Aditya Kumar's Posts - Open Books Online2024-03-28T18:42:29ZAditya Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/AdityaKumarhttps://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991278275?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1https://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=1h647lxzrd6a1&xn_auth=noहिंदीtag:openbooks.ning.com,2016-09-14:5170231:BlogPost:8000732016-09-14T15:21:31.000ZAditya Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/AdityaKumar
<p>हिंदी सभ्यता मूल पुरातन भाषा है <br></br>संस्कृति के जीवित रहने की आशा है <br></br>एक चिरंतन अभिव्यक्ति का साधन है <br></br>भारत माता का अविरल आराधन है</p>
<p></p>
<p>हिंदी पावनता का एक उदाहरण है <br></br>मातृभूमि की अखंडता का कारण है<br></br>उत्तर से दक्षिण पूरब से पश्चिम तक <br></br>सारी बोलीं हिंदी माता की चारण हैं</p>
<p></p>
<p>हिंदी सरस्वती, दुर्गा माँ काली है<br></br>संस्कृति की पोषक माँ एक निराली है <br></br>पूरब में उगते सूरज की आभा है <br></br>पश्चिम में छिपते सूरज की लाली है</p>
<p></p>
<p>जन मन की अभिव्यक्ति की…</p>
<p>हिंदी सभ्यता मूल पुरातन भाषा है <br/>संस्कृति के जीवित रहने की आशा है <br/>एक चिरंतन अभिव्यक्ति का साधन है <br/>भारत माता का अविरल आराधन है</p>
<p></p>
<p>हिंदी पावनता का एक उदाहरण है <br/>मातृभूमि की अखंडता का कारण है<br/>उत्तर से दक्षिण पूरब से पश्चिम तक <br/>सारी बोलीं हिंदी माता की चारण हैं</p>
<p></p>
<p>हिंदी सरस्वती, दुर्गा माँ काली है<br/>संस्कृति की पोषक माँ एक निराली है <br/>पूरब में उगते सूरज की आभा है <br/>पश्चिम में छिपते सूरज की लाली है</p>
<p></p>
<p>जन मन की अभिव्यक्ति की परिभाषा है <br/>मनीषियों की आतुर ज्ञान पिपाशा है <br/>जिज्ञासु मानवता की जिज्ञासा है <br/>हिंदी भाषण ही मेरी अभिलाषा है</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवम अप्रकाशित <br/> - आदित्य राणा</p>योग दिवस की शुभ प्राची मेंtag:openbooks.ning.com,2015-06-22:5170231:BlogPost:6674242015-06-22T07:20:04.000ZAditya Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/AdityaKumar
<p>विश्व पटल पर अगणित होकर <br></br>कोटि कोटि नव योगी बनकर <br></br>वसुधैव कुटुंबकम रूपम <br></br>स्वप्न हमारा योग दिवस की <br></br>शुभ प्राची में सच सा ही प्रतीत होता है ।</p>
<p></p>
<p>भारत स्वयं ही जनक योग का <br></br>करे निवारण रोग रोग का <br></br>निज संस्कृति घोतक स्वरुप <br></br>आरोग्य प्रदायक विश्व शांति के हित <br></br>अर्पण करने का श्रेय लेने को मनोनीत होता है</p>
<p></p>
<p>विश्व गुरु वाली वह संज्ञा <br></br>केवल संज्ञा भर न रह कर <br></br>ज्ञान ज्योति जवाजल्यमान हो <br></br>पुनः विश्व तम को हरने का दम भरकर <br></br>भारत अपना परचम…</p>
<p>विश्व पटल पर अगणित होकर <br/>कोटि कोटि नव योगी बनकर <br/>वसुधैव कुटुंबकम रूपम <br/>स्वप्न हमारा योग दिवस की <br/>शुभ प्राची में सच सा ही प्रतीत होता है ।</p>
<p></p>
<p>भारत स्वयं ही जनक योग का <br/>करे निवारण रोग रोग का <br/>निज संस्कृति घोतक स्वरुप <br/>आरोग्य प्रदायक विश्व शांति के हित <br/>अर्पण करने का श्रेय लेने को मनोनीत होता है</p>
<p></p>
<p>विश्व गुरु वाली वह संज्ञा <br/>केवल संज्ञा भर न रह कर <br/>ज्ञान ज्योति जवाजल्यमान हो <br/>पुनः विश्व तम को हरने का दम भरकर <br/>भारत अपना परचम फहरा देने को तत्पर होता है</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>
