दिव्या's Posts - Open Books Online2024-03-29T00:47:06Zदिव्याhttps://openbooks.ning.com/profile/1e53a13bezulahttps://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991282646?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1https://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=1e53a13bezula&xn_auth=noबेबसी (कहानी)tag:openbooks.ning.com,2013-07-31:5170231:BlogPost:4061382013-07-31T10:59:03.000Zदिव्याhttps://openbooks.ning.com/profile/1e53a13bezula
<p> श्याम खुद को बहुत खुशकिस्मत मान रहा था | बात थी भी ऐसी, वो भयानक रात और दो दिन तक मची तबाही का मंजर एक पल के लिए भी तो उसकी आँखों से नहीं हटा था | जहाँ-तहां लाशे बिछी हुई थी और हर तरफ चीख पुकार |<br></br> श्याम अपनी पत्नी सुनीता चार बच्चो का पेट पालने के लिए एक खच्चर के सहारे खच्चर में माल ढोने का काम करता है और हर साल यात्रा सीजन में केदारनाथ परिवार सहित केदार बाबा की शरण में पहुँच जाता था | जहाँ पत्नी फूल प्रसाद बेचा करती है, और बच्चे होटल में बर्तन धोने का का काम और वो खुद खच्चर…</p>
<p> श्याम खुद को बहुत खुशकिस्मत मान रहा था | बात थी भी ऐसी, वो भयानक रात और दो दिन तक मची तबाही का मंजर एक पल के लिए भी तो उसकी आँखों से नहीं हटा था | जहाँ-तहां लाशे बिछी हुई थी और हर तरफ चीख पुकार |<br/> श्याम अपनी पत्नी सुनीता चार बच्चो का पेट पालने के लिए एक खच्चर के सहारे खच्चर में माल ढोने का काम करता है और हर साल यात्रा सीजन में केदारनाथ परिवार सहित केदार बाबा की शरण में पहुँच जाता था | जहाँ पत्नी फूल प्रसाद बेचा करती है, और बच्चे होटल में बर्तन धोने का का काम और वो खुद खच्चर से यात्रियों को लाने ले जाने का काम करता था | केदार बाबा की कृपा से एक ही सीजन में अच्छी कमाई हो जाती थी , पर इस बार प्रकृति किसी और ही रूप में थी |</p>
<p><br/> यात्रा शुरू होते ही कुछ लोगो के बहकावे में आ के सभी खच्चर वाले हड़ताल में चले गए थे | पुरे साल जिस दिन का इन्तजार रहता है, उस में भी यूँ हाथ में हाथ रखे हड़ताल में बैठ जाना श्याम को नागवार गुजर रहा था | पर साथियों से अलग जा के कुछ कर पाने की वो हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहा था | पत्नी के बोलने पे जिस होटल में बच्चे बर्तन धोने का काम करते थे वो भी वहीं लग गया |<br/> पन्द्रह जून से ही मौसम बिगड़ने लगा था | श्याम मौसम का रुख देख के उपर वाले से सब सही होने की प्रार्थना कर रहा था | पर कहते है न भविष्य में क्या छुपा ये किसी को नहीं पता | दुसरे दिन बारिश ने जोर पकड लिया पूरी घाटी काले बदलो से घिरी हुई थी बादलो की गर्जना दिल दहला रही थी | मंदाकनी भी पुरे उफान पर थी और जल स्तर बढ़ता ही जा रहा था |<br/> श्याम को कुछ अंदेशा हो रहा था, उसने कुछ साथियों को उपरी पहाड़ी की तरफ जाते हुए देखा तो बिना देर किये वो भी अपने परिवार सहित सुरक्षित स्थान के लिए निकल गया | केदार बाबा से प्रर्थना करते हुए वो सुरक्षित स्थान में तो पहुँच गए थे | पर बारिश का विकराल रूप देख के सहमे हुए थे तभी एक गर्जना हुई | कुछ अनोहोनी न हो ये ही विचार दिल में था | दो दिन जैसे तैसे निकलने के बाद वापसी में जो मंजर दिखे वो अपनी तबाही की दास्ताँ सुना रहे थे |</p>
<p><br/> रास्ते टूट चुके थे हर कोइ बदहवास था | स्थानीय गाँव वालो की मदद से वो किसी तरह से पैदल ही रास्ता तय कर रहे थे | पर भूख से तडपते बच्चो को समझा सके वो शब्द भी अब उसकी पत्नी के पास खत्म हो चुके थे | बेबसी थी भूख से तडपते बच्चो का रोना नहीं सुना जा रहा था | तभी हेलीकाप्टर की आवाज ने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा ,... हेलीकाप्टर से खाद्य सामग्री गिराई जा रही थी | सभी लोग उसी दिशा को भागे श्याम भी उसी तरफ दौड़ पडा पर होनी को कुछ और ही मंजूर था | एक बार तो मौत से बच आये थे पर भागते हुए श्याम का पैर लडखडाया और वो गहरी मंदाकनी में समाता चला गया ...... <br/>श्याम की पत्नी कुछ समझ पाती तब तक सब कुछ खत्म हो चूका था एक चीख के साथ ही सुनीता बेहोश हो गयी | बच्चे भूख से तडप रहे थे, पर इस अचानक आई विपदा में वो ये भी भूल गए | किसने क्या मदद की किस तरह से रेस्क्यू वालो ने उनको सुरक्षित स्थान में छोड़ गए | धुंधली आँखों से वो कुछ भी नहीं देख पाए और न ही समझ पाए जो तबाही के निशान वो देखते हुए आ रहे थे, उसी ने उसके परिवार के लिए एक तबाही लिख दी थी |</p>
