Shashiprakash saini's Posts - Open Books Online2024-03-28T12:22:54Zshashiprakash sainihttps://openbooks.ning.com/profile/shashiprakashsainihttps://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991277314?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1https://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=18m8lhvx3wc5q&xn_auth=noमांगो वत्स क्या मांगते होtag:openbooks.ning.com,2013-07-23:5170231:BlogPost:4011402013-07-23T05:30:00.000Zshashiprakash sainihttps://openbooks.ning.com/profile/shashiprakashsaini
<p>रात स्वप्न में, प्रभु थे खड़े<br></br> बोले मांगो वत्स क्या मांगते हो<br></br> जमीं चाहते हो या आस्मां चाहते हो</p>
<p></p>
<p>बड़ी गाडी बड़ा घर नोटों की गट्ठर<br></br> या सत्ता सुख कुर्सी से हो कर<br></br> जो चाहो अभी दे दूँ<br></br> एक नयी ज़िन्दगी दे दूँ</p>
<p></p>
<p>मैंने माँगा तो क्या माँगा<br></br> एक बेंच पुरानीं सी<br></br> वो पीछे वाली मेरे स्कूल की</p>
<p></p>
<p>चाहिए मुझे<br></br> वो बचपन के ज़माने<br></br> दोस्त पुराने<br></br> मदन के डोसे पे टूटना<br></br> चेतन का वो टिफिन लूटना<br></br> अपना टिफिन बचाने में<br></br> टीचर…</p>
<p>रात स्वप्न में, प्रभु थे खड़े<br/> बोले मांगो वत्स क्या मांगते हो<br/> जमीं चाहते हो या आस्मां चाहते हो</p>
<p></p>
<p>बड़ी गाडी बड़ा घर नोटों की गट्ठर<br/> या सत्ता सुख कुर्सी से हो कर<br/> जो चाहो अभी दे दूँ<br/> एक नयी ज़िन्दगी दे दूँ</p>
<p></p>
<p>मैंने माँगा तो क्या माँगा<br/> एक बेंच पुरानीं सी<br/> वो पीछे वाली मेरे स्कूल की</p>
<p></p>
<p>चाहिए मुझे<br/> वो बचपन के ज़माने<br/> दोस्त पुराने<br/> मदन के डोसे पे टूटना<br/> चेतन का वो टिफिन लूटना<br/> अपना टिफिन बचाने में<br/> टीचर क्लास सभी को भूले<br/> हम मस्त थे खाना खाने में</p>
<p></p>
<p>मुझे वो होली चाहिए<br/> ओ एन जी सी कॉलोनी चाहिए<br/> वो ठंडाई वाली ट्रक<br/> वो लड़कपन की सनक<br/> एक दूसरे का फाड़ते हम कुरता<br/> अनिल मेरे दोस्त<br/> ये वक़्त क्यों नहीं मुड़ता</p>
<p></p>
<p>गुरप्रीत के घर वाला रास्ता<br/> मेरा टूयूशन मेरा बस्ता<br/> रैम्बो संग एस्सेल्वर्ल्ड में भटकना<br/> कम्युनिटी सेंटर आम का बगीचा<br/> आम जामुन सब तोड़ चखना<br/> मुझे चाहिए बचपन की<br/> ये सारी घटना</p>
<p></p>
<p>बाउंड्री से थोड़ी ही दूर<br/> लपका था रणदीप का कैच<br/> वो छक्का चाहिए मुझे<br/> जिससे जीता था मैंने मैच<br/> मुझे अंडर आर्म के<br/> वो लगातार नौ डक भी चलेंगे<br/> चाहिए मुझे मेरी फुटबॉल<br/> मेरे फाउल भी</p>
<p></p>
<p>मुझे मेरी बी टाइप की बालकनी<br/> मेरा सीक्रेट स्पॉट अमरुद वाला<br/> लंच टाइम में फिर माँ टिफन लाए<br/> बादाम के पेड़ो के निचे बैठ फिर हम खाए<br/> मुझे स्कूल के बाहर<br/> बेर बेचती वो मौसी चाहिए<br/> मुझे जिंदगी ऐसी चाहिए</p>
<p></p>
<p>मुझे 15 अगस्त के वो लड्डू चाहिए<br/> चाहिए मुझे कॉलोनी की परेड<br/> 26 जनवरी वाली</p>
<p></p>
<p>मुझे वो शॉट पुट का गोला<br/> जिसने मूझे ब्रोंज मैडल दिलाया था<br/> मुझे चाहिए वो कबड्डी टीम<br/> जिसका मै कैप्टन था<br/> ब्रोंज से अब की सिल्वर हो आया था</p>
<p><br/> जो मुह में पानी लाई चाहिए</p>
<p>मुझे वो मेरी मिठाई चाहिए<br/> छोटी सी जब हुई थी बहना<br/> माँ संग चुप सोई थी बहना<br/> मेरा ध्यान भटकाने वाली<br/> मुझे वो मेरी मिठाई चाहिए</p>
<p></p>
<p>मुझे नानी के हाथ के<br/> बेसन लड्डू लौकी की बर्फी चाहिए<br/> और जो दादा लाते थे<br/> वो पारले जी</p>
<p></p>
<p>मुझे चाहिए मेरी पुरानीं डायरी<br/> जिसमे इस कवि की<br/> दसवी तक की सारी कविताएं भरी<br/> जो शिफ्ट करने में खो गई<br/> मुझे मेरी डायरी ला दो</p>
