"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 142 - Open Books Online2024-03-28T16:26:26Zhttps://openbooks.ning.com/group/pop/forum/topics/142?xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noयह तो आपका निरन्तर प्रोत्साहन…tag:openbooks.ning.com,2023-02-19:5170231:Comment:10990282023-02-19T18:10:33.838Zअजय गुप्ता 'अजेयhttps://openbooks.ning.com/profile/3tuckjroyzywi
<p>यह तो आपका निरन्तर प्रोत्साहन और मार्गदर्शन संभव करवाता रहा है। भविष्य में भी इसी प्रकार आप रचनाकर्म को धार प्रदान करवाते रहेंगें ऐसी आशा और प्रार्थना हमसब करते हैं।</p>
<p>यह तो आपका निरन्तर प्रोत्साहन और मार्गदर्शन संभव करवाता रहा है। भविष्य में भी इसी प्रकार आप रचनाकर्म को धार प्रदान करवाते रहेंगें ऐसी आशा और प्रार्थना हमसब करते हैं।</p> आपका कहना भी उचित है, आदरणीय.…tag:openbooks.ning.com,2023-02-19:5170231:Comment:10992172023-02-19T18:02:10.247ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आपका कहना भी उचित है, आदरणीय. </p>
<p>पदों का समुच्चय में वाचन आपके कहे के प्रति आश्वस्त कर रहा है. </p>
<p></p>
<p>आपका कहना भी उचित है, आदरणीय. </p>
<p>पदों का समुच्चय में वाचन आपके कहे के प्रति आश्वस्त कर रहा है. </p>
<p></p> आदरणीय सौरभ जी। कदाचित अखिलेश…tag:openbooks.ning.com,2023-02-19:5170231:Comment:10992142023-02-19T17:48:29.163Zअजय गुप्ता 'अजेयhttps://openbooks.ning.com/profile/3tuckjroyzywi
<p>आदरणीय सौरभ जी। कदाचित अखिलेश जी यहाँ “सुने” ही लिखना चाह रहें है कि जनता की न भवन-मालिक सुनता है न शासन।</p>
<p>आदरणीय सौरभ जी। कदाचित अखिलेश जी यहाँ “सुने” ही लिखना चाह रहें है कि जनता की न भवन-मालिक सुनता है न शासन।</p> हाद्रिक धन्यवाद, आदरणीय अजय ग…tag:openbooks.ning.com,2023-02-19:5170231:Comment:10992132023-02-19T17:38:57.886ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>हाद्रिक धन्यवाद, आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी. <br/>य़ह अवश्य है कि आपकी रचना ने मुग्ध कर दिया है. </p>
<p>जय-जय</p>
<p>हाद्रिक धन्यवाद, आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी. <br/>य़ह अवश्य है कि आपकी रचना ने मुग्ध कर दिया है. </p>
<p>जय-जय</p> आदरणीय अखिलेश भाईजी,
आपकी रच…tag:openbooks.ning.com,2023-02-19:5170231:Comment:10992122023-02-19T17:37:32.942ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अखिलेश भाईजी, </p>
<p>आपकी रचनाओं में ऐसे बिन्दु अवश्य होते हैं कि एकबारगी मन वाह कर उठता है. निम्नलिखित छंद इसी श्रेणी का है. </p>
<p></p>
<p><span>आग किसी तल में लग जाये, ऊपर जल्दी उठती है।</span></p>
<p><span>अग्नि शमन दल की कोशिश भी, कुछ मंजिल तक रहती है॥</span></p>
<p><span>बचा न कुछ सामान किसी का, चले गये कुछ धरती से।</span></p>
<p><span>सब कुछ स्वाहा हो जाता है, किसी एक की गलती से॥ ............ वाह-वाह. सार्थक चर्चा की है आपने. और सत्य चित्र उभारा…</span></p>
<p>आदरणीय अखिलेश भाईजी, </p>
<p>आपकी रचनाओं में ऐसे बिन्दु अवश्य होते हैं कि एकबारगी मन वाह कर उठता है. निम्नलिखित छंद इसी श्रेणी का है. </p>
<p></p>
<p><span>आग किसी तल में लग जाये, ऊपर जल्दी उठती है।</span></p>
<p><span>अग्नि शमन दल की कोशिश भी, कुछ मंजिल तक रहती है॥</span></p>
<p><span>बचा न कुछ सामान किसी का, चले गये कुछ धरती से।</span></p>
