ग़ज़ल श्री गिरिराज भंडारी जी की नज्र ... गुज़ारिश थी, कि तुम ठोकर न खाना अब चलो दिल ने, कहा इतना तो माना अब न काम आया है उनका मुस्कुराना अब यकीनन चाल तो थी कातिलाना .... अब ? ये दिल तो उन पे अब फिसला के तब फिसला ये तय जानो, नहीं इसका ठिकाना अब
जो दानिशवर थे सब नादान ठहरे हैं ये किसका दर है, तुमको क्या बताना अब
ये मौसम खूबसूरत था ये माना पर वो आये तो हुआ है शायराना अब तुम्हारा मुन्तजिर इ…