<p></p>
<p>Aditya Kumar </p>पुलक तरंग जान्हवीtag:openbooks.ning.com,2015-06-12:5170231:BlogPost:6641712015-06-12T07:18:58.000ZAditya Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/AdityaKumar
<p>पुलक तरंग जान्हवी,<br></br>हरित ललित वसुंधरा,<br></br>गगन पवन उडा रहा है <br></br>मेघ केश भारती।</p>
<p></p>
<p>श्वेत वस्त्र सज्जितः <br></br>पवित्र शीतलम् भवः <br></br>गर्व पर्व उत्तरः <br></br>हिमगिरि मना रहा।</p>
<p></p>
<p>विराट भाल भारती<br></br>सुसज्जितम् चहुँ दिशि <br></br>हरष हरष विशालतम <br></br>सिंधु पग पखारता।</p>
<p></p>
<p>कोटि कोटि कोटिशः<br></br>नग प्रफ़्फ़ुलितम् भवः <br></br>नभ नग चन्द्र दिवाकरः <br></br>उतारते है आरती।</p>
<p></p>
<p>ओम के उद्घोष से <br></br>हो चहुँदिश शांति <br></br>हो पवित्रं मनुज मन सब। <br></br>और मिटे सब…</p>
<p>पुलक तरंग जान्हवी,<br/>हरित ललित वसुंधरा,<br/>गगन पवन उडा रहा है <br/>मेघ केश भारती।</p>
<p></p>
<p>श्वेत वस्त्र सज्जितः <br/>पवित्र शीतलम् भवः <br/>गर्व पर्व उत्तरः <br/>हिमगिरि मना रहा।</p>
<p></p>
<p>विराट भाल भारती<br/>सुसज्जितम् चहुँ दिशि <br/>हरष हरष विशालतम <br/>सिंधु पग पखारता।</p>
<p></p>
<p>कोटि कोटि कोटिशः<br/>नग प्रफ़्फ़ुलितम् भवः <br/>नभ नग चन्द्र दिवाकरः <br/>उतारते है आरती।</p>
<p></p>
<p>ओम के उद्घोष से <br/>हो चहुँदिश शांति <br/>हो पवित्रं मनुज मन सब। <br/>और मिटे सब भ्रान्ति।</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित <br/>आदित्य कुमार</p>आओ मिल कर दिए जलाएंtag:openbooks.ning.com,2014-10-22:5170231:BlogPost:5831902014-10-22T08:18:40.000ZAditya Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/AdityaKumar
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं,</p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं।</p>
<p>भारत को तमलीन जगत में,</p>
<p>ज्योतिर्मय पुनः बनायें।।</p>
<p> </p>
<p>आओ मिल कर करें सभी प्रण,</p>
<p>भारत के हित हों अर्पण।</p>
<p>अपने जीवन के कुछ क्षण,</p>
<p>भारत को स्वच्छ बनायें।।</p>
<p> </p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं,</p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं।।</p>
<p> </p>
<p>आओ मिल कर लड़ें एक रण,</p>
<p>अपने भीतर का रावण।</p>
<p>कभी स्वांस नहीं ले पाये,</p>
<p>हम भ्रष्टाचार मिटायें।।</p>
<p> </p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं,</p>
<p>आओ मिल कर दिए…</p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं,</p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं।</p>
<p>भारत को तमलीन जगत में,</p>
<p>ज्योतिर्मय पुनः बनायें।।</p>
<p> </p>
<p>आओ मिल कर करें सभी प्रण,</p>
<p>भारत के हित हों अर्पण।</p>
<p>अपने जीवन के कुछ क्षण,</p>
<p>भारत को स्वच्छ बनायें।।</p>
<p> </p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं,</p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं।।</p>
<p> </p>
<p>आओ मिल कर लड़ें एक रण,</p>
<p>अपने भीतर का रावण।</p>
<p>कभी स्वांस नहीं ले पाये,</p>
<p>हम भ्रष्टाचार मिटायें।।</p>
<p> </p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं,</p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं।।</p>
<p> </p>
<p>अपना हर दीपक बाती</p>
<p>करे ज्योतित पुरखों की थाती</p>
<p>कर ओम ओम उच्चारण</p>
<p>हम ऐसे दीप जलाएं</p>