<p><span>सब कुछ स्वाहा हो जाता है, किसी एक की गलती से॥ ............ वाह-वाह. सार्थक चर्चा की है आपने. और सत्य चित्र उभारा है. </span></p>
<p></p>
<p>चरण <span><em>काम का समय अलग सभी का,</em> को शुद्ध रूप से यों निबद्ध करना उचित होगा, <strong>समय काम का अलग सभी का </strong> </span></p>
<p><span><em>सुने भवन मालिक ना शासन</em>, ..... ’सुने’ नहीं ’सूने’. इस लिहाज से विषम चरण की मात्रा सही नहीं होगी. </span></p>
<p></p>
<p><span>बहरहाल, आपकी रचना के लिए हार्दिक बधाई. </span></p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p>
<p></p> आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’…tag:openbooks.ning.com,2023-02-19:5170231:Comment:10991182023-02-19T17:26:32.683ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी. आयोजन में आपकी सतत उपस्थिति आश्वस्तिकारी है. चित्र को सहज शाब्दिक करना मुग्धकारी है. </p>
<p></p>
<p>यह अवश्य है कि विधान के हवाले से आपका ध्यान अवश्य आकृष्ट करना चाहूँगा. </p>
<p></p>
<p>निम्नलिखित छंद कुकुभ छंद में निबद्ध नहीं है. ..</p>
<p></p>
<p><span>नयी सभ्यता कहकर सब ने, एक अनौखा रूप गढ़ा।</span><br></br><span>गगन चूमते भवनों का ही, जिसमें बढ़चढ़ पाठ पढ़ा।।</span><br></br><span>भले कामना है जीवन में, भर जाये हर खुशहाली।</span><br></br><span>किन्तु मौत की छाया काली,…</span></p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी. आयोजन में आपकी सतत उपस्थिति आश्वस्तिकारी है. चित्र को सहज शाब्दिक करना मुग्धकारी है. </p>
<p></p>
<p>यह अवश्य है कि विधान के हवाले से आपका ध्यान अवश्य आकृष्ट करना चाहूँगा. </p>
<p></p>
<p>निम्नलिखित छंद कुकुभ छंद में निबद्ध नहीं है. ..</p>
<p></p>
<p><span>नयी सभ्यता कहकर सब ने, एक अनौखा रूप गढ़ा।</span><br/><span>गगन चूमते भवनों का ही, जिसमें बढ़चढ़ पाठ पढ़ा।।</span><br/><span>भले कामना है जीवन में, भर जाये हर खुशहाली।</span><br/><span>किन्तु मौत की छाया काली, जिसे समझती दीवाली।।</span></p>
<p></p>
<p>आपकी रचना के लिए हार्दिक बधाई. </p>
<p>शुभ-शुभ</p> विस्तृत टिप्पणी और उपयोगी मार…tag:openbooks.ning.com,2023-02-19:5170231:Comment:10992092023-02-19T17:24:46.210Zअजय गुप्ता 'अजेयhttps://openbooks.ning.com/profile/3tuckjroyzywi
<p>विस्तृत टिप्पणी और उपयोगी मार्गदर्शन प्रदान करने हेतू अति आभार सौरभ जी। आपने जो भी बिंदु इंगित किए हैं उनपर ध्यान देकर पुनः प्रयास करूँगा और नियमित भागीदारी का प्रयास भी करूँगा।</p>
<p>पुनः आभार और धन्यवाद </p>
<p>विस्तृत टिप्पणी और उपयोगी मार्गदर्शन प्रदान करने हेतू अति आभार सौरभ जी। आपने जो भी बिंदु इंगित किए हैं उनपर ध्यान देकर पुनः प्रयास करूँगा और नियमित भागीदारी का प्रयास भी करूँगा।</p>
<p>पुनः आभार और धन्यवाद </p> आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी उ…tag:openbooks.ning.com,2023-02-19:5170231:Comment:10992072023-02-19T17:18:25.793ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी उपस्थिति तथा आपके रचना-कर्म का हार्दिक धन्यवाद. </p>
<p>आपका रचना-कर्म विधान का पूर्णतः परिपालन नहीं करता दीख रहा. इसके प्रति सचेत होना तथा अनुकरण करना उचित होगा. </p>
<p>वस्तुतः, आपकी रचना पदान्त के हिसाब से लावणी छंद में निबद्ध हो गयी है. </p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p>
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी उपस्थिति तथा आपके रचना-कर्म का हार्दिक धन्यवाद. </p>
