"OBO लाइव महा इवेंट" अंक-१ ( Now Close ) - Open Books Online2024-03-29T15:32:17Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/obo-1-now-close?commentId=5170231%3AComment%3A32696&x=1&feed=yes&xn_auth=noसम्माननीय साथियों,
वन्दे मातर…tag:openbooks.ning.com,2010-11-11:5170231:Comment:326962010-11-11T03:53:05.696Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
सम्माननीय साथियों,<br />
वन्दे मातरम !<br />
<br />
तरही मुशायरों की अपार सफलता के बाद जब नवीन भाई ने इस महा इवेंट का सुझाव पेश किया तो ओबीओ सम्पादकीय मंडल में इस विषय पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं थीं ! क्योंकि ऐसा बड़ा आयोजन अंतर्जाल पर पहले नहीं देखा गया था, अत: कमोबेश सभी के मनो में इसकी सफलता को लेकर तरह तरह के विचारों का आना स्वभाविक ही था ! लेकिन नवीन भाई भी इस बात की ताईद करेंगे कि पहले दिन से ही उनकी तरह मेरे मन में भी इस आयोजन की सफलता को लेकर कतई कोई संदेह नही था ! क्योंकि मैं स्वयं भी इस पक्ष में था कि…
सम्माननीय साथियों,<br />
वन्दे मातरम !<br />
<br />
तरही मुशायरों की अपार सफलता के बाद जब नवीन भाई ने इस महा इवेंट का सुझाव पेश किया तो ओबीओ सम्पादकीय मंडल में इस विषय पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं थीं ! क्योंकि ऐसा बड़ा आयोजन अंतर्जाल पर पहले नहीं देखा गया था, अत: कमोबेश सभी के मनो में इसकी सफलता को लेकर तरह तरह के विचारों का आना स्वभाविक ही था ! लेकिन नवीन भाई भी इस बात की ताईद करेंगे कि पहले दिन से ही उनकी तरह मेरे मन में भी इस आयोजन की सफलता को लेकर कतई कोई संदेह नही था ! क्योंकि मैं स्वयं भी इस पक्ष में था कि कोई ऐसा आयोजन हो जहाँ विभिन्न विधायों की रचनायों का सुमंगल सुमेल हो सके ! और जिस प्रकार साथियों ने बढ़ चढ़ कर इस में हिस्सा लिया उसने मेरे इस विश्वास को और बल दिया !<br />
<br />
यूँ तो बहुत से स्थापित और उदीयमान साहित्यकारों ने अपनी अपने बेहतरीन रचनायों के साथ इस महा-आयोजन में शिरकत की, लेकिन मुझे इस बात पर किसी प्रकार का भी संदेह नहीं है कि इस बार के आयोजन के महानायक रहे हमारे आदरणीय आचार्य संजीव सलिल जी ! आचार्य सलिल जी की रचनायों ने इस आयोजन में न केवल इस आयोजन में रूह फूँकी बल्कि हर रोज़ उनकी नई नई रचनायों ने समा भी बांधे रखा ! इन सब बातों से ऊपर जिस प्रकार आपने विभिन्न रचनायों पर अपने बेबाक विचार और सुधार प्रस्तुत किए, उसने सचमुच इस महा इवेंट को एक सार्थक कार्यशाला का रूप भी दे दिया ! खुद मैंने आचार्य जी से (हर बार की तरह) इस बार भी बहुत कुछ सीखा है !<br />
<br />
हालाकि यहाँ सब का नामों का ज़िक्र करना तो संभव नहीं होगा, लेकिन मैं तह-ए-दिल से बधाई देना चाहता हूँ उस सभी लेखकों को जिन्होंने बढ़ चढ़ कर इस आयोजन को सफल बनाने में अपना पूरा योगदान दिया ! लेकिन इस बार एक बात का मलाल दिल में अवश्य रह गया कि हमारे कई साथी इस निशिश्त से नदारद रहे, ज़ाती तौर पर आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, बहन आशा पाण्डेय जी, भाई राणा प्रताप सिंह जी और भाई फौजान अहमद किदवई की कमी शुरू से अंत तक मुझे सालती रही !<br />
<br />
भाई गणेश बागी जी जो कि ओबीओ के सर्वे-सर्वा हैं उन्होंने जिस प्रकार इस पूरे आयोजन की रहनुमाई की वह भी स्तुत्य है !<br />