<p> </p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं,</p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं।।</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>मन हो गंगा सम निर्मल,</p>
<p>रहे ध्यान हमें यह प्रतिपल।</p>
<p>श्री पुरुषोत्तम की गरिमा</p>
<p>खंडित ना होने पाये।।</p>
<p> </p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं,</p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं।।</p>
<p> </p>
<p>आओ द्वेष भाव बिसरा कर</p>
<p>गैरों को गले लगा कर</p>
<p>सौगंध राम की खाकर,</p>
<p>भारत को अखंड बनायें।।</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं,</p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं।।</p>
<p> </p>
<p>अपना हर दीपक बाती</p>
<p>करे ज्योतित पुरखों की थाती</p>
<p>कर ओम ओम उच्चारण</p>
<p>हम ऐसे दीप जलाएं</p>
<p> </p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं,</p>
<p>आओ मिल कर दिए जलाएं।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p>शब्दकार : आदित्य कुमार</p>
<p> </p>हे कृष्ण बनू तेरा अनुगामी!tag:openbooks.ning.com,2013-08-28:5170231:BlogPost:4229912013-08-28T15:30:00.000ZAditya Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/AdityaKumar
<p>शिशु रूप में प्रकट हुए तुम, <br></br> अंधकारमयी कारा गृह में,<br></br> दिव्यज्योति से हुए प्रदीपित,<br></br> अतिशय मोहक अतिशय शोभित,<br></br> अर्धरात्रि को पूर्ण चन्द्र से <br></br> जग को शीतल करने वाले <br></br> संतापों को हरने वाले, <br></br> अवतरित हुए तुम, अंतर्यामी!</p>
<p>हे कृष्ण बनू तेरा अनुगामी!</p>
<p></p>
<p>किन्तु देवकी के ललाट पर, <br></br> कृष्ण! तुम्हे खोने का था डर, <br></br> तब तेरे ही दिव्य तेज से <br></br> चेतनाशून्य हुए सब प्रहरी,<br></br> चट चट टूट गयी सब बेडी <br></br> मानो बजती हो रण भेरी, <br></br> धर कर तुम्हे शीश पर…</p>
<p>शिशु रूप में प्रकट हुए तुम, <br/> अंधकारमयी कारा गृह में,<br/> दिव्यज्योति से हुए प्रदीपित,<br/> अतिशय मोहक अतिशय शोभित,<br/> अर्धरात्रि को पूर्ण चन्द्र से <br/> जग को शीतल करने वाले <br/> संतापों को हरने वाले, <br/> अवतरित हुए तुम, अंतर्यामी!</p>
<p>हे कृष्ण बनू तेरा अनुगामी!</p>
<p></p>
<p>किन्तु देवकी के ललाट पर, <br/> कृष्ण! तुम्हे खोने का था डर, <br/> तब तेरे ही दिव्य तेज से <br/> चेतनाशून्य हुए सब प्रहरी,<br/> चट चट टूट गयी सब बेडी <br/> मानो बजती हो रण भेरी, <br/> धर कर तुम्हे शीश पर वसु ने <br/> यमुना जी को पार किया था, अंतर्यामी!<br/> हे कृष्ण बनू तेरा अनुगामी !</p>
<p><br/> यमुना जी चाहती थी करना <br/> कृष्ण तेरे चरणों का वंदन <br/> वसु जी हुए शीस तक प्लावित <br/> शांत किया यमुना का क्रंदन, <br/> तेरे चरणों को छूकर तब <br/> यमुना जी अविभूत हुई थी, <br/> और मिली थी श्वांस वसु को <br/> जब यमुना जी शांत हुई थी, अंतर्यामी!</p>
<p><br/> हे कृष्ण बनू तेरा अनुगामी!</p>
<p>और जन्म लेते ही कान्हा <br/> छूट गयी माता की ममता, <br/> त्राहि त्राहि करती जनता का <br/> परित्राण करने की क्षमता, <br/> केवल तुममे एक मात्र थी <br/> छोड़ी माँ की ममता क्योकि, <br/> जनता तेरी प्रेम पात्र थी। <br/> और किया पावन ब्रज रज को, अंतर्यामी!</p>
<p><br/> हे कृष्णा बनू तेरा अनुगामी!</p>
<p>पुत्र रूप में पाकर तुमको <br/> पुलकित हुई यशोदा मैया,<br/> तुम्हे मिला वात्सल्य मात से <br/> नटखट बाल कन्हैया, <br/> माटी का भोग लगाकर तुमने <br/> मैया को भरमाया ,<br/> मुह खोला जब कान इंठे तो <br/> सकल ब्रहमांड दिखाया, अंतर्यामी!</p>
