Yogi Saraswat's Posts - Open Books Online2024-03-28T08:03:00ZYogi Saraswathttps://openbooks.ning.com/profile/YogendraKumarSaraswathttps://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991280977?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1https://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=0xh9ped9t79be&xn_auth=noप्रेमिकाएं और डाक टिकटtag:openbooks.ning.com,2013-03-30:5170231:BlogPost:3388502013-03-30T05:14:10.000ZYogi Saraswathttps://openbooks.ning.com/profile/YogendraKumarSaraswat
<p>अपनी पुरानी डायरी में से आपके लिए कुछ हाज़िर कर रहा हूँ ! आशा है आपको पसंद आएगा !<br></br><br></br>ये प्रेमिकाएं बड़ी विकट होती हैं<br></br>बिल्कुल डाक टिकट होती हैं<br></br>क्योंकि जब ये सन्निकट होती हैं<br></br>तो आदमी की नीयत में थोडा सा इजाफा हो जाता है !<br></br>मगर जब ये चिपक जाती हैं तो<br></br>आदमी बिलकुल लिफाफा हो जाता है !!<br></br><br></br>सम्बन्धों के पानी से<br></br>या भावनाओं की गोंद से चिपकी हुई<br></br>जब ये साथ चल पड़ती हैं तो<br></br>अपने आप में हिस्ट्री बन जाती हैं !<br></br>जिंदगी के डाक खाने में उस लिफ़ाफ़े की<br></br>रजिस्ट्री…</p>
<p>अपनी पुरानी डायरी में से आपके लिए कुछ हाज़िर कर रहा हूँ ! आशा है आपको पसंद आएगा !<br/><br/>ये प्रेमिकाएं बड़ी विकट होती हैं<br/>बिल्कुल डाक टिकट होती हैं<br/>क्योंकि जब ये सन्निकट होती हैं<br/>तो आदमी की नीयत में थोडा सा इजाफा हो जाता है !<br/>मगर जब ये चिपक जाती हैं तो<br/>आदमी बिलकुल लिफाफा हो जाता है !!<br/><br/>सम्बन्धों के पानी से<br/>या भावनाओं की गोंद से चिपकी हुई<br/>जब ये साथ चल पड़ती हैं तो<br/>अपने आप में हिस्ट्री बन जाती हैं !<br/>जिंदगी के डाक खाने में उस लिफ़ाफ़े की<br/>रजिस्ट्री बन जाती हैं !!<br/><br/>यूँ इनके साथ होने पर<br/>लिफ़ाफ़े का अपना एक रंग होता है !<br/>मगर जब ये नहीं होती हैं तो<br/>लिफाफा बेरंग होता है !!<br/><br/>मेरी आप लोगों से विनती है , अरदास है , रिक्वेस्ट है<br/>कि आप अपनी जिंदगी के लिफ़ाफ़े पर<br/>किसी भी मूल्य का , किसी भी साइज़ या आकार का<br/>डाक टिकट चिपकाइए ! मगर<br/>ज़रा सलीके से लगाइये !!<br/><br/>कहीं ऐसा न हो इससे कहीं कोई<br/>दुर्घटना घट जाए !<br/>और कोई आपके लिफ़ाफ़े का डाक टिकट छुडाने लगे तो<br/>कहीं लिफाफा ही न फट जाए !!</p>क्षणिकाएंtag:openbooks.ning.com,2012-09-07:5170231:BlogPost:2691472012-09-07T08:30:00.000ZYogi Saraswathttps://openbooks.ning.com/profile/YogendraKumarSaraswat
<p><b>लोकतंत्र <br></br></b> जहाँ हर नेता भ्रष्ट <br></br> हर अधिकारी घूस खाने को <br></br> स्वतंत्र है | <br></br> यही तो अपना <br></br> लोकतंत्र है ||<br></br> <br></br> <b>पहचान</b> <br></br> लोकसभा और विधानसभा को <br></br> बना दिया जंग का मैदान |<br></br> देख कर इन नेताओं के कारनामे <br></br> लोग हो रहे हैरान ||<br></br> <br></br> उजले कपड़ों के पीछे लिपटे <br></br> इंसानों की शक्लों में घूम रहे शैतान |<br></br> पचा गए यूरिया , खा गए चारा <br></br> बच के रहना मेरे भाई <br></br> कहीं खा ना जायें इंसान ||<br></br> <br></br> कहें 'योगी ' कविराय <br></br> इन नेताओं से उठा…</p>
