"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 136 - Open Books Online2024-03-29T13:27:55Zhttps://openbooks.ning.com/group/pop/forum/topics/136?groupUrl=pop&xg_source=activity&id=5170231%3ATopic%3A1087782&feed=yes&xn_auth=noनिशा स्वस्ति ..
शुभातिशुभ
tag:openbooks.ning.com,2022-08-21:5170231:Comment:10878832022-08-21T18:28:36.330ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>निशा स्वस्ति .. </p>
<p>शुभातिशुभ </p>
<p></p>
<p>निशा स्वस्ति .. </p>
<p>शुभातिशुभ </p>
<p></p> आदरणीया प्रतिभा जी,
राह कच्…tag:openbooks.ning.com,2022-08-21:5170231:Comment:10879332022-08-21T18:27:02.639ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीया प्रतिभा जी, </p>
<p></p>
<div dir="auto">राह कच्ची है इधर दिखता न यातायात है</div>
<div dir="auto">इस तिगड्डे के लिये तो बन गई बस बात है</div>
<div dir="auto"> फिर फटाफट कूद की भी तय चुनौती हो गई</div>
<div dir="auto">लो हवा भी बचपने की मस्तियों में खो गई</div>
<p>दो छंदों की प्रस्तुत रचना बाल-मन के मनोविज्ञान को बखूब उजागर करती हुई है. वाह, क्या बात है ! .. </p>
<p></p>
<p>दूसरे छंद में दोस्तों की मात्रा को दोसतों के तौर पर साधना छंद शिल्प के अनुरूप नहीं है. </p>
<p>आदरणीय अशिक…</p>
<p>आदरणीया प्रतिभा जी, </p>
<p></p>
<div dir="auto">राह कच्ची है इधर दिखता न यातायात है</div>
<div dir="auto">इस तिगड्डे के लिये तो बन गई बस बात है</div>
<div dir="auto"> फिर फटाफट कूद की भी तय चुनौती हो गई</div>
<div dir="auto">लो हवा भी बचपने की मस्तियों में खो गई</div>
<p>दो छंदों की प्रस्तुत रचना बाल-मन के मनोविज्ञान को बखूब उजागर करती हुई है. वाह, क्या बात है ! .. </p>
<p></p>
<p>दूसरे छंद में दोस्तों की मात्रा को दोसतों के तौर पर साधना छंद शिल्प के अनुरूप नहीं है. </p>
<p>आदरणीय अशिक भाईजी ने भी आपको इसके प्रति सचेत किया है. </p>
<p></p>
<p>इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक धन्यवाद तथा बधाइयाँ </p>
<p>शुभ-शुभ</p> आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्म…tag:openbooks.ning.com,2022-08-21:5170231:Comment:10878822022-08-21T18:18:58.640ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p></p>
<p>आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्माजी, आपकी रचना ने चकित तो किया ही बार-बार मन साधुवाद कह रहा है. प्रदत्त चित्र के अनुसार क्या ही सार्थक, संयत तथा पठनीय रचना हुई है. </p>
<p>बधाइयाँ .. बधाइयाँ </p>
<p></p>
<p>निम्नलिखित छंद के लिए विशेष रूप से बधाइयाँ स्वीकार कीजिए. </p>
<p><span>खेल में कोई निपुण हो, कौन है कमतर कहो ।</span><br></br><span>कब पराजय या विजय का द्वन्द्व है मिल कर रहो ।।</span><br></br><span>बाँट लेते हर ख़ुशी को जीत या फिर हार को ।</span><br></br><span>सीख सच्ची दे रहे हैं बस यही संसार…</span></p>
<p></p>
<p>आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्माजी, आपकी रचना ने चकित तो किया ही बार-बार मन साधुवाद कह रहा है. प्रदत्त चित्र के अनुसार क्या ही सार्थक, संयत तथा पठनीय रचना हुई है. </p>
