"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
प्रस्तुत है.....
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124
विषय : प्रतिशोध
अवधि : 30-07-2025 से 31-07-2025
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अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
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आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन बेचारे गौरैया युगल का भी। जब मैंने कबूतरों को पर्याप्त दाना-पानी बालकनी में चुगा दिया था, तो फ़िर उन्होंने गौरैया चिड़ा -चिड़ी को दाने चुगने क्यों नहीं दिये। मेरे लाड़-प्यार और सेवा से मेरी बालकनी को अपना अड्डा मान लिया उस कबूतर के जोड़े ने। अपने ही बच्चों को दाना चुगने देते हैं, बाक़ी सबको पंख फड़फड़ा कर या चोंच से डराकर भगा देते हैं। आज फ़िर ऐसा ही किया। चिड़ा-चिड़ी ज़मीन पर पड़े कुछ ही दाने चुग पाये। गौरैया पक्षी आखिर कबूतरों से इतना डरते क्यों हैं?
26 जुलाई, 2025
आज मैंने कबूतरों का दाना तो डाला, लेकिन कमरे के अंदर। जैसे ही उन्होंने प्रवेश किया, मैंने कमरे के दरवाज़े बंद कर दिये। फ़िर खिड़की से बालकनी में रखे दीपकों में दाने डाल दिए गौरैया चिड़ा-चिड़ी के लिए। लेकिन कबूतर कटोरियों को केवल निहारते रहे जैसे कि बहुत भूखे हों। लेकिन उन्होंने एक भी दाना नहीं खाया। पंख फड़फड़ाते कभी फुदके, कभी उड़ते रहे कमरे के एक छोर से दूसरे छोर तक भागने के रास्ते तलाशने। जब वे हॉंफने-से लगे, मैंने दरवाज़ा खोल दिया। पलक झपकते ही वे राकेट-सी गति से उड़ गए बाहर की ओर। खिड़की के कॉंच से गौरैया का जोड़ा अंदर के नज़ारे देखता रहा, ये मुझे तब पता चला, जब मेरे द्वारा दरवाज़ा खोलने पर वे चिड़ा-चिड़ी भी खिड़की की तरफ़ से ही तेज़ गति से उड़े। दाना उन्होंने भी नहीं खाया था। मुझ पर भरोसा उठ गया था उनका या कोई और वज़ह?
27 जुलाई, 2025
आज मैंने बालकनी में दाने नहीं रखे। केवल कमरे में ही कटोरियों में रखे। दरवाज़ा खुला रखा। देखना था कि कौन, कब आता। पहले कबूतर आते या गौरैया युगल! काफ़ी देर हो गई, कोई नहीं आया। क्या वे सब नाराज़ हो गये मुझसे? क्या पक्षी-समाज के छोटे-बड़ों के नियम नहीं समझ पाया मैं? क्या पक्षी भी मनुष्य से.....?
Admin
स्वागतम
Jul 30
Sheikh Shahzad Usmani
Jul 30