चित्र से काव्य तक

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'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ उनहत्तरवाँ योजन है।.   

 

छंद का नाम  -  कुण्डलिया छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

19 जुलाई’ 25 दिन शनिवार से

20 जुलाई 25 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

कुण्डलिया छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

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आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -  19 जुलाई’ 25 दिन शनिवार से 20 जुलाई 25 दिन रविवार तक  रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
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  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
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  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

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    Chetan Prakash

    रिमझिम-रिमझिम बारिशें, मधुर हुई सौगात। 

    टप - टप  बूंदें  आ  गिरी,  बादलों से प्रभात ।।

    बादलों  से  प्रभात,  घूमते  शिमला  सैलानी ।

    छाते  लेकर  हाथ,  साथ   सजनी   जेठानी ।।

    बाज  रहा  संगीत , बूंद  बूंद  अभी  मद्धिम ।

    साथ मधुरता साज, हो रही वर्षा रिमझिम। ।

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      Ashok Kumar Raktale

      कुण्डलिया

      *

      पानी-पानी  हो  गया, जब आयी बरसात।

      सूरज बादल में छिपा, दिवस हुआ है रात।।

      दिवस हुआ है रात, नज़र भी कम-कम आता।

      भागे  जाते  लोग, खोलकर सिर पर छाता।

      उड़कर  आती  बूँद, लगे  हर  एक  सुहानी।

      भीगी   जाती   देह,  हुई    है  पानी-पानी।

      *

      भूलें  भी  कैसे  उसे,  जब  आती बरसात।

      बातों-बातों में निकल, आती उसकी बात।।

      आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा।

      वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा।

      देख  सामने  होंठ, चाहते  उसको  छू लें।

      पीकर हम दो घूँट, सभी कुछ पलभर भूलें।। 

      #

      ~ मौलिक/ अप्रकाशित.

       

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        pratibha pande


        कुण्डलिया छंद 
        _____
        सावन रिमझिम आ गया, सड़कें बनतीं ताल।
        पैदल लोगों का हुआ, बड़ा बुरा है हाल।।
        बड़ा बुरा है हाल, सँभालें तन या छाता।
        हर वाहन बौछार, छोड़कर उनपर जाता।।
        कविवर रचते गीत,कहें सावन मनभावन।
        सड़कें हैं भयभीत,  बतातीं क्या है सावन।।
        ________
        ढोल बजाते मेघ हैं, और मचाते शोर।
        सीना ताने हैं खड़े, छाते भी इस ओर।।
        छाते भी इस ओर, तने हैं सर पर जमकर।
        सर पर इनका हाथ, रहे क्यों कोई डरकर।।
        पर वर्षा के बाद, बिसर जाते हैं छाते।
        करते हैं सब पूछ, मेघ जब ढोल बजाते।।
        ___
        छाता लें रंगीन या, लेकर आयें श्याम।
        दो मौसम में आपके,आयेगा यह काम।।
        आयेगा यह काम, बड़ा है सहज सलोना।
        टँगनें को बस एक, माँगता छोटा कोना।।
        इसके नीचे पास, सजन सजनी के आता।
        बिन बोले ही काम, कई कर जाता छाता।।
        ____
        मौलिक व अप्रकाशित 
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