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2024-03-29T11:28:46Z
kanta roy
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प्रसाद बुझी हम पीबी रहल छी (बाबा के गीत )
tag:openbooks.ning.com,2016-03-05:5170231:Topic:747532
2016-03-05T09:52:00.719Z
kanta roy
https://openbooks.ning.com/profile/kantaroy
<p></p>
<p><br></br>प्रसाद बुझी हम पीबी रहल छी ई जीवन दुःख बाबा यौ <br></br>नाम अहाँ के रटते -रटते ,करबै जीवन अंत यौ.......</p>
<p></p>
<p>प्रसाद बुझी हम पीबी रहल छी ई जीवन दुःख बाबा यौ</p>
<p></p>
<p>आहाँ केर नगरी सुन्दर नगरी ,कोना कय पेबई दरसन यौ <br></br>कोना -कोना कय हम निहारब ,आहाँक मुख चन्द्र यौ <br></br>छी हम बहुत अभागल आँहाँ ने भेलहुँ संग यौ.........</p>
<p></p>
<p>प्रसाद बुझी हम पीबी रहल छी ई जीवन दुःख बाबा यौ</p>
<p></p>
<p>सर्प विचरत अंग -अंग में , बदन चन्दन लेप यौ <br></br> साथी बसहा मुड़ी झुलाबे ,गौरी…</p>
<p></p>
<p><br/>प्रसाद बुझी हम पीबी रहल छी ई जीवन दुःख बाबा यौ <br/>नाम अहाँ के रटते -रटते ,करबै जीवन अंत यौ.......</p>
<p></p>
<p>प्रसाद बुझी हम पीबी रहल छी ई जीवन दुःख बाबा यौ</p>
<p></p>
<p>आहाँ केर नगरी सुन्दर नगरी ,कोना कय पेबई दरसन यौ <br/>कोना -कोना कय हम निहारब ,आहाँक मुख चन्द्र यौ <br/>छी हम बहुत अभागल आँहाँ ने भेलहुँ संग यौ.........</p>
<p></p>
<p>प्रसाद बुझी हम पीबी रहल छी ई जीवन दुःख बाबा यौ</p>
<p></p>
<p>सर्प विचरत अंग -अंग में , बदन चन्दन लेप यौ <br/> साथी बसहा मुड़ी झुलाबे ,गौरी मुख मुस्कान यौ <br/>ज्युँ हम होइतहुँ सेवक आँहाँके , होइतहुँ हम धन्य यौ.......</p>
<p></p>
<p>प्रसाद बुझी हम पीबी रहल छी ई जीवन दुःख बाबा यौ<br/>नाम अहाँ के रटते -रटते ,करबै जीवन अंत यौ</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
जकरे देह में आगि लगैत छैक सैह ने जड़ैत अछि (लघुकथा)
tag:openbooks.ning.com,2015-08-23:5170231:Topic:691376
2015-08-23T14:30:50.026Z
kanta roy
https://openbooks.ning.com/profile/kantaroy
<p><span style="font-family: tahoma, arial, helvetica, sans-serif;">एक दिन दू आदमी के झगड़ा होइत रहैक , जकर गलती रहइ से ओहि ठाम उपस्थित लोक के बेर - बेर दोसर के इंगित कs कहय जे एकर बात पर हमरा देह में आगि लागि जाइत अछि । ओहि लोकक बीच में एकटा पंडीजी सेहो रहथि , ओ कहनलनि बौआ जकरे देह में आगि लगैत छैक सैह ने जड़ैत अछि , इ बात कयको बेर ओकरा कहलाह आ जिनका कहथि ओ बेर बेर एकेटा बात कहथि - हमरा देह में आगि लागि जाइत अछि । पंडीजी बाद में ओहि ठाम सँ चलि गेलाह।…</span> <br></br></p>
<p><span style="font-family: tahoma, arial, helvetica, sans-serif;">एक दिन दू आदमी के झगड़ा होइत रहैक , जकर गलती रहइ से ओहि ठाम उपस्थित लोक के बेर - बेर दोसर के इंगित कs कहय जे एकर बात पर हमरा देह में आगि लागि जाइत अछि । ओहि लोकक बीच में एकटा पंडीजी सेहो रहथि , ओ कहनलनि बौआ जकरे देह में आगि लगैत छैक सैह ने जड़ैत अछि , इ बात कयको बेर ओकरा कहलाह आ जिनका कहथि ओ बेर बेर एकेटा बात कहथि - हमरा देह में आगि लागि जाइत अछि । पंडीजी बाद में ओहि ठाम सँ चलि गेलाह।</span> <br/><span style="font-family: tahoma, arial, helvetica, sans-serif;">संजय झा "नागदह"</span></p>
<p><span style="font-family: tahoma, arial, helvetica, sans-serif;">(मौलिक आ अप्रकाशित )</span></p>
अथ फिनायल कथा !
