"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-47 - Open Books Online2024-03-28T14:37:42Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/mus47?commentId=5170231%3AComment%3A544381&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय आशुतोष साहब, शानदार गज़…tag:openbooks.ning.com,2014-05-25:5170231:Comment:5443882014-05-25T18:29:33.104Zअरुण कुमार निगमhttps://openbooks.ning.com/profile/arunkumarnigam
<p>आदरणीय आशुतोष साहब, शानदार गज़ल के लिये बधाइयाँ..............</p>
<p>आदरणीय आशुतोष साहब, शानदार गज़ल के लिये बधाइयाँ..............</p> आपकी आमद सुखदायी है आदरणीया श…tag:openbooks.ning.com,2014-05-25:5170231:Comment:5443872014-05-25T18:28:59.981ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आपकी आमद सुखदायी है आदरणीया शशिजी. सहभागिता के लिए सादर् धन्यवाद..<br/>सादर</p>
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<p>आपकी आमद सुखदायी है आदरणीया शशिजी. सहभागिता के लिए सादर् धन्यवाद..<br/>सादर</p>
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<p></p> आदरणीय वंदना जी, उम्दा गज़ल के…tag:openbooks.ning.com,2014-05-25:5170231:Comment:5446302014-05-25T18:27:08.655Zअरुण कुमार निगमhttps://openbooks.ning.com/profile/arunkumarnigam
<p>आदरणीय वंदना जी, उम्दा गज़ल के लिये बधाइयाँ..................</p>
<p></p>
<p>पत्थरों को सहकर भी फल हुलस के बांटेंगी</p>
<p>नन्हे मन की चाहत को बेरियाँ समझती हैं.....वाह !!!!!!!!!!!!!!</p>
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<p>आदरणीय वंदना जी, उम्दा गज़ल के लिये बधाइयाँ..................</p>
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<p>पत्थरों को सहकर भी फल हुलस के बांटेंगी</p>
<p>नन्हे मन की चाहत को बेरियाँ समझती हैं.....वाह !!!!!!!!!!!!!!</p>
<p> </p> आदरणीय शकील साहब, बढ़िया गज़ल क…tag:openbooks.ning.com,2014-05-25:5170231:Comment:5446292014-05-25T18:25:38.073Zअरुण कुमार निगमhttps://openbooks.ning.com/profile/arunkumarnigam
<p>आदरणीय शकील साहब, बढ़िया गज़ल के लिये बधाइयाँ..................</p>
<p></p>
<p>जुल्फ शाने पर बिखरी, और माथे पर बिंदी<br/>आज कल तुम्हें सौतन, बिजलियां समझती हैं<br/><br/></p>
<p>वाह, कमाल का शेर............</p>
<p>आदरणीय शकील साहब, बढ़िया गज़ल के लिये बधाइयाँ..................</p>
<p></p>
<p>जुल्फ शाने पर बिखरी, और माथे पर बिंदी<br/>आज कल तुम्हें सौतन, बिजलियां समझती हैं<br/><br/></p>
<p>वाह, कमाल का शेर............</p> आदरणीय नादिर भाई, उम्दा गज़ल क…tag:openbooks.ning.com,2014-05-25:5170231:Comment:5443862014-05-25T18:23:40.713Zअरुण कुमार निगमhttps://openbooks.ning.com/profile/arunkumarnigam
<p>आदरणीय नादिर भाई, उम्दा गज़ल के लिये बधाइयाँ................</p>
<p></p>
<p>हम नहीं बिखर सकते इन हवा के झोंकों से</p>
<p>उंगलियों की ताकत को मुट्ठियाँ समझती हैं........वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!</p>
<p>आदरणीय नादिर भाई, उम्दा गज़ल के लिये बधाइयाँ................</p>
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<p>हम नहीं बिखर सकते इन हवा के झोंकों से</p>
<p>उंगलियों की ताकत को मुट्ठियाँ समझती हैं........वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!</p> आदरणीय अखंड गहमरी साहब, मुलाय…tag:openbooks.ning.com,2014-05-25:5170231:Comment:5444702014-05-25T18:21:44.461Zअरुण कुमार निगमhttps://openbooks.ning.com/profile/arunkumarnigam
<p>आदरणीय अखंड गहमरी साहब, मुलायम से गज़ल के लिये बधाइयाँ..............</p>
<p></p>
