"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 121 - Open Books Online2024-03-28T13:35:24Zhttps://openbooks.ning.com/group/pop/forum/topics/121?commentId=5170231%3AComment%3A1060354&x=1&feed=yes&xn_auth=noअत्यंत हृदयविदारक सूचना के का…tag:openbooks.ning.com,2021-05-22:5170231:Comment:10603542021-05-22T19:36:10.702ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>अत्यंत हृदयविदारक सूचना के कारण इस आयोजन को तत्काल प्रभाव से स्थगित किया जाता है .. </p>
<p>सादर </p>
<p>अत्यंत हृदयविदारक सूचना के कारण इस आयोजन को तत्काल प्रभाव से स्थगित किया जाता है .. </p>
<p>सादर </p> चित्र आधारित गीतिका छ॔द :…tag:openbooks.ning.com,2021-05-22:5170231:Comment:10601862021-05-22T13:58:34.474ZChetan Prakashhttps://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>चित्र आधारित गीतिका छ॔द :</p>
<p></p>
<p>राजा-रानी हो गये हैं बैठ वो रिक्शा अहा !</p>
<p>हँस रहे उन्मुक्त होकर बचपना है वो अहा !!</p>
<p></p>
<p>हास में आनन्द उनके मस्त दिखते चेहरे !</p>
<p>पा गये अत्यंत खुशियाँ दिख रही जो चेहरे !!</p>
<p></p>
<p>मुस्कराते रात-दिन हँसते सदा बचपन रहे !</p>
<p>फिक्र भी होती नहीं बचपन नशे में हम रहे !!</p>
<p></p>
<p>फाँदते ग॔गा किनारे कबड्डी हम खेलते !</p>
<p>खूब खाते खीर-पूरी द॔ड हम तो पेलते !!</p>
<p></p>
<p>शाम मैदानों कभी वर्षा सुबह बचपन…</p>
<p>चित्र आधारित गीतिका छ॔द :</p>
<p></p>
<p>राजा-रानी हो गये हैं बैठ वो रिक्शा अहा !</p>
<p>हँस रहे उन्मुक्त होकर बचपना है वो अहा !!</p>
<p></p>
<p>हास में आनन्द उनके मस्त दिखते चेहरे !</p>
<p>पा गये अत्यंत खुशियाँ दिख रही जो चेहरे !!</p>
<p></p>
<p>मुस्कराते रात-दिन हँसते सदा बचपन रहे !</p>
<p>फिक्र भी होती नहीं बचपन नशे में हम रहे !!</p>
<p></p>
<p>फाँदते ग॔गा किनारे कबड्डी हम खेलते !</p>
<p>खूब खाते खीर-पूरी द॔ड हम तो पेलते !!</p>
<p></p>
<p>शाम मैदानों कभी वर्षा सुबह बचपन अहा !</p>
<p>हम घरौंदे थे बनाते रेत पर बचपन अहा !!</p>
<p></p>
<p>लाज आती थी नहीं जब खोल दिल हँसते रहे !</p>
<p>सामने खतरों कभी लड़ते मजा करते रहे !!</p>
<p></p>
<p>सावनों बरसात में हम दौड़ते होते सड़क !</p>
<p>खेलते खोखो नगर बचपन रहे हम बेधड़क !!</p>
<p></p>
<p>नाव कागज की हमारी तैरती नालों सदा!</p>
<p>हम नहाते नाचते नंगे बदन गंगा सदा !!</p>
<p></p>
<p>थक गयी परवाज जब जा हम चढ़े पेड़ों अहा !</p>
<p>खूब खाते आम यारो तोड़ बागों में अहा !!</p>
<p></p>
<p>जब पकड़ता बागवाँ फिर पीटता वो थोक में !</p>
<p>दौड़ते हम भी बहुत पर मारता माली हमें !!</p>
<p></p>
<p>हम सिकन्दर गाँव के लाठी हमारे हाथ में !</p>
<p>थी शरारत यार जिगरी दोस्ती भारी हमें !!</p>
<p></p>
<p>क्या ठिकाना था खुशी का खूब दौलत जो रही !</p>
<p>फूल सा बचपन गया जाती हमारी लय रही !!</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवम् अप्रकाशित </p>
<p></p>
<p></p>
