"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 27 (Now closed with 503 Replies) - Open Books Online2024-03-29T10:25:11Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/maha27?commentId=5170231%3AComment%3A307365&feed=yes&xn_auth=no//अँधेरे को मात देने एक "दीपक…tag:openbooks.ning.com,2013-01-08:5170231:Comment:3073672013-01-08T18:27:19.911ZEr. Ambarish Srivastavahttps://openbooks.ning.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>//अँधेरे को मात देने <br/>एक "दीपक" ही बहुत है <br/>गर हवाएं साथ दें तो <br/>पर हवाएं अक्सर <br/>दीपक के साथ नहीं <br/>अंधेरों के साथ होती हैं //</p>
<p>सुंदर संकल्प सुंदर क्षनिकाएं , बधाई अनुज |</p>
<p>//अँधेरे को मात देने <br/>एक "दीपक" ही बहुत है <br/>गर हवाएं साथ दें तो <br/>पर हवाएं अक्सर <br/>दीपक के साथ नहीं <br/>अंधेरों के साथ होती हैं //</p>
<p>सुंदर संकल्प सुंदर क्षनिकाएं , बधाई अनुज |</p> //जितनी क्षमता आपकी,उतने ले स…tag:openbooks.ning.com,2013-01-08:5170231:Comment:3074322013-01-08T18:26:25.442ZEr. Ambarish Srivastavahttps://openbooks.ning.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>//जितनी क्षमता आपकी,उतने ले संकल्प .</p>
<div>फिर करनी की धार से,कर दें काया-कल्प .//</div>
<div>आदरणीय बागडे जी | शानदार दोहों के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें |</div>
<p>//जितनी क्षमता आपकी,उतने ले संकल्प .</p>
<div>फिर करनी की धार से,कर दें काया-कल्प .//</div>
<div>आदरणीय बागडे जी | शानदार दोहों के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें |</div> शुभ यात्रा आदरणीय सौरभ जी ...…tag:openbooks.ning.com,2013-01-08:5170231:Comment:3074312013-01-08T18:25:47.677Zsatish mapatpurihttps://openbooks.ning.com/profile/satishmapatpuri
<p>शुभ यात्रा आदरणीय सौरभ जी ...... कुशल एवं सुरक्षित यात्रा हेतु दिली शुभकामनाएं .</p>
<p>शुभ यात्रा आदरणीय सौरभ जी ...... कुशल एवं सुरक्षित यात्रा हेतु दिली शुभकामनाएं .</p> //छन्न पकैया छन्न पकैया, मानव…tag:openbooks.ning.com,2013-01-08:5170231:Comment:3073662013-01-08T18:25:05.989ZEr. Ambarish Srivastavahttps://openbooks.ning.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>//छन्न पकैया छन्न पकैया, मानवता दिखलाओ,</p>
<p>मन में प्रण नैतिकता धारो,सभ्य समाज बनाओ//</p>
<p>छन्न पकैया छन्न पकैया सुंदर छंद रचे हैं.</p>
<p>दृढ संकल्पित हुई साधना, लगते भाव भले हैं ..</p>
<p></p>
<p>//छन्न पकैया छन्न पकैया, मानवता दिखलाओ,</p>
<p>मन में प्रण नैतिकता धारो,सभ्य समाज बनाओ//</p>
<p>छन्न पकैया छन्न पकैया सुंदर छंद रचे हैं.</p>
<p>दृढ संकल्पित हुई साधना, लगते भाव भले हैं ..</p>
<p></p> कह गए लोग सुजान ये,बातें कितन…tag:openbooks.ning.com,2013-01-08:5170231:Comment:3073002013-01-08T18:23:04.748Zsatish mapatpurihttps://openbooks.ning.com/profile/satishmapatpuri
<div>कह गए लोग सुजान ये,बातें कितनी खास .</div>
<div>पूरे ना संकल्प हो ,बिना आत्म-विश्वास।</div>
<div><p>सही एवं सटीक ....... बहुत खूब अविनाश जी ... बधाई</p>
</div>
<div>कह गए लोग सुजान ये,बातें कितनी खास .</div>
<div>पूरे ना संकल्प हो ,बिना आत्म-विश्वास।</div>
<div><p>सही एवं सटीक ....... बहुत खूब अविनाश जी ... बधाई</p>
