प्रिय सुनो तुम्हारी भूल नहीं
अवसाद नहीं रखना मन में
यह मौसम ही अनुकूल नहीं
चुप चुप रहना कुछ न कहना कैसे होगा
जब चीख रहीं होगीं लाखों जिज्ञासाएं
क्यूँ है? कैसे है? और रहेगा कब तक यूँ ?
बस बुरे ख्यालों के बादल घिर घिर छाएँ
अब ऐसा भी तो नहीं
के मेरे दिल में चुभता शूल नहीं
मैं कहीं रहूँ इस दुनिया में रहता तो हूँ
पर सच कहता हूँ मन का रहता ध्यान वहीँ
क्या हुई भूल आखिर क्या ऐसा बोल दिया
करता रहता हू…