<p></p>
<p>आखिर में मुझे चाहिए<br/> वो स्वेटर जो माँ ने बुना था<br/> तितली वाला<br/> वो टोबो साइकल<br/> जो पापा कलकत्ता से लाए थे</p>
<p></p>
<p>खेत में लाऊँ तो ट्रेक्टर<br/> सड़क दौड़ाऊँ तो मोटर<br/> मुझे कोई सिंहासन नहीं<br/> मुझे दिला दो मेरी टोबो साइकल</p>
<p></p>
<p>: शशिप्रकाश सैनी</p>
<p> मौलिक व अप्रकाशित</p>तेरे साथ की जरुरत हैtag:openbooks.ning.com,2012-03-09:5170231:BlogPost:1986352012-03-09T20:30:00.000Zshashiprakash sainihttps://openbooks.ning.com/profile/shashiprakashsaini
<p style="text-align: center;">तन की नक्काशी कही धोखा ना देदे</p>
<p style="text-align: center;">मन से पुकारे की एक आवाज की जरुरत है</p>
<p style="text-align: center;">साथ तेरे चलने से जले या ना जले दुनिया</p>
<p style="text-align: center;">पर क़यामत तक चले की तेरे साथ की जरुरत है</p>
<p style="text-align: center;"> </p>
<p style="text-align: center;"> </p>
<p style="text-align: center;">झुर्रियाँ बाल सफ़ेद</p>
<p style="text-align: center;">सब उम्र के फरेब</p>
<p style="text-align: center;">तन…</p>
<p style="text-align: center;">तन की नक्काशी कही धोखा ना देदे</p>
<p style="text-align: center;">मन से पुकारे की एक आवाज की जरुरत है</p>
<p style="text-align: center;">साथ तेरे चलने से जले या ना जले दुनिया</p>
<p style="text-align: center;">पर क़यामत तक चले की तेरे साथ की जरुरत है</p>
<p style="text-align: center;"> </p>
<p style="text-align: center;"> </p>
<p style="text-align: center;">झुर्रियाँ बाल सफ़ेद</p>
<p style="text-align: center;">सब उम्र के फरेब</p>
<p style="text-align: center;">तन न भाया भाया मन</p>
<p style="text-align: center;">दिल में दिखा न ऐब</p>
<p style="text-align: center;">दिल-ए-जज़्बात को तेरे जज़्बात की जरूरत है</p>
<p style="text-align: center;"> </p>
<p style="text-align: center;"> </p>
<p style="text-align: center;">ईट पत्थर से कोई घर न बना है</p>
<p style="text-align: center;">पत्थर जड़ा के ताज में कोई सुन्दर न बना है</p>
<p style="text-align: center;">अपनों की दुआ मिले</p>
<p style="text-align: center;">तो घर भी बना ले</p>
<p style="text-align: center;">दिल जीत लाए तो सुन्दर भी बना ले</p>
<p style="text-align: center;">आशीर्वाद देता रहे उस हाथ की जरुरत है</p>
<p style="text-align: center;"> </p>
<p style="text-align: center;"> </p>
<p style="text-align: center;">है नयी दुनिया पर दस्तूर पुरानी</p>
<p style="text-align: center;">प्रेम सच्चा हो तभी चलती है कहानी</p>
<p style="text-align: center;">मै दिल से बात करता</p>
<p style="text-align: center;">तू भी दिल से बात कर</p>
<p style="text-align: center;">न मै किसी से डरता</p>
<p style="text-align: center;">न तू किसी से डर</p>
<p style="text-align: center;">दुनिया नयी होगी पर बात पुरानी</p>
<p style="text-align: center;">प्यार खरा हो तभी बढती है कहानी</p>
<p style="text-align: center;"> </p>
<p style="text-align: center;"> </p>
<p style="text-align: center;">: शशिप्रकाश सैनी</p>ये आज का युवा हैंtag:openbooks.ning.com,2012-02-04:5170231:BlogPost:1868422012-02-04T18:52:28.000Zshashiprakash sainihttps://openbooks.ning.com/profile/shashiprakashsaini
<p>आंधी हैं हवा हैं</p>
<p>बंधनों में क्या हैं</p>
<p>ये उफनता दरिया हैं </p>
<p>किनारे तोड़ निकला हैं</p>
<p>मस्ती में मस्तमौला हैं</p>