tag:openbooks.ning.com,2015-08-22:5170231:Topic:691447
2015-08-22T18:50:33.640Z
kanta roy
https://openbooks.ning.com/profile/kantaroy
<p></p>
<p>दुःख हरो द्वारका नाथ शरण मैं तेरी ……. ! <br></br>मोबाइलक घण्टी बाजल ! स्क्रीन पर चमकै छल “ कनियाँ के फोन ” ! <span class="text_exposed_show"><br></br>इग्नोरक त प्रश्ने नहि !! धरफरा क फोन उठौलौं <br></br>----- हेलौ ! .... कहु ! सब ठिक कि ने ?<br></br>---- की ठीक ! ... लंच केलौं। <br></br>----- हँ ! ..... छौड़ा सब ठिक अछि कि ने ? <br></br>------ की ठीक रहत ! ...... जखन स' दर्श स्कूल सँ आएल अछि दर्श आ रित्विक दुनू उठ्ठम पटका केने अछि, मुदा ठीक अछि। <br></br>------ यै , हमरा त' आहाँक फोनक घण्टी सुनिकय कने काल लेल…</span></p>
<p></p>
<p>दुःख हरो द्वारका नाथ शरण मैं तेरी ……. ! <br/>मोबाइलक घण्टी बाजल ! स्क्रीन पर चमकै छल “ कनियाँ के फोन ” ! <span class="text_exposed_show"><br/>इग्नोरक त प्रश्ने नहि !! धरफरा क फोन उठौलौं <br/>----- हेलौ ! .... कहु ! सब ठिक कि ने ?<br/>---- की ठीक ! ... लंच केलौं। <br/>----- हँ ! ..... छौड़ा सब ठिक अछि कि ने ? <br/>------ की ठीक रहत ! ...... जखन स' दर्श स्कूल सँ आएल अछि दर्श आ रित्विक दुनू उठ्ठम पटका केने अछि, मुदा ठीक अछि। <br/>------ यै , हमरा त' आहाँक फोनक घण्टी सुनिकय कने काल लेल बुझू त' हृदयक गति रुकि जाइत अछि । होइत रहइया जे की केलक इ सब छौड़ा से नहि जानि । जा धरि आहाँ इ नहि कहि दैत छी जे ई अगत्ती सब ठीक अछि ता धरि साँस टंगले रहैया नञि बाहर छोड़ि पबै छी आ नञि अन्दर क पबै छी । डरे बुझू प्राण सुखायल रहैया। तैं कहैत रहैत छी जे फोन अनेरो नहि कैल करु । ( मक्खन लगेलौं ) <br/>------- त' आहाँ अपने मोने एक बेर फोन क लेब से त' होइया नहि ! ( निर्विकार बजलैन ) <br/>-------- व्यस्त रहै छी , तैं नहि क पबैत छी। ( दाब देलौं ) <br/>-------- फेसबुक पर की ऑफिसक में !!! ( कनिया टिपलैन्हि । ) <br/>-------- छोड़ू इ बात सब ......... कहु कोनो खास बात !! ( मिमियैलियन ) <br/>---------- हँ ! ( हुँकारी देलैन ) <br/>---------- से की ? ..... बाजु ! ( मन हुदबुदाय लागल ) <br/>---------- काल्हिखन छोटका बौआ सबटा फेनाइल हरा देलकै , से अबैत काल एक बोतल फेनाइल ल' लेब । माँछी देखाइत छल, कतवो साफ क दैत छियै तैयौ एक - आध टा आबिए जाइत छैक। ( समस्या प्रकट केलन्हि ) <br/>---------- एकर माने ठीक सँ सफाई नै करैत हेबै । ठीक सँ कहियौ काज बाली के पोछा लगाओत । सबतरि माँछिये लगै छै की ? ( उत्क्रोँच देलियैन ) <br/>----------- यौ अपना भरि त' ठीके सँ लगबै छै, हम ताहि द्वारे आन काज छोड़ि पोछा लगबय काल हम ओकरे लग ठाढ़ रहै छी जे कहीं कतहुँ छोड़ि नहि दए। ( सफाई देलैन ) <br/>------------ गन्दा रहइया तैं न माँछी लगैया ? नहि त' कियै