"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 120 - Open Books Online2024-03-29T01:42:50Zhttps://openbooks.ning.com/group/pop/forum/topics/120?commentId=5170231%3AComment%3A1058825&feed=yes&xn_auth=noकुछ चुनावी कर्म में....... बे…tag:openbooks.ning.com,2021-04-18:5170231:Comment:10586522021-04-18T17:04:21.254ZAazi Tamaamhttps://openbooks.ning.com/profile/AaziTamaa
<p>कुछ चुनावी कर्म में....... बेहद खूबसूरत कटाक्ष है</p>
<p></p>
<p>सादर प्रणाम आदरणीय प्रतिभा जी</p>
<p>प्रदत्त विषय पर बेहद खूबसूरत छंद रचना है</p>
<p>कुछ चुनावी कर्म में....... बेहद खूबसूरत कटाक्ष है</p>
<p></p>
<p>सादर प्रणाम आदरणीय प्रतिभा जी</p>
<p>प्रदत्त विषय पर बेहद खूबसूरत छंद रचना है</p> सुंदर छंद रचना है चित्र के पर…tag:openbooks.ning.com,2021-04-18:5170231:Comment:10586502021-04-18T16:00:41.530ZAazi Tamaamhttps://openbooks.ning.com/profile/AaziTamaa
<p>सुंदर छंद रचना है चित्र के परिपेक्ष्य में</p>
<p>बधाई स्वीकारें आदरणीय धामी सर</p>
<p></p>
<p>आज पहली बार मैंने भी गीतिका छंद लिखने की एक कोशिश की है गौर फर्मायियेगा</p>
<p>सादर</p>
<p>सुंदर छंद रचना है चित्र के परिपेक्ष्य में</p>
<p>बधाई स्वीकारें आदरणीय धामी सर</p>
<p></p>
<p>आज पहली बार मैंने भी गीतिका छंद लिखने की एक कोशिश की है गौर फर्मायियेगा</p>
<p>सादर</p> इस उत्साहवर्धन के लिये हार्दि…tag:openbooks.ning.com,2021-04-18:5170231:Comment:10588332021-04-18T13:16:46.652Zpratibha pandehttps://openbooks.ning.com/profile/pratibhapande
<p>इस उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मणधामी जी</p>
<p>इस उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मणधामी जी</p> आदरणीय
आप द्वारा रचित गीत के…tag:openbooks.ning.com,2021-04-18:5170231:Comment:10587542021-04-18T08:12:22.658Zpratibha pandehttps://openbooks.ning.com/profile/pratibhapande
<p>आदरणीय </p>
<p>आप द्वारा रचित गीत के भाव सुन्दर हैं पर इस उत्सव के नियमनुसार प्रदत्त छंद पर ही सृजन करना था। सादर</p>
<p>आदरणीय </p>
<p>आप द्वारा रचित गीत के भाव सुन्दर हैं पर इस उत्सव के नियमनुसार प्रदत्त छंद पर ही सृजन करना था। सादर</p> चित्र के भाव भी महामारी से उप…tag:openbooks.ning.com,2021-04-18:5170231:Comment:10587522021-04-18T08:03:10.004Zpratibha pandehttps://openbooks.ning.com/profile/pratibhapande
<p>चित्र के भाव भी महामारी से उपजी व्यथा के ही हैं। इसी भाव पर सार्थक छंद सृजन के लिये हार्दिक बधाई आदरणीया अंजली जी</p>
<p>चित्र के भाव भी महामारी से उपजी व्यथा के ही हैं। इसी भाव पर सार्थक छंद सृजन के लिये हार्दिक बधाई आदरणीया अंजली जी</p> महामारी के प्रकोप और चित्र को…tag:openbooks.ning.com,2021-04-18:5170231:Comment:10587492021-04-18T07:41:37.870Zpratibha pandehttps://openbooks.ning.com/profile/pratibhapande
<p>महामारी के प्रकोप और चित्र को भी समेटते हुए सार्थक छंद सृजन।हार्दिक बधाई आदरणीय भाई लक्ष्मण जी। सोच लो/ काट लो की तुकान्तता देख लें</p>