<p>बधाइयाँ .. बधाइयाँ </p>
<p></p>
<p>निम्नलिखित छंद के लिए विशेष रूप से बधाइयाँ स्वीकार कीजिए. </p>
<p><span>खेल में कोई निपुण हो, कौन है कमतर कहो ।</span><br/><span>कब पराजय या विजय का द्वन्द्व है मिल कर रहो ।।</span><br/><span>बाँट लेते हर ख़ुशी को जीत या फिर हार को ।</span><br/><span>सीख सच्ची दे रहे हैं बस यही संसार को ।।</span></p>
<p></p>
<p>यह अवश्य है कि नहीं और सहीं की तुकांतता नेष्ट है. हिंदी में वस्तुतः सही का स्थानापन्न सहीं कोई शब्द नहीं है. </p>
<p></p>
<p>छंदोत्सव में आपकी सदैव प्रतीक्षा रहेगी. </p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p> आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’…tag:openbooks.ning.com,2022-08-21:5170231:Comment:10878812022-08-21T18:11:28.088ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी, आपकी रचनाएँ शिल्प को लेकर अत्यंट सचेत रहतीं हैं. इसका सार्थक उदाहरण है प्रस्तुत रचना. </p>
<p></p>
<p>पहले छंद में प्रस्तुत पंक्ति में आवश्यक संशोधन कर सार्थक किया जा सकता है. </p>
<div align="left"><p dir="ltr">दौड़ सह है कूँदना भी, नापना ऊँचाइयाँ।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">उपर्युक्त पंक्ति में सह का प्रयोग नेष्ट है. </p>
<p dir="ltr"> </p>
</div>
<div align="left"></div>
<div align="left"><p dir="ltr">है बहुत चंचलपना तो, सादगी भी कम…</p>
</div>
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी, आपकी रचनाएँ शिल्प को लेकर अत्यंट सचेत रहतीं हैं. इसका सार्थक उदाहरण है प्रस्तुत रचना. </p>
<p></p>
<p>पहले छंद में प्रस्तुत पंक्ति में आवश्यक संशोधन कर सार्थक किया जा सकता है. </p>
<div align="left"><p dir="ltr">दौड़ सह है कूँदना भी, नापना ऊँचाइयाँ।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">उपर्युक्त पंक्ति में सह का प्रयोग नेष्ट है. </p>
<p dir="ltr"> </p>
</div>
<div align="left"></div>
<div align="left"><p dir="ltr">है बहुत चंचलपना तो, सादगी भी कम नहीं।<br/>तैरते हैं ताल में भी, खेलते खो खो कहीं।।</p>
</div>
<div align="left"><p dir="ltr">ये कुशल होंगे युवा हो, देखकर विश्वास है।</p>
</div>
<div align="left"><p dir="ltr">बालपन में सैनिकों सा, हो रहा अभ्यास है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">वाह वाह वाह ! </p>
</div>
<div align="left"><p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मैं अपने तईं आवश्यक सुधार के साथ अपनी बात रख रहा हूँ--</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">खोज लाये हैं इसे वो, आँचलिक इतिहास से।। ... खोज लाये खेल यह वे आँचलिक इतिहास से </p>
<p dir="ltr"></p>
</div>
<div align="left"><p dir="ltr">खेल भी इनका यही है, है यही व्यायाम भी।</p>
</div>
<div align="left"><p dir="ltr">रोग हर औषध सरीखा, दे यही आराम भी।। .... वाह वाह ! </p>
</div>
<div align="left"><p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">ये नगर की रीत से हट, गाँव को ही जी रहे।</p>
</div>
