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दैनिक जागरण में नवगीत को लेकर छपी रपट

आज दिनांक 14/ जनवरी/ 2015 को मकरसंक्रान्ति पर्व की पूर्व संध्या पर 'दैनिक जागरण' के सौजन्य से छपे लेख की मिली इस सूचना से मन उत्साहित है.. .

फिर-फिर पुलकें उम्मीदों में.. कुम्हलाये-से दिन !

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2015 at 11:37pm

आदरणीया प्राचीजी, शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद.
यह आलेख न हो कर एक साक्षात्कार है. जिसे इस रूप में स्थान मिला है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 14, 2015 at 11:25pm

नवगीत की अन्तर्निहित खूबसूरती व सहजता के स्वरुप को बहुत सही सार्थक शब्द देते हुए आपका ये सुन्दर आलेख 'दैनिक जागरण' की शोभा बना .... बहुत बहुत बधाई आदरणीय सौरभ जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2015 at 11:09pm

आदरणीय मिथिलेश भाईजी, यह कैसे किया आपने ? दैनिक जागरण समाचार-पत्र में छपे इस पूरे मैटर को आपने पुनर्प्रस्तुत किया है ! क्या आपने इस पूरे रपट को टाइप किया है ? यह अन्यान्य पाठकों के लिए सहज प्रस्तुत करने का अनोखा प्रयास है, आदरणीय !
आपकी सदाशयता का मैं हृदयतल से आभारी हूँ.
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 14, 2015 at 10:50pm

समाज की आवाज बनकर सामने आए हैं नवगीत

जागरण संवाददाता, लखनऊ : सौरभ पांडेय उन साहित्यकर्मियों में से हैं, जिनके लिए साहित्य केवल संप्रेषण नहीं बल्कि विचार मंथन का पर्याय है। रचना-कर्म में क्या के साथ क्यों और कैसे को भी आप उसी तीव्रता से अहमियत देने का आग्रह रखते हैं। आप एक गंभीर पाठक और सतत अभ्यासरत साहित्यकार हैं। व्यावसायिक जीवन के करीब अट्ठारह वर्ष दक्षिण भारत में बिताने के कारण उनका रचनाकर्म कुछ रुक सा गया था, किंतु विगत कुछ वर्षो में आपकी रचनाकर्म के कई पहलू खुलकर सामने आये हैं। विभिन्न छंदों पर अभ्यास और काव्य की कई-कई विधाओं पर रचनाकर्म को आपने गंभीरता से लिया है।

यूं सृजन हुआ नवगीत का

छायावादी काल के बाद ऐसा लगने लगा था कि गीत आमजन की अपेक्षाओं के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं। रचनाकारों की नवीन अनुभूतियां यथार्थ को समायोजित कर पाने में अक्षम साबित हो रही थीं। परिणाम यह हुआ कि प्रचलित छन्दों, आंतरिक संगीत और प्रतीकात्मकता में व्यापक अंतर अपना कर गीत एक नए ढंग में सामने आने लगे। ये शैली गीत-तत्वों तक में नयापन लिए हुए थे। अभिव्यक्ति में नयेपन की तलाश वस्तुत: सृजनात्मकता प्रक्रिया का आधार बनीं। जो कुछ परिणाम आया वह नवगीत के नाम से प्रचलित हुआ। गीति-काव्य में नयापन दिखने लगा। इसी नव्यता के कारण गीत की संज्ञा के साथ नव उपसर्ग लगा। ताजा रचनाएं और अभिव्यक्ति के हिसाब से परिष्कृत रचना ही साहित्य में स्थान बना पाती है। इस हिसाब से देखें तो आगे चलकर नवगीत का कलेवर यही नहीं रहने वाला है जो आज दिख रहा है।

जो नवीन है वह नवगीत है

अभी तक नवगीतों की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं बन पाई है। देखा जाए तो यही नवगीत की विशेषता भी है। रागात्मकता के आयाम में रह कर प्रयोगधर्मिता का सम्मान, यही तो नवगीत का प्रयास हुआ करता है। वैसे, छंद, लय, तान, शैली तथा संवेदना-संप्रेषण में नव्यता हो, नवगीत का प्रारूप बन जाता है। गीत के कलेवर में सोच को प्रस्तुत करने के शिल्प में नूतनता को समझने के लिए जिस अंतर्दृष्टि की आवश्यकता होती है, वही नवगीतकारों को विशिष्टता और पहचान देती है। ऐसा नहीं है कि रचनाकर्म में नयेपन का ऐसा आह्वान कोई विशेष घटना है। हर काल में रचनाकार अपनी रचनाओं में नये तत्वों का समावेश करते रहे हैं। अलबत्ता, इस बार गीतों के साथ नव शब्द वैधानिक रूप से जुड़ा।

भाता है नवगीत

मेरे लिए रचनाकर्म विधा विशेष के प्रति आग्रह कभी नहीं रहा। किसी एक विधा से कोई विशेष लगाव नहीं होने के बावज़ूद मेरे लिए सहज संप्रेषण का माध्यम नवगीत ही है। बिंबात्मक सामयिकता ही नवगीतकारों को सामान्य गीतकारों से अलग करता है। इसी कारण मुङो व्यक्तिगत तौर पर नवगीत भाता है। इस तौर पर हंिदूी साहित्य में आज गजल की लोकप्रियता को देखा जा सकता है। नवगीतों के माध्यम से भी हर तरह की अनुभूतियों को स्वर दिया जा सकता है। नवगीतों में रचनाकार की बौद्धिक कसरत ही नहीं, उसके मन की साधना भी दिखती है। भावनाएं जब शब्द का रूप लेती हैं तो ही गीत आकार ले सकते हैं। नवगीत तो विद्रूपताओं को भी सरसता के साथ प्रस्तुत करने का माध्यम हैं। यही कारण है कि नवगीत आज के समाज की आवाज बन कर सामने आए हैं।

नवगीत महोत्सव के दूरगामी प्रभाव

वगीत महोत्सव आयोजन का रचनाकारों पर बड़ा ही दूरगामी प्रभाव पड़ा है और पड़ रहा है। जहां एक ओर नवोदितों में आत्मविश्वास व्यापा है तो वहीं वरिष्ठ रचनाकारों को अपने प्रयास अर्थवान प्रतीत हो रहे हैं। एक विधा के तौर पर भविष्य में नवगीत क्या प्रारूप अपना लेंगे, इसे अभी कहना जल्दबाजी होगी।

सौरभ पांडेय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2015 at 10:19pm

हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय मिथिलेश भाई जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 14, 2015 at 9:52pm
आदरणीय सौरभ पांडे सर, आपको बहुत बहुत बधाई।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2015 at 9:29pm

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय हरि प्रकाशजी..

Comment by Hari Prakash Dubey on January 14, 2015 at 9:13pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर ,हार्दिक बधाई आपको ! सादर !

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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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