ग़ज़ल - जीत गाएगी थोड़ा सबर कीजिए - पूनम शुक्ला

2122. 1221. 2212 जा चुकी यामिनी मुश्तहर कीजिए हो सके अब तो थोड़ा सहर कीजिए भेज दें गंध जो भी हो आकाश में गुलशनों को कहीं तो खबर कीजिए हर तरफ आग ही आग जलती तो है तान सीना उसे बेअसर कीजिए झूठ की आज चारों तरफ जीत है सत्यता की कहानी अमर कीजिए जुल्म की रात हरदम डराती हमें जालिमों का खुलासा मगर कीजिए तीरगी घेर ले गर कभी राह में. अश्क से फिर न दामन यूँ तर कीजिए. रेत सी जिन्दगी हाथ आती नहीं पत्थरों पर लिखा कुछ मगर कीजिए रोशनी आने से फिर भी शरमाती हो जानकर इनको बारे- दिगर कीजिए एक आवाज़ आएगी आकाश से बात इतनी हमारी अगर कीजिए इम्तेहाँ हर कदम में तो आते ही हैं जीत गाएगी थोड़ा सबर कीजिए जिन्दगी का दुखों से सरोकार है हो सके गर बसर तो बसर कीजिए पूनम शुक्ला मौलिक एवं अप्रकाशित
  • लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

    आदरणीया, पूनम जी एक भावपूर्ण ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई

  • annapurna bajpai

    बहुत खूब , आ0 पूनम जी  sundआर भाव पूर्ण गजल के लिए बधाई । 

  • Sarita Bhatia

    वाह पूनम जी खुबसूरत 

  • जितेन्द्र पस्टारिया

    इम्तेहाँ हर कदम में तो आते ही हैं
    जीत गाएगी थोड़ा सबर कीजिए

    जिन्दगी का दुखों से सरोकार है
    हो सके गर बसर तो बसर कीजिए

    बहुत सुंदर भावपूर्ण गजल आदरणीया पूनम जी, आपको हार्दिक बधाई

  • बृजेश नीरज

    बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

  • अनिल कुमार 'अलीन'

    जुल्म की रात हरदम डराती हमें
    जालिमों का खुलासा मगर कीजिए................बहुत खूब आदरणीया!