"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 118 - Open Books Online2024-03-29T16:02:00Zhttps://openbooks.ning.com/group/pop/forum/topics/118?commentId=5170231%3AComment%3A1054292&feed=yes&xn_auth=noकविता - अक्षरों से स्वप्न तक…tag:openbooks.ning.com,2021-02-21:5170231:Comment:10548332021-02-21T18:27:52.546ZAazi Tamaamhttps://openbooks.ning.com/profile/AaziTamaa
<p>कविता - अक्षरों से स्वप्न तक</p>
<p></p>
<p>अक्षरों के स्वर से निकली कंठ की आवाज है</p>
<p>इस धरा पर पर तैरने का ये अभी आग़ाज़ है</p>
<p></p>
<p></p>
<p>नित नये सपने सजा हद बंदिशो की तोड़ता है</p>
<p>अक्षरों में कैद कर कर के गगन में छोड़ता है</p>
<p></p>
<p></p>
<p>आसमानों में युगों से तैरते ख्वाबों के सागर</p>
<p>रोज़ कितने नये फसाने भेजते हैं इस धरा पर</p>
<p></p>
<p></p>
<p>हो कोई साँचा मनुष्य जिसमें स्वप्न डालकर</p>
<p>रोज़ उन स्वप्नों के बनते हैं न जाने कितने…</p>
<p>कविता - अक्षरों से स्वप्न तक</p>
<p></p>
<p>अक्षरों के स्वर से निकली कंठ की आवाज है</p>
<p>इस धरा पर पर तैरने का ये अभी आग़ाज़ है</p>
<p></p>
<p></p>
<p>नित नये सपने सजा हद बंदिशो की तोड़ता है</p>
<p>अक्षरों में कैद कर कर के गगन में छोड़ता है</p>
<p></p>
<p></p>
<p>आसमानों में युगों से तैरते ख्वाबों के सागर</p>
<p>रोज़ कितने नये फसाने भेजते हैं इस धरा पर</p>
<p></p>
<p></p>
<p>हो कोई साँचा मनुष्य जिसमें स्वप्न डालकर</p>
<p>रोज़ उन स्वप्नों के बनते हैं न जाने कितने अक्षर</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अक्षरों का ये सफ़र और ज्ञान की अज्ञानता</p>
<p>खेल में नित तुच्छ सी ये मनुष्य की महानता</p>
<p></p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित) </p> आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन ।…tag:openbooks.ning.com,2021-02-21:5170231:Comment:10545852021-02-21T18:05:19.016Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन । अच्छा गीत हुआ है । हार्दिक बधाई। </p>
<p>आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन । अच्छा गीत हुआ है । हार्दिक बधाई। </p> आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवाद…tag:openbooks.ning.com,2021-02-21:5170231:Comment:10546492021-02-21T18:03:42.274Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन । प्रदत्त विषय पर अच्छी प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन । प्रदत्त विषय पर अच्छी प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई।</p> आदरणीया प्रतिभाजी
गीतिका छंद…tag:openbooks.ning.com,2021-02-21:5170231:Comment:10546442021-02-21T17:15:53.177Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीया प्रतिभाजी</p>
<p>गीतिका छंद आधारित गीत की सुंदर प्रस्तुति के लिए हृदय से बधाई।</p>
<p>गीतिका छंद के सूत्र / नियमों की संक्षिप्त जानकारी देना आप भूल गईंं।</p>
<p></p>
<p>आदरणीया प्रतिभाजी</p>
<p>गीतिका छंद आधारित गीत की सुंदर प्रस्तुति के लिए हृदय से बधाई।</p>
<p>गीतिका छंद के सूत्र / नियमों की संक्षिप्त जानकारी देना आप भूल गईंं।</p>
<p></p> आदरणीया प्रतिभाजी
रचना की प्र…tag:openbooks.ning.com,2021-02-21:5170231:Comment:10545802021-02-21T17:10:11.527Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीया प्रतिभाजी</p>
