कभी इस तरह से भी सोचा है क्या
भला ज़िन्दगी का भरोसा है क्या
यूँ रहता है जैसे यहाँ सदियों तक
रहेगा मगर ये तो धोका है क्या
नकाबों में दिल्ली है सरकारें दो
अजीबो गरीब ये तमाशा है क्या
अगर ना सियासत हो दिल्ली में तो
तभी कुछ किया जा भी सकता है क्या
दिवाली मनाई है दिल्ली ने भी
खुदा ने दिवाला निकाला है क्या
मौलिक एवम् अप्रकाशित