माँ
ज़िक्र त्याग का हुआ जहाँ माँ!
नाम तुम्हारा चलकर
आया।
कैसे तुम्हें रचा विधना ने
इतना कोमल इतना स्नेहिल!
ऊर्जस्वित इस मुख के आगे
पूर्ण चंद्र भी लगता धूमिल।
क्षण भंगुर भव-भोग सकल माँ!
सुख अक्षुण्ण तुम्हारा
जाया।
दिया जलाया मंदिर-मंदिर
मान-मनौती की धर बाती।
जहाँ देखती पीर-पाँव तुम
दुआ माँगने नत हो जाती।
क्या-क्या सूत्र नहीं माँ तुमने
संतति पाने को
अपनाया।
गुण करते गुणगान तुम्हा…