लगितै । ( टीपलहुँ ) <br/>------------ केहन गप्प कहै छी , हम त यौ बिना गन्दा के सेहो माँछी लगैत देखलियैया !!! ( कनी गर्मेली ) <br/>------------ लागि सकैत अछि जेना खाना परोसि राखी दियौ वा कोनो खाय बला सामान उघार छोड़ि दियौ , ओहो सब पर माँछी लागय लागत। हमरा जनैत ता एहनो भ' सकैत अछि। ( मद्धिमें बुझबय लगलहुँ ) <br/>----------- सेहो ठीक कहै छी, मुदा माछिक घर में प्रवेश बिना गन्दगी के संभव नहि। घर यदि सम्पूर्ण रूप सँ साफ़ - सुथरा रहत त' खेनाइ दू मिनट उघारो रहि सकैत अछि , ओहि पर माँछी नहि लागsत। अहुँ के लोक आ कि हम तावते धरि निक कहब, जा धरि स्वच्छ हृदय सँ संग रहब, आ जहिया मोन में कचरा भरि जायत तहिया हम की आ दुनियाँ की , नुका क' वा प्रत्यक्ष , कम की बेसी, खराप त कहबे करत । ( ज्ञान देलैनि ) <br/>---------- फेनाइल लेल फोन केने छलहुँ की हमरा संग लड़य लेल। हद भ गेल मौका भेटल की टूटि पड़ै छी । ...... ठीक छै , बड्ड काज अछि । अबैत काल याद रहत त' नेने आयब। ...... फोन धरू ! किछु भोजनो कैल करी ... खाली हमरे माथ स काज नहि चलाबी ! <br/>जा किछु आर टिपतथि ताबैत फोन काटि धम्म स कुर्सी पर बैसि गेलहुँ आ पनिक बोतल मुँह में द देलियै .... गट गट ...... !!!!</span></p>
<div class="text_exposed_show"><p>-------- संजय झा "नागदह"</p>
<p>(मौलिक आ अप्रकाशित) </p>
</div>
चरिपतिया
tag:openbooks.ning.com,2015-08-11:5170231:Topic:687892
2015-08-11T03:56:20.513Z
kanta roy
https://openbooks.ning.com/profile/kantaroy
<p> (१)<br></br>चाहे आहाँ रहु दिल्ली आ मुम्बई,<br></br>वा रहु देश-विदेशक कोनो कोण में,<br></br>मैथिल भेटिते मैथिली बाजू <br></br>टन द' मिठगर बोल में ।</p>
<p> (२)<br></br>अमावश्या राति सन मुँह हुनक <br></br>द्वितिया चान सन दाँत <br></br>बाजब यदि सुनि लेलहुँ हुनकर<br></br>त' करिते रहि जायब बात ।</p>
<p> (३)</p>
<p>सन - सन बहय बसात<br></br>उड़िया रहल अछि, चुनरी हुनकर<br></br>छौड़ा सब भेल बताह <br></br>हुनका लेखे धनो धन सन ।</p>
<p> (४)<br></br>ककरा करू फज्झति <br></br>ककरा सँ कलह…</p>
<p> (१)<br/>चाहे आहाँ रहु दिल्ली आ मुम्बई,<br/>वा रहु देश-विदेशक कोनो कोण में,<br/>मैथिल भेटिते मैथिली बाजू <br/>टन द' मिठगर बोल में ।</p>
<p> (२)<br/>अमावश्या राति सन मुँह हुनक <br/>द्वितिया चान सन दाँत <br/>बाजब यदि सुनि लेलहुँ हुनकर<br/>त' करिते रहि जायब बात ।</p>
<p> (३)</p>
<p>सन - सन बहय बसात<br/>उड़िया रहल अछि, चुनरी हुनकर<br/>छौड़ा सब भेल बताह <br/>हुनका लेखे धनो धन सन ।</p>
<p> (४)<br/>ककरा करू फज्झति <br/>ककरा सँ कलह बेसाहु<br/>घुमि रहल अछि काल चक्र <br/>एहि मूढ़ के , किछु दिन आर बिसारु । <br/> (५)<br/>करू ओकरा कात भाई <br/>बड्ड चलबैत अछि थोंथि <br/>भनें लिखलक ओ<br/>नाम सँ त ' अछि हमरे पोथी ।</p>