<p>चाँदनी बिखर कर भी चाँद में समाई थी<br/>हाल चाँद का है जो बदलियाँ समझती हैंं........वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!</p>
<p>आदरणीय अखंड गहमरी साहब, मुलायम से गज़ल के लिये बधाइयाँ..............</p>
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<p>चाँदनी बिखर कर भी चाँद में समाई थी<br/>हाल चाँद का है जो बदलियाँ समझती हैंं........वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!</p> जनाब दीपक साहब ..तरही मुशायरे…tag:openbooks.ning.com,2014-05-25:5170231:Comment:5445562014-05-25T18:21:34.353ZRana Pratap Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/RanaPratapSingh
<p>जनाब दीपक साहब ..तरही मुशायरे में दिए गए मिसरे(मिसरा-ए-तरह) की ज़मीन पर ग़ज़ल कही जाती है और तरही मिसरे पर गिरह बाँधने का चलन है| आपने मंदार्ज़ा अशार में जिस ग़ज़ल से तरही मिसरा लिया गया है उसके मिसरा-ए-ऊला को लगभग जस का तस ले लिया है...यह ठीक बात नहीं है </p>
<p>वो तो खुद ही कातिल है वो ये बात क्या जानें</p>
<p>हवा की शरारत को पत्तियाँ समझती हैं !</p>
<p> </p>
<p>चाँद से उतरती है जब हसीन महबूबा</p>
<p>राह की नजाकत को रश्मियाँ समझती हैं !</p>
<p> </p>
<p>यूँ तो खिल-ए-गुलशन में कितने लोग…</p>
<p>जनाब दीपक साहब ..तरही मुशायरे में दिए गए मिसरे(मिसरा-ए-तरह) की ज़मीन पर ग़ज़ल कही जाती है और तरही मिसरे पर गिरह बाँधने का चलन है| आपने मंदार्ज़ा अशार में जिस ग़ज़ल से तरही मिसरा लिया गया है उसके मिसरा-ए-ऊला को लगभग जस का तस ले लिया है...यह ठीक बात नहीं है </p>
<p>वो तो खुद ही कातिल है वो ये बात क्या जानें</p>
<p>हवा की शरारत को पत्तियाँ समझती हैं !</p>
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<p>चाँद से उतरती है जब हसीन महबूबा</p>
<p>राह की नजाकत को रश्मियाँ समझती हैं !</p>
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<p>यूँ तो खिल-ए-गुलशन में कितने लोग आते </p>
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<p>आशा है मेरा कहना स्पष्ट हुआ होगा आपको</p> आदरणीय अरुण भाईजी, क्या-क्या…tag:openbooks.ning.com,2014-05-25:5170231:Comment:5444692014-05-25T18:21:22.867ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अरुण भाईजी, क्या-क्या कमाल करते हैं आप भी ! दिल से दाद कुबूल कीजिये, आदरणीय. <br></br><br></br>इन शेरों पर बार-बार बधाई देना चाहूँगा. हर अपने आप में गरिमामय है -<br></br><br></br>छुप-छुपा के आया है, पास अपनी दादी के<br></br>कौन खुश हुआ ज्यादा, कुल्फियाँ समझती हैं... . जवाब नहीं ! परिवारों के इस ताने-बाने को किस खूबसूरती से बाँधा है आपने.. वाह !<br></br><br></br>बात संसकारों की, फालतू नहीं होती<br></br>वक़्त बीत जाने पे, पीढ़ियाँ समझती हैं...... खूब आदरणीय खूब ! <br></br><br></br>कोठियाँ उजालों में, क्यों उदास हैं…</p>
<p>आदरणीय अरुण भाईजी, क्या-क्या कमाल करते हैं आप भी ! दिल से दाद कुबूल कीजिये, आदरणीय. <br/><br/>इन शेरों पर बार-बार बधाई देना चाहूँगा. हर अपने आप में गरिमामय है -<br/><br/>छुप-छुपा के आया है, पास अपनी दादी के<br/>कौन खुश हुआ ज्यादा, कुल्फियाँ समझती हैं... . जवाब नहीं ! परिवारों के इस ताने-बाने को किस खूबसूरती से बाँधा है आपने.. वाह !<br/><br/>बात संसकारों की, फालतू नहीं होती<br/>वक़्त बीत जाने पे, पीढ़ियाँ समझती हैं...... खूब आदरणीय खूब ! <br/><br/>कोठियाँ उजालों में, क्यों उदास हैं इतनी<br/>रात क्या हुआ होगा, खोलियाँ समझती हैं.. .. इस शेर से निकलती चीख बहुत कुछ कहती है..<br/><br/>देह से न काठी से, हो सका बड़ा कोई<br/>हाथियों में दम कितना, चीटियाँ समझती हैं.. .. क्या कहने !<br/><br/>दिल से शुक्रिया भाई इस ग़ज़ल के लिए <br/>सादर<br/> </p> आदरणीय भुवन जी, ख़ूबसूरत अश'आर…tag:openbooks.ning.com,2014-05-25:5170231:Comment:5446282014-05-25T18:19:03.082Zअरुण कुमार निगमhttps://openbooks.ning.com/profile/arunkumarnigam