<p><br/> जिन पहाड़ो की गोद में खेल के वो बढ़ रहे थे, आज उसी को देख के खौफ हो रहा था.... जिन रास्तो से परिचय पिता ने उंगली थामे कराया था आज वो भी अजनबी से लग रही थी ... सुनीता को जब होश आया तो सब कुछ लुट चूका था, थोडा बहुत राशन था वो भी खत्म हो गया था सुनीता खुद को संभालती या बच्चो को ..... रह रह के आँखों में आंसू आ जाते भविष्य को सोचते हुए ... एक वक़्त का खाना भी नहीं मिल रहा था .... गाँव के सभी लोगो के साथ कोई न कोई कहानी थी | सभी ने अपनों को खोया था .....जिनको जाना होता है वो चले जाते है, मगर जिन्दा रहने के लिए, बच्चो के लिए कुछ तो करना था पर इस दैवीय आपदा के आगे सब ही बेबस से राहत सामग्री की बाट जोहते रहते रोज का सूरज एक उम्मीद लिए आता और रात निराशा के निशान दिए चली आती थी ... कुछ लोगो ने अपने बच्चो को दूर दूसरे गाँव स्कूल भेजना शुरू किया था, पढने को नहीं सिर्फ इस लिए क्यूँ की सरकार वहां बच्चो को स्कूल में भोजन देती है | एक वक़्त का खाना तो नसीब होगा सोच के आज सुनीता भी चल दी उस खतरनाक पर जिंदगी के रास्तो में जहाँ से बच्चो का भविष्य था |</p>
<p><br/>मौलिक व् अप्रकाशित</p>मेरा ख्यालtag:openbooks.ning.com,2013-06-05:5170231:BlogPost:3728402013-06-05T11:30:00.000Zदिव्याhttps://openbooks.ning.com/profile/1e53a13bezula
<p><span class="font-size-5"><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460995?profile=original" target="_self"><img class="align-full" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460995?profile=original" width="504"></img></a></span></p>
<p><span class="font-size-2">बारिशो के </span></p>
<div><span class="font-size-2">मौसम में </span></div>
<div><span class="font-size-2">मन जब </span></div>
<div><span class="font-size-2">चाहे किसी के </span></div>
<div><span class="font-size-2">साथ दूर तक </span></div>
<div><span class="font-size-2">ठहल आने को …</span></div>
<p><span class="font-size-5"><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460995?profile=original" target="_self"><img src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460995?profile=original" class="align-full" width="504"/></a></span></p>
<p><span class="font-size-2">बारिशो के </span></p>
<div><span class="font-size-2">मौसम में </span></div>
<div><span class="font-size-2">मन जब </span></div>
<div><span class="font-size-2">चाहे किसी के </span></div>
<div><span class="font-size-2">साथ दूर तक </span></div>
<div><span class="font-size-2">ठहल आने को </span></div>
<div><span class="font-size-2">मेरा ख्याल तो </span></div>
<div><span class="font-size-2">नहीं आता न </span></div>
<div><span class="font-size-2">तुम को </span></div>
<div><span class="font-size-2">किसी अंजान</span></div>
<div><span class="font-size-2">शहर में </span></div>
<div><span class="font-size-2">घूमते हुए </span></div>
<div><span class="font-size-2">नजरें जब </span></div>
<div><span class="font-size-2">किसी अजनबी </span></div>
<div><span class="font-size-2">चेहरे में </span></div>
<div><span class="font-size-2">तलाशने लगे </span></div>
<div><span class="font-size-2">किसी खास </span></div>
<div><span class="font-size-2">शख्स को </span></div>
<div><span class="font-size-2">मेरा ख्याल तो </span></div>
<div><span class="font-size-2">नहीं आता न </span></div>
<div><span class="font-size-2">तुम को </span></div>
<div><span class="font-size-2">या फिर </span></div>
<div><span class="font-size-2">निपट अकेलेपन में </span></div>