<p>मुश्किल में हौसला हैं</p>
<p>अपनी पे आजाए तो जलजला हैं</p>
<p>ये आज का युवा हैं</p>
<p> </p>
<p>कभी बेफिक्री का धुआँ हैं</p>
<p>कभी पानी का बुलबुला हैं</p>
<p>कभी संजीदगी से भरा हैं</p>
<p>ये आज का युवा हैं</p>
<p></p>
<p>पंखों को फडफडाता हैं</p>
<p>पेडों पे घोंसला बनाता है</p>
<p>अब की उड़ना ये चाहता हैं</p>
<p>दाव पे ज़िंदगी लगता हैं</p>
<p>हारा भी…</p>
<p>आंधी हैं हवा हैं</p>
<p>बंधनों में क्या हैं</p>
<p>ये उफनता दरिया हैं </p>
<p>किनारे तोड़ निकला हैं</p>
<p>मस्ती में मस्तमौला हैं</p>
<p>मुश्किल में हौसला हैं</p>
<p>अपनी पे आजाए तो जलजला हैं</p>
<p>ये आज का युवा हैं</p>
<p> </p>
<p>कभी बेफिक्री का धुआँ हैं</p>
<p>कभी पानी का बुलबुला हैं</p>
<p>कभी संजीदगी से भरा हैं</p>
<p>ये आज का युवा हैं</p>
<p></p>
<p>पंखों को फडफडाता हैं</p>
<p>पेडों पे घोंसला बनाता है</p>
<p>अब की उड़ना ये चाहता हैं</p>
<p>दाव पे ज़िंदगी लगता हैं</p>
<p>हारा भी हैं</p>
<p>तो इसे जीतना भी आता हैं</p>
<p>जर्रे से अस्मा हो जाता हैं</p>
<p>ये आज का युवा हैं</p>
<p> </p>
<p>कभी इश्क बोतलों में नशा हैं</p>
<p>कभी मै दिलजलो की दवा हैं</p>
<p>कभी प्यार अस्मा से बरसा हैं</p>
<p>जैसे खुदा की दुआ हैं</p>
<p>ये आज का युवा हैं</p>
<p> </p>
<p>: शाशिप्रकाश सैनी </p>कोयलिया जब गाती हैtag:openbooks.ning.com,2012-01-18:5170231:BlogPost:1816412012-01-18T22:30:00.000Zshashiprakash sainihttps://openbooks.ning.com/profile/shashiprakashsaini
<p>चल झूठ रूठना है तेरा</p>
<p>आंखें सब बतलातीं है</p>
<p>कोयलिया जब गाती है</p>
<p>याद मीत की आती है</p>
<p> </p>
<p>आँखों से अब ना आस गिरा</p>
<p>बातों पे रख विश्वास जरा</p>
<p>जाने दे मत रोक मुझें</p>
<p>सर पे दुनियां दारी है</p>
<p>कोयलिया जब गाती है</p>
<p>याद मीत की आती है</p>
<p> </p>
<p>न तू भूलीं न मैं भुला</p>
<p>जब झूलें थे सावन झुला</p>
<p>मौसम अब के बरसातीं है</p>
<p>कोयलिया जब गाती है</p>
<p>याद मीत की आती है</p>
<p> </p>
<p>चलतें थे तट पे साथ प्रिये</p>
<p>नटखट हाथों में हाथ…</p>
<p>चल झूठ रूठना है तेरा</p>
<p>आंखें सब बतलातीं है</p>
<p>कोयलिया जब गाती है</p>
<p>याद मीत की आती है</p>
<p> </p>
<p>आँखों से अब ना आस गिरा</p>
<p>बातों पे रख विश्वास जरा</p>
<p>जाने दे मत रोक मुझें</p>
<p>सर पे दुनियां दारी है</p>
<p>कोयलिया जब गाती है</p>
<p>याद मीत की आती है</p>
<p> </p>
<p>न तू भूलीं न मैं भुला</p>
<p>जब झूलें थे सावन झुला</p>
<p>मौसम अब के बरसातीं है</p>
<p>कोयलिया जब गाती है</p>
<p>याद मीत की आती है</p>
<p> </p>
<p>चलतें थे तट पे साथ प्रिये</p>
<p>नटखट हाथों में हाथ प्रिये</p>
<p>लहरें तब भी आती थी</p>
<p>लहरें अब भी आती है</p>
<p>कोयलिया जब गाती है</p>
<p>याद मीत की आती है</p>
<p> </p>
<p>तू कितनीं है दूर बड़ी</p>
<p>है कैसी ये मजबूर घड़ी</p>
<p>सपनोँ में तू जब आती है</p>
<p>मुझकों बड़ा सताती है</p>
<p>कोयलिया जब गाती है</p>
<p>याद मीत की आती है</p>
<p></p>
<p>: शशिप्रकाश सैनी </p>छन्न पकैया , मेहनत की है रोटीtag:openbooks.ning.com,2012-01-04:5170231:BlogPost:1780042012-01-04T09:00:00.000Zshashiprakash sainihttps://openbooks.ning.com/profile/shashiprakashsaini
<div><p>आदरणीय योगराज प्रभाकर जी से प्रभावित होकर मैंने भी छन्न पकैया में कुछ लिखने का प्रयास किया है. <span>मेरी मूल रचना में कुछ कमियाँ थी जो योगराज जी ने सुधारी,</span> योगराज सर आपका बहोत बहोत शुक्रिया. वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !</p>
</div>
<p> </p>
<p>.</p>
<p>छन्न पकैया , छन्न पकैया , मेहनत की है रोटी,</p>