<p><br/> हे कृष्ण बनू तेरा अनुगामी !</p>
<p>तुम ब्रिज के ग्वालों संग खेले <br/> और गोपियों के मटकों को मारे डेले <br/> गाय चराई नंदन वन में , और गोपियों <br/> के घर से माखन भी खूब चुराया, <br/> नाच नचाये सारे ब्रिज को , और प्रेम <br/> से तुमको सबने माखन चोर बुलाया,<br/> पर मैया मोरी मै नहीं माखन खाया। <br/> राधा के संग रास रचाए, अंतर्यामी!<br/> हे कृष्ण बनू तेरा अनुगामी !</p>
<p><br/> किन्तु छिपा सके न तुमको <br/> जैसे बादल सूर्य किरण को ,<br/> ब्रिज में श्री नंदराय, <br/> पड़ गया कंस कर्ण में <br/> जीवित मेरा जीवन हन्ता ,<br/> डोल उठा ब्रहमांड सकल <br/> कर हाहाकार उठी सब जनता ,<br/> भिजवा बैठा तुम्हे निमंत्रण <br/> करने को पूरा अपना प्रण, अंतर्यामी <br/> हे कृष्ण बनू तेरा अनुगामी !</p>
<p></p>
<p>रथ भेजा अक्रूर पठाए, <br/> श्री कृष्ण को मथुरा लाने ,<br/> सुनकर कृष्ण जायेंगे मथुरा <br/> ब्रिजवासी सब लगे अकुलाने <br/> दुस्तर हुआ कृष्ण का जाना, <br/> मुस्किल थे आंसू रुक पाना, <br/> फिर भी मोह का बंधन तोडा,<br/> आगे बढे धर्म रक्षा हित, अंतर्यामी!</p>
<p><br/> हे कृष्ण बनू तेरा अनुगामी!</p>
<p>मथुरा का जन जन था प्यासा, <br/> नेत्र नेत्र में केवल आशा ,<br/> अपलक राह निहारे, <br/> कब आयेंगे कृष्ण हमारे द्वारे। <br/> अद्भुत स्वागत हुआ तुम्हारा, <br/> जब पहुंचे दाऊ संग मथुरा, <br/> करने कंस विध्वंस, <br/> मिटाने को धरती से पाप, <br/> कंस का दंश, अंतर्यामी!</p>
<p>हे कृष्णा बनू तेरा अनुगामी!</p>
<p></p>
<p>पहुंचे रंग भूमि में कान्हा, <br/> तोड़ दिया सब ताना बाना, <br/> कंस बुने बैठा था जोभी,<br/> धरती पर वह कामी लोभी,<br/> और उठा कर सिंघासन से,<br/> उसे चखाया स्वाद धरातल,<br/> अहंकार के मद में फूला ,<br/> जा पहुंचा फिर कंस रसातल। अंतर्यामी!</p>
<p><br/> हे कृष्ण बनू तेरा अनुगामी!</p>
<p>जय जय जय श्री कृष्ण तुम्हारी, <br/> होने लगी मथुरा में सारी, <br/> नर, देवो, किन्नर, गंदर्भों ने <br/> जय घोष सुनाया। <br/> बाल्यावस्था में किया जो योगी ,<br/> वह कोई नहीं कर पाया। <br/> माँ का संताप हरा तुमने <br/> पापों का नाश किया तुमने, अंतर्यामी!<br/> हे कृष्ण बनू तेरा अनुगामी!</p>
<p></p>
<p>जन्माष्ठमी की हार्दिक सुभकामनाओं के साथ !</p>
<p></p>
<p></p>
<p><span><strong>"मौलिक व अप्रकाशित"</strong></span><span> </span></p>
<p><span>Poems By Aditya Kumar</span></p>
<p></p>पीछे हट जाने का डर है।tag:openbooks.ning.com,2013-08-21:5170231:BlogPost:4188462013-08-21T10:57:16.000ZAditya Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/AdityaKumar
<p>घोर तिमिर है, <br></br>कठिन डगर है, <br></br>आगे का कुछ नहीं सूझता,<br></br>पीछे हट जाने का डर है।</p>
<p>मन में इच्छाएं बलशाली <br></br>शोणित में भी वेग प्रबल है,<br></br>रोज लड़ रहा हूँ जीवनसे<br></br>टूट रहा अब क्यों संबल है</p>
<p>मैंने अपनी राह चुनी है <br></br>दुर्गम, कठिन कंटकों वाली <br></br>जो ऐसी मंजिल तक पहुंचे <br></br>जो लगे मुझे कुछ गौरवशाली</p>
<p>धूल धूसरित रेगिस्तानी हवा के छोंकें <br></br>देते धकेल , आगे बढ़ने से रोकें <br></br>सूखा कंठ, प्राण हैं अटके <br></br>कब पहुंचूंगा निकट भला पनघट के</p>
<p>आगे बढ़ना भी दुष्कर…</p>
<p>घोर तिमिर है, <br/>कठिन डगर है, <br/>आगे का कुछ नहीं सूझता,<br/>पीछे हट जाने का डर है।</p>
