यूँ भी तक़दीर बदलते हैं यहाँ लोग गिर गिर के संभलते है यहाँ। दोस्तों ! इक ज़रा मतलब के लिए लोग चेहरों को बदलते है यहाँ। माईले हिर्सो हवस है कितने देख कर ज़र को फिसलते है यहाँ। आँख की पुतली फिरे फिर शायद लोग पल भर में बदलते है यहाँ। ग़ैर की बात नहीं ऐ लोगों ज़हर अपने भी उगलते है यहाँ। क्या बिगाड़ेगी हवाये उनका वो जो तूफान में पलते है यहाँ। रोशनी बस वही फैलाते है जो दीये की तरह जलते है यहाँ। कितने…