<div><span class="font-size-2">चाह हो </span></div>
<div><span class="font-size-2">किसी कंधे की </span></div>
<div><span class="font-size-2">किसी स्पर्श की </span></div>
<div><span class="font-size-2">दिल खोल के रखने को </span></div>
<div><span class="font-size-2">जी चाहे जब </span></div>
<div><span class="font-size-2">मैं जानती हूँ </span></div>
<div><span class="font-size-2">फिर भी </span></div>
<div><span class="font-size-2">जाने क्यूँ </span></div>
<div><span class="font-size-2">होता है ये यकीं </span></div>
<div><span class="font-size-2">तुम्हारे ख्यालो में </span></div>
<div><span class="font-size-2">मैं भी कहीं तो </span></div>
<div><span class="font-size-2">महकती होंगी न.... </span></div>
<p></p>
<p></p>
<div>मौलिक एंव अप्रकाशित </div>माँ तुम मेरी सहेली होtag:openbooks.ning.com,2013-05-09:5170231:BlogPost:3599382013-05-09T10:00:00.000Zदिव्याhttps://openbooks.ning.com/profile/1e53a13bezula
<div><span class="font-size-4"><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001461255?profile=original" target="_self"><img class="align-full" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001461255?profile=original" width="373"></img></a></span></div>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">माँ तुम अबूझ पहेली हो </span></div>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">माँ तुम मेरी सहेली हो </span></div>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;">स्नेह की डोर से बंधी </span></p>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">ममता की…</span></div>
<div><span class="font-size-4"><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001461255?profile=original" target="_self"><img src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001461255?profile=original" class="align-full" width="373"/></a></span></div>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">माँ तुम अबूझ पहेली हो </span></div>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">माँ तुम मेरी सहेली हो </span></div>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;">स्नेह की डोर से बंधी </span></p>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">ममता की तुम मूरत हो </span></div>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">हर लेती मेरे दुखो को </span></div>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">उस ख़ुदा की ही सूरत हो </span></div>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">मेरा सोता हुआ चेहरा भी </span></div>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">जाने कैसे पढ़ लेती हो </span></div>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">कितनी अलाओं बलाओं से </span></div>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">मुझ को रोज बचाती हो </span></div>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">निकलती हूँ जब भी घर से </span></div>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">नजर का टीका लगाती हो </span></div>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">भर के नए जज़्बे मुझ मे</span><br/> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">हार को जीत बनाती हो,</span> <br/> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">दे के प्यारा सा एक बोसा</span><br/> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">माथे पर तिलक लगाती हो,</span> <br/> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">नेह भरे स्पर्श से तुम</span><br/> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">सारे दुःख हर जाती हो..</span></div>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">माँ तुम अबूझ पहेली हो </span></div>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">माँ तुम मेरी सहेली हो .....<br/> <br/></span></div>
