"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-44 - Open Books Online2024-03-28T13:53:19Zhttps://openbooks.ning.com/group/pop/forum/topics/44?groupUrl=pop&id=5170231%3ATopic%3A593108&feed=yes&xn_auth=noआभार....tag:openbooks.ning.com,2014-12-20:5170231:Comment:5967722014-12-20T18:30:57.154Zअरुण कुमार निगमhttps://openbooks.ning.com/profile/arunkumarnigam
<p><strong>आभार....</strong></p>
<p><strong>आभार....</strong></p> मदोदय कृपया संशोधित रचना पोस…tag:openbooks.ning.com,2014-12-20:5170231:Comment:5967712014-12-20T18:30:27.474Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p><b>मदोदय कृपया संशोधित रचना पोस्ट करने की कृपा करें सादर </b></p>
<p></p>
<p><span><strong>लें, जोड़ता हूँ हाथ देवी अब मुझे मत दीजिए</strong><br></br><strong>आकाशवाणी हो गई- “देवी इसे मत दीजिए</strong></span></p>
<p>इस श्वेत कपड़े ब्लेक मन की सत्यता बतला रहे</p>
<p>फिर से करेगा नाश ये हम इसलिए जतला रहे</p>
<p> </p>
<p>बस पाप का इसका घड़ा तो भर गया अब तारिये</p>
<p>इस लोक से <strong>निर्मुक्त</strong> हो, बरतन उठा के मारिये</p>
<p>अब रूप <strong>दुर्गा</strong> का धरो इस दैत्य का संहार…</p>
<p><b>मदोदय कृपया संशोधित रचना पोस्ट करने की कृपा करें सादर </b></p>
<p></p>
<p><span><strong>लें, जोड़ता हूँ हाथ देवी अब मुझे मत दीजिए</strong><br/><strong>आकाशवाणी हो गई- “देवी इसे मत दीजिए</strong></span></p>
<p>इस श्वेत कपड़े ब्लेक मन की सत्यता बतला रहे</p>
<p>फिर से करेगा नाश ये हम इसलिए जतला रहे</p>
<p> </p>
<p>बस पाप का इसका घड़ा तो भर गया अब तारिये</p>
<p>इस लोक से <strong>निर्मुक्त</strong> हो, बरतन उठा के मारिये</p>
<p>अब रूप <strong>दुर्गा</strong> का धरो इस दैत्य का संहार हो</p>
<p>ये है गलत पर इस तरह संसार का उद्धार हो”</p>
<p> </p>
<p>आकाशवाणी क्या सुनी देवी बनी फिर चण्डिका</p>
<p>ले हाथ में इक काठ की मोटी पुरानी डण्डिका</p>
<p><span>दो चार जमकर वार कर </span><strong>बोली यहाँ से</strong><span> भागना</span></p>
<p>इक नार अबला जग गई अब देश को है जागना</p> बार-बार इस नेट का, आना-जाना…tag:openbooks.ning.com,2014-12-20:5170231:Comment:5967702014-12-20T18:29:53.320Zअरुण कुमार निगमhttps://openbooks.ning.com/profile/arunkumarnigam
<p><strong>बार-बार इस नेट का, आना-जाना हाय</strong></p>
<p><strong>चार दिनों के बाद ही, थोड़ा हुआ उपाय</strong></p>
<p><strong>थोड़ा हुआ उपाय, मगर अड़चन ही अड़चन</strong></p>
<p><strong>कैसे करता व्यक्त, भला बतलाओ उलझन</strong></p>
<p><strong>लाज रह गई आज, सुनिश्चित टाँय टाँय फिस्</strong></p>
<p><strong>आना-जाना हाय ! नेट का बार-बार इस्</strong></p>
<p></p>
<p><strong>बार-बार इस नेट का, आना-जाना हाय</strong></p>
<p><strong>चार दिनों के बाद ही, थोड़ा हुआ उपाय</strong></p>
<p><strong>थोड़ा हुआ उपाय, मगर अड़चन ही अड़चन</strong></p>
<p><strong>कैसे करता व्यक्त, भला बतलाओ उलझन</strong></p>
<p><strong>लाज रह गई आज, सुनिश्चित टाँय टाँय फिस्</strong></p>