<p>मन में इच्छाएं बलशाली <br/>शोणित में भी वेग प्रबल है,<br/>रोज लड़ रहा हूँ जीवनसे<br/>टूट रहा अब क्यों संबल है</p>
<p>मैंने अपनी राह चुनी है <br/>दुर्गम, कठिन कंटकों वाली <br/>जो ऐसी मंजिल तक पहुंचे <br/>जो लगे मुझे कुछ गौरवशाली</p>
<p>धूल धूसरित रेगिस्तानी हवा के छोंकें <br/>देते धकेल , आगे बढ़ने से रोकें <br/>सूखा कंठ, प्राण हैं अटके <br/>कब पहुंचूंगा निकट भला पनघट के</p>
<p>आगे बढ़ना भी दुष्कर है <br/>मन में मेरे अगर मगर है <br/>आगे का कुछ नहीं सूझता,<br/>पीछे हट जाने का डर है।</p>
<p>किन्तु गीता में लिखा हुआ है <br/>तू फल की चिंता मत करना <br/>अपना कर्म किये जा राही <br/>निर्णय तो मुझको है करना</p>
<p>सूरज भी निर्बाध गति से चलता है <br/>निश्चित ही ये घोर तिमिर छटना है <br/>और साथ ही छट जाएगी घोर निराशा <br/>लक्ष्य हांसिल करने की सीढ़ी है आशा</p>
<p>मन में आशा <br/>और अधरों की प्यास <br/>इतना निश्चित है <br/>ले जाएगी मुझे लक्ष्य के पास</p>
<p>घोर तिमिर है, <br/>कठिन डगर है, <br/>पीछे मुड़कर नहीं देखना <br/>पीछे हट जाने का डर है।</p>
<p></p>
<p><strong>"मौलिक व अप्रकाशित"</strong></p>
<p><strong>शब्दकार : Aditya Kumar </strong></p>और नहीं कुछ शेष रहे।tag:openbooks.ning.com,2013-08-18:5170231:BlogPost:4166882013-08-18T11:30:00.000ZAditya Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/AdityaKumar
<p>मुझे जलाओ पीडानल में, उस सीमा तक, <br/> जिस पर अहंकार मरता है,<br/> अभिमान आहें भरता है, <br/> बाकि न कुछ द्वेष रहे, <br/> और नहीं कुछ शेष रहे। <br/> <br/> हे देव ! काट दो बंधन सारे ,<br/> एक नहीं सब होवें प्यारे ,<br/> न इर्ष्या का अवशेष रहे, <br/> और नहीं कुछ शेष रहे।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>चिंता छोड़ करें सब चिंतन <br/> सुखमय हो जाए हर जीवन <br/> उन्नति देश करे <br/> और नहीं कुछ शेष रहे।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित"</p>
<p> शब्द्कार : आदित्य कुमार </p>
<p>मुझे जलाओ पीडानल में, उस सीमा तक, <br/> जिस पर अहंकार मरता है,<br/> अभिमान आहें भरता है, <br/> बाकि न कुछ द्वेष रहे, <br/> और नहीं कुछ शेष रहे। <br/> <br/> हे देव ! काट दो बंधन सारे ,<br/> एक नहीं सब होवें प्यारे ,<br/> न इर्ष्या का अवशेष रहे, <br/> और नहीं कुछ शेष रहे।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>चिंता छोड़ करें सब चिंतन <br/> सुखमय हो जाए हर जीवन <br/> उन्नति देश करे <br/> और नहीं कुछ शेष रहे।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित"</p>
<p> शब्द्कार : आदित्य कुमार </p>कभी कभी मुझको लगता है जिन्दा जन आधार नहीं हैtag:openbooks.ning.com,2013-08-14:5170231:BlogPost:4141762013-08-14T16:16:02.000ZAditya Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/AdityaKumar
<p>बार बार हमसे क्यों आकर उलझ उलझ कर</p>
<p>उलझ चुके कितने ही मुद्दे सुलझ सुलझ कर</p>
<p>ऐसे मुद्दे सुलझाने में वक्त करें क्यों जाया</p>
<p>अब तक सुलझा कर, बतला दो क्या पाया</p>
<p>उनको अपना स्वागत सत्कार समझ ना आया</p>
<p>किश्तवाड़ में हमें ईद त्यौहार समझ न आया</p>
<p>इतना सब कुछ हो जाने पर भारत चाहेगा मेल ?</p>
<p>शायद भारत को डर हो, कहीं रुक न जाये खेल। </p>
<p>रत्ती का व्यापार नहीं है, चिंदी भर आकार नहीं है</p>
<p>भारत के उपकारों का उनको कुछ आभार नहीं है </p>
<p>कभी कभी मुझको लगता है, भारत…</p>
<p>बार बार हमसे क्यों आकर उलझ उलझ कर</p>
