"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 119 - Open Books Online2024-03-29T13:10:42Zhttps://openbooks.ning.com/group/pop/forum/topics/119?commentId=5170231%3AComment%3A1056701&feed=yes&xn_auth=noप्रस्तुत छंदों की सराहना के …tag:openbooks.ning.com,2021-03-21:5170231:Comment:10567042021-03-21T18:24:55.210ZAshok Kumar Raktalehttps://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>प्रस्तुत छंदों की सराहना के लिए आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब. सादर</p>
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<p>प्रस्तुत छंदों की सराहना के लिए आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब. सादर</p>
<p></p> आदरणीय अखिलेश भाई, आपकी प्रस…tag:openbooks.ning.com,2021-03-21:5170231:Comment:10567972021-03-21T17:26:06.802ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p></p>
<p>आदरणीय अखिलेश भाई, आपकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद. </p>
<p>वैसे, हिन्दी के आलोक में जहर तथा शहर की तुक विन्यास के अनुसार भले उचित प्रतीत हो, शब्दकलों के अनुसार छंद का विन्यास तथा प्रवाह प्रभावित होता है. </p>
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<p>बहरहाल, आप अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें. </p>
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<p>शुभातिशुभ</p>
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<p>आदरणीय अखिलेश भाई, आपकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद. </p>
<p>वैसे, हिन्दी के आलोक में जहर तथा शहर की तुक विन्यास के अनुसार भले उचित प्रतीत हो, शब्दकलों के अनुसार छंद का विन्यास तथा प्रवाह प्रभावित होता है. </p>
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<p>बहरहाल, आप अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें. </p>
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<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p> आदरणीय अशोक भाईजी, आपने चित्…tag:openbooks.ning.com,2021-03-21:5170231:Comment:10568992021-03-21T17:19:37.332ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p></p>
<p>आदरणीय अशोक भाईजी, आपने चित्र को एक अलग ही आयाम से देखने का प्रयास किया है. </p>
<p>चित्र की विहंगमता तथा हरीतिमा की व्यापकता की गोद में धूप की कोमलता को आप रंग का पर्याय जीने की बात कर रहे हैं. यह प्रदत्त चित्र की भावना को और विस्तार देना ही कहलाएगा.</p>
<p>रचना के कथ्य तथा संयोजन के प्रति हार्दिक धन्यवाद. </p>
<p>शुभातिशुभ</p>
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<p>आदरणीय अशोक भाईजी, आपने चित्र को एक अलग ही आयाम से देखने का प्रयास किया है. </p>
<p>चित्र की विहंगमता तथा हरीतिमा की व्यापकता की गोद में धूप की कोमलता को आप रंग का पर्याय जीने की बात कर रहे हैं. यह प्रदत्त चित्र की भावना को और विस्तार देना ही कहलाएगा.</p>
<p>रचना के कथ्य तथा संयोजन के प्रति हार्दिक धन्यवाद. </p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p> आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, क्या…tag:openbooks.ning.com,2021-03-21:5170231:Comment:10569672021-03-21T17:11:56.539ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p></p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, क्या ही सुंदर संयोजन हुआ है ! </p>
<p></p>
<p><span>चहुँ दिशा लावण्यता से स्वर्ग सी लगती धरा।</span><br></br><span>है लिए कणकण जवानी त्यागकर देखो जरा।। .. वाह वाह .. क्या ही उत्फुल्ल करती पंक्तियाँ हुई हैं </span></p>
<p></p>
<p><span>लग रही उज्ज्वल धवल घाटी निखर के धूप से ... यहाँ ’के’ के स्थान पर ’कर’ का होना न केवल भाषा के तौर पर बल्कि प्रवाह के तौर पर भी उचित होता. वैसे बोलचाल के आलोक में ’के’ गलत नहीं है. </span></p>
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<p><span>धूप बढ़ती प्रातः चढ़ जब…</span></p>
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<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, क्या ही सुंदर संयोजन हुआ है ! </p>
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<p><span>चहुँ दिशा लावण्यता से स्वर्ग सी लगती धरा।</span><br/><span>है लिए कणकण जवानी त्यागकर देखो जरा।। .. वाह वाह .. क्या ही उत्फुल्ल करती पंक्तियाँ हुई हैं </span></p>
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<p><span>लग रही उज्ज्वल धवल घाटी निखर के धूप से ... यहाँ ’के’ के स्थान पर ’कर’ का होना न केवल भाषा के तौर पर बल्कि प्रवाह के तौर पर भी उचित होता. वैसे बोलचाल के आलोक में ’के’ गलत नहीं है. </span></p>