<br />
कुल मिलकर यह महा इवेंट निहायत कामयाब रहा है ! मुझे याद नहीं पड़ रहा कि अंतर्जाल पर इतनी तादाद में फनकारों ने किसी ऐसे आयोजन में एक साथ कभी भाग लिया हो ! रचनाएँ और टिप्पणियों की संख्या का चार अंकों में पहुँच जाना शायद हिंदी अंतर्जाल के किसी भी आयोजन का अब तक का <b>"विश्व-रिकॉर्ड"</b> है!<br />
<br />
आमतौर पर दीपावली की मिठाई भी एक दो दिन बाद खत्म हो जाया करती है, लेकिन दीपावली को समर्पित इस महा इवेंट की मिठाई कुछ ऐसी रही कि जिसकी मिठास दीपावली से ५ दिन पहले मिलनी शुरू हुई और ४ दिन बाद तक मिलती रही ! और शायद इसकी सुगन्धित मिठास काफी लम्बे अरसे तक हम सब के दिल-ओ-दिमाग पर छाई भी रहेगी !<br />
<br />
अंत में मैं दिल से बधाई देना चाहूँगा भाई नवीन चतुर्वेदी जी को जिन्होंने इस आयोजन पर जी जान से मेहनत की ! ना सिर्फ हमें उनकी स्तरीय रचनाएँ पढ़ने को मिलीं बल्कि उनके द्वारा बहुत से अन्य लेखकों के शाहकार भी हमें पढने को प्राप्त हुए ! जिस प्रकार उन्होंने प्रत्येक रचना पर अपनी बहुमूल्य टिप्पणियाँ दी, उस से उनकी मैनेजमेंट स्किल का भी पता चलता है ! आपने सिर्फ इस महायज्ञ की शुरुआत ही नहीं की बल्कि मुसलसल इसमें आहुतियाँ डाल डाल कर इसकी पवित्र अग्नि को प्रज्ज्वलित भी रखा ! मैं दिल की गहराईओं से भाई नवीन चतुर्वेदी जी को बधाई देता हूँ!<br />
<br />
आशा करता हूँ कि भविष्य में भी ऐसे महाकुम्भ ओबीओ पर आयोजित किए जाते रहेंगे, और माननीय सदस्य गण इसी उत्साह और जोश के साथ इस काफिले को आगे बढ़ाते जायेंगे !<br />
<br />
सादर !<br />
योगराज प्रभाकर<br />
(प्रधान संपादक ओ.बी.ओ) सलिल जी, आनंद आ गया पढ़कर..धन्…tag:openbooks.ning.com,2010-11-10:5170231:Comment:326862010-11-10T19:56:50.686ZShanno Aggarwalhttps://openbooks.ning.com/profile/ShannoAggarwal
सलिल जी, आनंद आ गया पढ़कर..धन्यबाद.
सलिल जी, आनंद आ गया पढ़कर..धन्यबाद. नवीन, और मैं आप सबकी आभारी हू…tag:openbooks.ning.com,2010-11-10:5170231:Comment:326852010-11-10T19:54:59.685ZShanno Aggarwalhttps://openbooks.ning.com/profile/ShannoAggarwal
नवीन, और मैं आप सबकी आभारी हूँ..इस महा उत्सव को खूब एन्जॉय किया...
नवीन, और मैं आप सबकी आभारी हूँ..इस महा उत्सव को खूब एन्जॉय किया... लघु कथा:
चित्रगुप्त पूजन
सं…tag:openbooks.ning.com,2010-11-10:5170231:Comment:326842010-11-10T19:52:17.684Zsanjiv verma 'salil'https://openbooks.ning.com/profile/sanjivvermasalil
लघु कथा:<br />
<br />
चित्रगुप्त पूजन<br />
<br />
संजीव 'सलिल'<br />
*<br />
अच्छे अच्छों का दीवाला निकालकर निकल गई दीपावली और आ गयी दूज... सकल सृष्टि के कर्म देवता, पाप-पुण्य नियामक निराकार परात्पर परमब्रम्ह चित्रगुप्त जी और कलम का पूजन कर ध्यान लगा तो मनस-चक्षुओं ने देखा अद्भुत दृश्य.<br />
<br />
निराकार अनहद नाद... ध्वनि के वर्तुल... अनादि-अनंत-असंख्य. वर्तुलों का आकर्षण-विकर्षण... घोर नाद से कण का निर्माण... निराकार का क्रमशः सृष्टि के प्रागट्य, पालन और नाश हेतु अपनी शक्तियों को तीन अदृश्य कायाओं में<br />
स्थित करना... महाकाल के कराल पाश…
लघु कथा:<br />
<br />
चित्रगुप्त पूजन<br />
<br />
संजीव 'सलिल'<br />
*<br />
