"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 123 - Open Books Online2024-03-29T00:40:17Zhttps://openbooks.ning.com/group/pop/forum/topics/123?commentId=5170231%3AComment%3A1064442&feed=yes&xn_auth=noआयोजनों की प्रतिटिप्पणियों मे…tag:openbooks.ning.com,2021-07-25:5170231:Comment:10644442021-07-25T17:50:57.973ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आयोजनों की प्रतिटिप्पणियों में 'नजर अपनी-अपनी खयाल अपना-अपना' आदि करने से बचें, आदरणीय. </p>
<p>आयोजन कार्यशाला हुआ करते हैं. यह बात अलग है कि इनके प्रति पाठकों-सदस्यों का आग्रह लगातार विरल होता गया है. </p>
<p>सादर</p>
<p>आयोजनों की प्रतिटिप्पणियों में 'नजर अपनी-अपनी खयाल अपना-अपना' आदि करने से बचें, आदरणीय. </p>
<p>आयोजन कार्यशाला हुआ करते हैं. यह बात अलग है कि इनके प्रति पाठकों-सदस्यों का आग्रह लगातार विरल होता गया है. </p>
<p>सादर</p> इस पोस्ट की आवश्यकता नहीं थी.…tag:openbooks.ning.com,2021-07-25:5170231:Comment:10643622021-07-25T17:46:06.630ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>इस पोस्ट की आवश्यकता नहीं थी. </p>
<p>आप अपनी प्रस्तुतियों पर पाठकीय टिप्पणियाँ भी देखें, आदरणीया. </p>
<p></p>
<p>इस पोस्ट की आवश्यकता नहीं थी. </p>
<p>आप अपनी प्रस्तुतियों पर पाठकीय टिप्पणियाँ भी देखें, आदरणीया. </p>
<p></p> मेरी दूसरी प्रस्तुति
भारत द…tag:openbooks.ning.com,2021-07-25:5170231:Comment:10645422021-07-25T16:31:24.820ZDeepanjali Dubeyhttps://openbooks.ning.com/profile/DeepanjaliDubey
<p></p>
<p>मेरी दूसरी प्रस्तुति</p>
<p></p>
<p>भारत देखो आज बदलता , आज नहीं वह मुँह की खाय। <br></br>कोशिश वो बस करता रहता जो वह चाहे बस मिल जाय।।</p>
<p>बात यही है सच्ची भैया , सुन लो सब ही कान लगाय।<br></br>चलता है जो साथ समय के वो ही जग में नाम कमाय।।</p>
<p>भीड़ लगाता जो नित रहता,चाहत उसकी जय जयकार।<br></br>जो सबकी बातों में आया , कर लेता जीवन बेकार।।</p>
<p>कोरोना का असर बड़ा है,भीड़ खड़ी है समझ न पाय।<br></br>जो घर छोड़ बने परदेशी,वो सब अपने घर को आय।।</p>
<p>आज जानती है यह जनता,नेता सब हमको…</p>
<p></p>
<p>मेरी दूसरी प्रस्तुति</p>
<p></p>
<p>भारत देखो आज बदलता , आज नहीं वह मुँह की खाय। <br/>कोशिश वो बस करता रहता जो वह चाहे बस मिल जाय।।</p>
<p>बात यही है सच्ची भैया , सुन लो सब ही कान लगाय।<br/>चलता है जो साथ समय के वो ही जग में नाम कमाय।।</p>
<p>भीड़ लगाता जो नित रहता,चाहत उसकी जय जयकार।<br/>जो सबकी बातों में आया , कर लेता जीवन बेकार।।</p>
<p>कोरोना का असर बड़ा है,भीड़ खड़ी है समझ न पाय।<br/>जो घर छोड़ बने परदेशी,वो सब अपने घर को आय।।</p>
<p>आज जानती है यह जनता,नेता सब हमको भटकाय। <br/>इनके झांसों में मत आओ ,चाहें जितना शीश नवाय।।</p>
<p>जागो और जगाओ सबको , करना है जग में बदलाव।<br/>अपने हक को मत जाने दो,पढ़ लो इनके तुम मन भाव।।</p>
<p>इक दिन हम कुछ नाम करेंगे, हमको है पूरा विश्वास। <br/>बनती अपने हांथों किस्मत , भर देंगें पूरा आकाश।।</p>
<p>जनता की यह भीड़ देख कर,नेताओं की आफत मान।<br/>कैसे काबू में आए अब ,मुंँह तक फँसती इनकी जान।।<br/> <br/>देते रहते इनको धोखा , लालच देकर इनको जोश।<br/>भीड़ भई जब बेकाबू है, उड़ जाते फिर इनके होश।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p> हृदय से धन्यवाद आदरणीय लक्ष्म…tag:openbooks.ning.com,2021-07-25:5170231:Comment:10645412021-07-25T16:25:11.803Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>हृदय से धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण भाई</p>
<p>हृदय से धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण भाई</p> आ. दीपांजलि जी, अच्छी प्रस्तु…tag:openbooks.ning.com,2021-07-25:5170231:Comment:10642502021-07-25T16:22:51.119Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. दीपांजलि जी, अच्छी प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. दीपांजलि जी, अच्छी प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई।</p> आ. भाई अखिलेश जी, उत्साहवर्धन…tag:openbooks.ning.com,2021-07-25:5170231:Comment:10645402021-07-25T16:02:45.804Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अखिलेश जी, उत्साहवर्धन के लिए आभार..</p>
<p>आ. भाई अखिलेश जी, उत्साहवर्धन के लिए आभार..</p> आ. भाई चेतन जी, रचना पर उपस्थ…tag:openbooks.ning.com,2021-07-25:5170231:Comment:10643612021-07-25T16:01:50.222Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई चेतन जी, रचना पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए आभार।</p>
<p>आ. भाई चेतन जी, रचना पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए आभार।</p> आ. भाई अखिलेश जी, चित्रानुरूप…tag:openbooks.ning.com,2021-07-25:5170231:Comment:10645392021-07-25T15:59:41.564Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अखिलेश जी, चित्रानुरूप बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई अखिलेश जी, चित्रानुरूप बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई।</p> आदरणीया दीपांजलीजी
चित्र के अ…tag:openbooks.ning.com,2021-07-25:5170231:Comment:10645382021-07-25T15:04:41.939Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीया दीपांजलीजी</p>
<p>चित्र के अनुरूप है अपकी यह प्रस्तुति और सुंदर भी। हृदय से बधाई। अन्य के संबंध में आदरणीय सौरभ भाईजी विस्तार कह ही चुके हैं।</p>
<p></p>
<p>आदरणीया दीपांजलीजी</p>
<p>चित्र के अनुरूप है अपकी यह प्रस्तुति और सुंदर भी। हृदय से बधाई। अन्य के संबंध में आदरणीय सौरभ भाईजी विस्तार कह ही चुके हैं।</p>
<p></p> आदरणीय लक्ष्मण भाईजी
खूब लिखा…tag:openbooks.ning.com,2021-07-25:5170231:Comment:10645372021-07-25T14:59:42.477Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय लक्ष्मण भाईजी</p>
<p>खूब लिखा है आपने। आप हर विधामें माहिर हैं। हृदय से बधाई इस प्रस्तुति के लिए। आदरणीय सौरभजी विस्तार कह ही चुके हैं।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण भाईजी</p>
<p>खूब लिखा है आपने। आप हर विधामें माहिर हैं। हृदय से बधाई इस प्रस्तुति के लिए। आदरणीय सौरभजी विस्तार कह ही चुके हैं।</p>
<p></p>
<p></p>