<div><span class="font-size-2" style="color: #000000;">मौलिक एवं अप्रकाशित</span></div>इश्क कि दास्तान है प्यारेtag:openbooks.ning.com,2013-02-09:5170231:BlogPost:3165652013-02-09T14:00:00.000Zदिव्याhttps://openbooks.ning.com/profile/1e53a13bezula
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460867?profile=original" target="_self"><img class="align-right" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460867?profile=RESIZE_320x320" width="250"></img></a> इन दिनों वो अपने आस पास रेशम बुनने लगी थी | बहुत ही महीन मगर चमकीली, हर समय बस एक ही धुन सवार हो गयी थी उस को रेशम बुनने कि | जहाँ भी वो रहती बस रेशम के धागों में उलझी हुई रहती |</p>
<p>कई कई बार वो घायल हो जाती, मगर वो रेशम बुनने में ही तल्लीन रहती उसके घायल मन से बना रेशम बहुत ही खूबसूरत होता |</p>
<p> </p>
<p>वो पहले ऐसी नहीं थी | कितना तो काम होता था उसके पास, उसकी होड…</p>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460867?profile=original" target="_self"><img width="250" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460867?profile=RESIZE_320x320" width="250" class="align-right"/></a>इन दिनों वो अपने आस पास रेशम बुनने लगी थी | बहुत ही महीन मगर चमकीली, हर समय बस एक ही धुन सवार हो गयी थी उस को रेशम बुनने कि | जहाँ भी वो रहती बस रेशम के धागों में उलझी हुई रहती |</p>
<p>कई कई बार वो घायल हो जाती, मगर वो रेशम बुनने में ही तल्लीन रहती उसके घायल मन से बना रेशम बहुत ही खूबसूरत होता |</p>
<p> </p>
<p>वो पहले ऐसी नहीं थी | कितना तो काम होता था उसके पास, उसकी होड थी सब से आगे निकलने कि तो उस सूरज के निकलने से पहले उसको जागना होता था कहीं वो सूरज, न जीत जाए उससे, सूरज अपनी लालिमा से सुबह को सराबोर करे उससे पहले ही वो उठ के सारे आंगन को बुहार देती थी | कच्ची मिटटी कि सुगंध से सुबह भी अलसाई सी उठ जाती थी |</p>
<p>पंक्षियों के प्रथम सुर के छिड़ने से पहले ही वो अपना मधम सुर में राग छेड़ देती थी पंक्षी भी जाग जाते थे उसको सुन कर और साथ देने के लिए कोरस में तान छेड़ देते थे | पगडंडियाँ दिन भर कि चहल कदमी से थकी हारी सी उठ भी नहीं पाती थी कि वो पनघट से लाते हुए गागर को छलका के उसको जगा देती थी |</p>
<p></p>
<p>दिन दौड़ता रहता उसको हराने के लिए और वो तेज दौड़ती रहती जीत जाने के लिए रूकती थी तो बस .... चाँद से उसके किस्से सुनने के लिए</p>
<p>एक दिन चाँद ने उसको इश्क कि दास्ताँ सुनाई, चाँद नहीं चाहता था उसको इश्क के बारे में कुछ कहे मगर लड़की कि जिद्द थी कि कोई ऐसी दास्ताँ सुनाओ आज कि लम्हा भी ठहर जाए और शब गुजर जाए | चाँद हंसा उसकी नादानी पर.... चाँद ने कहा ऐसे किस्से सुन के मन बोझल हो जाया करते है | क्या करोगी बोझ दिल में लेकर कहीं रोग लग गया तो देखो कल का सूरज तुम से जीत जाएगा मगर लड़की ने ठान लिया था आज कुछ ऐसा सुनेगी कि दिल कि धडकनों को वो रगों में महसूस करेगी, अल्हड सी वो अपने में मस्त ..... चाँद नहीं चाहता था वो इश्क में उलझे, मगर लड़की के आगे चाँद कि एक न चली ....</p>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460867?profile=original" target="_self"> </a></p>
<p>चाँद ने किस्सा गढना शुरू किया .............. इश्क का किस्सा कि इश्क दिखने में भोलाभाला था मासूम बिलकुल नादान जो भी देखे उसको चाहने लगे मगर इश्क जितना भोला था उतना ही वो सरफिरा भी था | वो वहाँ होना चाहता था जहाँ कोई उसको पूछे न मगर जहाँ भी वो जाता लोगो के दिलो में चाहतें पैदा हो जाती, कुछ पल वो खुश होता इत्ती सारी चाहतो को देख के मगर फिर वो अनमना सा हो के रूठ जाता और चला जाता वहाँ से दूर किसी देश, मगर चाहतें उसी का जैसे इन्तजार कर रही होती ।</p>
<p>एक दिन इश्क ने चाहत से पूछ लिया कि क्यूँ तुम मेरा पीछा करती हो ?</p>