<p>रचना की प्रशंसा केलिए हृदय से धन्यवाद आभार आपका ।</p>
<p>त्रुटि मैं स्वयं ढूंढ नहीं पाया कृपया आपही बतला दीजिए।</p>
<p>कुछ दिनों से नेट की समस्या से परेशान हूँ।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>आदरणीया प्रतिभाजी</p>
<p>रचना की प्रशंसा केलिए हृदय से धन्यवाद आभार आपका ।</p>
<p>त्रुटि मैं स्वयं ढूंढ नहीं पाया कृपया आपही बतला दीजिए।</p>
<p>कुछ दिनों से नेट की समस्या से परेशान हूँ।</p>
<p></p>
<p></p> आदरणीय अखिलेश जी
मंच पर आपकी…tag:openbooks.ning.com,2021-02-21:5170231:Comment:10542922021-02-21T06:58:53.199Zpratibha pandehttps://openbooks.ning.com/profile/pratibhapande
<p>आदरणीय अखिलेश जी</p>
<p> मंच पर आपकी फीता काट प्रस्तुती के लिये बधाई। पढ़ने में मन नहीं लगा पा रही बिटिया पर बहुत प्यारी छंद रचना। कुछ एक जगह पर कुछ शब्द टंकण से छूट गये हैं <em>जो प्रवाह गड़बड़ा रहे हैं </em></p>
<p> </p>
<p>आदरणीय अखिलेश जी</p>
<p> मंच पर आपकी फीता काट प्रस्तुती के लिये बधाई। पढ़ने में मन नहीं लगा पा रही बिटिया पर बहुत प्यारी छंद रचना। कुछ एक जगह पर कुछ शब्द टंकण से छूट गये हैं <em>जो प्रवाह गड़बड़ा रहे हैं </em></p>
<p> </p> गीत ( गीतिका छंद)
जा रहे अक…tag:openbooks.ning.com,2021-02-21:5170231:Comment:10542812021-02-21T05:24:48.847Zpratibha pandehttps://openbooks.ning.com/profile/pratibhapande
<p>गीत ( गीतिका छंद)</p>
<p></p>
<p></p>
<p>जा रहे अक्षर कहाँ ये</p>
<p>छोड़ कर अपना जहाँ</p>
<p></p>
<p>कह रहे अब रोकना मत</p>
<p>ठान ली तो ठान ली</p>
<p>क़ैद में रहकर किताबी</p>
<p>खूब लंबी तान ली</p>
<p>बंदिशों से दूर खुद को</p>
<p>आज थोड़ा जाँच लें</p>
<p>काम कितने आ रहे हम</p>
<p>सत्य थोड़ा बाँच लें</p>
<p></p>
<p>दे रही आवाज पुस्तक</p>
<p>लौट आओ घर यहाँ</p>
<p></p>
<p>ज्ञान वो ही ज्ञान जो कुछ</p>
<p>दे सके उपयोगिता</p>
<p>मंडियों में ज्ञान की पर</p>
<p>ज्ञान बस प्रतियोगिता</p>
<p>है उतरता…</p>
<p>गीत ( गीतिका छंद)</p>
<p></p>
<p></p>
<p>जा रहे अक्षर कहाँ ये</p>
<p>छोड़ कर अपना जहाँ</p>
<p></p>
<p>कह रहे अब रोकना मत</p>
<p>ठान ली तो ठान ली</p>
<p>क़ैद में रहकर किताबी</p>
<p>खूब लंबी तान ली</p>
<p>बंदिशों से दूर खुद को</p>
<p>आज थोड़ा जाँच लें</p>
<p>काम कितने आ रहे हम</p>
<p>सत्य थोड़ा बाँच लें</p>
<p></p>
<p>दे रही आवाज पुस्तक</p>
<p>लौट आओ घर यहाँ</p>
<p></p>
<p>ज्ञान वो ही ज्ञान जो कुछ</p>
<p>दे सके उपयोगिता</p>
<p>मंडियों में ज्ञान की पर</p>
<p>ज्ञान बस प्रतियोगिता</p>
<p>है उतरता ज्ञान थोथा</p>
<p>जब जमीनी हाल पर</p>
<p>सुर नहीं वो साध पाता</p>
<p>सत्य की तब ताल पर</p>
<p></p>
<p>जिंदगी के गुर सिखाये</p>
<p>पाठशाला वो कहाँ</p>
<p>_______</p>
<p style="text-align: right;">___</p>
<p> मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p></p> छंद - चंद्रकांता(राजभा राजभा…tag:openbooks.ning.com,2021-02-20:5170231:Comment:10541402021-02-20T19:10:10.884ZMukulkumar Limbadhttps://openbooks.ning.com/profile/MukulLimbad
<p>छंद - चंद्रकांता<br></br>(राजभा राजभा मातारा सलगा यमाता = 15 वर्ण)<br></br>यति = 7, 8</p>
<p></p>
<p>देखती आसमाँ को जो बादल से घिरा हैं<br></br>अब्द हैं श्वेत देखो नीले नभ से मिला हैं<br></br>बात क्या हैं कहो ना! बेटी तुम आज बोलो<br></br>ये पढ़ाई लिखाई से ही सब राज खोलो</p>