अच्छे अच्छों का दीवाला निकालकर निकल गई दीपावली और आ गयी दूज... सकल सृष्टि के कर्म देवता, पाप-पुण्य नियामक निराकार परात्पर परमब्रम्ह चित्रगुप्त जी और कलम का पूजन कर ध्यान लगा तो मनस-चक्षुओं ने देखा अद्भुत दृश्य.<br />
<br />
निराकार अनहद नाद... ध्वनि के वर्तुल... अनादि-अनंत-असंख्य. वर्तुलों का आकर्षण-विकर्षण... घोर नाद से कण का निर्माण... निराकार का क्रमशः सृष्टि के प्रागट्य, पालन और नाश हेतु अपनी शक्तियों को तीन अदृश्य कायाओं में<br />
स्थित करना... महाकाल के कराल पाश में जाते-आते जीवों की अनंत असंख्य संख्या ने त्रिदेवों और त्रिदेवियों की नाम में दम कर दिया. सब निराकार के ध्यान में लीन हुए तो हा र्चित्त में गुप्त प्रभु की वाणी आकाश से गुंजित हुई:' इस समस्या के कारण और निवारण तुम तीनों ही हो. अपनी पूजा, अर्चना, वंदना, प्रार्थना से रीझकर तुम ही वरदान देते हो औरउनका दुरूपयोग होने पर परेशान होते हो. करुणासागर बनने के चक्कर में तुम निष्पक्ष, निर्मम तथा तठस्थ होना बिसर गये हो. तीनों ने सोच:' बुरे फँसे, क्याकरें कि परमपिता से डांट पड़ना बंद हो'. एक ने प्रारंभ कर दिया परमपिता का पूजन, दूसरे ने उच्च स्वर में स्तुति गायन तथा तीसरे ने प्रसाद अर्पण करना. विवश होकर परमपिता को धारण करन पड़ा मौन.<br />
<br />
तीनों ने विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका पर कब्जा किया और भक्तों पर करुणा करने का दस्तूर और अधिक बढ़ा दिया.<br />
***************** आशीष जी,
बहुत सुन्दर और कामया…tag:openbooks.ning.com,2010-11-10:5170231:Comment:326812010-11-10T19:36:22.681ZShanno Aggarwalhttps://openbooks.ning.com/profile/ShannoAggarwal
आशीष जी,<br />
बहुत सुन्दर और कामयाब प्रयास...मेरी शुभकामनायें...
आशीष जी,<br />
बहुत सुन्दर और कामयाब प्रयास...मेरी शुभकामनायें... ''हेलो हाइकू''
हाइकू मोकू
लगा…tag:openbooks.ning.com,2010-11-10:5170231:Comment:326802010-11-10T19:25:33.680ZShanno Aggarwalhttps://openbooks.ning.com/profile/ShannoAggarwal
<b>''हेलो हाइकू''</b><br/>
हाइकू मोकू<br/>
लगा जरा अजीब<br/>
क्या बला है.<br/>
<br/>
देखूँ आसार<br/>
लिखकर के और<br/>
समझूँ सार.<br/>
<br/>
जीत हो हार<br/>
इसकी वैतरणी<br/>
करनी है पार.<br/>
<br/>
महा इवेंट<br/>
दिवाली उत्सव के<br/>
संग मनाया. <br/>
<br/>
अब करेंगे<br/>
सब इसकी याद<br/>
और स्वाद.<br/>
<br/>
बड़े स्टार<br/>
बड़े महाकवियों<br/>
से हुई बात.<br/>
<br/>
खूब सराहा<br/>
सबने कहकर<br/>
' वाह' या 'आहा !'.<br/>
<br/>
-शन्नो अग्रवाल
<b>''हेलो हाइकू''</b><br/>
हाइकू मोकू<br/>
लगा जरा अजीब<br/>
क्या बला है.<br/>
<br/>
देखूँ आसार<br/>
लिखकर के और<br/>
समझूँ सार.<br/>
<br/>
जीत हो हार<br/>
इसकी वैतरणी<br/>
करनी है पार.<br/>
<br/>
महा इवेंट<br/>
दिवाली उत्सव के<br/>
संग मनाया. <br/>
<br/>
अब करेंगे<br/>
सब इसकी याद<br/>
और स्वाद.<br/>
<br/>
बड़े स्टार<br/>
बड़े महाकवियों<br/>
से हुई बात.<br/>
<br/>
खूब सराहा<br/>
सबने कहकर<br/>
' वाह' या 'आहा !'.<br/>
<br/>
-शन्नो अग्रवाल और अंत में लघुकथा:
दीपावली…tag:openbooks.ning.com,2010-11-10:5170231:Comment:326792010-11-10T19:20:03.679Zsanjiv verma 'salil'https://openbooks.ning.com/profile/sanjivvermasalil
और अंत में लघुकथा:<br />
<br />
दीपावली<br />
<br />
संजीव 'सलिल'<br />
