बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी मिलेसंत सारे बक रहे वाही-तबाही लंठ बन धर्म सम्मेलन में अब दंगों की तैयारी मिलेरोशनी बाँटी जिन्होंने…See More
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।
//मक्ते का अपना सानी "रोटियाँ ख़्वाबों में और आँखों में पानी लिखना" वाला है।//.... जी…"
"आपने अन्यथा आरोपित संवादों का सार्थक संज्ञान लिया, आदरणीय तिलकराज भाईजी, यह उचित है.
मैं ही नहीं कोई सदस्य जो ओबीओ की व्यवस्था और परंपरा से जानकार है, वह इस तरह की चर्चाओं और वैयक्तिक इंगित…"
"आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी जी, आपने बहुत शानदार ग़ज़ल कही है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं। मतला और हुस्न ए मतला भी खूब हुआ है। गिरह के लिए भी बधाई। सादर"
"आदरणीय जयहिंद जी, अपनी समझ अनुसार मिसरे कुछ यूं किए जा सकते हैं। दिल्लगी के मात्राभार पर शंका है। बाकी गुणीजन बताएंगे। मैने अभ्यास के क्रम में प्रयास किया है
दफ़'अ सौ सोचना ये दिल्लगी की…"