"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको पसंद आना , ये और कुछ अच्छा कहने के लिए हिम्मत बढ़ा रहा है , आपका आभार
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"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह हू~ -
हक़ीक़त पचाना न था इतना आसां
हुआ सब पे सच का असर धीरे धीरे ...…"
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय है.
विशेषकर, निम्नलिखित अश’आर के लिए विशेष बधाइयाँ -
मुझे है यकीं कि वो आयेगा,…"
आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में…See More
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात। ........ धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन की बात .. गल शब्द वस्तुतः गला है.
जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।
जर्रा - जर्रा नींद…"
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में निबद्ध प्रस्तुत रचना अपनी भाषा हिंदी के बावजूद अपने क्रिया-विशेषण आंचलिक भाषा से उधार ले रही…"
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर थहराये हुए मन के हैं, जहाँ अदम्य जीजिविषा भी थक-हार कर निष्प्राण हो चुकी होती है। समाज की इकाई…"
"आदरणीय उस्मानी जी
डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये हैं।हार्दिक बधाई। पर इसमें से कथानक नहीं बन पाया,परिंदों की आदतों को लेकर एक चर्चा मात्र रह गया। शैली कोई भी…"