<p></p>
<p>हाथ में तो रखी थी वो एक किताब खोली<br></br>राज कोई खुला हो जैसे वह आज बोली<br></br>हो गया ये करिश्मा जादू यह बात कैसी<br></br>ख़्वाब में खो गई वो छोरी अनजान ऐसी</p>
<p></p>
<p>आश हैं एक छोटी सी, पंख मिले उड़ूँगी<br></br>आसमाँ में उड़ूँगी…</p>
<p>छंद - चंद्रकांता<br/>(राजभा राजभा मातारा सलगा यमाता = 15 वर्ण)<br/>यति = 7, 8</p>
<p></p>
<p>देखती आसमाँ को जो बादल से घिरा हैं<br/>अब्द हैं श्वेत देखो नीले नभ से मिला हैं<br/>बात क्या हैं कहो ना! बेटी तुम आज बोलो<br/>ये पढ़ाई लिखाई से ही सब राज खोलो</p>
<p></p>
<p>हाथ में तो रखी थी वो एक किताब खोली<br/>राज कोई खुला हो जैसे वह आज बोली<br/>हो गया ये करिश्मा जादू यह बात कैसी<br/>ख़्वाब में खो गई वो छोरी अनजान ऐसी</p>
<p></p>
<p>आश हैं एक छोटी सी, पंख मिले उड़ूँगी<br/>आसमाँ में उड़ूँगी मैं सोनपरी बनूँगी<br/>फूल जैसे महेंकूँ भोले मन से रहूँगी<br/>चांद तारे सभी को छूके दिलमें भरूँगी</p>
<p></p>
<p>दूर हैं आभ तो ना छोड़ो सपने अधूरे<br/>पार होंगे सही में तेरे सपने अधूरे<br/>देख सीधी नहीं हैं ये अंबर राह जानो<br/>तो पढ़ो आज से ही मेरी यह बात मानो</p>
<p></p>
<p>******* (मौलिक एवं अप्रकाशित) *******</p> पहले मतले के ऊला से, कृपया…tag:openbooks.ning.com,2021-02-20:5170231:Comment:10540312021-02-20T12:16:13.099ZChetan Prakashhttps://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p> पहले मतले के ऊला से, कृपया 'हैं निकाल कर पढ़ने की ज़हमत फरमाएँ, आभार ! </p>
<p> पहले मतले के ऊला से, कृपया 'हैं निकाल कर पढ़ने की ज़हमत फरमाएँ, आभार ! </p> ग़ज़ल
1222. 1222. 1222…tag:openbooks.ning.com,2021-02-20:5170231:Comment:10537822021-02-20T11:48:57.725ZChetan Prakashhttps://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p></p>
<p>ग़ज़ल</p>
<p></p>
<p>1222. 1222. 1222. 1222</p>
<p></p>
<p></p>
<p>कि फूटा ज्वार बासंती हिलोरें मन हैं अहा राधा |</p>
<p>वो ज्वाला सुप्त बहती मन रही सावन कहा राधा |</p>
<p></p>
<p>प्रिया उसकी रही है भेज पाती कान्हा, राधा |</p>
<p>असर मुझ पर हुआ बिल्कुल नहीं ऊधौ, रहा राधा |</p>
<p></p>
<p>शिकारी काम का वो देवता जालिम, सितमगर है,</p>
<p>हजारों ख्वाब लिपटे हैं अभी तन-मन लगा राधा |</p>
<p></p>
<p>अभी तो गोपियों की भाव धारा में नहाती हूँ,</p>
<p>सुनो ऊधौ तेरा दर्शन…</p>
<p></p>
<p>ग़ज़ल</p>
<p></p>
<p>1222. 1222. 1222. 1222</p>
<p></p>
<p></p>
<p>कि फूटा ज्वार बासंती हिलोरें मन हैं अहा राधा |</p>
<p>वो ज्वाला सुप्त बहती मन रही सावन कहा राधा |</p>
<p></p>
<p>प्रिया उसकी रही है भेज पाती कान्हा, राधा |</p>
<p>असर मुझ पर हुआ बिल्कुल नहीं ऊधौ, रहा राधा |</p>
<p></p>
<p>शिकारी काम का वो देवता जालिम, सितमगर है,</p>
<p>हजारों ख्वाब लिपटे हैं अभी तन-मन लगा राधा |</p>
<p></p>
<p>अभी तो गोपियों की भाव धारा में नहाती हूँ,</p>
<p>सुनो ऊधौ तेरा दर्शन नहीं स्वीकार हुआ, राधा |</p>
<p></p>
<p>तुम्हारा फलसफा ऊधौ हमें बेकार लगता है,</p>
<p>अलौकिक प्रेम अपनी गोपियों का है, जँचा राधा |</p>
<p></p>
<p>चिराग अलादीन साकार द्वारा भेजते पाती,</p>
<p>हमारा कृष्ण उसकी हम ऋचाएं हैं, बता राधा | </p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>