<p><b>लोकतंत्र <br/></b> जहाँ हर नेता भ्रष्ट <br/> हर अधिकारी घूस खाने को <br/> स्वतंत्र है | <br/> यही तो अपना <br/> लोकतंत्र है ||<br/> <br/> <b>पहचान</b> <br/> लोकसभा और विधानसभा को <br/> बना दिया जंग का मैदान |<br/> देख कर इन नेताओं के कारनामे <br/> लोग हो रहे हैरान ||<br/> <br/> उजले कपड़ों के पीछे लिपटे <br/> इंसानों की शक्लों में घूम रहे शैतान |<br/> पचा गए यूरिया , खा गए चारा <br/> बच के रहना मेरे भाई <br/> कहीं खा ना जायें इंसान ||<br/> <br/> कहें 'योगी ' कविराय <br/> इन नेताओं से उठा भरोसा <br/> जब भी देना वोट <br/> अच्छे बुरे की कर लेना <b>पहचान</b> !! <br/> <br/> <b>समाज</b> <br/> आज का हमारा समाज <br/> बहुत जागरूक हो गया है <br/> तभी तो अपने होने वाले <br/> सभी कुकृत्यों को अनदेखा कर <br/> छुपकर कहीं सो गया है !!</p>कंक्रीट के वृक्षtag:openbooks.ning.com,2012-08-21:5170231:BlogPost:2630152012-08-21T07:30:00.000ZYogi Saraswathttps://openbooks.ning.com/profile/YogendraKumarSaraswat
<p>यहाँ वृक्ष हुआ करते थे <br></br> जो कभी <br></br> लहलहाते थे <br></br> चरमराते थे <br></br> उनके पत्तों का <br></br> आपस का घर्षण <br></br> मन को छू लेता था <br></br> उनकी डालों की कर्कश <br></br> कभी आंधी में <br></br> डराती थी मन को |<br></br> बारिश के मौसम की <br></br> खुशबू और ताज़गी <br></br> कुछ और बढ़ा देती थी <br></br> जीवन को ||<br></br> <br></br> उन वृक्षों की पांत <br></br> अब नहीं मिलती <br></br> देखने तक को भी <br></br> लेकिन , हाँ ! <br></br> वृक्ष अब भी हैं <br></br> वही डिजाईन <br></br> वही उंचाई <br></br> शायद उंचाई तो कुछ <br></br> और भी ज्यादा हो <br></br> मगर इनसे…</p>
<p>यहाँ वृक्ष हुआ करते थे <br/> जो कभी <br/> लहलहाते थे <br/> चरमराते थे <br/> उनके पत्तों का <br/> आपस का घर्षण <br/> मन को छू लेता था <br/> उनकी डालों की कर्कश <br/> कभी आंधी में <br/> डराती थी मन को |<br/> बारिश के मौसम की <br/> खुशबू और ताज़गी <br/> कुछ और बढ़ा देती थी <br/> जीवन को ||<br/> <br/> उन वृक्षों की पांत <br/> अब नहीं मिलती <br/> देखने तक को भी <br/> लेकिन , हाँ ! <br/> वृक्ष अब भी हैं <br/> वही डिजाईन <br/> वही उंचाई <br/> शायद उंचाई तो कुछ <br/> और भी ज्यादा हो <br/> मगर इनसे हवा <br/> नहीं मिलती <br/> नहीं मिलती <br/> इनसे खुशबू <br/> न कोई आनंद <br/> लेकिन <br/> निश्चित ही <br/> ये वृक्ष <br/> पैसे उगलते हैं <br/> जिसके लिए <br/> हर कोई <br/> पागल बना फिरता है <br/> मगर इतने पर भी <br/> इन वृक्षों से मोह <br/> नहीं हो पाता <br/> कैसे हो ! आखिर <br/> हमने इन्हें सीमेंट से <br/> जो सींचा है |<br/> भावनाएं कैसे समझेंगे <br/> ये कंक्रीट के वृक्ष <br/> हमारी भावनाओं का <br/> घड़ा भी तो <br/> इनके लिए रीता है ||</p>
<p></p>ये अंतर क्यों है ?tag:openbooks.ning.com,2012-06-29:5170231:BlogPost:2421082012-06-29T04:30:00.000ZYogi Saraswathttps://openbooks.ning.com/profile/YogendraKumarSaraswat
<p>ओ सर्वव्यापी , ओ सर्वशक्तिमान <br></br> जब सब में है तू विद्यमान <br></br> तो इस दुनियाँ में ये <br></br> ऊँच-नीच का अंतर क्यों है ? <br></br> <br></br> कोई कहे तुझे खुदा , कोई कहे तुझे भगवान् <br></br> करते जब सब तेरा ही गुणगान <br></br> तो इस मृत्युलोक में <br></br> तेरे नाम में ये अंतर क्यों है ? <br></br> <br></br> ओ सर्वरक्षक , सर्वगुणों की खान <br></br> कैसा है तेरा विधान <br></br> जब सब तेरे बनाये हुए हैं <br></br> तो ये गोरे काले का अंतर क्यों है ?<br></br> <br></br> तू है सबका प्यारा , तू है सबसे महान <br></br> कोई पढ़े गीता यहाँ , कोई पढ़े कुरआन…</p>