<p>चाहत हंसी और बोली जो जीने कि वजह हो उनसे दूर कैसे रहा जा सकता है, इश्क हैरान था .....हैरान इश्क को देख के चाहत मुस्कुरा पड़ी लम्हों कि बात थी कुछ हलचल सा हुआ दिल में और इश्क के दिल में चाहत कि मुस्कान उतर गयी, इश्क चुप सा हो गया ।</p>
<p>चाहत इश्क कि चुप्पी देख के उदास हो गयी, इश्क को अच्छा नहीं लगा चाहत का उदास चेहरा दोनों को एक दूसरे कि उदासी खलने लगी थी</p>
<p>इश्क और चाहत अब गहरे दोस्त हो गए थे इश्क चाहत के ही इन्तजार में रहने लगा था और चाहत खुश रहने लगी थी |</p>
<p>चाँद ने देखा, लड़की खोयी हुई है उसकी कहानी में और उधर सुबह ने पहली दस्तक दे दी थी ।</p>
<p></p>
<p>आज लड़की हार गयी सूरज से सुना नहीं पंक्षियों ने भी कोई सुर नया और पगडंडी भी बाट जोहती रही उस पगली का और वो लड़की रात से रेशमी ख्वाब बुनने जो बैठी अब तक उन्ही रेशमी ख्यालो में उलझी हुई थी |</p>
<p></p>
<p>चाँद को इन्तजार रहता है उस लड़की का, अपनी गलती का शिद्दत से एहसास है चाँद को, वो मायूस है मगर लड़की घायल है इश्क के इन्तजार में फिर भी बुन रही है वो रेशमी ख्वाब | </p>इश्क से अनजानtag:openbooks.ning.com,2012-04-18:5170231:BlogPost:2153772012-04-18T09:00:00.000Zदिव्याhttps://openbooks.ning.com/profile/1e53a13bezula
<p><span><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001459887?profile=original" target="_self"><img class="align-left" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001459887?profile=original" width="403"></img></a></span></p>
<p><span>इश्क की कोमल भावनाओ से </span></p>
<p>अछूती है मेरी कविताये </p>
<div>इन्हें अभी एहसास नहीं </div>
<div>किसी के प्रथम छुअन का </div>
<div>तडप नहीं अभी इन्हें </div>
<div>किसी के इंतजार की </div>
<div>धडका नहीं शब्दों मे </div>
<div>कोई नाम अभी </div>
<div>शर्म से बोझिल हुई नहीं </div>
<div>अभी काव्या मेरी </div>
<div>किसी के होने से </div>
<div>रचा…</div>
<p><span><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001459887?profile=original" target="_self"><img src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001459887?profile=original" class="align-left" width="403"/></a></span></p>
<p><span>इश्क की कोमल भावनाओ से </span></p>
<p>अछूती है मेरी कविताये </p>
<div>इन्हें अभी एहसास नहीं </div>
<div>किसी के प्रथम छुअन का </div>
<div>तडप नहीं अभी इन्हें </div>
<div>किसी के इंतजार की </div>
<div>धडका नहीं शब्दों मे </div>
<div>कोई नाम अभी </div>
<div>शर्म से बोझिल हुई नहीं </div>
<div>अभी काव्या मेरी </div>
<div>किसी के होने से </div>
<div>रचा नहीं कोई गीत इसने </div>
<div>नहीं पता अभी इसे </div>
<div>आलिंगन मे खो जाना क्या होता है </div>
<div>बोझल सांसो के सुर ताल मे </div>
<div>धडकनों का राग क्या होता है </div>
<div>ये भी तो जाना नहीं, </div>
<div>अभी इसने </div>
<div>रगों मे एहसासो का </div>
<div>बिजली सा कौंध जाना क्या होता है </div>
<div>लाज का दामन थामे </div>
<div>महफ़िल मे रुसवाई की हद तक </div>
<div>किसी को ताके जाना क्या होता है </div>
<div>इन बातो से भी तो </div>
<div>अनभिज्ञ है मेरी कविता </div>
<div><strong>कि</strong> मंदिर की चौखट मे </div>
<div>मांगी गयी दुआओं का </div>
<div>हासिल क्या होता है </div>
<div>अभी तो ये जान भी नहीं पाई है </div>
<div>दर्द की उन बारीकियों को </div>
<div><strong>कि</strong> जिसमे चल के इश्क जवां होता है </div>
<div><strong>कि</strong> वाकिफ नहीं हुई है ये अभी </div>
<div>बारिश के पानी से </div>
<div>धुंधली पड़ी यादो का </div>
<div>धुल जाना क्या होता है </div>
<div>भीड़ और तन्हाई मे </div>
<div>एक ही शख़्स को तलाशना </div>
<div>और फिर निराशा के दर्द को </div>
<div>सहलाना क्या होता है </div>
<div><strong>सूख</strong> <strong>चुके</strong> घावों को </div>
<div>नित नयी <strong>उलाहनाओ</strong> से </div>
<div>कुरेदना क्या होता है </div>
<div><strong>क्योंकि</strong> इश्क की कोमल भावनाओ से </div>
<div>अभी अछूती है मेरी कवितायें..</div>