by Sushil Sarna
Sep 15
दोहा पंचक. . . . इसरार
लब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल ।।
रुखसारों पर रह गए, कुछ ऐसे अल्फाज ।तारीकी के खुल गए, वस्ल भरे सब राज ।।
जुल्फों की चिलमन हटी ,हया हुई मजबूर ।तारीकी में लम्स का, बढ़ता रहा सुरूर ।।
ख्वाब हकीकत से लगे, बहका दिल नादान ।बढ़ी करीबी इस कदर, मचल उठे अरमान ।।
खामोशी दुश्मन बनी , टूटे सब इंकार ।दिल ने कुबूल कर लिए, दिल के सब इसरार ।।
सुशील सरना / 15-9-25
मौलिक एवं अप्रकाशित
Cancel
दोहा पंचक. . . . .इसरार
by Sushil Sarna
Sep 15
दोहा पंचक. . . . इसरार
लब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।
उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल ।।
रुखसारों पर रह गए, कुछ ऐसे अल्फाज ।
तारीकी के खुल गए, वस्ल भरे सब राज ।।
जुल्फों की चिलमन हटी ,हया हुई मजबूर ।
तारीकी में लम्स का, बढ़ता रहा सुरूर ।।
ख्वाब हकीकत से लगे, बहका दिल नादान ।
बढ़ी करीबी इस कदर, मचल उठे अरमान ।।
खामोशी दुश्मन बनी , टूटे सब इंकार ।
दिल ने कुबूल कर लिए, दिल के सब इसरार ।।
सुशील सरना / 15-9-25
मौलिक एवं अप्रकाशित