<p>उलझ चुके कितने ही मुद्दे सुलझ सुलझ कर</p>
<p>ऐसे मुद्दे सुलझाने में वक्त करें क्यों जाया</p>
<p>अब तक सुलझा कर, बतला दो क्या पाया</p>
<p>उनको अपना स्वागत सत्कार समझ ना आया</p>
<p>किश्तवाड़ में हमें ईद त्यौहार समझ न आया</p>
<p>इतना सब कुछ हो जाने पर भारत चाहेगा मेल ?</p>
<p>शायद भारत को डर हो, कहीं रुक न जाये खेल। </p>
<p>रत्ती का व्यापार नहीं है, चिंदी भर आकार नहीं है</p>
<p>भारत के उपकारों का उनको कुछ आभार नहीं है </p>
<p>कभी कभी मुझको लगता है, भारत में सरकार नहीं है</p>
<p>कभी कभी मुझको लगता है जिन्दा जन आधार नहीं है</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>मै परिचित हूँ परिस्थिति क्या होती है युद्धों में</p>
<p>पर क्या समझौता उचित लग रहा है इन मुद्दों में</p>
<p>जिनके शीश कटे हैं उनकी माताओं से जानो</p>
<p>बेटा, पति, भाई खोने के दुःख को तो पहचानो</p>
<p>चुप्पी से भारत की सेना का स्वाभिमान गिरता है</p>
<p>और नहीं कुछ सैनिक में बस देश प्रेम मरता है</p>
<p>देश प्रेम मर जाने से शत्रु साहस बढ़ जाता है</p>
<p>छोटे से छोटा शत्रु भी भारत पर चढ़ आता है</p>
<p>पर क्या समझेंगे वो जो अब तक सत्ताधारी है</p>
<p>फिर से सत्ता हांसिल करने की केवल तैयारी है</p>
<p>कभी कभी मुझको लगता है, भारत में सरकार नहीं है</p>
<p>कभी कभी मुझको लगता है जिन्दा जन आधार नहीं है</p>
<p> </p>
<p>कल फिर से भारत में हम आजादी पर्व मनायेगे</p>
<p>आजादी की खुशियों में फिर झूमे नाचेंगे गायेंगे</p>
<p>बलिदानी वीरों को केवल पुष्पांजलि दे देने से</p>
<p>थोडा झंडा झुका के उनको श्रधांजलि दे देने से</p>
<p>भारत में पैदा होने का धर्म नहीं पूरा होता है</p>
<p>भारत में पैदा होने का कर्म नहीं पूरा होता है</p>
<p>अपना केवल दाइत्व नहीं होता पोषण परिवारों का</p>
<p>रण लड़ना पड़ता है सबको भारत के अधिकारों का</p>
<p>बलिदानी वीरों का कहीं बलिदान न खाली जाये</p>
<p>कोटि कोटि सन्तति माता की दूध लजा न जाये</p>
<p>कभी कभी मुझको लगता है, भारत में सरकार नहीं है</p>
<p>कभी कभी मुझको लगता है जिन्दा जन आधार नहीं है</p>
<p> </p>
<p> <strong>"मौलिक व अप्रकाशित"</strong></p>
<p>शब्दकार : आदित्य कुमार</p>
<p> </p>मै हूँ राष्ट्रपुरुष भारत, मै कवि के मुख से बोल रहा हूँtag:openbooks.ning.com,2013-08-04:5170231:BlogPost:4076752013-08-04T14:30:00.000ZAditya Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/AdityaKumar
<p>पर्वत राज हिमालय जिसका मस्तक है</p>
<p>जिसके आगे बड़े बड़े नतमस्तक है</p>
<p>सिन्धु नदी की तट रेखा पर बसा हुआ</p>
<p>गंगा की पावन धारा से सिंचित है</p>
<p>जिसको तुम सोने की चिड़िया कहते थे</p>
<p>छोटे बड़े जहाँ आदर से रहते थे </p>
<p>जहाँ सभी धर्मो को सम्मान मिला</p>
<p>जहाँ कभी न श्याम श्वेत का भेद हुआ</p>
<p>जिसको राम लला की धरती कहते है</p>
<p>गंगा यमुना सरयू जिस पर बहते है</p>
<p>जिस धरती पर श्री कृष्णा ने जन्म लिया</p>
<p>जहाँ प्रभु ने गीता जैसा ज्ञान दिया</p>
<p>जहाँ निरंतर वैदिक…</p>
<p>पर्वत राज हिमालय जिसका मस्तक है</p>
<p>जिसके आगे बड़े बड़े नतमस्तक है</p>
<p>सिन्धु नदी की तट रेखा पर बसा हुआ</p>
<p>गंगा की पावन धारा से सिंचित है</p>
<p>जिसको तुम सोने की चिड़िया कहते थे</p>
<p>छोटे बड़े जहाँ आदर से रहते थे </p>
<p>जहाँ सभी धर्मो को सम्मान मिला</p>
<p>जहाँ कभी न श्याम श्वेत का भेद हुआ</p>
<p>जिसको राम लला की धरती कहते है</p>
<p>गंगा यमुना सरयू जिस पर बहते है</p>
