"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 28 (Now Closed) - Open Books Online2024-03-29T01:53:16Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/maha28?commentId=5170231%3AComment%3A316177&feed=yes&xn_auth=no"ओ बी ओ लाइव महा-उत्सव" अंक 2…tag:openbooks.ning.com,2013-02-10:5170231:Comment:3170252013-02-10T18:33:28.787ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>"ओ बी ओ लाइव महा-उत्सव" अंक 28 को सफल बनाने हेतु आप सभी का कोटिश: आभार !!!</p>
<p>"ओ बी ओ लाइव महा-उत्सव" अंक 28 को सफल बनाने हेतु आप सभी का कोटिश: आभार !!!</p> आदरणीय रकताले साहब से मैं सहम…tag:openbooks.ning.com,2013-02-10:5170231:Comment:3168842013-02-10T18:16:48.717ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>आदरणीय रकताले साहब से मैं सहमत हूँ , आपकी चिंता प्रथम रचना की भाति दूसरी रचना में भी परिलक्षित है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>आदरणीय रकताले साहब से मैं सहमत हूँ , आपकी चिंता प्रथम रचना की भाति दूसरी रचना में भी परिलक्षित है, बधाई स्वीकार करें ।</p> आदरणीया ज्योतिर्मयी पन्त जी,…tag:openbooks.ning.com,2013-02-10:5170231:Comment:3169702013-02-10T18:14:58.434ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>आदरणीया ज्योतिर्मयी पन्त जी, दूर के ढ़ोल सदियों से सुहावन लगा करतें हैं, अपनी संस्कृति और सभ्यता बहुत ही मजबूत है फिर भी कुछ लोग भेड़चाल में फँसे हुए है, एक अच्छी रचना आपने प्रस्तुत किया है, बहुत बहुत बधाई आपको ।</p>
<p>आदरणीया ज्योतिर्मयी पन्त जी, दूर के ढ़ोल सदियों से सुहावन लगा करतें हैं, अपनी संस्कृति और सभ्यता बहुत ही मजबूत है फिर भी कुछ लोग भेड़चाल में फँसे हुए है, एक अच्छी रचना आपने प्रस्तुत किया है, बहुत बहुत बधाई आपको ।</p> आदरणीय सादर, प्रथम आपकी उदार…tag:openbooks.ning.com,2013-02-10:5170231:Comment:3167922013-02-10T17:14:24.332ZSatyanarayan Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/satyanarayanShivramSingh
<p align="center">आदरणीय सादर, प्रथम आपकी उदार भावना को मैं शत शत नमन करता हूँ. आपके उन्नत विचारों को हृदयंगम कर आप द्वारा प्रदत्त शुभ कामना एवं अतिशय बधाइयों से अभिभूत हो मैं आपका एकबार पुनश्च आभार प्रकट करता हूँ. भविष्य में इसीप्रकार का स्नेह बनायें रखियेगा. इसी कामना के साथ,,,,,</p>
<p align="center">आदरणीय सादर, प्रथम आपकी उदार भावना को मैं शत शत नमन करता हूँ. आपके उन्नत विचारों को हृदयंगम कर आप द्वारा प्रदत्त शुभ कामना एवं अतिशय बधाइयों से अभिभूत हो मैं आपका एकबार पुनश्च आभार प्रकट करता हूँ. भविष्य में इसीप्रकार का स्नेह बनायें रखियेगा. इसी कामना के साथ,,,,,</p> आदरणीय विन्धेश्वरी जी .. बहुत…tag:openbooks.ning.com,2013-02-10:5170231:Comment:3167912013-02-10T17:08:14.160ZMAHIMA SHREEhttps://openbooks.ning.com/profile/MAHIMASHREE
<p>आदरणीय विन्धेश्वरी जी .. बहुत -२ धन्यवाद आपने अपना विचार साझा किया और उत्साहवर्धन किया / पर मैंने जैसा कहने की कोशिश की है उतार चढाव जैसे व्यक्ति अपने जीवन में देखता है वैसे ही देश की संस्कृति के साथ भी है . अगर कुछ अच्छी चीजें होती हैं तो कुछ नयी बुराइयां भी उस रास्ते से प्रवेश करती हैं .जरुरी यह है की हम सतर्क रहें/</p>
<p></p>
<p>आभार</p>
<p>आदरणीय विन्धेश्वरी जी .. बहुत -२ धन्यवाद आपने अपना विचार साझा किया और उत्साहवर्धन किया / पर मैंने जैसा कहने की कोशिश की है उतार चढाव जैसे व्यक्ति अपने जीवन में देखता है वैसे ही देश की संस्कृति के साथ भी है . अगर कुछ अच्छी चीजें होती हैं तो कुछ नयी बुराइयां भी उस रास्ते से प्रवेश करती हैं .जरुरी यह है की हम सतर्क रहें/</p>
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<p>आभार</p> जी सर .. सादरtag:openbooks.ning.com,2013-02-10:5170231:Comment:3169692013-02-10T17:00:37.632ZMAHIMA SHREEhttps://openbooks.ning.com/profile/MAHIMASHREE
<p>जी सर .. सादर</p>
<p>जी सर .. सादर</p> आदरणीय सादर, बिलकुल नहीं, मे…tag:openbooks.ning.com,2013-02-10:5170231:Comment:3169682013-02-10T17:00:36.495ZSatyanarayan Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/satyanarayanShivramSingh
<p>आदरणीय सादर, बिलकुल नहीं, मेरे मन को ठेस लगने का और आपके क्षमा का औचित्य ही नहीं बनता. विद्यार्थी भाव से गुण ग्राहकता के रूप में आपका एवं आपके सुझावों का मैं सदैव स्वागत करता हूँ. नवीन कुण्डलिया पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए मैं आपका आभारी हूँ. सस्नेह धन्यवाद. </p>
<p>आदरणीय सादर, बिलकुल नहीं, मेरे मन को ठेस लगने का और आपके क्षमा का औचित्य ही नहीं बनता. विद्यार्थी भाव से गुण ग्राहकता के रूप में आपका एवं आपके सुझावों का मैं सदैव स्वागत करता हूँ. नवीन कुण्डलिया पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए मैं आपका आभारी हूँ. सस्नेह धन्यवाद. </p> सादर, शिरोधार्य है साहब.......tag:openbooks.ning.com,2013-02-10:5170231:Comment:3170242013-02-10T16:39:49.082ZAshok Kumar Raktalehttps://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>सादर, शिरोधार्य है साहब.......</p>
<p>सादर, शिरोधार्य है साहब.......</p> सादर.tag:openbooks.ning.com,2013-02-10:5170231:Comment:3168832013-02-10T16:30:53.249ZAshok Kumar Raktalehttps://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>सादर.</p>
<p>सादर.</p> जी अशोक रक्ताले जी, सही कहा आ…tag:openbooks.ning.com,2013-02-10:5170231:Comment:3170232013-02-10T16:30:07.615Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttps://openbooks.ning.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<p><span>जी अशोक रक्ताले जी, सही कहा आपने, पूर्व रचना बहुत लम्बी हो जाती, अतः सांस्कृतिक धरोहर </span></p>
<div>पवित्र गंगा, मात्त्र-पित्त्र, गुरु के प्रति श्रद्धा भाव, आदि को इस रचना के माध्यम से प्रस्तुत किया है ।</div>
<div>भाव पसंद आये, आपक आभार सधन्यवाद ।</div>
<p><span>जी अशोक रक्ताले जी, सही कहा आपने, पूर्व रचना बहुत लम्बी हो जाती, अतः सांस्कृतिक धरोहर </span></p>
<div>पवित्र गंगा, मात्त्र-पित्त्र, गुरु के प्रति श्रद्धा भाव, आदि को इस रचना के माध्यम से प्रस्तुत किया है ।</div>
<div>भाव पसंद आये, आपक आभार सधन्यवाद ।</div>