*<br />
सवेरे अखबार आये... हिन्दी के, अंग्रेजी के, राष्ट्रीय, स्थानीय.... सभे एमें एक खबर प्रमुखता से.... ''अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने महात्मा की समाधि पर बहुत मँहगी माला चढ़ायी.''<br />
<br />
मैंने कुछ पुराने अख़बार पलटाये.... पढ़ीं अलग-अलग समय पर छपी खबरें: ''राष्ट्रपति स्वर्णमंदिर में गये..., गृहमंत्री ने नमाज़ अदा की..., लोकसभाध्यक्ष गिरिजाघर गये..., राज्यपाल बौद्ध मठ में..., विधान सभाध्यक्ष ने जैन संत से आशीष लिया...,<br />
<br />
पुस्तकालय जाकर बहुत से अखबार पलटाये... खोजता…
और अंत में लघुकथा:<br />
<br />
दीपावली<br />
<br />
संजीव 'सलिल'<br />
*<br />
सवेरे अखबार आये... हिन्दी के, अंग्रेजी के, राष्ट्रीय, स्थानीय.... सभे एमें एक खबर प्रमुखता से.... ''अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने महात्मा की समाधि पर बहुत मँहगी माला चढ़ायी.''<br />
<br />
मैंने कुछ पुराने अख़बार पलटाये.... पढ़ीं अलग-अलग समय पर छपी खबरें: ''राष्ट्रपति स्वर्णमंदिर में गये..., गृहमंत्री ने नमाज़ अदा की..., लोकसभाध्यक्ष गिरिजाघर गये..., राज्यपाल बौद्ध मठ में..., विधान सभाध्यक्ष ने जैन संत से आशीष लिया...,<br />
<br />
पुस्तकालय जाकर बहुत से अखबार पलटाये... खोजता रहा... थक गया पर नहीं मिली वह खबर जिसे पढ़ने के लिये मेरे प्राण तरस रहे थे.... खबर कुछ ऐसी... कोई जनप्रतिनिधि या अधिकारी या साहित्यकार या संत भारतमाता के मंदिर में जलाने गया एक दीप.... हार कर खोज बंद कर दी.... अचानक फीकी लगाने लगी थी दीपावली....<br />
<br />
*************** सारगर्भित.tag:openbooks.ning.com,2010-11-10:5170231:Comment:326782010-11-10T19:00:29.678Zsanjiv verma 'salil'https://openbooks.ning.com/profile/sanjivvermasalil
सारगर्भित.
सारगर्भित. सरस रचना... बधाई.tag:openbooks.ning.com,2010-11-10:5170231:Comment:326772010-11-10T18:57:52.677Zsanjiv verma 'salil'https://openbooks.ning.com/profile/sanjivvermasalil
सरस रचना... बधाई.
सरस रचना... बधाई. खिचडी और खीर में ५ समानताएं :…tag:openbooks.ning.com,2010-11-10:5170231:Comment:326762010-11-10T18:51:48.676Zsanjiv verma 'salil'https://openbooks.ning.com/profile/sanjivvermasalil
खिचडी और खीर में ५ समानताएं :<br />
<br />
दोनों को चाँवल का प्रयोग कर बनाया जाता है.<br />
दोनों को पानी में पकाया जाता है.<br />
दोनों को खाया जाता है.<br />
दोनों का पहला अक्षर 'ख' है.<br />
दोनों को बनाने में आग का प्रयोग होता है.<br />
<br />
दोनों में एक भिन्नता<br />
पहली पचने में आसान दूसरी गरिष्ठ होती है.<br />
<br />
आपके मतानुसार अंतर बेमानी, समानताएँ महत्वपूर्ण... राजा करे सो न्याय... मेरा मौन हो जाना ही उचित है...
खिचडी और खीर में ५ समानताएं :<br />
<br />
दोनों को चाँवल का प्रयोग कर बनाया जाता है.<br />
दोनों को पानी में पकाया जाता है.<br />
दोनों को खाया जाता है.<br />
दोनों का पहला अक्षर 'ख' है.<br />
दोनों को बनाने में आग का प्रयोग होता है.<br />
<br />
दोनों में एक भिन्नता<br />
पहली पचने में आसान दूसरी गरिष्ठ होती है.<br />
<br />
आपके मतानुसार अंतर बेमानी, समानताएँ महत्वपूर्ण... राजा करे सो न्याय... मेरा मौन हो जाना ही उचित है...