एक ग़ज़ल -कठुआ की आसिफ़ा में नाम

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तेरी ख़ातिर कुछ न हम कर पाए प्यारी आसिफ़ा
क्या ये तेरी मौत है या फिर हमारी आसिफ़ा?   
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एक हम हैं जो लड़ाई देख कर घबरा गए
एक तू जो सब से लड़ कर भी न हारी आसिफ़ा.
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ऐ मेरी बच्ची, ज़मीं तेरे लिए थी ही नहीं
सो ख़ुदा भी कह पड़ा वापस तू आ री आसिफ़ा.
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हुक्मराँ इन्साफ़ देगा ये तवक़्क़ो है किसे
क़ातिलों की भी मगर आएगी बारी आसिफ़ा.
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इतनी लाशों से घिरा मैं लाश क्यूँ होता नहीं  
सोच कर क्यूँ तुझ को मेरा दिल है भारी आसिफ़ा.
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वो दरिन्दे गर मुझे मिल जाएँ, उन के सीने में
ये कलम मैं घोंप दूँ कर के कटारी आसिफ़ा..
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निलेश "नूर"

मौलिक / अप्रकाशित 

आग्रह:  जब एक आठ साल की बच्ची के बलात्कार और हत्या की  दास्तान सुनी तो मैं ख़ुद को उस के शव पर श्रद्धा सुमन चढाने से नहीं रोक पाया और भावावेश में ये ग़ज़ल कही है. मुझे लगा कि एक समाज के रूप में जहाँ  हम लाशों जैसा व्यवहार कर रहे हैं वहीँ  कम से कम साहित्यकार को मौन नहीं रहना चाहिए.   ये मेरे नपुन्सक आक्रोश की अभिव्यक्ति है... कृपया इस के शिल्पगत दोषों को नज़रअंदाज़ करें. 

  • Samar kabeer

    जनाब निलेश 'नूर'साहिब आदाब ,'आसिफ़ा' को ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश करके आपने तमाम साहित्य जगत को जागरूक किया है,वाक़ई अब इन आँखों से ये दरिंदगी देखना मुहाल हो गया है,पता नहीं कब तक ये ज़ुल्म होता रहेगा और हम तमाशाई बने देखते रहेंगे :-

    "नफ़रतों के साँप कब तक यूँ ही फन फैलाएंगे

    ज़िन्दगी में क्या ख़ुशी के दिन कभी न आएंगे

    किस जगह जा कर रुकेगा ज़ुल्म का ये क़ाफ़िला

    कब तलक इंसान यूँ क़दमों में रौंदे जाएंगे"?

    इस ग़ज़ल पर आपको  सलाम पेश करता हूँ ।

  • Sheikh Shahzad Usmani

     एक गंभीर रचनाकार के रूप में अपना दायित्व निभाते हुए इस बेहतरीन श्रद्धांजलि और आह्वान के साथ सार्थक आग्रह के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया और आभार आदरणीय नीलेश शेव्गांवकर साहिब।  हार्दिक बधाई और आभार।

  • Sheikh Shahzad Usmani

    कम-से-कम आपने तो अपनी अनुभूति इतने अच्छे शिल्प में यहां आज ही तुरंत  शाब्दिक की। तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब नीलेश शेव्गांवकर साहिब।

  • Nilesh Shevgaonkar

    रचना की सराहना का आभार आ समर सर।

    कभी कभी बहुत घिन्न आती है इस समाज से जो बलात्कार जैसे घृणित कार्य मे भी मज़हबी और राजनैतिक एंगल ढूंढता है।

    निर्भया हो, उन्नाव हो  कठुआ हो, कई लोग प्रतिक्रिया सिर्फ इएलिये नहीं देते कि फुलां राज्य मव फुलां पार्टी की सरकार है।

    पता नहीं क्या होगा।

  • Nilesh Shevgaonkar

    आभार आ शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहब

    दो बेटियों का पिता हूँ, गुस्से से उबल पड़ता हूँ लेकिन आम आदमी कर क्या सकता है इस धार्मिक और राजनैतिक गिरोहों के खिलाफ जो गिरफ्ताररी तो दूर FIR तक नहीं होने द्व रहे हैं।

  • TEJ VEER SINGH

    बहुत मार्मिक एवम हृदय स्पर्शी गज़ल।हार्दिक बधाई नीलेश जी।

    ऐ मेरी बच्ची, ज़मीं तेरे लिए थी ही नहीं 
    सो ख़ुदा भी कह पड़ा वापस तू आ री आसिफ़ा.

  • Neelam Upadhyaya

    आदरणीय नीलेश जी, बहुत ही मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति । एक संवेदनशील हृदय वेदना की अनुभूति कर सकता है । ऐसी अनेक आसिफा के लिए इस से बेहतर श्रध्द्धांजली हो ही नहीं सकती ।

  • Nilesh Shevgaonkar

    आप सब ने ग़ज़ल पर आ कर अपनी संवेदनशीलता का परिचय दिया है, मैं आप की संवेदनाओं की अभिव्यक्ति भर हूँ ..
    आभार 

  • Harash Mahajan

    वाह आदरणीय नीलेश जी बहुत ही पीड़ा लिए अल्फासों से सजी आपकी ये कृति दिल पर अनायास ही एक दर्द छोड़ गई । एक सच उतार दिया सर ।

    अपने अहसास पटल पर लाकर आपने इस घृणित कार्य पर एक चोट का काम किया है । नमन

    सादर ।

  • Ajay Tiwari

    आदरणीय निलेश जी,

    जो कुछ हुआ है उसके लिए 'जघन्य' शब्द भी अपर्याप्त लगता है. आपकी इस ग़ज़ल ने उस हर आदमी की भावनाओं को स्वर दिया है जिस में थोड़ी भी संवेदनशीलता बाकी होगी. सबकी भावनाओं को स्वर देने के लिए हार्दिक आभार. 

    सादर

  • Ram Ashery

    अदरणीय नीलेश जी आपको इस हृदय स्पर्शी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो । हमारा समाज सो रहा है उन्हें जगाने के लिए अपने स्तर पर सभी को प्रयास करना होगा वरना आज असफ़ा कल कोई और इन दरिंदों का शिकार होता रहेगा । जब हमारी न्याय व्यवस्था जाति धरम और मजहब देखकर न्याय करती है । न्यायाधीस खुद को नहीं बचा पा रहें हैं तो समाज या देश का क्या होगा  

    खंजर के घाव तो एक न एक दिन भर जाएगें, 

    पर दिल में लगे शब्द बाण नसूर बन जाएगें 

    हर पल हमें मनहूस घड़ी की याद दिलाएगें

    जीने ,मरने नहीं देगें अपनों की याद दिलाएगें 

    मेरे समाज में दरिंदे हैं यह सबब छोड़ जाएगें 

    सादे लिबास में घूमते दरिंदों पहचान पाओगें ॥ 

  • लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

    आ. भाई नीलेश जी, बहुत ही मार्मिक रचना हुई है । हम सब के भावों को शब्द देने के लिए कोटि कोटि बधाई ।

  • Nilesh Shevgaonkar

    आप सब की संवेदनशीलता को नमन