<p></p>
<p>संजय झा "नागदह"</p>
<p></p>
<p>"मौलिक आ अप्रकाशित"</p>
सीता माता वन्दना
tag:openbooks.ning.com,2015-08-10:5170231:Topic:687762
2015-08-10T12:57:47.044Z
kanta roy
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<p>तर्ज़ : जय जय भैरवि अशुर भयाऊनि</p>
<p></p>
<p>जय जय सीता मिथिला तारिणी <br></br>जनक धिया सुखदाई<br></br>सुन्दर सुमति दिय हे माता<br></br>दुःख निवारू माई<br></br>जय जय सीता मिथिला तारिणी ।</p>
<p></p>
<p>अति कोमल राम ह्रिदय वासिनी <br></br>हनुमत के आहाँ माई<br></br>रावण राक्षस मारक कारण <br></br>रामक नाम देखाई<br></br>जय जय सीता मिथिला तारिणी ।</p>
<p></p>
<p>गोर वरन नयन अतिसुंदर <br></br>मधुर वचन तोर माता<br></br>पति परमेश्वर मात्र आहाँ बुझल<br></br>दोसर कियो ने विधाता<br></br>जय जय सीता मिथिला तारिणी ।</p>
<p></p>
<p>हनुमत के आहाँ अमर…</p>
<p>तर्ज़ : जय जय भैरवि अशुर भयाऊनि</p>
<p></p>
<p>जय जय सीता मिथिला तारिणी <br/>जनक धिया सुखदाई<br/>सुन्दर सुमति दिय हे माता<br/>दुःख निवारू माई<br/>जय जय सीता मिथिला तारिणी ।</p>
<p></p>
<p>अति कोमल राम ह्रिदय वासिनी <br/>हनुमत के आहाँ माई<br/>रावण राक्षस मारक कारण <br/>रामक नाम देखाई<br/>जय जय सीता मिथिला तारिणी ।</p>
<p></p>
<p>गोर वरन नयन अतिसुंदर <br/>मधुर वचन तोर माता<br/>पति परमेश्वर मात्र आहाँ बुझल<br/>दोसर कियो ने विधाता<br/>जय जय सीता मिथिला तारिणी ।</p>
<p></p>
<p>हनुमत के आहाँ अमर बनाओल<br/>पति के आज्ञा सिरु अपनाओल<br/>लव - कुश के स्वाबलंबी बनाओल<br/>संजय के नए बिसरू माता<br/>जय जय सीता मिथिला तारिणी ।</p>
<p>संजय कुमार झा "नागदह"</p>
<p></p>
<p>"मौलिक आ अप्रकाशित "</p>
बेटी आ बहिनक मनोरथ के बारे में सेहो सोचु (लघुकथा)
tag:openbooks.ning.com,2015-08-08:5170231:Topic:687124
2015-08-08T05:38:44.884Z
kanta roy
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<p>अपना विवाह में बहुत राश संगी साथी के बरियाती जयबाक लेल कहलियनि , एबो केलाह , मुदा एकटा मित्र कहलाह जे जायब त लेकिन दारू पिबे टा करब । हम कहलियनि जे आहा पिबे करब आ पिब क' ताण्डव करबे करब, त' कहलाह जे इहो भ' सकैत अछि । हम कहलियनि जे आहाँ नै जाऊ, कारन आहां हमर प्रतिष्ठा आ अप्पन गामक प्रतिष्ठा दुनु के ख़राब करब, तैं नै जाऊ, कहलाह ठीक छैक । संगही जतेक मित्र लोकनि छलाह सब गोटा के सूचित क' देलियनि जे कोनो तरहक एहन काज कियो गोटा नै करब जाही स हमरा संग संग हमर गामक प्रतिष्ठा पर आँच आबय, आ यदि मोन में…</p>
