22 22 - 22 22 - 22 22 - 22 2
ऐ सरहद पर मिटने वाले तुझ में जान हमारी है
इक तेरी जाँ-बाज़ी उनकी सौ जानों पर भारी है
अपने वतन की मिट्टी हमको यारो जान से प्यारी है
ख़ाक-ए-वतन बेजान नहीं ये इस में जान हमारी है
एक ज़रा सा टुकड़ा क्या मैं मुट्ठी भर मिट्टी न दूं
इसके ज़र्रे - ज़र्रे में ही जीवन की फुलवारी है
जिस्म हमारे ढाल वतन की और निगहबाँ हैं आँखें
इसकी हिफ़ाज़त बोझ न…