<p>जिस धरती पर श्री कृष्णा ने जन्म लिया</p>
<p>जहाँ प्रभु ने गीता जैसा ज्ञान दिया</p>
<p>जहाँ निरंतर वैदिक मन्त्रों का उच्चारण होता था</p>
<p>जहाँ सदा से हवन यज्ञ वर्षा कर कारण होता था</p>
<p>जिसके चारो धाम दुनिया भर का आकर्षण हो</p>
<p>जिस धरती पर बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन हो</p>
<p>जिसके ग्रंथो में सारा विज्ञानं था</p>
<p>जिसको नहीं तनिक इस पर अभिमान था</p>
<p>जिसको आर्यावर्त का नाम मिला था जी</p>
<p>विश्वगुरु का भी का सम्मान मिला था जी</p>
<p>किन्तु दशकों गुजर गये मैं मौन हूँ</p>
<p>क्या अब भी परिचय दूँ के मै कौन हूँ</p>
<p>मै अतीत को वर्तमान से समय तुला पर तोल रहा हूँ</p>
<p>मै हूँ राष्ट्रपुरुष भारत, मै कवि के मुख से बोल रहा हूँ</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>मेरी गरिमा मेरा गौरव तक घायल है</p>
<p>रक्षक के हाथों में चूंडी पैरों में पायल है</p>
<p>मेरी हर बेटी झांसी की रानी थी</p>
<p>त्याग तपस्या की दुनिया दीवानी थी</p>
<p>अब लगता धरती वीरों से खाली है</p>
<p>मेरी नव सन्तति ही लगती जाली है </p>
<p>संसद लगती है मंडी नक्कालो की</p>
<p>नेताओं की जाती है घड़ियालो की</p>
<p>जो जनता को संप्रदाय में बाँट रहे है</p>
<p>मुझको छेत्र वाद के नाते काट रहे है</p>
<p>मेरे कंकर शंकर गंगाजल बिंदु है</p>
<p>मानव नहीं पशु पक्षी तक हिन्दू है</p>
<p>हिंदी मेरे जन जन की निज भाषा है</p>
<p>संस्कृति को जीवित रखने की आशा है</p>
<p>मेरी जनता वैदिकता की अनुयायी थी</p>
<p>धर्म सनातन ने दुनिया अपनाई थी</p>
<p>हिन्दू संस्कृति सब धर्मो का मूल है</p>
<p>मेरी सभ्यता ही सबके अनुकूल है</p>
<p>मेरे ही कारण सब आज सुरक्षित है</p>
<p>वैदिक धरती पर मुस्लिम आरक्षित है</p>
<p>मेरा केवल तुमसे इतना अनुरोध है</p>
<p>हिन्दू विरोध केवल एक आत्म विरोध है</p>
<p> </p>
<p>मै अतीत को वर्तमान से समय तुला पर तोल रहा हूँ</p>
<p>मै हूँ राष्ट्रपुरुष भारत, मै कवि के मुख से बोल रहा हूँ</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>मेरे सिंघासन पर नेता या अभिनेता है</p>
<p>मानवता के मूल्यों का विक्रेता है</p>
<p>जिसको मेरी भाषा तक न आती है</p>
<p>पूरे का पूरा शासन अपराधी है</p>
<p>मेरी सीमाओं में शत्रु घुसते है</p>
<p>सच कहता हूँ दिल में कांटे चुभते है</p>
<p>संविधान क्या राजनीति की दासी है</p>
<p>मेरी आँखे न्याय की अभिलाषी है </p>
<p>ये ना समझो मैंने कुछ न देखा है</p>
<p>मेरे पास हर गलती का लेखा है</p>
<p>तुम प्रतिपल अपराध करोगे</p>
<p>क्या सोचा है बच जाओगे</p>
<p>गंगा नहा कर, दर पर आकर</p>
<p>देवालय में शीश नवाकर बच जाओगे</p>
<p>माफ़ हो गई सारी गलती, भूले कल की</p>
<p>भूल गए केदार नाथ में, महाविनाश की झलकी</p>
<p>मत भूलो मै अन्नदाता दाता हूँ</p>
<p>मत भूलो मै ही विधाता हूँ</p>
<p>मेरे सच्चे पुत्रों ने शीश चढाया है</p>
<p>हिन्दू कुश का ध्वज न झुकने पाया है</p>
<p>किसका साहस मेरे ध्वज को मेरी धरती पर फाड़ दिया</p>
<p>तुम सुन ना सके, मै चीन्खा था , सीने में चाक़ू गाड दिया</p>
<p> </p>
<p>मै अतीत को वर्तमान से समय तुला पर तोल रहा हूँ</p>
<p>मै हूँ राष्ट्रपुरुष भारत, मै कवि के मुख से बोल रहा हूँ</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>मेरी नजरों में सारे अपराधी है</p>
<p>कोई एक नहीं सब के सब दागी है</p>
<p>रिश्वत लेना कोरी भ्रष्टाचारी है</p>
<p>रिश्वत देना भी मुझसे गद्दारी है</p>
<p>हर दिन लुटता चीर यहाँ अबलाओ का</p>
<p>लुटता है योवन जबरन बालाओं का</p>
