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"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता-अंक-३ (Now Closed with Record 1633 Replies)

आदरणीय मित्रों !

"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-२ की अपार सफलता के लिए आप सभी मित्रों को हृदय से बधाई !

"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता" अंक-3 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है ! आज के इस चित्र को देखिये अगर इस में ताजमहल न दिखता तो संभवतः यह विश्वास ही नहीं होता कि गंदगी व कूड़े से पटी हुई यह यमुना नदी ही है, जिसे हमारे देश में पूजा भी जाता है यहाँ तक कि हमारी संस्कृति भी गंगा-जमुनी ही कही जाती है ! आखिर हम भारतवासी अपने प्राकृतिक जल संसाधनों के साथ क्या करना चाहते हैं !

 

इस चित्र को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आज "स्लज ट्रीटमेंट" व "वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट", व "सीवेज ट्रीटमेंट" जैसे उपाय हमारी पुस्तकों में ही विश्राम करते हुए नजर आ रहे हैं, इस दिशा में कुछ करना तो दूर अपितु  नित्य प्रति अपना कूड़ा-कचरा सहित कितने ही गंदे नाले और सीवर आदि भी इन्हीं नदियों में गिरा देते हैं वह भी बिना शोधित  किये हुए, ऐसा भी नहीं कि हम प्रदूषण के दुष्प्रभावों से अनभिज्ञ हैं फिर भी जान बूझकर हम इसे अनदेखा करके इसे बढ़ावा ही दे रहे हैं !


आइये तो उठा लें अपनी-अपनी कलम, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण, क्योंकि हम साहित्यकारों के लिए यह नितांत आवश्यक है कि इस मुद्दे पर कुछ न कुछ सृजन अवश्य करते रहें ताकि इस समाज में इस सम्बन्ध में कुछ जागरूकता आये...

नोट :-

(1) १५ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १६ से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट करने हेतु खुला रहेगा |

(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग  रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत हैअपनी रचना को"प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करे 

(3) नियमानुसार "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-२ के विजेता इस अंक के निर्णायक होंगे और उनकी रचनायें स्वतः प्रतियोगिता से बाहर रहेगी | एक छोटा सा संसोधन है कि इस अंक से प्रथम, द्वितीय के साथ-साथ तृतीय विजेता का भी चयन किया जायेगा |  

 
सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओ बी ओ  के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक रचना ही स्वीकार की जायेगी  |

विशेष :-

(१) यदि आप ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य है और किसी कारण वश प्रतियोगिता के दौरान अपनी रचना पोस्ट करने मे असमर्थ है तो आप अपनी रचना एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन को उनके इ- मेल admin@openbooksonline.com पर १६ जून से पहले भी भेज सकते है, योग्य रचना को आपके नाम से ही प्रतियोगिता प्रारंभ होने पर पोस्ट कर दिया जायेगा, ध्यान रखे यह सुविधा केवल OBO के सदस्यों हेतु ही है |

(२) यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें | 

संचालक :- अम्बरीश श्रीवास्तव

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Replies to This Discussion

आपकी बात बिलकुल सत्य है आचार्य जी , मिटाना समाधान नहीं है सुधारना समाधान है |
धन्यवाद वंदना जी !
बस नदी को मिटाने की बात कुछ समझ में नहीं आयी!
हाँ उस स्थिति में तो यह बात वहां पर तो ठीक है पर यहाँ पर स्थिति इतनी ख़राब तो नहीं हुई है की इसे मिटा दिया जाय फिर भी आपके दिल में यदि ऐसी बात आयी है तो उसका कारण कुछ ऐसा ही होगा जैसा की आपने कहा है ! अब आइये हम सब मिलकर इसके जीर्णोद्धार का संकल्प लेते हुए इस दिशा में कार्य करते हैं .....:))
सत्य वचन |
धन्यवाद आदरणीय आलोक जी |
आपसे पूर्णतः सहमत हूँ बंधुवर.
धन्यवाद मित्र !

वंदना जी!

बहुत कुछ बाकी अभी है 

मत हों आप निराश.

उगता है सूरज तभी

जब हो उषा हताश.

किरण आशा की कई हैं

जो जलती दीप.

जैसे मोती पालती 

निज गर्भ में चुप सीप.

*

आइये देखें झलक 

है जबलपुर की बात

शहर बावन ताल का

इतिहास में विख्यात..

पुर गए कुछ आज लेकिन

जुटे हैं फिर लोग.

अब अधिक पुरने न देंगे

मिटाना है रोग.

रोज आते लोग 

खुद ही उठाते कचरा.

नीर में या तीर पर

जब जो मिला बिखरा.

भास्कर ने एक

दूजा पत्रिका ने गोद

लिया है तालाब

जनगण को मिला आमोद.

*   

झलक देखें दूसरी

यह नर्मदा का तीर.

गन्दगी है यहाँ भी

भक्तों को है यह पीर.

नहाते हैं भक्त ही,

धो रहे कपड़े भी.

चढ़ाते हैं फूल-दीपक

करें झगड़े भी. 

बैठकें की, बात की,

समझाइशें भी दीं.

चित्र-कविता पाठकर 

नुमाइशें भी की.

अंतत: कुछ असर

हमको दिख रहा है आज.

जो चढ़ाते फूल थे वे 

लाज करते आज.

संत, नेता, स्त्रियाँ भी

करें कचरा दूर.

ज्यों बढ़ाकर हाथ आगे 

बढ़ रहा हो सूर.

*

इसलिए कहता: 

बहुत कुछ अभी भी है शेष

आप लें संकल्प, 

बदलेगा तभी परिवेश.

*
कविता के माध्यम से बहत सुन्दर सन्देश | बधाई आचार्य सलिल |
//बहुत कुछ अभी भी है शेष
आप लें संकल्प,
बदलेगा तभी परिवेश.//
बहुत सामयिक व सटीक सन्देश ! बधाई आदरणीय आचार्य जी !
सहमत हूँ वंदना जी आपसे |

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