क्या ही तुझ में ऐब निकालूँ क्या ही तुझ पर वार करूँ ये तो न होगा फेर में तेरे अपनी ज़ुबाँ को ख़ार करूँ. . हर्फ़ों से क्या नेज़े बनाऊँ क्या ही कलम तलवार करूँ बेहतर है मैं ख़ुद को अपनी ग़ज़लों से सरशार करूँ. . ग़ालिब ही के जैसे सब को इश्क़ निकम्मा करता है लेकिन मैं भी बाज़ न आऊँ जब भी करूँ दो चार करूँ. . चन्दन हूँ तो अक्सर मुझ से काले नाग लिपटते हैं मैं भी शिव सा भोला भाला सब को गले का हार करूँ. . सब से उल…