<p>अपना विवाह में बहुत राश संगी साथी के बरियाती जयबाक लेल कहलियनि , एबो केलाह , मुदा एकटा मित्र कहलाह जे जायब त लेकिन दारू पिबे टा करब । हम कहलियनि जे आहा पिबे करब आ पिब क' ताण्डव करबे करब, त' कहलाह जे इहो भ' सकैत अछि । हम कहलियनि जे आहाँ नै जाऊ, कारन आहां हमर प्रतिष्ठा आ अप्पन गामक प्रतिष्ठा दुनु के ख़राब करब, तैं नै जाऊ, कहलाह ठीक छैक । संगही जतेक मित्र लोकनि छलाह सब गोटा के सूचित क' देलियनि जे कोनो तरहक एहन काज कियो गोटा नै करब जाही स हमरा संग संग हमर गामक प्रतिष्ठा पर आँच आबय, आ यदि मोन में बिपरीत भावना होबय त' नहि जाऊ इ कष्ट हम बर्दास्त क' लेब । एकटा मित्र कहलाह जे कनि - मनि मजाक अगर भ' जेतेई त की हेतै ? हम कलियनी जे जिनका ओहिठाम आहाँ जाई छी , ओ हमर सम्बन्धी होबै जा रहल छथि । त' आहाँ ओहिठाम अगर कोनो अनुचित व्यवहार करब तकर माने आंहाँ हमरा संगे अनुचित व्यवहार करब । कहु की ई बर्दास्त करबा योग्य होयत ? जहिना अहाँ स हमरा स्नेहवत सम्बन्ध अछि तहिना ओतौ स रखबाक में आंहाँ सब सँ सहयोगक अपेछा राखैत छी । सब गोटे सहमत भेलाह आ बड्ड प्रतिष्ठा अर्जन क बरियाती सँ वापिस अयलाह ।</p>
<p></p>
<p>कारन हमरा ई बात के बड्ड कष्ट अछि जे हमर विवाह में देश - विदेश सँ संगी - साथी आबथि, मुदा जाहि लड़की के विवाह होई तकर मित्र देश - विदेश सँ त' काsत जाऊ अड़ोस - परोश तथा सगा - सम्बन्धी के सेहओ एनाई उचित नहि बुझैछथिन । सबहक पिताजी, भाईजी सब कहै छथिन नै जाऊ आब बरियाती सभ्य नहि अबैत अछि । की हमरा सब अपने टा मनोरथ बुझै छी ? ओ बेटी आ बहिनक मनोरथ के बारे में सेहो सोचु जे विवाहोपरान्त अप्पन माय - बाप संगी - सहेली के छोड़ि कतेक दूर भ' जाइत छथि ।</p>
<p>"मौलिक आ अप्रकाशित"</p>
सम्हरि जाऊ बाबू मिथिलानी जागि गेल ( लघुकथा )
tag:openbooks.ning.com,2015-07-07:5170231:Topic:673728
2015-07-07T17:02:09.009Z
kanta roy
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" यौ गाम बाबू ,सुनलियै , कि कहैत छथिन पिसी दाई । "<br />
<br />
" कि कहैत छथुन मंजूला बौआ , तोहर पिसी दाई ? "<br />
<br />
<br />
" कहै छथिन जे कतबो पढेबै बेटी के , पाई तय गनहे पडतहू । पढल लिखल बेटी देबई, हुनकर बेटा समकक्ष , तय पाई रूपैया कियैक गनबै ..से कहू तय ..? "<br />
<br />
" कि कहियौ बात बिचार मिथिला के बौआ , ताहि दिन चूरा दही खुआ कय सभा के बर - बरियाती के समाखन भय जाईत छलै । आब तय समय खराब भय गेलई , बुझलहूँ ! "<br />
<br />
" यौ काका , आँहा कहू जदी पाई - रूपैया लय कय हमर बनल बेटी उठायत कियौ तय हम अनजाईत में बेटी बियाह करब लेकिन पाई- रूपैया…
" यौ गाम बाबू ,सुनलियै , कि कहैत छथिन पिसी दाई । "<br />
<br />
" कि कहैत छथुन मंजूला बौआ , तोहर पिसी दाई ? "<br />
<br />
<br />
" कहै छथिन जे कतबो पढेबै बेटी के , पाई तय गनहे पडतहू । पढल लिखल बेटी देबई, हुनकर बेटा समकक्ष , तय पाई रूपैया कियैक गनबै ..से कहू तय ..? "<br />
<br />
" कि कहियौ बात बिचार मिथिला के बौआ , ताहि दिन चूरा दही खुआ कय सभा के बर - बरियाती के समाखन भय जाईत छलै । आब तय समय खराब भय गेलई , बुझलहूँ ! "<br />
