दोहा- 9 (प्रेम पियूष)

पूर्ण चाँदनी रात है, अगणित तारे संग !
अब विलम्ब क्यों है प्रिये , छेड़ें प्रेम प्रसंग!!

कनक बदन पर कंचुकी ,सुन्दर रूप अनूप !
वाणी में माधुर्य ज्यों , सरदी में प्रिय धूप !!

अद्भुत क्षण मेरे लिए,जब आये मनमीत !
ह्रदय बना वीणा सरस ,गाता है मन गीत !!

प्रेम न देखे जाति को ,सच कहता हूँ यार !
यह तो सुमन सुगंध सम ,इसका सहज प्रसार !!

विरह सिंधु में डूबता ,खोजे मिले न राह !
विकल हुआ अब ताकता,मन का बंदरगाह !!

प्रेम सुधाकर हैं उदित ,छेड़ सुहाने तान !
अधरों पर फिर से खिली ,वही मधुर मुस्कान !!


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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

  • डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव

    पाठक जी

    एक उदहारण देता  हूँ-यदि आप शर्दी  को सरदी लिखते

    तो ११ मात्राए भी होती और शब्द भी कुछ बेहतर  होता i   

    वैसे दोहे आपके अर्थपूर्ण है i  मुझे  अच्छे लगे i  

  • Shyam Narain Verma

    बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..
  • SANDEEP KUMAR PATEL

    क्या बात है भाई ....................बहुत सुन्दर दोहे रचे हैं आपने

    बहुत बहुत बधाई स्वीकारिये


  • सदस्य कार्यकारिणी

    गिरिराज भंडारी

    आदरणीय राम भाई , सभी दोहे बहुर सुन्दर रचे है आपने , आपको ढेरों बधाइयाँ !!!!

  • अरुन 'अनन्त'

    वाह अनुज क्या बात है बेहद सुन्दर दोहावली रची है आपने पूर्णतया प्रेम रस में डूबकर बधाई स्वीकारें.

  • ram shiromani pathak

    बहुत बहुत आभार आदरणीय गोपाल जी। ।सादर///////// सरदी सही शब्द है क्या ??
  • ram shiromani pathak

    बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम जी। ।सादर//
  • ram shiromani pathak

    बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई संदीप जी। ।सादर//
  • ram shiromani pathak

    बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी। ।सादर//
  • ram shiromani pathak

    बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई अरुण शर्मा जी। ।सादर//
  • जितेन्द्र पस्टारिया

    अति सुंदर, प्रेम रस में डूबी हुयी दोहावली रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय राम भाई

  • ram shiromani pathak

    बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई जितेन्द्र 'गीत' जी। ।सादर/
  • विजय मिश्र

    राम शिरोमणि जी , जबरदस्त झटका है प्रेम का , भाव वर्षा में इतने भीगे की पूर्ण चाँदनी रात में अगणित तारे भी छिटका दिए |भाई बधाई ,दोहे मदमत्त हैं |
  • Sarita Bhatia

    प्रेम से सराबोर दोहे भाई बधाई 

  • रमेश कुमार चौहान

    वाह पाठकजी वाह, बहुत ही सुंदर दोहे , इस प्रस्तुति पर बधाई

  • ram shiromani pathak

    बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय मिश्रा जी ... सादर 

  • ram shiromani pathak

    बहुत बहुत आभार आदरणीय रमेश जी ... सादर 

  • ram shiromani pathak

    बहुत बहुत आभार आदरणीया सरिता  जी ... सादर 

  • अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

    एक से बढ़कर एक भावपूर्ण दोहे । बधाई राम भाई।

  • ram shiromani pathak

    बहुत बहुत आभार आदरणीय  अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव  जी ... सादर 


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Dr.Prachi Singh

    शालीन शृंगार का सुन्दर निर्वहन 

    शब्द कथ्य भाव शिल्प सब पर सुन्दर लगे दोहे 

    बहुत बहुत बधाई 

    शर्दी..इस शब्द को सही कर लें 

  • ram shiromani pathak

    बहुत बहुत आभार आदरणीया प्राची जी। ।सादर 

  • vijay nikore

    बहुत ही मनोहारी दोहे लिखे हैं, आदरणीय राम जी।

     

    सादर,

    विजय निकोर

  • ram shiromani pathak

    बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी  ... सादर 


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    पूर्ण चाँदनी रात है, अगणित तारे संग !
    अब विलम्ब क्यूँ हो प्रिये ,छेड़ो प्रेम प्रसंग !!
    अब विलम्ब क्यों हो प्रिये  है तो छेड़ें प्रेम प्रसंग अधिक उचित होगा. यदि अब विलम्ब क्यों है प्रिये  तो छेड़ो प्रेम प्रसंग होगा. सही पद का चयन कर लें. क्यूँ  न लिखा करें, यह शास्त्रीय शब्द नहीं है.