<p>ओ सर्वव्यापी , ओ सर्वशक्तिमान <br/> जब सब में है तू विद्यमान <br/> तो इस दुनियाँ में ये <br/> ऊँच-नीच का अंतर क्यों है ? <br/> <br/> कोई कहे तुझे खुदा , कोई कहे तुझे भगवान् <br/> करते जब सब तेरा ही गुणगान <br/> तो इस मृत्युलोक में <br/> तेरे नाम में ये अंतर क्यों है ? <br/> <br/> ओ सर्वरक्षक , सर्वगुणों की खान <br/> कैसा है तेरा विधान <br/> जब सब तेरे बनाये हुए हैं <br/> तो ये गोरे काले का अंतर क्यों है ?<br/> <br/> तू है सबका प्यारा , तू है सबसे महान <br/> कोई पढ़े गीता यहाँ , कोई पढ़े कुरआन <br/> पूजे जब हर कोई तुझको <br/> तो ये हिन्दू -मुस्लिम का अंतर क्यों है ?</p>वृक्षtag:openbooks.ning.com,2012-05-14:5170231:BlogPost:2255332012-05-14T10:01:17.000ZYogi Saraswathttps://openbooks.ning.com/profile/YogendraKumarSaraswat
<p><span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #ff6600;">हरे भरे ये वृक्ष हमारे</span><br></br> <span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #ff6600;"> देते ठंडी ठंडी छांव |</span><br></br> <span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #ff6600;">सबको जरूरत रहती इनकी</span> <br></br> <span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #ff6600;"> नगर हो या हो गाँव ||…</span><br></br></p>
<p><span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #ff6600;">हरे भरे ये वृक्ष हमारे</span><br/> <span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #ff6600;"> देते ठंडी ठंडी छांव |</span><br/> <span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #ff6600;">सबको जरूरत रहती इनकी</span> <br/> <span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #ff6600;"> नगर हो या हो गाँव ||</span><br/> <br/><br class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #3366ff;"/><span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #0000ff;">बसंत के प्यारे मौसम में</span> <br/> <span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #0000ff;">नई -नई पत्ती जब आती हैं |</span><br/> <span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #0000ff;">थोड़ी सी ही जब चले पवन</span> <br/> <span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #0000ff;">झूम झूम ये लहराती हैं ||</span><br/> <br/> <span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #008000;">आते हैं जब इन पर फल</span> <br/> <span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #008000;">इनकी डालें झुक जाती हैं |</span><br/> <span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #008000;">ना करो तुम घमंड कभी</span> <br/> <span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #008000;">बिन बोले ये कह जाती हैं ||</span><br/> <br/> <span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #ff6600;">वृक्ष सूखकर भी देखो</span> <br/> <span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #ff6600;">कितने काम हमारे आते हैं |</span><br/> <span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #ff6600;">स्वयं जलकर आदमी को देते रोटी</span> <br/> <span class="font-size-3" style="font-family: arial black,avant garde; color: #ff6600;">परमार्थ का पाठ हमें पढ़ते हैं ||</span><br/></p>