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<p><span>धूप बढ़ती प्रातः चढ़ जब रश्मियों की सीढ़ियाँ ... धूप चढ़ती भोर में जब रश्मियों की सीढ़ियाँ .. </span></p>
<p><span>वस्तुतः, विसर्ग की मात्रा दो होती है. इस कारण पंक्ति का विन्यास अशुद्ध हो रहा था. </span></p>
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<p><span>आपकी इस अभिलाषा की विवशता किंतु तीव्रता को हम सभी अनुभव कर रहे हैं.. </span></p>
<p><span>बहुत ही सार्थक रचना से आपने आयोजन को लाभान्वित किया है, आदरणीय. </span></p>
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<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p> ओह ! तो यह कारण है कार्यक्रम…tag:openbooks.ning.com,2021-03-21:5170231:Comment:10567932021-03-21T15:59:54.372ZAshok Kumar Raktalehttps://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>ओह ! तो यह कारण है कार्यक्रम के प्रारम्भ आपकी रचना न होने का. आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें. मेरी ईश्वर से प्रार्थना है, वह आपको स्वस्थ करे. सादर</p>
<p>ओह ! तो यह कारण है कार्यक्रम के प्रारम्भ आपकी रचना न होने का. आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें. मेरी ईश्वर से प्रार्थना है, वह आपको स्वस्थ करे. सादर</p> आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्त…tag:openbooks.ning.com,2021-03-21:5170231:Comment:10567022021-03-21T15:56:04.621ZAshok Kumar Raktalehttps://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी सादर नमस्कार, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करते सुंदर गीतिका छंद रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर</p>
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<p>आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी सादर नमस्कार, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करते सुंदर गीतिका छंद रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर</p>
<p></p> आदरणीय अशोक भाईजी
पैनी दृष्टि…tag:openbooks.ning.com,2021-03-21:5170231:Comment:10567012021-03-21T15:50:58.669Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय अशोक भाईजी</p>
<p>पैनी दृष्टि डाली है आपने चित्र पर और छंद भी खूबसूरत रचे हैं , हृदय से बधाई ।</p>
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<p>आदरणीय अशोक भाईजी</p>
<p>पैनी दृष्टि डाली है आपने चित्र पर और छंद भी खूबसूरत रचे हैं , हृदय से बधाई ।</p>
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<p></p> आदरणीय लक्ष्मण भाईजी
क्या कह…tag:openbooks.ning.com,2021-03-21:5170231:Comment:10569662021-03-21T15:45:08.157Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय लक्ष्मण भाईजी</p>
<p>क्या कहना,कुछ भीछूटा नहीं चित्र और भावनाओं का सम्पूर्ण वर्णन किया है आपने। हृदय से बधाई।</p>
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<p>आदरणीय लक्ष्मण भाईजी</p>
<p>क्या कहना,कुछ भीछूटा नहीं चित्र और भावनाओं का सम्पूर्ण वर्णन किया है आपने। हृदय से बधाई।</p>
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<p></p> मेरी तबियत महीनों से ऊँच नीच…tag:openbooks.ning.com,2021-03-21:5170231:Comment:10569652021-03-21T15:29:50.199Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>मेरी तबियत महीनों से ऊँच नीच चल रही है इसलिए ज्यादा समय दे नहीं पाया।</p>
<p>मेरी तबियत महीनों से ऊँच नीच चल रही है इसलिए ज्यादा समय दे नहीं पाया।</p> इस धरा पर स्वर्ग भी है देखना…tag:openbooks.ning.com,2021-03-21:5170231:Comment:10568942021-03-21T15:27:39.540Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>इस धरा पर स्वर्ग भी है देखना हो आइए।</p>
<p>जो वहाँ आनंद है वो घाटियों में पाइए॥</p>
<p>ग्रीष्म की गर्मी नहीं ना है प्रदूषण शहर का।</p>
<p>डर नहीं बम गोलियों का ना हवा में जहर का\।</p>
<p> </p>
<p>एक खाई सी बनी चारों दिशा हैं घाटियाँ।</p>
<p>पर्वतों के बीच में सिमटी हुई पगडंडियाँ॥</p>
<p>गंध चारों ओर है फूलों भरी हैं वादियाँ।</p>
<p>रोग है ना शोक है खुशहाल हैं नर नारियाँ॥</p>
<p> </p>
<p>..................................</p>
<p>[मौलिक एवं अप्रकाशित ]</p>
<p>इस धरा पर स्वर्ग भी है देखना हो आइए।</p>
<p>जो वहाँ आनंद है वो घाटियों में पाइए॥</p>
<p>ग्रीष्म की गर्मी नहीं ना है प्रदूषण शहर का।</p>
<p>डर नहीं बम गोलियों का ना हवा में जहर का\।</p>
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<p>एक खाई सी बनी चारों दिशा हैं घाटियाँ।</p>
<p>पर्वतों के बीच में सिमटी हुई पगडंडियाँ॥</p>
<p>गंध चारों ओर है फूलों भरी हैं वादियाँ।</p>
<p>रोग है ना शोक है खुशहाल हैं नर नारियाँ॥</p>
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<p>[मौलिक एवं अप्रकाशित ]</p>