<p>कहने को युवराज है, लेकिन बाते छोटी-छोटी ||१||</p>
<p>.</p>
<p>छन्न पकैया, छन्न पकैया , खूब बड़ी महंगाई</p>
<p><span>कुर्सी पे हाकिम जो बैठा</span> , शुतुरमुर्ग है भाई…</p>
<div><p>आदरणीय योगराज प्रभाकर जी से प्रभावित होकर मैंने भी छन्न पकैया में कुछ लिखने का प्रयास किया है. <span>मेरी मूल रचना में कुछ कमियाँ थी जो योगराज जी ने सुधारी,</span> योगराज सर आपका बहोत बहोत शुक्रिया. वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !</p>
</div>
<p> </p>
<p>.</p>
<p>छन्न पकैया , छन्न पकैया , मेहनत की है रोटी,</p>
<p>कहने को युवराज है, लेकिन बाते छोटी-छोटी ||१||</p>
<p>.</p>
<p>छन्न पकैया, छन्न पकैया , खूब बड़ी महंगाई</p>
<p><span>कुर्सी पे हाकिम जो बैठा</span> , शुतुरमुर्ग है भाई ||२||</p>
<p> .</p>
<p><span>छन्न पकैया, छन्न पकैया , आँखों पे हैं चश्मे </span><br/> <span>पुत्र मोह में पुत्री मारे , कितनी घटिया रस्में ||३||</span><br/> .<br/> <span>छन्न पकैया, छन्न पकैया , मिलें कंधो से कंधे </span><br/> <span>छूत अछूत हैं बीती बातें, सब उसके ही बन्दे ||४||</span><br/> .<br/> <span>छन्न पकैया, छन्न पकैया, बच्चे खेल न पाते</span><br/> <span>बड्डपन की दीवारों ने हरसू , बाँट दिए अहाते ||५|| </span><br/> .<br/> <span>छन्न पकैया, छन्न पकैया, भट्टी तपता सोना </span><br/> <span>मेरी माँ घर मेरे आई, रोशन कोना-कोना ||६||</span><br/> .<br/> <span>छन्न पकैया, छन्न पकैया, निश्चित बुढ़ापा आना </span><br/> <span>जोशे जवानी में तुम न, बजुर्गो की हसी उड़ना||७||</span><br/> .<br/> <span>छन्न पकैया, छन्न पकैया, मस्त कोलावेरी गाना </span><br/> <span>कानो ने हो सुना अगर तो , तय होठो पे आना ||८||</span><br/> .<br/> <span>छन्न पकैया, छन्न पकैया, जहा दीपिका जाए </span><br/> <span>छोटा माल्या आगे पीछे, लट्टू होता जाए ||९||</span><br/> .<br/> <span>छन्न पकैया, छन्न पकैया, गम ही हिस्से आता</span><br/> <span>चेहरे के सब हाव भाव ही, स्पर्श मेरा ले जाता ||१०||</span></p>
<p>.</p>
<p><strong>: शशिप्रकाश सैनी</strong></p>सवाल करता बहुत देता उसे कोई जवाब नहींtag:openbooks.ning.com,2012-01-01:5170231:BlogPost:1778242012-01-01T18:30:00.000Zshashiprakash sainihttps://openbooks.ning.com/profile/shashiprakashsaini
<p><span><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001459812?profile=original" target="_self"><img class="align-right" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001459812?profile=RESIZE_480x480" width="412"></img></a></span></p>
<p><span><br></br></span></p>
<p><span>सवाल करता बहुत देता उसे कोई जवाब नहीं </span><br></br> <span>पढ़े कैसे वो दुनिया ने दी उसे कोई किताब नहीं</span><br></br> <br></br> <span>स्कूल की खिडकियों पे <span>लगाए </span> कान सुनता है </span><br></br> <span>अगर अन्दर पनपते फूल क्या वो गुलाब नहीं </span><br></br> <br></br> <span>जूठे बर्तन धोते हुए पूरा बचपन बिताता है </span><br></br> <span>लोग…</span></p>
<p><span><a target="_self" href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001459812?profile=original"><img width="412" class="align-right" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001459812?profile=RESIZE_480x480" width="412"/></a></span></p>
<p><span><br/></span></p>
