चंद क्षणिकाएँ :
मन को समझाने आई है बादे सबा लेकर मोहब्बत के दरीचों से वस्ल का पैग़ाम
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रात हो जाती है लहूलुहान काँटे हिज़्र के सोने नहीं देते तमाम शब
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रात जितने भी नींदों में ख़वाब देखे उतने सहर के काँधों पर अजाब देखे
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हया मोहब्बत में हो गयी बेहया
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याद में हो जाएंग…