रेंगती मौत : आधी कविता

चला जाता हूँ/ उस सड़क पर जहां लिखा होता है- "आगे जाना मना है।" मुझे खुद के अंदर घुटन होती है मैं समझता हूँ लूई पास्चर को, जिसने बताया की करोड़ों बैक्टिरिया हमें अंदर ही अंदर खाते हैं पर वो लाभदायक निकलते है इसलिए वो मेरी घुटन के जिम्मेदार नही हैं कुछ और है जो मुझे खाता है/ चबा-चबा कर। आपको भी खाता होगा कभी शायद नींद में/जागते हुए/ या रोटी को तड़फते झुग्गी झोंपड़ियों के बच्चों को निहारती आपकी आँखों को …धूप , नही आयगी उस दिन दीवारें गिर चुकी होंगी या काली हो जाएँगी/आपके बालों की तरह आप उन पर गार्नियर या कोई महंगा शम्पू नही रगड़ पाओगे आप की वो काली हुई दीवार इंसान के अन्य ग्रह पर रहने के सपने को और भी ज्यादा/ आसान कर देगी। अगर आपको भी है पैर हिलाने की आदत, तो हो जाएं सावधान 'सूरज' कभी भी फट सकता है ; दो रुपये के पटाके की तरह और चाँद हंसेगा उस पर तब हम, गुनगुनाएंगे हिमेश रेशमिया का कोई नया गाना। तीन साल की उम्र तक आपका बच्चा नहीं चल रहा होगा तो …आप कुछ करने की बजाए कोसेंगे बाइबिल और गीता को क्या आपको पता है? मौत हमेशा रेंगकर आती है? हाँ लेकिन उसका रेंगना देखेंगे तब तक आपका बैडरूम बदल चूका होगा एक तहखाने में और आप कुछ नही कर पाओगे। आपकी तरह मेरा दिमाग या मेरा आलिंद-निलय का जोड़ा, सैकड़ों वर्षों से कोशिश करता रहा है कि जब मृत्यु घटित होती है, तो शरीर से कोई चीज बाहर जाती है या न्हीं? आपके शरीर पर कोई नुकीला पदार्थ खरोंचेगा ..और अगर धर्म; एक बार पदार्थ को पकड़ ले, तो विज्ञान की फिर कोई भी जरूरत नहीं है। मैं मानता हूँ कि हम सब बौने होते जा रहे है/कल तक हम सिकुड़ जायेंगे/तब दीवार पर लटकी आइंस्टीन की एक अंगुली हम पर हंसेगी। और आप सोचते होंगे कि मैं कहाँ जाऊंगा? मैं सपना लूंगा एक लंबा सा/उसमें कोई "वास्को_डी गामा" फिर से/ कलकत्ता क़ी छाती पर कदम रखेगा और आवाज़ सुनकर मैं उठ खड़ा हो जाऊंगा एक भूखा बच्चा, रेंगती मौतों के स्टेडियम में, वियतनाम की खून से सनी एक गली में /अपनी माँ को खोज लेता है/उस वक़्त ऐश्वर्या राय अपने कमरे (मंगल ग्रह वाला) में सो रही है और दुबई वाला उसका फ्लैट खाली पड़ा है मेरे घर में चीनी खत्म हो गयी है ..मुझे उधार लानी होगी ..इसलिये बाक़ी कविता कभी नही लिख पाउँगा। (हालांकि आपका सोचना गलत है) -कत्ले आम। (यह घोर चिंता की विषय है) कवि बृजमोहन स्वामी "बैरागी" [मौलिक एवम् अप्रकाशित]
  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. बैरागी जी,

    कालीकट कर लें कलकत्ता को .... पूरे भारत की चौडाई के भूगोल का अंतर है दोनों में ..
    सादर 

  • बृजमोहन स्वामी 'बैरागी'

    मान्यवर;Nilesh Shevgaonkar जी, मैने यहां वर्तमान कालिक परिदृश्य दर्शन के लिए "कलक्त्ता" लिखा है। कालीकट से तो उस वक़्त के भारत की झांकी पेश हो जाती जहां (लगभग) नार्मल सा था (आज की अपेक्षा) कालीकट और कलकत्ता में भौगोलिक के साथ साथ जो भावनाओं का जो अंतर है , उसे दर्शाने की कोशिश की है।

    लेकिन आप की बात भी सही है आ० Nilesh Shevgaonkar जी।
    धन्यवाद।
  • Mohammed Arif

    आदरणीय बृजमोहन स्वामी जी आदाब, आपकी लंबी कविता पढ़ी । शुरू-शुरू में तो बांँधने का बहुत अच्छा प्रयास किया आपने लेकिन पता नहीं क्यों भावों के अलग-अलग जाल में कहाँ से कहाँ ले गईंं । शायद भावों के उतावलेपन में लंबी सैर पर ले गईं । पढ़ने में भी बड़ा मज़ा देती है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
  • बृजमोहन स्वामी 'बैरागी'

    माननीय मोहम्मद आरिफ जी, शुक्रिया आपका। मेरी साइज़ो को झेलने के लिए।
    आपको सादर नमस्कार। आदाब।
    आपका बड़प्पन है जी।
    मैं इसी टाइप से कवईता लिखा करता हु अक्सर।
    मैं साइज़ोफ्रेनिक पोएट्री विधा में ज्यादा लिखा हूँ।
    आपका 1 किल्लो आभार।
  • Nilesh Shevgaonkar

    मान्यवर;Nilesh Shevgaonkar जी, मैने यहां वर्तमान कालिक परिदृश्य दर्शन के लिए "कलक्त्ता" लिखा है। कालीकट से तो उस वक़्त के भारत की झांकी पेश हो जाती जहां (लगभग) नार्मल सा था (आज की अपेक्षा) कालीकट और कलकत्ता में भौगोलिक के साथ साथ जो भावनाओं का जो अंतर है , उसे दर्शाने की कोशिश की है।


    आदरणीय तो फिर वास्को-द-गामा की जगह क्रिस्टोफर कोलंबस भी कर देते :))))

  • Samar kabeer

    जनाब बृजमोहन स्वामी"बैरागी"जी आदाब, आपकी आधी कविता पढ़ी आनन्द भी आया,आपने जिस तरह कविता में दानिशवरों के नाम इस्तेमाल किये हैं उससे पता चलता है कि आपने इन सबको ख़ूब पढ़ा होगा ।
    "आपको पता है,
    मौत हमेशा रेंग कर आती है'
    इस पंक्ति पर मुझे ऐतिराज़ है, मौत हमेशा रेंग कर तो नहीं आती ?इसमें मुझे "हमेशा"शब्द पर ऐतिराज़ है, बाक़ी आपका लेखन प्रभावित करता है,इसके लिये आपको मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
  • बृजमोहन स्वामी 'बैरागी'

    मौत हमेशा रेंगकर आती है ....
    क्योंकि दुनिया में एक भी ऐसा मज़हबी दानिशवर (बुध्दिजीवी) नहीं मिला, जो तासीर के ...मुताबिक ठंडा हो।
    (ठंडे शब्द को गहराई से लीजिये)

    हाँ जी samar kbeer ji आपका धन्यवाद।
    और रही बात मौत के रेंगकर या न रेंगकर आने की
    तो आपसे अनुरोध है की इसे समझने से पहले आप कृपया
    आइजक डिज़रैली की महान किताब "लेखकों के झगड़े" पढ़ लीजिये।

    धन्यवाद अगेन।