<p><span>सवाल करता बहुत देता उसे कोई जवाब नहीं </span><br/> <span>पढ़े कैसे वो दुनिया ने दी उसे कोई किताब नहीं</span><br/> <br/> <span>स्कूल की खिडकियों पे <span>लगाए </span> कान सुनता है </span><br/> <span>अगर अन्दर पनपते फूल क्या वो गुलाब नहीं </span><br/> <br/> <span>जूठे बर्तन धोते हुए पूरा बचपन बिताता है </span><br/> <span>लोग अब भी कहते दुनिया इतनी ख़राब नहीं </span><br/> <br/> <span>मिलती उसे पूरी रोटी नहीं भूखा सोता है वो </span><br/> <span class="text_exposed_show">जब पेट करे आवाज़ रातो को आते ख्वाब नहीं <br/> <br/> जरा से दर्द पे छलक जाती है आंखे "सैनी" <br/> वो तो बच्चे है उनके गमो का कोई हिसाब नहीं</span></p>तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता हैtag:openbooks.ning.com,2012-01-01:5170231:BlogPost:1775392012-01-01T07:30:00.000Zshashiprakash sainihttps://openbooks.ning.com/profile/shashiprakashsaini
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001459741?profile=original" target="_self"><img class="align-right" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001459741?profile=RESIZE_480x480" width="371"></img></a> तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता है</p>
<p>जो आइने हमने बनाए है वो अलग बात कहे</p>
<p>पर उसकी तस्वीर में तुभी मुझसा दीखता है</p>
<p>तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता है</p>
<p> </p>
<p>वो अपने नियम शख्स दर शख्स नहीं बदलता है</p>
<p>उसके तराजू में सब एकसा तुलता है</p>
<p>भेद करे तो करे कैसे वो</p>
<p>न तो उसको तन दीखता है</p>
<p>न धन दीखता है</p>
<p>उसके दर्पण में बस मन…</p>
<p><a target="_self" href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001459741?profile=original"><img width="371" class="align-right" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001459741?profile=RESIZE_480x480" width="371"/></a>तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता है</p>
<p>जो आइने हमने बनाए है वो अलग बात कहे</p>
<p>पर उसकी तस्वीर में तुभी मुझसा दीखता है</p>
<p>तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता है</p>
<p> </p>
<p>वो अपने नियम शख्स दर शख्स नहीं बदलता है</p>
<p>उसके तराजू में सब एकसा तुलता है</p>
<p>भेद करे तो करे कैसे वो</p>
<p>न तो उसको तन दीखता है</p>
<p>न धन दीखता है</p>
<p>उसके दर्पण में बस मन दीखता है</p>
<p>तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता है</p>
<p> </p>
<p>:शशिप्रकाश सैनी</p>नये है रंगtag:openbooks.ning.com,2011-12-31:5170231:BlogPost:1774132011-12-31T04:30:00.000Zshashiprakash sainihttps://openbooks.ning.com/profile/shashiprakashsaini
<p>नये है रंग</p>
<p>रुत है नयी तस्वीर बनाने की</p>
<p>नये साज़ नयी आवाज़ में</p>
<p>कुछ नयी धुन गुनगुनाने की</p>
<p>नयी सुबह है नये सूरज के जगमगाने की</p>
<p>खठी मीठी यादे पीछे छोड़ आने की</p>
<p>नयी उम्मीद नई आशाएं जगाने की</p>
<p>जो बीता उसे सम्मान से विदा करे</p>
<p>और नये बरस के स्वागत में दीप जलाने की</p>
<p>लौ से शोला और शोलो से लपटों में बदल जाने की</p>
<p>दिलो से दूरियाँ मिटाने की</p>
<p>बस यही गीत गुनगुनाने की</p>
<p></p>
<p>:शशिप्रकाश सैनी</p>
<p>नये है रंग</p>
<p>रुत है नयी तस्वीर बनाने की</p>
<p>नये साज़ नयी आवाज़ में</p>
<p>कुछ नयी धुन गुनगुनाने की</p>
<p>नयी सुबह है नये सूरज के जगमगाने की</p>
<p>खठी मीठी यादे पीछे छोड़ आने की</p>
<p>नयी उम्मीद नई आशाएं जगाने की</p>
<p>जो बीता उसे सम्मान से विदा करे</p>
<p>और नये बरस के स्वागत में दीप जलाने की</p>
<p>लौ से शोला और शोलो से लपटों में बदल जाने की</p>
<p>दिलो से दूरियाँ मिटाने की</p>
<p>बस यही गीत गुनगुनाने की</p>
<p></p>