<p>और सदा बालाएं भी निष्पाप नहीं</p>
<p>होती है घटनाये अपने आप नहीं</p>
<p>अपनी ही गलती विनाश का कारण बन जाती है</p>
<p>भारत के लिए कलंकित उदाहरण बन जाती है</p>
<p>राजनीति का रथ समता पर चलता है</p>
<p>सूरज केवल पूरब से ही निकलता है</p>
<p>कैसे मै विश्वास करूँ केवल सत्ता की गलती है</p>
<p>गलती तो जनमत की है, पांच बरस तक फलती है</p>
<p>लोकतंत्र में राजनीती जनमत की जिम्मेदारी है</p>
<p>अपना नायक चुनने की जनता खुद ही अधिकारी है </p>
<p>भ्रष्टाचार की अग्नि को गर जनता हवा नहीं देगी</p>
<p>तो खानों पर्वत नदियों को कुर्सी पचा नहीं लेगी</p>
<p>जनता और सत्ता में भी फिर समता हो जाएगी</p>
<p>जनता सत्ता से जवाब की अधिकारि हो जाएगी</p>
<p> </p>
<p>मै अतीत को वर्तमान से समय तुला पर तोल रहा हूँ</p>
<p>मै हूँ राष्ट्रपुरुष भारत, मै कवि के मुख से बोल रहा हूँ</p>
<p> </p>
<p><strong>"मौलिक व अप्रकाशित"</strong></p>
<p></p>
<p><strong>शब्दकार : आदित्य कुमार </strong></p>
<p> </p>दुनिया में तुम सुन्दरतम होtag:openbooks.ning.com,2013-08-01:5170231:BlogPost:4064582013-08-01T13:13:11.000ZAditya Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/AdityaKumar
<p>मेरे मन का तुम आकर्षण हो</p>
<p>इस ह्रदय का तुम स्पंदन हो</p>
<p>तुम कुमकुम हो तुम चन्दन हो</p>
<p>तुम ताजमहल से सुन्दर हो</p>
<p> </p>
<p>बस तुम ही मेरी प्रियतम हो</p>
<p>दुनिया में तुम सुन्दरतम हो</p>
<p> </p>
<p>तुम ही हो मेरा प्रेम राग</p>
<p>तुम ही हो मेरी प्रेम आग</p>
<p>मै भ्रमर बना तुम हो पराग</p>
<p>तुम मन मंदिर का हो चिराग</p>
<p> </p>
<p>बस तुम ही मेरी प्रियतम हो</p>
<p>दुनिया में तुम सुन्दरतम हो</p>
<p> </p>
<p>तुम ध्येय मेरे जीवन का हो</p>
<p>तुम ध्यान मेरे प्रतिपल का…</p>
<p>मेरे मन का तुम आकर्षण हो</p>
<p>इस ह्रदय का तुम स्पंदन हो</p>
<p>तुम कुमकुम हो तुम चन्दन हो</p>
<p>तुम ताजमहल से सुन्दर हो</p>
<p> </p>
<p>बस तुम ही मेरी प्रियतम हो</p>
<p>दुनिया में तुम सुन्दरतम हो</p>
<p> </p>
<p>तुम ही हो मेरा प्रेम राग</p>
<p>तुम ही हो मेरी प्रेम आग</p>
<p>मै भ्रमर बना तुम हो पराग</p>
<p>तुम मन मंदिर का हो चिराग</p>
<p> </p>
<p>बस तुम ही मेरी प्रियतम हो</p>
<p>दुनिया में तुम सुन्दरतम हो</p>
<p> </p>
<p>तुम ध्येय मेरे जीवन का हो</p>
<p>तुम ध्यान मेरे प्रतिपल का हो</p>
<p>तुम हिरणों की चंचलता हो</p>
<p>तुम्हे पाना एक सफलता हो</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>बस तुम ही मेरी प्रियतम हो</p>
<p>दुनिया में तुम सुन्दरतम हो</p>
<p> </p>
<p>मै वैरागी , तुम माला हो</p>
<p>मै प्यासा , तुम मधुशाला हो</p>
<p>प्रेम क्षुधा छलकाने वाली</p>
<p>तुम यौवन की हाला हो</p>
<p> </p>
<p>बस तुम ही मेरी प्रियतम हो</p>
<p>दुनिया में तुम सुन्दरतम हो</p>
<p> </p>
<p>तेरे नैन नक्श सब तीखे है</p>
<p>तेरे आगे बाकि सब फीके है</p>
<p>तेरे आगे पीछे ड़ोल रहे</p>
<p>तुझे देख देख कर जीते है</p>
<p> </p>
<p>बस तुम ही मेरी प्रियतम हो</p>
<p>दुनिया में तुम सुन्दरतम हो</p>
<p> </p>
<p>तुम हो सरिता का कल कछार</p>
<p>तुम पहली बारिश की फुहार </p>
<p>तेरी नयन रेख एक तीव्र बाण</p>
<p>हो जाती है मेरे आर पार</p>
<p> </p>
<p>बस तुम ही मेरी प्रियतम हो</p>
<p>दुनिया में तुम सुन्दरतम हो</p>
<p></p>
<p><strong>मौलिक व अप्रकाशित</strong></p>
<p></p>
<p><strong>शब्दकार : आदित्य कुमार </strong></p>
<p></p>
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