<p><strong>आना-जाना हाय ! नेट का बार-बार इस्</strong></p>
<p></p> प्रस्तुति किसी छंद में होनी च…tag:openbooks.ning.com,2014-12-20:5170231:Comment:5967692014-12-20T18:29:36.415ZDr.Prachi Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>प्रस्तुति किसी छंद में होनी चाहिए थी </p>
<p>आप छन्दोत्सव के नियम एक बार अवश्य ही देखें </p>
<p>शुभकामनाएं </p>
<p>प्रस्तुति किसी छंद में होनी चाहिए थी </p>
<p>आप छन्दोत्सव के नियम एक बार अवश्य ही देखें </p>
<p>शुभकामनाएं </p> बहुत खूबसूरती से प्रदत्त चित्…tag:openbooks.ning.com,2014-12-20:5170231:Comment:5970102014-12-20T18:28:07.211ZDr.Prachi Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>बहुत खूबसूरती से प्रदत्त चित्र को शब्द दिए हैं आ० अरुण निगम जी </p>
<p>हार्दिक बधाई </p>
<p>बहुत खूबसूरती से प्रदत्त चित्र को शब्द दिए हैं आ० अरुण निगम जी </p>
<p>हार्दिक बधाई </p> इस प्रयास को सराहने के लिए बह…tag:openbooks.ning.com,2014-12-20:5170231:Comment:5969472014-12-20T18:28:03.733Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>इस प्रयास को सराहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद </p>
<p>इस प्रयास को सराहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद </p> और तनिक झुकिये नहीं, लग जायेग…tag:openbooks.ning.com,2014-12-20:5170231:Comment:5970092014-12-20T18:26:35.011ZDr.Prachi Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>और तनिक झुकिये नहीं, लग जायेगी चोट।</p>
<p>हाँ-हाँ जी मैं आपको, दूँगी अपना वोट।।.................हाहाहा </p>
<p>अब बार बार नेताजी आयेंगे तो महिला को आखिर में यही कहना पडेगा </p>
<p></p>
<p>सुन्दर दोहावली </p>
<p>हार्दिक बधाई आ० शिज्जू जी </p>
<p>और तनिक झुकिये नहीं, लग जायेगी चोट।</p>
<p>हाँ-हाँ जी मैं आपको, दूँगी अपना वोट।।.................हाहाहा </p>
<p>अब बार बार नेताजी आयेंगे तो महिला को आखिर में यही कहना पडेगा </p>
<p></p>
<p>सुन्दर दोहावली </p>
<p>हार्दिक बधाई आ० शिज्जू जी </p> आदरणीय अशोक रक्ताले सर आपको र…tag:openbooks.ning.com,2014-12-20:5170231:Comment:5969462014-12-20T18:26:27.612Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय अशोक रक्ताले सर आपको रचना पसंद आई आभार धन्यवाद </p>
<p>आदरणीय अशोक रक्ताले सर आपको रचना पसंद आई आभार धन्यवाद </p> आय हाय, क्या बात है, बहुत सुन…tag:openbooks.ning.com,2014-12-20:5170231:Comment:5968562014-12-20T18:25:58.490ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>आय हाय, क्या बात है, बहुत सुन्दर कुंडली, बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये with शिकायत कहाँ रहते है महाराज :-)</p>
<p>आय हाय, क्या बात है, बहुत सुन्दर कुंडली, बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये with शिकायत कहाँ रहते है महाराज :-)</p> बहुत बहुत धन्यवाद tag:openbooks.ning.com,2014-12-20:5170231:Comment:5970082014-12-20T18:25:30.813Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>बहुत बहुत धन्यवाद </p>
<p>बहुत बहुत धन्यवाद </p>