<p>:शशिप्रकाश सैनी</p>अपनी गलतियों का बोझ आप ही ढोता हूँtag:openbooks.ning.com,2011-12-30:5170231:BlogPost:1770762011-12-30T21:30:00.000Zshashiprakash sainihttps://openbooks.ning.com/profile/shashiprakashsaini
<p><font face="'Times New Roman', Times, FreeSerif, serif"><span>अपनी गलतियों का भोझ आप ही </span></font><span> </span><span>ढोता</span><span> <strong>हूँ</strong></span></p>
<div><span>गंगा खुद मैली है </span><span>मै वहा पाप नही धोता </span><strong>हूँ</strong></div>
<div><span><br></br></span></div>
<div><span>पाप धोने के लिए <strong>बहुत</strong> है </span><span class="spell"> आंख के </span><span class="spell"> आसू</span></div>
<div><span class="spell">रात रो अंतर्मन पश्चाताप से ही भिगोता…</span></div>
<p><font face="'Times New Roman', Times, FreeSerif, serif"><span>अपनी गलतियों का भोझ आप ही </span></font><span> </span><span>ढोता</span><span> <strong>हूँ</strong></span></p>
<div><span>गंगा खुद मैली है </span><span>मै वहा पाप नही धोता </span><strong>हूँ</strong></div>
<div><span><br/></span></div>
<div><span>पाप धोने के लिए <strong>बहुत</strong> है </span><span class="spell"> आंख के </span><span class="spell"> आसू</span></div>
<div><span class="spell">रात रो अंतर्मन पश्चाताप से ही भिगोता <strong>हूँ</strong></span></div>
<div><span class="spell"><br/></span></div>
<div><span class="spell">हम इंसानों ने कर दी गंगा इतनी मैली </span></div>
<div><span class="spell"><strong>कि</strong> गंगा माँ विलाप रही मै भी रोता हूँ<br/></span></div>
<div><span class="spell"><br/></span></div>
<div><span class="spell">एक दिन रूठ के चली जाएगी गंगा </span></div>
<div><span class="spell">अनर्थ का बीज कुछ तुम बोते हो कुछ मै बोता <strong>हूँ</strong><br/></span></div>
<div><span class="spell"><br/></span></div>
<div><span class="spell">सिर्फ लिखता है कुछ करता नहीं "सैनी"</span></div>
<div><font face="arial, sans-serif"><span>जहा माँ डूबती है मै स्याही में बस कलम </span></font> <span>डूबोता</span> <font face="arial, sans-serif"><span><strong>हूँ</strong><br/></span></font></div>अंधेरा है कितनाtag:openbooks.ning.com,2011-12-30:5170231:BlogPost:1771922011-12-30T14:30:00.000Zshashiprakash sainihttps://openbooks.ning.com/profile/shashiprakashsaini
<p><i>रातो के हो गए है पुजारी<br></br> <strong>कि</strong> दिन की खबर नहीं है<br></br> पैसे की है ये दुनिया<br></br> मेरा ये शहर नहीं है<br></br> दिन में भी ये जलाते है बत्तियाँ इतना<br></br> ना जाने यहाँ अंधेरा है कितना<br></br> आदमी अपने साये पे भी शक करता है<br></br> हाथ हाथ मिलाने से डरता है<br></br> <br></br> पैसो से हर चीज तोलने लगा <strong>हूँ</strong> <br></br> की मै भी पैसो <span>की </span>जुबा बोलने लगा <strong><i>हूँ</i></strong><br></br> नीद बेचता हू बेचता हू सासे भी<br></br> बेचे है त्यौहार बेचीं है उदासी भी<br></br> हसी बेचीं है…</i></p>