<p>महामारी के प्रकोप और चित्र को भी समेटते हुए सार्थक छंद सृजन।हार्दिक बधाई आदरणीय भाई लक्ष्मण जी। सोच लो/ काट लो की तुकान्तता देख लें</p> आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2021-04-18:5170231:Comment:10589102021-04-18T06:06:13.466Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सारगर्भित छन्द रचे हैं । हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सारगर्भित छन्द रचे हैं । हार्दिक बधाई।</p> आ. भाई चेतन जी , रचना पर उपस्…tag:openbooks.ning.com,2021-04-18:5170231:Comment:10586482021-04-18T05:58:54.872Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई चेतन जी , रचना पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद। //<span>चाहते होना जरा से दूर कैस तुम अजर //किस प््ररकार अशुुद्ध है मार्गदर्शन करेें। </span></p>
<p><span>व्याप्त 21 ही है व्याकरणाचार्यों से सलाह लेकर ही लिखा है ।</span></p>
<p><span>ओबीओ महोत्सव में भी स्वार्थ को आपने 4 ही गिना था जिसकी उत्तर शायद आपने देखा नहीं । सादर...</span></p>
<p></p>
<p>आ. भाई चेतन जी , रचना पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद। //<span>चाहते होना जरा से दूर कैस तुम अजर //किस प््ररकार अशुुद्ध है मार्गदर्शन करेें। </span></p>
<p><span>व्याप्त 21 ही है व्याकरणाचार्यों से सलाह लेकर ही लिखा है ।</span></p>
<p><span>ओबीओ महोत्सव में भी स्वार्थ को आपने 4 ही गिना था जिसकी उत्तर शायद आपने देखा नहीं । सादर...</span></p>
<p></p> नमस्कार, भाई लक्ष्मण सिंह…tag:openbooks.ning.com,2021-04-18:5170231:Comment:10589092021-04-18T05:38:55.542ZChetan Prakashhttps://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p> नमस्कार, भाई लक्ष्मण सिंह धामी मुसाफिर साहब, " चाहते होना जरा से दूर कैस तुम अजर , अशुद्ध है ! और, गीतिका मात्रिक छ॔द है, अत: व्याप्त चार मात्राएं है, न कि ( 21 ) तीन बंधु !</p>
<p></p>
<p> नमस्कार, भाई लक्ष्मण सिंह धामी मुसाफिर साहब, " चाहते होना जरा से दूर कैस तुम अजर , अशुद्ध है ! और, गीतिका मात्रिक छ॔द है, अत: व्याप्त चार मात्राएं है, न कि ( 21 ) तीन बंधु !</p>
<p></p> ये गरीबी कम लगी क्या, प्रभु स…tag:openbooks.ning.com,2021-04-18:5170231:Comment:10586452021-04-18T05:18:49.249Zpratibha pandehttps://openbooks.ning.com/profile/pratibhapande
<p>ये गरीबी कम लगी क्या, प्रभु सताने के लिये<br/> जो महामारी भयंकर ,दी रुलाने के लिये<br/>बाँध मुखपट्टा हरा हम, पेट को सहला रहे<br/>तू सुनेगा एक दिन ये, सोच मन बहला रहे</p>
<p><br/>चरमराई क्यों व्यवस्था, नैन सूने पूछते<br/>और खेवनहार सारे, आँकड़ों से जूझते<br/>कुछ चुनावी कर्म में कुछ आस्था में मग्न हैं<br/>खेल दोषारोपणों के, सत्य सारे नग्न हैं</p>
<p>_____</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>ये गरीबी कम लगी क्या, प्रभु सताने के लिये<br/> जो महामारी भयंकर ,दी रुलाने के लिये<br/>बाँध मुखपट्टा हरा हम, पेट को सहला रहे<br/>तू सुनेगा एक दिन ये, सोच मन बहला रहे</p>
<p><br/>चरमराई क्यों व्यवस्था, नैन सूने पूछते<br/>और खेवनहार सारे, आँकड़ों से जूझते<br/>कुछ चुनावी कर्म में कुछ आस्था में मग्न हैं<br/>खेल दोषारोपणों के, सत्य सारे नग्न हैं</p>
<p>_____</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>