<div align="left"><p dir="ltr">साँस में ताजी हवा है, स्वच्छ पानी पी रहे।।<br/>सिर्फ शिक्षा की न सुविधा, वो मिले तो ये बढ़ें।<br/>देश के सम्मान खातिर, हर शिखर पर ये चढ़ें।।.. ... क्या बात है ! क्या बात है ! .. </p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">एक बात, ताजा एक अव्यय विशेषण शब्द है, जिसका लिंग निर्धारित नहीं होता. अतः, ताजी कोई शुद्ध शब्द नहीं है. लेकिन ताजा और ताजी जैसे शब्द् हिन्दी में चलते हैं. अलबत्ता, उर्दू मे ताजा सदैव ताजा रहता है. </p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">आपकी सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ </p>
<p dir="ltr">शुभ-शुभ</p>
<p dir="ltr"></p>
</div> आदरणीय अशोक भाई साहब, क्या ही…tag:openbooks.ning.com,2022-08-21:5170231:Comment:10881262022-08-21T17:54:09.142ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अशोक भाई साहब, क्या ही सहज तथा सार्थक रचना प्रस्तुत हुई है. </p>
<p></p>
<p><span>कर रहा तय दौड़कर बालक कई ऊँचाइयाँ</span>।</p>
<p><span>दौड़ना फिर कूदना है पाटने हर खाइयाँ</span>।</p>
<p>बालपन के हो रहे अभ्यास से विश्वास है।</p>
<p>देश को इन नौनिहालों से बहुत ही आस है।। .. .. वाह वाह वाह ! इन सकारात्मक पंक्तियों के लिए हार्दिक बधाइयाँ </p>
<p></p>
<p>प्रदत्त चित्र के किशोरों की पृष्ठभूमि तथा वर्तमान को लेकर क्या ही सुगढ़ पंक्तियाँ हुई है --</p>
<p>है यही व्यायाम इनका और है यह खेल…</p>
<p>आदरणीय अशोक भाई साहब, क्या ही सहज तथा सार्थक रचना प्रस्तुत हुई है. </p>
<p></p>
<p><span>कर रहा तय दौड़कर बालक कई ऊँचाइयाँ</span>।</p>
<p><span>दौड़ना फिर कूदना है पाटने हर खाइयाँ</span>।</p>
<p>बालपन के हो रहे अभ्यास से विश्वास है।</p>
<p>देश को इन नौनिहालों से बहुत ही आस है।। .. .. वाह वाह वाह ! इन सकारात्मक पंक्तियों के लिए हार्दिक बधाइयाँ </p>
<p></p>
<p>प्रदत्त चित्र के किशोरों की पृष्ठभूमि तथा वर्तमान को लेकर क्या ही सुगढ़ पंक्तियाँ हुई है --</p>
<p>है यही व्यायाम इनका और है यह खेल भी।</p>
<p>सात जन्मों का हुआ अपनी धरा से मेल भी।</p>
<p>ये न कोई माँगते हैं देश से सुविधा बड़ी।</p>
<p>माँगते हैं एक शिक्षा जो चुनौती है कड़ी।।.... साधु-साधु ! </p>
<p></p>
<p>ग्रामीण परिवेश के किशोरों की प्रकृति पर आपकी सूक्ष्म दृष्टि पड़ी है.--</p>
<p>मुस्कुरा कर भूलते हैं दुःख ये अपने जहाँ।</p>
<p>तो ख़ुशी को बाँटकर रहते सदा ये ख़ुश वहाँ।</p>
<p>कम वसन नंगे बदन भी ये रहें खुशहाल ही।</p>
<p>ग्रीष्म सर्दी ही रहे या बारिशों का काल ही।। .. बहुत सही. </p>
<p></p>
<p>इस रचना के प्रस्तुतीकरण के लिए हार्दिक धन्यवाद तथा बधाइयाँ </p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p> </p> आदरणीय चेतन प्रकाश जी,
इस पट…tag:openbooks.ning.com,2022-08-21:5170231:Comment:10878782022-08-21T17:46:08.722ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी, </p>
<p>इस पटल पर आपके लम्बे अनुभव के बावजूद रचना का प्रस्तुतीकरण ही ओबीओ की परिपाटी तथा नियमानुसार नहीं ःओ सका है. रचना के मौलिक और अप्रकाशित होने की घोषणा होने से छूट ही गयी है, अनावश्यक ही आपने रचना के अंत में अपना नाम अंकित कर दिया है. </p>