<p>आदरणीय भुवन जी, ख़ूबसूरत अश'आरों से सजी इस गज़ल के लिये बधाइयाँ...........</p>
<p></p>
<p>यूँ न नीले पानी के हुस्न पर फ़िदा तू हो<br/> ज़िन्दगी समंदर की मछलियाँ समझती हैं..........गहराई लिये इस अश'आर के लिये खासतौर से दाद स्वीकारें............</p>
<p>आदरणीय भुवन जी, ख़ूबसूरत अश'आरों से सजी इस गज़ल के लिये बधाइयाँ...........</p>
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<p>यूँ न नीले पानी के हुस्न पर फ़िदा तू हो<br/> ज़िन्दगी समंदर की मछलियाँ समझती हैं..........गहराई लिये इस अश'आर के लिये खासतौर से दाद स्वीकारें............</p> आपका प्रयास अच्छा है, लेकिन…tag:openbooks.ning.com,2014-05-25:5170231:Comment:5444682014-05-25T18:18:24.848ZTilak Raj Kapoorhttps://openbooks.ning.com/profile/TilakRajKapoor
<p>आपका प्रयास अच्छा है, लेकिन अभी सुधार की बहुत गुँजाईश है।</p>
<p>तरही मिसरे पर एक शेर देखें:</p>
<p>इस जहां की नज़रों से आप क्या बचायेंगे <br></br><span>फूल कौन तोड़ेगा डालियाँ समझती हैं !</span><br></br>यह बह्र फ़ायलुन् +मफ़ाईलुन् x 2 पर चलती है इसलिये हर प्रक्ति में इस विराम का ध्यान रखना ज़रूरी है। </p>
<p></p>
<p>उदाहरण के लिये अन्य शेर इस रूप में देखें (कहन आपकी ही रखने की कोशिश करते हुए या आवश्यक हुआ तो सुधारते हुए):</p>
<p></p>
<p></p>
<p>बाहरी हवाओं को खिड़कियाँ समझती हैं</p>
<p>आपकी…</p>
<p>आपका प्रयास अच्छा है, लेकिन अभी सुधार की बहुत गुँजाईश है।</p>
<p>तरही मिसरे पर एक शेर देखें:</p>
<p>इस जहां की नज़रों से आप क्या बचायेंगे <br/><span>फूल कौन तोड़ेगा डालियाँ समझती हैं !</span><br/>यह बह्र फ़ायलुन् +मफ़ाईलुन् x 2 पर चलती है इसलिये हर प्रक्ति में इस विराम का ध्यान रखना ज़रूरी है। </p>
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<p>उदाहरण के लिये अन्य शेर इस रूप में देखें (कहन आपकी ही रखने की कोशिश करते हुए या आवश्यक हुआ तो सुधारते हुए):</p>
<p></p>
<p></p>
<p>बाहरी हवाओं को खिड़कियाँ समझती हैं</p>
<p>आपकी हरिक (हर इक से) मेहनत (मिहनत पढ़ा जायेगा) झपकियाँ समझती हैं !</p>
<p> </p>
<p>रतजगे कटे कैसे, क्या जहां को बतलायें <span style="text-decoration: line-through;">वो तो खुद ही कातिल है वो ये बात क्या जानें</span></p>
<p>ख्वाब टूटने का डर पुतलियाँ समझती हैं !</p>
<p> </p>
<p>चाँद से उतरती है <span style="text-decoration: line-through;">जब हसीन महबूबा</span> महज़बीं धरा पर तो </p>
<p>राह की नजाकत को रश्मियाँ समझती हैं ! बहुत ही खूबसूरत शेर है यह बिना सुधार के भी </p>
<p> </p>
<p><span style="font-size: 13px;"><span><span style="text-decoration: line-through;">बीच में आ जाती हैं जब कठोर दीवारें</span> </span>इश्क औ मुहब्बत में जब खड़ी हों दीवारें</span></p>
<p>बेबसी बिछुड़ने की दूरियाँ समझती हैं !</p>
<p> </p>
<p>रोज ही <span style="text-decoration: line-through;">छू कर</span> गुजरते हैं इस गली से <span style="text-decoration: line-through;">हजार</span> दीवाने</p>
<p><span style="text-decoration: line-through;">फूल वो किसे चाहें</span> चाह फ़ूल की क्या है तितलियाँ समझती हैं !</p>
<p> </p>
<p>कर <span style="text-decoration: line-through;">लिया</span> दिया जिसे <span style="text-decoration: line-through;">दिल ने</span> रौशन <span style="text-decoration: line-through;">फिर वो ‘दीपक</span>’ आपकी मोहब्बत ने</p>
<p><span style="text-decoration: line-through;">अब उसे जिन्दगी की वीरानियाँ समझती हैं !</span> किसलिये उसे दुश्मन लड़कियॉं समझती हैं। </p>
<p></p>