p>
<p></p>
<p>सब में आग थी, लोहा भी था, नेक बहुत थे सारे हम</p>
<p>लेकिन तन्हा-तन्हा लड़ कर, तन्हा-तन्हा हारे हम</p>
<p> </p>
<p>ज़र्रा-ज़र्रा बिखरे है हम, चारो ओर खलाओं में</p>
<p>लेकिन जिस दिन होंगे इकठ्ठा, बन जायेंगे सितारे हम</p>
<p> </p>
<p>कितने दिन वो मूँग दलेंगे, कमजोरों की छाती पर</p>
<p>कितने दिन और चुप बैठेंगे, बनके यूं बेचारे हम </p>
<p> </p>
<p>कबतक और ये खून की होली, कबतक और नफ़रत का खेल</p>
<p>कबतक और करेंगे दिल के, ये खूनी बंटवारे हम</p>
<p> </p>
<p>जब हो जरूरत खिल जायेंगे, फिर से सुनहरी लपटों में</p>
<p>राख में अपनी दबे है लेकिन, हैं जलते अंगारे हम.</p>
<p> </p>
<p>शायद एक दिन ऐसा होगा, खुशियाँ होंगी सब के साथ</p>
<p>शायद एक दिन ऐसा होगा, होंगे साथ तुम्हारे हम</p>
<p></p>
<p></p>
<p><strong> "मौलिक/अप्रकाशित"</strong></p>केदारनाथ सिंह के लिए - अजय तिवारीtag:openbooks.ning.com,2018-03-21:5170231:BlogPost:9204602018-03-21T11:10:07.000ZAjay Tiwarihttps://openbooks.ning.com/profile/AjayTiwari
<p></p>
<p><strong>केदारनाथ सिंह के लिए</strong></p>
<p></p>
<p></p>
<p>वैसे तो आजकल किसी को क्या फर्क पड़ता है -</p>
<p>एक कवि के न होने से ! </p>
<p></p>
<p>लेकिन जैसे ख़त्म हो गया है धरती का सारा नमक </p>
<p>और अलोने हो गए हैं </p>
<p>सारे शब्द...</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p><strong>मौलिक/अप्रकाशित</strong></p>
<p></p>
<p><strong>केदारनाथ सिंह के लिए</strong></p>
<p></p>
<p></p>
<p>वैसे तो आजकल किसी को क्या फर्क पड़ता है -</p>
<p>एक कवि के न होने से ! </p>
<p></p>
<p>लेकिन जैसे ख़त्म हो गया है धरती का सारा नमक </p>
<p>और अलोने हो गए हैं </p>
<p>सारे शब्द...</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p><strong>मौलिक/अप्रकाशित</strong></p>ग़ज़ल - जरा-सा छुआ था हवाओं ने, कि नदी की देह सिहर गयी - अजय तिवारीtag:openbooks.ning.com,2018-03-20:5170231:BlogPost:9200062018-03-20T06:58:53.000ZAjay Tiwarihttps://openbooks.ning.com/profile/AjayTiwari
<p>मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन<br></br>11212 11212 11212 11212</p>
<p></p>
<p>जरा-सा छुआ था हवाओं ने, कि नदी की देह सिहर गयी</p>
<p>तभी धूप सुब्ह की गुनगुनी, उन्हीं सिहरनों पे उतर गयी</p>
<p> </p>
<p>खिली सरसों फिर से कछार में, भरे रंग फिर से बहार में</p>
<p>घुली खुश्बू फिर से बयार में, कोई टीस फिर से उभर गयी </p>
<p> </p>
<p>उसी एक पल में ही जी लिए, उसी एक पल में ही मर गए</p>
<p>वही एक पल मेरी सांस में, तेरी सांस जब थी ठहर गयी</p>
<p> </p>
<p>जमी…</p>
<p>मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन<br/>11212 11212 11212 11212</p>
<p></p>
<p>जरा-सा छुआ था हवाओं ने, कि नदी की देह सिहर गयी</p>
<p>तभी धूप सुब्ह की गुनगुनी, उन्हीं सिहरनों पे उतर गयी</p>
<p> </p>
<p>खिली सरसों फिर से कछार में, भरे रंग फिर से बहार में</p>
<p>घुली खुश्बू फिर से बयार में, कोई टीस फिर से उभर गयी </p>
<p> </p>
<p>उसी एक पल में ही जी लिए, उसी एक पल में ही मर गए</p>
<p>वही एक पल मेरी सांस में, तेरी सांस जब थी ठहर गयी</p>
<p> </p>
<p>जमी जर्रा-जर्रा थी रात भर, हरी बालियों की जो नोक पर </p>
<p>उसी ओस जैसी है जिंदगी, जरा-सी हिली कि बिखर गयी</p>
<p> </p>
<p>तुझे कुछ तो होगा अता पता , फ़कत इतना मुझको तू दे बता</p>
<p>वो जो मेरे हिस्से की थी ख़ुशी, वो अगर गयी तो किधर गयी</p>
<p> </p>
<p>तू जो कहता है वो है खूबतर, ये है कैसा जादू बता मगर</p>
<p>जो भी चीज आनी थी मेरे घर, वो पलट के तेरे ही घर गयी</p>
<p> </p>
<p>कभी ठीक से मै जिया नहीं, कभी ध्यान खुद पे दिया नहीं</p>
<p>जो भी करना था वो किया नहीं, युँ ही उम्र सारी गुज़र गयी </p>
