कुंडलिया

पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।

युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।

घुसें समझ कर सौड़ , सौड़ काँटों का बिस्तर ।

लालच के वश होत , स्वर्ग सा जीवन बदतर ।

खाते सब 'कल्याण', भाग्य का नभ थल जलचर ।

जब देते भगवान , नहीं फिर लगता पलभर ।

मौलिक एवं अप्रकाशित


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में निबद्ध प्रस्तुत रचना अपनी भाषा हिंदी के बावजूद अपने क्रिया-विशेषण आंचलिक भाषा से उधार ले रही है। यह पुरानी हिंदी की रचनाओं का स्मरण कराती है जब हिंदी एक भाषा के तौर पर अपनी स्थापना के दौर से गुजर रही थी। अब ऐसी रचना-प्रक्रिया से बचने की ही सलाह नहीं दी जाती, बल्कि ऐसी भाषा को उचित भी नहीं माना जाता। 

    दूसरे, रचना में "सौड़’ शब्द का प्रयोग हुआ है। इस शब्द का अर्थ दिया जाना चाहिए था। कारण कि यह शब्द तुकान्तता-निर्धारण में प्रयुक्त होने के कारण रचना का एक महत्वपूर्ण शब्द है, जिसके अर्थ के लिए किसी तरह का कयास लगाया जाना कत्तई उचित नहीं होगा।

    हिंदी भाषा की रचनाओं, कृतियों में आंचलिक शब्दों का प्रयोग अमान्य नहीं है। परंतु, वे शब्द इस तरह से प्रयुक्त होने चाहिए कि उनके अर्थ वाचन-प्रवाह के क्रम में स्वतः स्पष्ट हो जायँ। ऐसा इस शब्द ’सौड़’ के साथ नहीं होता। 

    प्रस्तुति हेतु बधाइयाँ, आदरणीय सुरेश कयाण जी ..

    शुभ-शुभ 

  • सुरेश कुमार 'कल्याण'

    बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय 

    सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान 


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ?