ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा- अंक 34(Now Closed with 754 replies) - Open Books Online2024-03-29T09:22:08Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/mus34?commentId=5170231%3AComment%3A353399&feed=yes&xn_auth=noक्या सच में सौरभ जी! आपने तो…tag:openbooks.ning.com,2013-04-29:5170231:Comment:3556342013-04-29T18:31:16.871Zवेदिकाhttps://openbooks.ning.com/profile/vedikagitika
<p>क्या सच में सौरभ जी! <br/>आपने तो एकदम हौसला बुलंद कर दिया</p>
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<p>बहुत ख़ुशी हुयी ,,,,प्रयास सफल हुआ</p>
<p>क्या सच में सौरभ जी! <br/>आपने तो एकदम हौसला बुलंद कर दिया</p>
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<p>बहुत ख़ुशी हुयी ,,,,प्रयास सफल हुआ</p> मुशायरे के सफल समापन की वेला…tag:openbooks.ning.com,2013-04-29:5170231:Comment:3556332013-04-29T18:31:10.909ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>मुशायरे के सफल समापन की वेला में सभी सदस्यों का हार्दिक आभार.. </p>
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<p>मुशायरे के सफल समापन की वेला में सभी सदस्यों का हार्दिक आभार.. </p>
<p></p> खूबसूरत पेशकश के लिए दाद कुबू…tag:openbooks.ning.com,2013-04-29:5170231:Comment:3556322013-04-29T18:30:16.907Zsatish mapatpurihttps://openbooks.ning.com/profile/satishmapatpuri
<p>खूबसूरत पेशकश के लिए दाद कुबूल करें विशाल साहेब</p>
<p>खूबसूरत पेशकश के लिए दाद कुबूल करें विशाल साहेब</p> भाई बृजेशजी
नेट पर यह दुखद स्…tag:openbooks.ning.com,2013-04-29:5170231:Comment:3556312013-04-29T18:30:12.292ZRajendra Swarnkarhttps://openbooks.ning.com/profile/RajendraSwarnkar
<p><strong>भाई बृजेशजी</strong></p>
<p>नेट पर यह दुखद स्थिति रहती है कि किसी ब्लॉग, साइट या फ़ेसबुक पर जिससे शंका-समाधान के लिए पूछा जाता है , उसके अलावा सब उत्तर देते हैं ... <br/><br/>खैर ! <br/><br/>आप भी दिल पर न लें । क्षमाकी कत्तई आवश्यकता नहीं .... <br/>शुभकामनाओं सहित ....</p>
<p><strong>भाई बृजेशजी</strong></p>
<p>नेट पर यह दुखद स्थिति रहती है कि किसी ब्लॉग, साइट या फ़ेसबुक पर जिससे शंका-समाधान के लिए पूछा जाता है , उसके अलावा सब उत्तर देते हैं ... <br/><br/>खैर ! <br/><br/>आप भी दिल पर न लें । क्षमाकी कत्तई आवश्यकता नहीं .... <br/>शुभकामनाओं सहित ....</p> आदरणीय राजेंद्र भाईसाहब .. .…tag:openbooks.ning.com,2013-04-29:5170231:Comment:3554692013-04-29T18:29:42.614ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय राजेंद्र भाईसाहब .. . आपकी इस ग़ज़ल में भी वही दोष रह गये हैं जो कि पिछली ग़ज़ल में थे .. .</p>
<p>सादर</p>
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<p>आदरणीय राजेंद्र भाईसाहब .. . आपकी इस ग़ज़ल में भी वही दोष रह गये हैं जो कि पिछली ग़ज़ल में थे .. .</p>
<p>सादर</p>
<p></p> शुक्रिया सौरभ जी ..... आपने ह…tag:openbooks.ning.com,2013-04-29:5170231:Comment:3555642013-04-29T18:29:39.311Zshashi purwarhttps://openbooks.ning.com/profile/shashipurwar
<p>शुक्रिया सौरभ जी ..... आपने होसला दुगना कर दिया , , मेरी मेहनत सफल हो गयी , शेर तो बचपन में बहुत कहे , पसंद भी थे परन्तु ..प्रथम बार गजल लिखने का मन बनाया और लिख दी , . आभार स्नेह बनाये रखें , एक गुजारिश है आपसे , थोड़ी सी मदद कर दे अभी वही देख रही थी गजल कहाँ से बे बह्र हो गयी है , वह misara मुझे दिखा दें , मै स्वयं ही सुधारना पसंद करूंगी , वीनस जी से भी गुजारिस है , आपने जो कथ्य कहे वहां तक पहुचने का मार्ग हम छोटे बच्चो को दिखा दें :)</p>
<p>शुक्रिया सौरभ जी ..... आपने होसला दुगना कर दिया , , मेरी मेहनत सफल हो गयी , शेर तो बचपन में बहुत कहे , पसंद भी थे परन्तु ..प्रथम बार गजल लिखने का मन बनाया और लिख दी , . आभार स्नेह बनाये रखें , एक गुजारिश है आपसे , थोड़ी सी मदद कर दे अभी वही देख रही थी गजल कहाँ से बे बह्र हो गयी है , वह misara मुझे दिखा दें , मै स्वयं ही सुधारना पसंद करूंगी , वीनस जी से भी गुजारिस है , आपने जो कथ्य कहे वहां तक पहुचने का मार्ग हम छोटे बच्चो को दिखा दें :)</p> न दे अब्र के भरोसे.. मेरी प्य…tag:openbooks.ning.com,2013-04-29:5170231:Comment:3555632013-04-29T18:28:59.305Zअरुण कुमार निगमhttps://openbooks.ning.com/profile/arunkumarnigam
<p>न दे अब्र के भरोसे.. मेरी प्यास जल न जाये<br></br> न तू होंठ से पिला दे मेरा जोश उबल न जाये.....</p>
<p></p>
<p><strong>अय हय हय...</strong></p>
<p><strong>जोश दरिया में था इस कदर क्या कहें,</strong></p>
<p><strong>ऊँचा तूफां से साहिल का धारा गया</strong></p>
<p><strong>इसको कहते हैं किस्मत की नाकामियाँ,</strong></p>
<p><strong>पहले गई फिर किनारा गया....(अज्ञात)</strong></p>
<p></p>
<p>ये तो जानते सभी हैं कि नशा शराब में है<br></br> जो निग़ाह ढालती है वो कमाल पल न जाये</p>
<p></p>
<p><strong>कमाल कर…</strong></p>
<p>न दे अब्र के भरोसे.. मेरी प्यास जल न जाये<br/> न तू होंठ से पिला दे मेरा जोश उबल न जाये.....</p>
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<p><strong>अय हय हय...</strong></p>
<p><strong>जोश दरिया में था इस कदर क्या कहें,</strong></p>
<p><strong>ऊँचा तूफां से साहिल का धारा गया</strong></p>
<p><strong>इसको कहते हैं किस्मत की नाकामियाँ,</strong></p>
<p><strong>पहले गई फिर किनारा गया....(अज्ञात)</strong></p>
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<p>ये तो जानते सभी हैं कि नशा शराब में है<br/> जो निग़ाह ढालती है वो कमाल पल न जाये</p>
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<p><strong>कमाल कर दिया भाई जी.........</strong></p>
<p></p>
<p><strong>शोखियों में घोला जाए,फूलों का शवाब</strong></p>
<p><strong>उसमें फिर मिलाई जाए, थोड़ी सी शराब</strong></p>
<p><strong>होगा यूँ नशा जो तैयार</strong></p>
<p><strong>वो प्यार है वो प्यार है, वो प्यार है, वो प्यार....................(नीरज)</strong></p>
<p></p>
<p>तू मेरी सलामती की न दुआ करे तो बेहतर<br/> जो तपिश दिखे है मुझमें वही ताव ढल न जाये</p>
<p></p>
<p><strong>भाई जी ! अब क्या कहूँ मैं ???????????????</strong></p>
<p></p>
<p><strong>तुम तो दुआ करेगी, फितरत तुम्हारी ऐसी</strong></p>
<p><strong>इस प्यार की तपिश में, पत्थर पिघल न जाये....(अरुण)</strong></p>
<p></p>
<p></p>
<p>मेरे नाम इक दुपट्टा कई बार भीगता है<br/> कहीं आह की नमी को मेरी साँस छल न जाये</p>
<p></p>
<p><strong>वाह, वाह, वाह ........</strong></p>
<p></p>
<p><strong>छलकी नमी कहाँ से ,क्यों भीगता बदन है</strong></p>
<p><strong>शंकित हुआ दुपट्टा, फिर से फिसल न जाये.....(अरुण)</strong></p>
<p></p>
<p>घने गेसुओं के बादल मुझे चाँद-चाँद कर दें<br/> "न झुकाओ तुम निग़ाहें कहीं रात ढल न जाये"</p>
<p></p>
<p><strong>चाँद भी शरमा गया ....</strong></p>
<p></p>
<p><strong>तुम भी हो चाँद जैसी, मैं भी हूँ चाँद जैसा</strong></p>
<p><strong>है लिफाफा एक जैसा, मजमूं बदल न जाये..............(अरुण)</strong></p>
<p></p>
<p>मेरे तनबदन में खुश्बू.. कहो क्या सबब कहूँगा.. <br/> जरा बचबचा के मिल तू, कहीं बात चल न जाये !</p>
<p></p>
<p><strong>बात निकलेगी तो दूर् तलक जायेगी................</strong></p>
<p></p>
<p><strong>करो लाख तुम जतन अब, इक बात चल पड़ी है</strong></p>
<p><strong>सब तंज कर रहे हैं, रेशम की सल न जाये .................(अरुण)</strong></p>
<p></p>
<p>मैं समन्दरों की फितरत तेरा प्यार पूर्णिमा सा<br/> जो सिहर रही रग़ों में वो लहर मचल न जाये</p>
<p></p>
<p><strong>पूर्णिमा ?????????????????????????????</strong></p>
<p></p>
<p><strong>क्या है पूर्णिमा- अमावस, लहरों की अपनी फितरत</strong></p>
<p><strong>चाहत के सीप तट पर, मोती निकल न जाये..........(अरुण)</strong></p>
<p></p>
<p><strong>गज़ल के हर अशआर ने बस जान की निकाल दी, जो भाव मन में आये, लिख दिया. बधे हो इस शानदार, जानदार गज़ल के लिए........</strong></p> ओ माइ गॉड .. . ये आपकी पहली-प…tag:openbooks.ning.com,2013-04-29:5170231:Comment:3556302013-04-29T18:27:32.429ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>ओ माइ गॉड .. . ये आपकी पहली-पहली ग़ज़लों में से है ??!!</p>
<p>आप प्रयासरत रहें आदरणीया गीतिकाजी.. ग़ज़ब के खयाल हैं आपके.</p>
<p>ये बता दो आज जाना, कि कहाँ तेरा निशाना<br></br> जो बदल गये हो तुम तो, कहीं बात टल न जाये ॥.. वाह वाह</p>
<p></p>
<p>तेरी जुल्फ़ हैं घटायें, जो पलक उठे तो दिन हो<br></br> 'न झुकाओ तुम निगाहें, कहीं रात ढल न जाये' ॥.. इस गिरह पर कुर्बान .. . कुर्बान !!</p>
<p></p>
<p>मेरा दिल लगा तुझी से, तेरा दिल है तीसरे पे <br></br> तेरा इंतज़ार जब तक, मेरा दम निकल न जाये ॥.. तकाबुले रदीफ़ का दोष…</p>
<p>ओ माइ गॉड .. . ये आपकी पहली-पहली ग़ज़लों में से है ??!!</p>
<p>आप प्रयासरत रहें आदरणीया गीतिकाजी.. ग़ज़ब के खयाल हैं आपके.</p>
<p>ये बता दो आज जाना, कि कहाँ तेरा निशाना<br/> जो बदल गये हो तुम तो, कहीं बात टल न जाये ॥.. वाह वाह</p>
<p></p>
<p>तेरी जुल्फ़ हैं घटायें, जो पलक उठे तो दिन हो<br/> 'न झुकाओ तुम निगाहें, कहीं रात ढल न जाये' ॥.. इस गिरह पर कुर्बान .. . कुर्बान !!</p>
<p></p>
<p>मेरा दिल लगा तुझी से, तेरा दिल है तीसरे पे <br/> तेरा इंतज़ार जब तक, मेरा दम निकल न जाये ॥.. तकाबुले रदीफ़ का दोष बन सकता है इस शेर में .. लेकिन ग़ज़ब का अंदाज़ है.. .</p>
<p></p>
<p>दिल से बधाई .. .</p>
<p></p>
<p></p> ///बड़ी मेहरबानी, गुटबाजी जैसा…tag:openbooks.ning.com,2013-04-29:5170231:Comment:3556292013-04-29T18:27:20.557ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>///<span>बड़ी मेहरबानी, गुटबाजी जैसा न करें ... ///</span></p>
<p></p>
<p><span>आदरणीय, एक बार पुनः गौर करें, मुझे इस पक्ति पर ऐतराज है, आप अच्छी तरह से जानते हैं कि यहाँ गज़लों/रचनाओं पर खूब चर्चा होती है और इस मंच पर "गुटबाजी"शब्द हेतु कोई जगह नहीं । </span></p>
<p></p>
<p>///<span>बड़ी मेहरबानी, गुटबाजी जैसा न करें ... ///</span></p>
<p></p>
<p><span>आदरणीय, एक बार पुनः गौर करें, मुझे इस पक्ति पर ऐतराज है, आप अच्छी तरह से जानते हैं कि यहाँ गज़लों/रचनाओं पर खूब चर्चा होती है और इस मंच पर "गुटबाजी"शब्द हेतु कोई जगह नहीं । </span></p>
<p></p> दिल से शुक्रिया गीतिका जीtag:openbooks.ning.com,2013-04-29:5170231:Comment:3555622013-04-29T18:26:57.356Zsatish mapatpurihttps://openbooks.ning.com/profile/satishmapatpuri
<p>दिल से शुक्रिया गीतिका जी</p>
<p>दिल से शुक्रिया गीतिका जी</p>