<br />
" यौ काका , आँहा कहू जदी पाई - रूपैया लय कय हमर बनल बेटी उठायत कियौ तय हम अनजाईत में बेटी बियाह करब लेकिन पाई- रूपैया दय कय हम मिथिला में बियाह नई करब । बुझलहूँ ने । "<br />
<br />
" मति भ्रष्ट भय गेलहूँ कि तोहर मंजूला ! ई कि बजलैह ?"<br />
<br />
"हम तय आब जे बजलहूँ से बजलहूँ । करबो सैह करब , नई तय कहियौ जे चेत जायत सब । "<br />
<br />
कान्ता राॅय<br />
भोपाल<br />
मौलिक और अप्रकाशित
मैयाक गीत
tag:openbooks.ning.com,2013-09-19:5170231:Topic:437602
2013-09-19T16:33:27.337Z
kanta roy
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<p></p>
<p><span class="font-size-3">मैया भवानी अलख जगेथीन</span></p>
<p><span class="font-size-3">अन्न धन देथीन हमरो घर ना</span></p>
<p><span class="font-size-3">नै हम रहबै लेने खाली</span></p>
<p><span class="font-size-3">दूबि धान</span></p>
<p><span class="font-size-3"> </span></p>
<p><span class="font-size-3">माँगै छी मैयासँ माँगक सेनूर</span></p>
<p><span class="font-size-3">लाले लाल अचरीक दान</span></p>
<p><span class="font-size-3">मैया करथीन हमरो कल्याण…</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">मैया भवानी अलख जगेथीन</span></p>
<p><span class="font-size-3">अन्न धन देथीन हमरो घर ना</span></p>
<p><span class="font-size-3">नै हम रहबै लेने खाली</span></p>
<p><span class="font-size-3">दूबि धान</span></p>
<p><span class="font-size-3"> </span></p>
<p><span class="font-size-3">माँगै छी मैयासँ माँगक सेनूर</span></p>
<p><span class="font-size-3">लाले लाल अचरीक दान</span></p>
<p><span class="font-size-3">मैया करथीन हमरो कल्याण</span></p>
<p><span class="font-size-3"> </span></p>
<p><span class="font-size-3">सोन सन ललना हमरो कोरामे</span></p>
<p><span class="font-size-3">देथीन मैया एक दिन ना</span></p>
<p><span class="font-size-3">एबै हम संगे संग</span></p>
<p><span class="font-size-3">करै लेल एहिठाम चूमान</span></p>
<p><span class="font-size-3"> </span></p>
<p><span class="font-size-3">जोगनी बनि सेबलहुँ हम</span></p>
<p><span class="font-size-3">मैयाकेँ एखन धरि</span></p>
<p><span class="font-size-3">वन वनसँ अनलहुँ फूल पान</span></p>
<p><span class="font-size-3">मैया कनीक दियौ हमरोपर धियान </span></p>
<p><span class="font-size-3"> </span></p>
<p><span class="font-size-3">(मौलिक आ अप्रकाशित)</span></p>
<p><span class="font-size-3">जगदानन्द झा ‘मनु’ </span></p>
गीत
tag:openbooks.ning.com,2013-07-31:5170231:Topic:406044
2013-07-31T07:50:47.463Z
kanta roy
