दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरार

लब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।
उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल ।।

रुखसारों पर रह गए, कुछ ऐसे अल्फाज ।
तारीकी के खुल गए, वस्ल भरे सब राज ।।

जुल्फों की चिलमन हटी ,हया हुई मजबूर ।
तारीकी में लम्स का, बढ़ता रहा सुरूर ।।

ख्वाब हकीकत से लगे, बहका दिल नादान ।
बढ़ी करीबी इस कदर, मचल उठे अरमान  ।।

खामोशी दुश्मन बनी , टूटे सब इंकार ।
दिल ने कुबूल कर लिए, दिल के सब इसरार ।।

सुशील सरना / 15-9-25

मौलिक एवं अप्रकाशित