2122 2122 2122 212
काँच के टुकडों में दे दे ज्यों कोई बच्चा मणी आधुनिकता में कहीं खोया तो है कुछ कीमती।
हुस्न की हर सू नुमाइश़ चल रही है जिस तरह बेहयाई दफ़्न कर देगी किसी की शायरी।
ताश, कन्चें, गुड्डा, गुड़िया छीन के घर मिट्टी के लाद दी हैं मासुमों पर रद्दियों की टोकरी।
अब कहाँ हैं गाँव में वें पेड़ मीठे आम के वे बया के घोसलें, वे जुगनुओं की रौशनी।
ले गयी सारी हया पश्चिम से आती ये हवा घाघरा…