    कनक बदन पर कंचुकी ,सुन्दर रूप अनूप !
    वाणी में माधुर्य ज्यों ,शर्दी में प्रिय धूप !!
    कनक बदन पर कंचुकी .. :-)) .. जय हो..
    शर्दी  को सरदी करियो भाई ! प्रिय धूप  सरदी या सर्दी में ! या, नम धूप !!.. :-))

    अद्भुत क्षण मेरे लिए,जब आये मनमीत !
    ह्रदय बना वीणा सदृश ,गाता है मन गीत !!
    सदृश  को सरस कहें तो बात और उभर कर आयेगी. बढिया दोहा प्रयास.

    प्रेम न देखे जाति को ,सच कहता हूँ यार !
    यह तो सुमन सुगंध सम ,इसका सहज प्रसार !!
    देखियेगा भाई.. आसार ठीक बने रहें आपके लिए... :-)))))))))))))))))))))))

    प्रेम सिंधु में डूबता ,खोजे मिले न राह !
    विकल हुआ अब ताकता,मन का बंदरगाह !!
    ए भाई.. प्रेम सिंधु में डूबा हुआ क्यों विकल होगा ? या, क्यों विकल हो कर मन के बंदरगाह की ओर ताकेगा ? वो प्रेम सिंधु में ही डूब रहा है न..!! प्रेम के सात्विक स्वरूप को झुठलाता हुआ या उस पर प्रश्न चिह्न लगाता हुआ कथ्य है यह. सॉरी.

    प्रेम सुधाकर उदित हैं ,छेड़ सुहाने तान !
    अधरों पर फिर से खिली ,वही मधुर मुस्कान !!
    पहला विषम चरण अशुद्धता के बहुत निकट है. उदित  के त्रिकल से शब्द के संयोजन का उचित ढंग से निर्वाह नहीं हो रहा है. उदित है  की जगह है उदित अधिक उचित होता. ऐसा मैं क्यों कह रहा हूँ ???

    बधाई इस प्रस्तुति पर. किन्तु सुझावों पर दृष्टि डालेंगे ऐसी आशा है.
    शुभ-शुभ

  • ram shiromani pathak

    आदरणीय सौरभ जी आपके इन अमूल्य सुझावों का मै ह्रदय से स्वागत करता हूँ... आपका  अनुमोदन  व्  सुझाव  सदैव  कुछ न  कुछ  सीखा  जाता  है  … ऐसे  ही मार्गदर्शन करते रहे आदरणीय। । सादर प्रणाम    


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    आपने मेरी टिप्पणी को कायदे से पढ़ा भी, रामभाईजी ? 

    यदि हाँ, तो फिर आप क्या समझे मेरी टिप्पणी से यह तो आपने साझा किया ही नहीं. मैंने अंतिम दोहे के संदर्भ में एक प्रश्न भी किया है उसके प्रति कुछ न कहना आपके नकार भाव को ही साझा कर रहा है.

    भइये, ऐसा आभार संप्रेषण किस काम का कि कोई स्पष्ट समझ साझा न हो ?

    यदि वाह-वाह का आग्रह इतना संघनीभूत है, जैसा कि कई बार मुझे प्रतीत होता है, तो मैं भी आगे से आपके हर कहे पर ’बहुत खूब’, ’वाह-वाह’ कह कर निकल जाऊँगा, जैसा कि कई जगहों पर कई स्वनामधन्यों के पोस्ट पर करने को बाध्य हो जाता हूँ. आपसब भी मस्त और मैं भी खुश ! 

    आपभी इस मंच की प्रस्तुतियों पर जिस तरह की टिप्पणियाँ करते हुए दीखते हैं, वह कोई शुभ संकेत नहीं है.

    शुभ-शुभ

  • ram shiromani pathak

    आदरणीय सौरभ जी आपकी प्रतिक्रया के एक एक शब्द मै ध्यान  से पढ़ता हूँ …ऱहि  बात  वाह  वाही कि तो मै इससे बचता हूँ। …आप सदैव सही व् उचित  मार्गदर्शन करते रहे  है आदरणीय। ।और मै अब वाह वाही के लिए नहीं लिखता। … आपकी प्रतिक्रिया जब आती है तब जाकर संतुष्टि  मिलती  है कि मै कितने  पानी  में हूँ, कहाँ गलती हुई,और क्या सुधार किया  जा सकता है   । ।इतना तो ज्ञात है कौन कितना सोचता है और किस तरह  का  कमेंट  करता है ///अतः आप से यही निवेदन है मेरा सदा मार्गदर्शन करते रहें ,मुझे सीखना है और आगे बढ़ना है //// सादर प्रणाम