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<p><span class="font-size-3">ई जे साँझ परलै मैया</span> <br></br><span class="font-size-3">की हमरे जीवनमे</span> <br></br><span class="font-size-3">मुनल आँखि तकबै कहिया</span> <br></br><span class="font-size-3">हमरो जीवनमे।।</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">सगर दुनियाँकेँ चिलका</span> <br></br><span class="font-size-3">माएक आँचर तर</span> <br></br><span class="font-size-3">हम अभागल कोना</span> <br></br><span class="font-size-3">भटकै छी दर-दर।।</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">घुरि, बुझि…</span></p>
<p><span class="font-size-3">ई जे साँझ परलै मैया</span> <br/><span class="font-size-3">की हमरे जीवनमे</span> <br/><span class="font-size-3">मुनल आँखि तकबै कहिया</span> <br/><span class="font-size-3">हमरो जीवनमे।।</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">सगर दुनियाँकेँ चिलका</span> <br/><span class="font-size-3">माएक आँचर तर</span> <br/><span class="font-size-3">हम अभागल कोना</span> <br/><span class="font-size-3">भटकै छी दर-दर।।</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">घुरि, बुझि आबो आबू</span> <br/><span class="font-size-3">मनु अबुद्धि नेना</span> <br/><span class="font-size-3">अपन सिनेहसँ</span> <br/><span class="font-size-3">किएक बिसरलहुँ ऐना।।</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">(मौलिक आ अप्रकाशित)</span></p>
<p><span class="font-size-3">जगदानन्द झा 'मनु'</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
गजल
tag:openbooks.ning.com,2013-04-13:5170231:Topic:346624
2013-04-13T19:50:29.920Z
kanta roy
https://openbooks.ning.com/profile/kantaroy
<p>माँ शारदे वरदान दिअ <br/> हमरो हृदयमे ज्ञान दिअ</p>
<p></p>
<p>हरि ली सभक अन्हार हम <br/> एहन इजोतक दान दिअ</p>
<p></p>
<p>सुनि दोख हम कखनो अपन <br/> दुख नै हुए ओ कान दिअ</p>
<p></p>
<p>गाबी अहीँकेँ गुण सगर <br/> सुर कन्ठ एहन तान दिअ</p>
<p></p>
<p>बुझि पुत्र ‘मनु’केँ माँ अपन</p>
<p>कनिको हृदयमे स्थान दिअ</p>
<p></p>
<p>(बहरे रजज, मात्रा क्रम - २२१२-२२१२) <br/> जगदानन्द झा ‘मनु’</p>
<p>माँ शारदे वरदान दिअ <br/> हमरो हृदयमे ज्ञान दिअ</p>
<p></p>
<p>हरि ली सभक अन्हार हम <br/> एहन इजोतक दान दिअ</p>
<p></p>
<p>सुनि दोख हम कखनो अपन <br/> दुख नै हुए ओ कान दिअ</p>
<p></p>
<p>गाबी अहीँकेँ गुण सगर <br/> सुर कन्ठ एहन तान दिअ</p>
<p></p>
<p>बुझि पुत्र ‘मनु’केँ माँ अपन</p>
<p>कनिको हृदयमे स्थान दिअ</p>
<p></p>
<p>(बहरे रजज, मात्रा क्रम - २२१२-२२१२) <br/> जगदानन्द झा ‘मनु’</p>