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ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )

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मुझे दूसरी का पता नहीं 

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तुझे है पता तो बता मुझे, मैं ये जान लूँ तो बुरा नहीं

मेरी ज़िन्दगी यही एक है, मुझे दूसरी का पता नहीं

 

मुझे है यकीं कि वो आयेगा, तो मैं रोशनी में नहाऊंगा

कहो आफताब से जा के ये, कि यक़ीन से मैं हटा नहीं

 

कहे इंतिकाम उसे मार दे, कहे दिल मेरा उसे प्यार दे   

मेरा फ़लसफ़ा है अजीब जो, लगे है भला प भला नहीं

 

मुझे छोड़ जा मेरे साथ ही न सहारा दे न ही दे दवा

ये मेरे हबीब का दर्द है , मेरी साँस से ये जुदा नहीं   

 

न उमीद रख न उदास हो न दुआयें दे न ही बद दुआ 

जो कफ़स को तोड़ के उड़ गया, उसे भूल जा तू बुला नहीं

 

मैं जिया था खुद से ही बेखबर, कोई चीज थी जो नहीं है अब

मुझे खुद में डूब समझ मिली, रह-ए-जीस्त मुझको पता नहीं

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मौलिक एवं अप्रकाशित 

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  • सदस्य कार्यकारिणी

    गिरिराज भंडारी

    आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार 


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय है. 

    विशेषकर, निम्नलिखित अश’आर के लिए विशेष बधाइयाँ - 

    मुझे है यकीं कि वो आयेगा, तो मैं रोशनी में नहाऊंगा

    कहो आफताब से जा के ये, कि यक़ीन से मैं हटा नहीं

     

    न उमीद रख न उदास हो न दुआयें दे न ही बद दुआ 

    जो कफ़स को तोड़ के उड़ गया, उसे भूल जा तू बुला नहीं

    हार्दिक बधाइयाँ 

    शुभ-शुभ


  • सदस्य कार्यकारिणी

    गिरिराज भंडारी

    आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको पसंद आना , ये और कुछ अच्छा कहने के लिए हिम्मत बढ़ा रहा है , आपका आभार