<p><i>रातो के हो गए है पुजारी<br/> <strong>कि</strong> दिन की खबर नहीं है<br/> पैसे की है ये दुनिया<br/> मेरा ये शहर नहीं है<br/> दिन में भी ये जलाते है बत्तियाँ इतना<br/> ना जाने यहाँ अंधेरा है कितना<br/> आदमी अपने साये पे भी शक करता है<br/> हाथ हाथ मिलाने से डरता है<br/> <br/> पैसो से हर चीज तोलने लगा <strong>हूँ</strong> <br/> की मै भी पैसो <span>की </span>जुबा बोलने लगा <strong><i>हूँ</i></strong><br/> नीद बेचता हू बेचता हू सासे भी<br/> बेचे है त्यौहार बेचीं है उदासी भी<br/> हसी बेचीं है <strong>आँसू</strong> भी<br/> एक दिन बिक रही थी जिंदगी<br/> और मैंने बेच दी<br/> हर चीज का है दाम <br/> दोस्ती बिकती है<br/> हो जाती है मोहब्बत भी नीलाम<br/> <br/> पैसो के दम रिश्ते है<br/> पैसो के दम मकान <br/> पर कोई घर नहीं है<br/> <strong>क्योंकि</strong> ये मेरा शहर नहीं है<br/> जहा चाय की दुकान<br/> और वडापाँव की गाड़ी थी<br/> मौसी से अन्ना तक सबसे पहचान हमारी थी<br/> उन्मुक्त परिंदा था<br/> सुबह का बाशिंदा था<br/> सूरज की सरपरस्ती में जिए <br/> अपने पंखो को हवा दी<br/> खूब उड़े साँस <strong>फूली</strong> <br/> मगर हौसला <strong>टूटा</strong> नहीं<br/> <br/> <br/> इन दीवारों में किसे अपना कहे<br/> जो पैसो से परे चाहे हमे <br/> दोस्ती जहा मतलबी ना हो <br/> हम बाज़ार में इतना रहे <br/> की रिश्ते बाजारू होगए<br/> अब किसे अपना कहे <br/> अपनों के दम हौसला था<br/> और हौसला जाता रहा <br/> <br/> कई बार सोचता हू हिम्मत जुटाऊँगा <br/> कुछ दिनों के लिए खुद को छुड़ाउँगा <strong> </strong> <br/> इस दिवाली घर जाऊंगा <br/> कुछ दिये जलाऊंगा <br/> कुछ रोशनी करूँगा <br/> कुछ मन का तम मिटाऊंगा </i></p>
<p><i><br/></i></p>
<p>: शशिप्रकाश सैनी</p>ये ख़ासियत रही उस मुलाक़ात कीtag:openbooks.ning.com,2011-12-30:5170231:BlogPost:1769482011-12-30T05:30:00.000Zshashiprakash sainihttps://openbooks.ning.com/profile/shashiprakashsaini
<p>ये ख़ासियत रही उस मुलाक़ात की</p>
<p>जुबा कुछ कह न सकी आँखों ने सब बात की</p>
<p> </p>
<p>ये दुनिया है सब पैसे से चलते है</p>
<p>खबर लेता नहीं कोई बिगड़े हालात की</p>
<p> </p>
<p>जो करते है लडकियों पे छीटा-<span>कसी</span></p>
<p>न जाने किस घर के है उपज है किस ख़यालात की</p>
<p> </p>
<p>हमसे रूठी है यु बात भी करती नहीं</p>
<p>नाराज़गी है न जाने किस रात की</p>
<p> </p>
<p>किस गम में भीगी है छत की सीढ़ियां "सैनी"</p>
<p>किसके जज़्बात छलके किस आंख ने इतनी बरसात की</p>
<p> </p>
<p>: शशिप्रकाश…</p>
<p>ये ख़ासियत रही उस मुलाक़ात की</p>
<p>जुबा कुछ कह न सकी आँखों ने सब बात की</p>
<p> </p>
<p>ये दुनिया है सब पैसे से चलते है</p>
<p>खबर लेता नहीं कोई बिगड़े हालात की</p>
<p> </p>
<p>जो करते है लडकियों पे छीटा-<span>कसी</span></p>
<p>न जाने किस घर के है उपज है किस ख़यालात की</p>
<p> </p>
<p>हमसे रूठी है यु बात भी करती नहीं</p>
<p>नाराज़गी है न जाने किस रात की</p>
<p> </p>
<p>किस गम में भीगी है छत की सीढ़ियां "सैनी"</p>
<p>किसके जज़्बात छलके किस आंख ने इतनी बरसात की</p>
<p> </p>
<p>: शशिप्रकाश सैनी</p>मुखौटा हटाओtag:openbooks.ning.com,2011-12-29:5170231:BlogPost:1765712011-12-29T04:59:07.000Zshashiprakash sainihttps://openbooks.ning.com/profile/shashiprakashsaini
<p><span>भीड़ में सब मुखौटे है </span><br></br><span>इंसा कहा है</span><br></br><span>जिसकी सूरत पे सीरत दिखे </span><br></br><span>वो चेहरा कहा है</span><br></br><br></br><span>खिड़किया यु बंद करली है</span><br></br><span>की हम खोलते ही नहीं</span><br></br><span>दुनिया से करते है बात</span><br></br><span>पडोसियो से बोलते ही नहीं </span><br></br><span>न बगल में खुशी न मातम का पता </span><br></br><span>पर ये मालूम दुनिया में क्या घटा </span><br></br><br></br><br></br><span>कमरे बंद रखने से सिर्फ सडन होगी</span><br></br><span>खिडकिया खोलोगे तो हवा…</span></p>
<p><span>भीड़ में सब मुखौटे है </span><br/><span>इंसा कहा है</span><br/><span>जिसकी सूरत पे सीरत दिखे </span><br/><span>वो चेहरा कहा है</span><br/><br/><span>खिड़किया यु बंद करली है</span><br/><span>की हम खोलते ही नहीं</span><br/><span>दुनिया से करते है बात</span><br/><span>पडोसियो से बोलते ही नहीं </span><br/><span>न बगल में खुशी न मातम का पता </span><br/><span>पर ये मालूम दुनिया में क्या घटा </span><br/><br/><br/><span>कमरे बंद रखने से सिर्फ सडन होगी</span><br/><span>खिडकिया खोलोगे तो हवा आएगी</span><br/><span>कोई महक कोई चहक साथ लाएगी </span><br/><span>तुम मुखौटा उतारोगे तब तो वो सूरत दिखाएगी </span><br/><br/><span>हँसो मुस्कुराओ और चिल्लाओ </span><br/><span>अगर हिम्मत है तो मुखौटा हटाओ </span><br/><span>दिल के भाव को चेहरे तक आने दो</span><br/><span>देनेवाले ने दिया है बड़े प्यार से</span><br/><span>इसको भी किस्मत अजमाने दो </span><br/><br/><span>कोशिशे करने से टूट जाती है बेडिया भी </span><br/><span>थोड़ी कोशिश करो और मुखौटा हटाओ</span><br/><br/><span>: शशिप्रकाश सैनी </span></p>मै चलने के लिए बना था मै उड़ न सकाtag:openbooks.ning.com,2011-12-29:5170231:BlogPost:1766572011-12-29T03:12:16.000Zshashiprakash sainihttps://openbooks.ning.com/profile/shashiprakashsaini
<div>रुकना साँस लेना मेरी ज़रूरत थी</div>
<div>जब भी मै रुका</div>
<div>दुनिया ने कहदिया मै पीछें रह गया</div>
<div>मै चलने के लिए बना था</div>
<div>वो कहते रहे मै उड़ न सका</div>
<div> </div>
<div>विचार बीज थे</div>
<div>मै मिट्टी था</div>
<div>दुनिया से अलग सोचता</div>
<div>मै मिट्टी था</div>
<div>बारिश की बूदों पड़े तो मै खुशबू</div>
<div>सूरज की रोशनी में जादू</div>
<div>की विचारों में जिंदगी भर दू</div>
<div>उपजाऊ था</div>
<div>पर था तो मै मिट्टी ही</div>
<div>कइयो ने…</div>
<div>रुकना साँस लेना मेरी ज़रूरत थी</div>
<div>जब भी मै रुका</div>
<div>दुनिया ने कहदिया मै पीछें रह गया</div>
<div>मै चलने के लिए बना था</div>
<div>वो कहते रहे मै उड़ न सका</div>
<div> </div>
<div>विचार बीज थे</div>
<div>मै मिट्टी था</div>
<div>दुनिया से अलग सोचता</div>
<div>मै मिट्टी था</div>
<div>बारिश की बूदों पड़े तो मै खुशबू</div>
<div>सूरज की रोशनी में जादू</div>
<div>की विचारों में जिंदगी भर दू</div>
<div>उपजाऊ था</div>
<div>पर था तो मै मिट्टी ही</div>
<div>कइयो ने समझाया</div>
<div>सोना होना ज़रुरी है</div>
<div>मिट्टी का नहीं है मोल</div>
<div>सोना है अनमोल</div>
<div>मुझे खलिहानोँ में होना था</div>
<div>बारिश धुप में भिगोना था</div>
<div>पर भट्टी में जलाया गया मुझे</div>
<div>की लोगो की चाह में सोना था</div>
<div>पर मै मिट्टी था</div>
<div>मुझे मिट्टी ही होना था</div>
<div>मै चलने के लिए बना था</div>
<div>मै उड़ न सका</div>
<div> </div>
<div>क्या सोना होना इतना ज़रुरी है</div>
<div>क्या सोना फसल बनेगा</div>
<div>क्या सोना पेट भरेगा</div>
<div>क्या सोना आस्मा से बरसेगा</div>
<div>और बीजो में जीवन भरेगा</div>
<div>सोना कीमती है</div>
<div>पर मै भी हू अनमोल</div>
<div>पर मुझे इतना तपाया गया</div>
<div>की मै मिट्टी भी न रह सका</div>
<div>विचार मेरे जल गए</div>
<div>नसों में लड़ने की कूबत थी</div>
<div>सब भाप बन निकल गए</div>
<div>मै चलने के लिए बना था</div>
<div>मै उड़ न सका</div>
<div> </div>
<div>सासे लेना धडकना</div>
<div>दुनिया के रंग रंगना चहकना</div>
<div>ये मेरी ताकत थी</div>
<div>पर उसे समझ ना आया</div>
<div>जब भी तोला मुझे</div>
<div>उसने सोने के सिक्को से</div>
<div>हमेशा कम पाया</div>
<div>मै चलने के लिए बना था</div>
<div>मै उड़ न सका</div>
<div> </div>
<div>: शशिप्रकाश सैनी</div>