ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-122 - Open Books Online2024-03-29T16:02:59Zhttps://openbooks.ning.com/group/pop/forum/topics/122?commentId=5170231%3AComment%3A1061747&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noशुभ रात्रि
tag:openbooks.ning.com,2021-06-20:5170231:Comment:10616012021-06-20T18:34:01.462ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>शुभ रात्रि</p>
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<p>शुभ रात्रि</p>
<p></p> निशा निमंत्रण के आधार पर रचना…tag:openbooks.ning.com,2021-06-20:5170231:Comment:10616002021-06-20T18:31:26.123ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>निशा निमंत्रण के आधार पर रचना-कर्म करने की सलाह किससे ले आए, भाई आज़ी तमाम जी ? </p>
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<p>आयोजन की नियमावलियों के आलोक में किया गया प्रयास ही सार्थक कहलाएगा.</p>
<p>निशा निमंत्रण के आधार पर रचना-कर्म करने की सलाह किससे ले आए, भाई आज़ी तमाम जी ? </p>
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<p>आयोजन की नियमावलियों के आलोक में किया गया प्रयास ही सार्थक कहलाएगा.</p> यह तो आयोजन के नियम के विरुद्…tag:openbooks.ning.com,2021-06-20:5170231:Comment:10615992021-06-20T18:29:36.717ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>यह तो आयोजन के नियम के विरुद्ध रचना-प्रयास हुआ है. अन्यथा-कर्म का कोई औचित्य नहीं है. </p>
<p>शुभ-शुभ </p>
<p>यह तो आयोजन के नियम के विरुद्ध रचना-प्रयास हुआ है. अन्यथा-कर्म का कोई औचित्य नहीं है. </p>
<p>शुभ-शुभ </p> आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आप की…tag:openbooks.ning.com,2021-06-20:5170231:Comment:10618322021-06-20T18:23:15.884ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आप की सहभागिता का हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p>तुकांतता पर अभी और अभ्यास अपेक्षित है. </p>
<p>सादर</p>
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<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आप की सहभागिता का हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p>तुकांतता पर अभी और अभ्यास अपेक्षित है. </p>
<p>सादर</p>
<p></p> आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी सहभ…tag:openbooks.ning.com,2021-06-20:5170231:Comment:10617552021-06-20T18:17:58.239ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी सहभागिता का हार्दिक आभार. </p>
<p></p>
<p>पक्षियाँ पक्षी का बहुवचन जमा नहीं. पक्षी पुल्लिंग शब्द है, भाईजी. </p>
<p>अत:, बहुवचन भी 'संघर्ष करते पक्षी' ही होगा. </p>
<p>सर्वोपरि, हिंदी में शहर के शहर ही रहने दीजिए न ? जब हिंदी भाषी ग़ज़लों में शहर का प्रयोग करने लगे हैं और यह मान्य हो चला है. तो फिर आप कौन सा बवाल सिर पर उठा लिए ? </p>
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<p>सादर</p>
<p>आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी सहभागिता का हार्दिक आभार. </p>
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<p>पक्षियाँ पक्षी का बहुवचन जमा नहीं. पक्षी पुल्लिंग शब्द है, भाईजी. </p>
<p>अत:, बहुवचन भी 'संघर्ष करते पक्षी' ही होगा. </p>
<p>सर्वोपरि, हिंदी में शहर के शहर ही रहने दीजिए न ? जब हिंदी भाषी ग़ज़लों में शहर का प्रयोग करने लगे हैं और यह मान्य हो चला है. तो फिर आप कौन सा बवाल सिर पर उठा लिए ? </p>
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<p>सादर</p> भाव मन के खोलते ही चित्र भी म…tag:openbooks.ning.com,2021-06-20:5170231:Comment:10617542021-06-20T18:11:37.352ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>भाव मन के खोलते ही चित्र भी मुखरित हुआ </p>
<p>इस अनोखे जीव का भी ले रहे हैं सब दुआ </p>
<p>बंधु हम तो आपके अभ्यास के काइल सदा </p>
<p>चित्र को भी खूब मुखरित आप करते सर्वदा </p>
<p></p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण जी, आपकी सहभागिता का आभार </p>
<p>शुभातिशुभ </p>
<p></p>
<p>भाव मन के खोलते ही चित्र भी मुखरित हुआ </p>
<p>इस अनोखे जीव का भी ले रहे हैं सब दुआ </p>
<p>बंधु हम तो आपके अभ्यास के काइल सदा </p>
<p>चित्र को भी खूब मुखरित आप करते सर्वदा </p>
<p></p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण जी, आपकी सहभागिता का आभार </p>
<p>शुभातिशुभ </p>
<p></p> प्रशंशा के लिये सादर आभार आदर…tag:openbooks.ning.com,2021-06-20:5170231:Comment:10615972021-06-20T14:59:21.046ZAazi Tamaamhttps://openbooks.ning.com/profile/AaziTamaa
<p>प्रशंशा के लिये सादर आभार आदरणीय</p>
<p>प्रशंशा के लिये सादर आभार आदरणीय</p> प्रशंशा के लिये सादर आभार आदर…tag:openbooks.ning.com,2021-06-20:5170231:Comment:10616902021-06-20T14:58:28.524ZAazi Tamaamhttps://openbooks.ning.com/profile/AaziTamaa
<p>प्रशंशा के लिये सादर आभार आदरणीय</p>
<p>प्रशंशा के लिये सादर आभार आदरणीय</p> आदरणीय आज़ी तमाम जी हृदय से ब…tag:openbooks.ning.com,2021-06-20:5170231:Comment:10615962021-06-20T14:27:06.366Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय आज़ी तमाम जी हृदय से बधाई</p>
<p>भाव बहुत सुंदर है इसे गीतिका के विधान में ढाल देते तो रचना और अच्छी बन जाती</p>
<p>आदरणीय आज़ी तमाम जी हृदय से बधाई</p>
<p>भाव बहुत सुंदर है इसे गीतिका के विधान में ढाल देते तो रचना और अच्छी बन जाती</p> आदरणीय आजी तमामजी
छंद की प्रश…tag:openbooks.ning.com,2021-06-20:5170231:Comment:10617512021-06-20T14:16:12.231Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय आजी तमामजी</p>
<p>छंद की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार आपका।</p>
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<p>आदरणीय आजी तमामजी</p>
<p>छंद की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार आपका।</p>
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