<p>आपका रचना-कर्म विधान का पूर्णतः परिपालन नहीं करता दीख रहा. इसके प्रति सचेत होना तथा अनुकरण करना उचित होगा. </p>
<p>वस्तुतः, आपकी रचना पदान्त के हिसाब से लावणी छंद में निबद्ध हो गयी है. </p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p> आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी. आप…tag:openbooks.ning.com,2023-02-19:5170231:Comment:10990242023-02-19T17:14:52.307ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी. आपने प्रदत्त चित्र को जिस तरह से आत्मसात कर इसे शाब्दिक किया है वह मुग्ध कर रहा है. महानगरों की अट्टालिकाओं में बसे हुए लोगों की दशा का वस्तुतः सार्थक चित्रण हुआ है. आप मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें. </p>
<p></p>
<p>किन्तु, शिल्प को लेकर कुछेक बिन्दु अवश्य स्पष्ट कर लेना श्रेयस्कर होगा. </p>
<p></p>
<p>मिलता किसे किनारा ... इस चरण की कुल मात्रा सटीक नहीं है. यह अवश्य ही भूलवश हुआ है. </p>
<p></p>
<p>निम्नलिखित दो छंद कुकुभ छंद में न हो कर ताटंक छंद में निबद्ध हो…</p>
<p>आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी. आपने प्रदत्त चित्र को जिस तरह से आत्मसात कर इसे शाब्दिक किया है वह मुग्ध कर रहा है. महानगरों की अट्टालिकाओं में बसे हुए लोगों की दशा का वस्तुतः सार्थक चित्रण हुआ है. आप मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें. </p>
<p></p>
<p>किन्तु, शिल्प को लेकर कुछेक बिन्दु अवश्य स्पष्ट कर लेना श्रेयस्कर होगा. </p>
<p></p>
<p>मिलता किसे किनारा ... इस चरण की कुल मात्रा सटीक नहीं है. यह अवश्य ही भूलवश हुआ है. </p>
<p></p>
<p>निम्नलिखित दो छंद कुकुभ छंद में न हो कर ताटंक छंद में निबद्ध हो गये हैं. यह भी अनायास ही हुआ होगा. किन्तु, सच्चाई यही है. </p>
<p></p>
<p><span>भीतर इनमें रहने वाले, भिंचे-भिंचे से जीते हैं</span><br/><span>आस-पास ही बसे हुए पर, खिंचे-खिंचे से जीते हैं</span><br/><span>बिना पडोसी के पड़ोस हैं, सब अपने में डूबे हैं</span><br/><span>यहाँ मुहल्ले बिन गलियों के, सचमुच बड़े अजूबे हैं .... </span></p>
<p><span> </span></p>
<p><span>ज़मींदार इक दस एकड़ का, गाँव छोड़ इनमें आया<br/>लिव-इन में रहने इक जोड़ा, तोड़ सभी रिश्ते आया<br/>एक युवक लाया था सपने, हुए पड़े हैं वो बासी<br/>एक अकेली बुढ़िया रहती, थी वो गुज़र गई प्यासी</span></p>
<p></p>
<p><span>एक बात और, निम्नलिखित छंद अपने अंतिम चरण के कारण कुकुभ छंद की श्रेणी में आअ सका है. देखिएगा. </span></p>
<p></p>
<p><span>कब आता है, कब जाता है, पता नहीं रहने वाला<br/>द्वार द्वार से बतियाता है, और कुण्डियों से ताला<br/>रंग-बिरंगी गगन चूमती, इन भवनों की ऊँचाई<br/>तल्ला-तल्ला छज्जा-छज्जा, बुझी पड़ी पर तरुणाई ... अंतिम चरण के कारण कुकुभ छंद </span></p>
<p></p>
<p>बहरहाल, आपका रचना-कर्म न केवल हम पाठकों को आश्वस्त करता है, प्रस्तुत आयोजन में आपकी सतत उपस्थिति का निवेदन भी करता है.</p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p> आदरणीया प्रतिभाजी
प्रशंसा के…tag:openbooks.ning.com,2023-02-19:5170231:Comment:10990212023-02-19T16:27:34.498Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीया प्रतिभाजी</p>
<p>प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। </p>
<p>आदरणीया प्रतिभाजी</p>
<p>प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। </p>