<p></p>
<p><span> </span><span><strong>मौलिक/अप्रकाशित</strong></span></p>ग़ज़ल - अक्सर खुद से खुद ही लड़ कर, खुद से खुद ही हारे हम - अजय तिवारीtag:openbooks.ning.com,2017-12-27:5170231:BlogPost:9059292017-12-27T08:42:05.000ZAjay Tiwarihttps://openbooks.ning.com/profile/AjayTiwari
<p>फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा</p>
<p> 22 22 22 22 22 22 22 2 </p>
<p></p>
<p></p>
<p>अक्सर खुद से खुद ही लड़ कर, खुद से खुद ही हारे हम</p>
<p>और किसी से शिकवा कैसा, अपने हाथ के मारे हम</p>
<p> </p>
<p>हम अपनी पर आ जाते तो, दुनिया बदल भी सकते थे</p>
<p>लेकिन थी कोई बात कि जिससे, बन के रहे बेचारे हम</p>
<p></p>
<p>तन्हाई ने कर डाला है, जिस्म को अब मिट्टी का ढेर </p>
<p>साथ तेरे चाहा था मिल कर, छूते चाँद-सितारे …</p>
<p>फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा</p>
<p> 22 22 22 22 22 22 22 2 </p>
<p></p>
<p></p>
<p>अक्सर खुद से खुद ही लड़ कर, खुद से खुद ही हारे हम</p>
<p>और किसी से शिकवा कैसा, अपने हाथ के मारे हम</p>
<p> </p>
<p>हम अपनी पर आ जाते तो, दुनिया बदल भी सकते थे</p>
<p>लेकिन थी कोई बात कि जिससे, बन के रहे बेचारे हम</p>
<p></p>
<p>तन्हाई ने कर डाला है, जिस्म को अब मिट्टी का ढेर </p>
<p>साथ तेरे चाहा था मिल कर, छूते चाँद-सितारे हम </p>
<p> </p>
<p>दिल की सगाई हो नहीं पायी, रिश्ते मिले थे यूं तो बहुत</p>
<p>आए थे इस जग में कुंवारे, और जायेंगे कुंवारे हम</p>
<p> </p>
<p>बरसों बीते उनको हमने, एक नज़र देखा भी नहीं</p>
<p>हम थे पिता के राज दुलारे, माँ की आँख के तारे हम</p>
<p> </p>
<p>सदियों से जीवन में हमारे, रात अँधेरी ठहरी है </p>
<p>जाने कब सूरज आएगा, देखेंगे उजियारे हम</p>
<p></p>
<p>ज़ख़्मी है लेकिन जिंदा है, दिल में अब भी इक उम्मीद </p>
<p>ढोते हैं अब सांस का पत्थर, बस इस के ही सहारे हम </p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p><strong>"मौलिक-अप्रकाशित"</strong></p>
<p></p>
<p></p>ग़ज़ल - सोचो कुछ उनके बारे में, जिनका दिया जला नहींtag:openbooks.ning.com,2017-10-20:5170231:BlogPost:8905542017-10-20T02:17:05.000ZAjay Tiwarihttps://openbooks.ning.com/profile/AjayTiwari
<p>मुफ्तइलुन मुफाइलुन // मुफ्तइलुन मुफाइलुन</p>
<p>2112 1212 // 2112 1212</p>
<p></p>
<p>क्या करें और क्यों करें, करके भी फायदा नहीं</p>
<p>दिल में जो दर्द है तो है, लब पे कोई गिला नहीं </p>
<p> </p>
<p>उसके कहे से हो गये, लाखों के घर तबाह पर </p>
<p>उसने कहा कि उसने तो, कुछ भी कभी कहा नहीं</p>
<p> </p>
<p>सच तो हमेशा राज था, सच था हमेशा सामने</p>
<p>सच तो सभी के पास था, ढूंढे से पर मिला नहीं </p>
<p> </p>
<p>दोनों के दोनों चुप थे पर, गहरे में कोई शोर था</p>
<p>दोनों ने ही…</p>
<p>मुफ्तइलुन मुफाइलुन // मुफ्तइलुन मुफाइलुन</p>
<p>2112 1212 // 2112 1212</p>
<p></p>
<p>क्या करें और क्यों करें, करके भी फायदा नहीं</p>
<p>दिल में जो दर्द है तो है, लब पे कोई गिला नहीं </p>
<p> </p>
<p>उसके कहे से हो गये, लाखों के घर तबाह पर </p>
<p>उसने कहा कि उसने तो, कुछ भी कभी कहा नहीं</p>
<p> </p>
<p>सच तो हमेशा राज था, सच था हमेशा सामने</p>
<p>सच तो सभी के पास था, ढूंढे से पर मिला नहीं </p>
<p> </p>
<p>दोनों के दोनों चुप थे पर, गहरे में कोई शोर था</p>
<p>दोनों ने ही सुना मगर, दोनों ने कुछ कहा नहीं</p>
<p> </p>
<p>जाने खिलेंगे ख्वाब कब, जाने कब आएगी बहार, </p>
<p>वक्त के आसमान पर, अब भी कोई घटा नहीं</p>
<p> </p>
<p>जब भी जलाओ तुम दिए, अपनी मुड़ेर पर कभी </p>
<p>सोचो कुछ उनके बारे में, जिनका दिया जला नहीं</p>
<p></p>
<p><span><strong>"मौलिक-अप्रकाशित"</strong></span><span> </span></p>