<p></p> आ. भाई गंगाधर जी, चित्र को पर…tag:openbooks.ning.com,2021-05-22:5170231:Comment:10604542021-05-22T07:54:38.460Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई गंगाधर जी, चित्र को परिभाषित करती सुन्दर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई गंगाधर जी, चित्र को परिभाषित करती सुन्दर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।</p> एक सूखा कौर खाकर नित गरीबी मे…tag:openbooks.ning.com,2021-05-22:5170231:Comment:10602902021-05-22T06:39:02.143Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>एक सूखा कौर खाकर नित गरीबी में जिये।<br></br>पर न खोया बालपन को छोड़ आये हाशिये।।<br></br>तात का रिक्सा सिंहासन वो बनाकर हँस दिये।<br></br>खोजना सुख काम इनका ये समय के गड़रिये।।<br></br>***<br></br>है हसी मुख पर समेटे खूब दो भाई बहन।<br></br>चाहते क्या बोलना मन में करो इसका मनन।*।<br></br>हो गरीबी रोग संकट मत करो दुख को वहन।<br></br>है जलाती सुख सभी सिर्फ चिन्ता की अगन।।<br></br>***<br></br>भाव मन में है नहीं भय का तनिक भी देखिए।<br></br>क्या करोना रोग है इन को न मतलब जानिए।।<br></br>कह रहे जैसे तजो दुख मत खुशी को रोकिए।<br></br>सत्य क्या…</p>
<p>एक सूखा कौर खाकर नित गरीबी में जिये।<br/>पर न खोया बालपन को छोड़ आये हाशिये।।<br/>तात का रिक्सा सिंहासन वो बनाकर हँस दिये।<br/>खोजना सुख काम इनका ये समय के गड़रिये।।<br/>***<br/>है हसी मुख पर समेटे खूब दो भाई बहन।<br/>चाहते क्या बोलना मन में करो इसका मनन।*।<br/>हो गरीबी रोग संकट मत करो दुख को वहन।<br/>है जलाती सुख सभी सिर्फ चिन्ता की अगन।।<br/>***<br/>भाव मन में है नहीं भय का तनिक भी देखिए।<br/>क्या करोना रोग है इन को न मतलब जानिए।।<br/>कह रहे जैसे तजो दुख मत खुशी को रोकिए।<br/>सत्य क्या इससे इतर है आप मन में सोचिए।।<br/>***<br/>कह रहे कुर्सी मिली है राज अपना हो गया।<br/>अब करेंगे देश हित में काम हम भी इक नया।।<br/>सिर्फ सेवा भाव होगा साथ मन में बस दया।<br/>हो सुरक्षित जी सके यह देश जीवन निर्भया।।<br/>***<br/>मौलिक/अप्रकाशित<br/>लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</p> (चित्राधारित गीतिका)
बैठ जाएं…tag:openbooks.ning.com,2021-05-22:5170231:Comment:10602812021-05-22T03:48:38.743ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'https://openbooks.ning.com/profile/GangaDharSharmaHindustan
(चित्राधारित गीतिका)<br />
बैठ जाएं आज रिक्सा में चलो दोनों वहाँ।<br />
है गया स्वामी कहीं रिक्सा खड़ा ख़ाली यहाँ।<br />
लाल प्यारी सीट देखो मोहती मेरा जिया।<br />
हाथ थामे जा चढ़े, बैठे, हुआ राजी हिया।।<br />
<br />
स्वर्ग में भी क्या मिलेगी मौज ऐसी पा रहे।<br />
मुस्कुराते चेहरे सन्देश ये फैला रहे।<br />
है नहीं पैसा ख़ुशी का उत्स सारे जान लो।<br />
है कहीं पैठी तुम्हारे ही दिलों में मान लो।।<br />
गंगा धर शर्मा 'हिन्दुस्तान'<br />
अजमेर (राज.)<br />
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
(चित्राधारित गीतिका)<br />
बैठ जाएं आज रिक्सा में चलो दोनों वहाँ।<br />
है गया स्वामी कहीं रिक्सा खड़ा ख़ाली यहाँ।<br />
लाल प्यारी सीट देखो मोहती मेरा जिया।<br />
हाथ थामे जा चढ़े, बैठे, हुआ राजी हिया।।<br />
<br />
स्वर्ग में भी क्या मिलेगी मौज ऐसी पा रहे।<br />
मुस्कुराते चेहरे सन्देश ये फैला रहे।<br />
है नहीं पैसा ख़ुशी का उत्स सारे जान लो।<br />
है कहीं पैठी तुम्हारे ही दिलों में मान लो।।<br />
गंगा धर शर्मा 'हिन्दुस्तान'<br />
अजमेर (राज.)<br />
(मौलिक एवं अप्रकाशित)