भाषा बड़ी है प्यारी जग में अनोखी हिन्दी,
चन्दा के जैसे सोहे नभ में निराली हिन्दी।
पहचान हमको देती सबसे अलग ये जग में,
मीठी जगत में सबसे रस की पिटारी हिन्दी।
हर श्वास में ये बसती हर आह से ये निकले,
बन के लहू ये बहती रग में ये प्यारी हिन्दी।
इस देश में है भाषा मजहब अनेकों प्रचलित,
धुन एकता की डाले सब में सुहानी हिन्दी।
शोभा हमारी इससे करते 'नमन' हम इसको,
सबसे रहे ये ऊँची मन में हमारी हिन्दी।
आज हिन्दी दिवस पर
22 122 22 // 22 122 22 बहर में
मौलिक व अप्रकाशित
Ravindra Pandey
बन के लहू ये.......
अत्यंत सुन्दर अभिव्यक्ति...
हार्दिक बधाई स्वीकार करें...
Sep 14, 2017
KALPANA BHATT ('रौनक़')
सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय | बधाई स्वीकारें |
Sep 14, 2017
Afroz 'sahr'
Sep 14, 2017
Niraj Kumar
आदरणीय बासुदेव जी,
हिंदी दिवस पर हिंदी पर ग़ज़ल के लिए हार्दिक धन्यवाद.
एक जिज्ञासा ये कि ये बह्र कौन सी है?
सादर
Sep 14, 2017
Samar kabeer
Sep 14, 2017
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Sep 14, 2017
अलका 'कृष्णांशी'
सुन्दर अभिव्यक्ति , बधाई आदरणीय
Sep 14, 2017
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
Sep 15, 2017
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
ग़ज़ल की बहर
22 122 22 // 22 122 22 बहर में
Sep 15, 2017
Niraj Kumar
आदरणीय बासुदेव जी,
अरकान तो मैंने देख लिए थे मेरा मतलब इस बह्र के नाम से था. अरकान देखने से यह मुतकारिब मुसद्दस मुजायफ़ की कोई महजूफ बह्र लगती है लेकिन मुतकारिब मुसद्दस की कोई महजूफ बह्र मेरी जानकारी में ऐसी नहीं है जिसके अरकानों का क्रम ऐसा हो.
सादर
Sep 15, 2017
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
यह शायद स्टेंडर्ड बहरों में से नहीं है।
Sep 15, 2017
Niraj Kumar
आदरणीय बासुदेव जी,
मैंने अपनी जानकारी के लिए पूछा था शायद जनाब समर कबीर साहब कुछ प्रकाश डाल सकें.
सादर
Sep 15, 2017