<p>दूसरे, आपने किस थ्रेड में अपनी रचना प्रस्तुत की है ? </p>
<p>विश्वास है, आप मेरे कहे का अर्थ समझ रहे हैं. </p>
<p></p>
<p>रचना की निम्नलिखित पंक्तियाँ अनुमोदनीय है - </p>
<p></p>
<p>हाथ पर धर हाथ दो फिर, वो बुलाते अन्य…</p>
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी, </p>
<p>इस पटल पर आपके लम्बे अनुभव के बावजूद रचना का प्रस्तुतीकरण ही ओबीओ की परिपाटी तथा नियमानुसार नहीं ःओ सका है. रचना के मौलिक और अप्रकाशित होने की घोषणा होने से छूट ही गयी है, अनावश्यक ही आपने रचना के अंत में अपना नाम अंकित कर दिया है. </p>
<p>दूसरे, आपने किस थ्रेड में अपनी रचना प्रस्तुत की है ? </p>
<p>विश्वास है, आप मेरे कहे का अर्थ समझ रहे हैं. </p>
<p></p>
<p>रचना की निम्नलिखित पंक्तियाँ अनुमोदनीय है - </p>
<p></p>
<p>हाथ पर धर हाथ दो फिर, वो बुलाते अन्य को </p>
<p>कूद...ऊपर ..से ...बताते, तीसरे अनुमन्य को</p>
<p>है चुनौती वो कठिन अरु, खेल भी अनजान है</p>
<p>आँचलिक इतिहास की अब, तो यही पहचान है</p>
<p></p>
<p>अरु का औ’ के स्थान पर प्रयोग किया तो जाता है किंतु यह अवधी भाषा का अव्यय संयोजक शब्द है. </p>
<p>सर्वोपरि, रचना की पंक्तियों से अर्थ का सार्थक संप्रेषण नहीं हो पारहा है. इसके प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है. </p>
<p></p>
<p>निम्नलिखित पंक्ति में वृक्षों का प्रयोग उचित नहीं है जिसकारण पंक्ति की मात्रिकता का निर्वहन नहीं ःओ पारहा है. </p>
<p><em>या कि चढ़ जाते वृक्षों पर, वन बहुत सा ठौर है</em></p>
<p></p>
<p><span>बहरहाल, गीतिका छंद पर प्रयास करने के लिए हार्दिक धन्यवाद तथा शुभकामनाएँ </span></p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p> आ. प्रतिभा बहन, चित्र के अनछु…tag:openbooks.ning.com,2022-08-21:5170231:Comment:10881212022-08-21T17:24:19.043Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. प्रतिभा बहन, चित्र के अनछुए पहलुओं को उभारती सार्थक छंद रचना हुई है । हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. प्रतिभा बहन, चित्र के अनछुए पहलुओं को उभारती सार्थक छंद रचना हुई है । हार्दिक बधाई।</p> आ. भाई अशोक जी, छंदो पर उपस्थ…tag:openbooks.ning.com,2022-08-21:5170231:Comment:10881202022-08-21T17:20:20.230Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अशोक जी, छंदो पर उपस्थिति, प्रशंसा व स्नेह के लिए हार्दिक आभार।</p>
<p>आ. भाई अशोक जी, छंदो पर उपस्थिति, प्रशंसा व स्नेह के लिए हार्दिक आभार।</p> आ. प्रतिभा बहन, छंदों की प्रश…tag:openbooks.ning.com,2022-08-21:5170231:Comment:10881192022-08-21T17:19:10.706Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. प्रतिभा बहन, छंदों की प्रशंसा के लिए आभार।</p>
<p>आ. प्रतिभा बहन, छंदों की प्रशंसा के लिए आभार।</p> आ. भाई दिनेश जी, छंदों पर उपस…tag:openbooks.ning.com,2022-08-21:5170231:Comment:10881182022-08-21T17:18:11.267Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई दिनेश जी, छंदों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।</p>
<p>आ. भाई दिनेश जी, छंदों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।</p>