</div> //मन प्राण ऐसे दग्ध मानो तप र…tag:openbooks.ning.com,2013-01-08:5170231:Comment:3075212013-01-08T18:22:41.267ZEr. Ambarish Srivastavahttps://openbooks.ning.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>//मन प्राण ऐसे दग्ध मानो तप रहा तंदूर में।</p>
<p>खुद आज मेरी कामनायेँ ढल गईं नासूर में।</p>
<p><span>हे ईश! मुझको सत्य समझाओ जलूँ मैं दीप सा।</span></p>
<p><span><strong>संकल्प</strong> ले, सदभाव का मोती सम्हालूँ सीप सा।</span>//</p>
<p>प्रिय संजय जी |</p>
<p>भाव व शिल्प के स्तर पर इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें | सस्नेह</p>
<p>//मन प्राण ऐसे दग्ध मानो तप रहा तंदूर में।</p>
<p>खुद आज मेरी कामनायेँ ढल गईं नासूर में।</p>
<p><span>हे ईश! मुझको सत्य समझाओ जलूँ मैं दीप सा।</span></p>
<p><span><strong>संकल्प</strong> ले, सदभाव का मोती सम्हालूँ सीप सा।</span>//</p>
<p>प्रिय संजय जी |</p>
<p>भाव व शिल्प के स्तर पर इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें | सस्नेह</p> //संकल्पों का हाल तो, हमने दे…tag:openbooks.ning.com,2013-01-08:5170231:Comment:3074302013-01-08T18:20:07.111ZEr. Ambarish Srivastavahttps://openbooks.ning.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>//संकल्पों का हाल तो, हमने देख लिया है .<br/> कसमें - वादों का , फलाफल देख लिया है .<br/> अब संकल्प का नया कोई, विकल्प बनाना होगा .<br/> भूल गए मर्यादा जो, उन्हें हद में लाना होगा .//</p>
<p>आदरणीय मापतपुरी जी, इस शानदार गीत के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें |</p>
<p>//संकल्पों का हाल तो, हमने देख लिया है .<br/> कसमें - वादों का , फलाफल देख लिया है .<br/> अब संकल्प का नया कोई, विकल्प बनाना होगा .<br/> भूल गए मर्यादा जो, उन्हें हद में लाना होगा .//</p>
<p>आदरणीय मापतपुरी जी, इस शानदार गीत के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें |</p> मन प्राण ऐसे दग्ध मानो तप रहा…tag:openbooks.ning.com,2013-01-08:5170231:Comment:3074292013-01-08T18:19:56.818Zsatish mapatpurihttps://openbooks.ning.com/profile/satishmapatpuri
<p>मन प्राण ऐसे दग्ध मानो तप रहा तंदूर में।</p>
<p>खुद आज मेरी कामनायेँ ढल गईं नासूर में।</p>
<p><span>हे ईश! मुझको सत्य समझाओ जलूँ मैं दीप सा।</span></p>
<p><span><strong>संकल्प</strong> ले, सदभाव का मोती सम्हालूँ सीप सा।</span></p>
<p>वाह .... वाह .... आपके इस पाक विचार के समक्ष नत हूँ .... बधाई हबीब साहेब</p>
<p>मन प्राण ऐसे दग्ध मानो तप रहा तंदूर में।</p>
<p>खुद आज मेरी कामनायेँ ढल गईं नासूर में।</p>
<p><span>हे ईश! मुझको सत्य समझाओ जलूँ मैं दीप सा।</span></p>
<p><span><strong>संकल्प</strong> ले, सदभाव का मोती सम्हालूँ सीप सा।</span></p>
<p>वाह .... वाह .... आपके इस पाक विचार के समक्ष नत हूँ .... बधाई हबीब साहेब</p> आदरेया शुभ्रा शर्मा जी, इस सं…tag:openbooks.ning.com,2013-01-08:5170231:Comment:3073652013-01-08T18:18:32.893ZEr. Ambarish Srivastavahttps://openbooks.ning.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>आदरेया शुभ्रा शर्मा जी, इस संवेदन शील रचना के लिए हार्दिक बधाई |</p>
<p>आदरेया शुभ्रा शर्मा जी, इस संवेदन शील रचना के लिए हार्दिक बधाई |</p> आदरणीय बागडे जी, कुंडलिया के…tag:openbooks.ning.com,2013-01-08:5170231:Comment:3074282013-01-08T18:16:44.402ZEr. Ambarish Srivastavahttps://openbooks.ning.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>आदरणीय बागडे जी, कुंडलिया के माध्यम से लिए गए संकल्प के लिए हार्दिक बधाई |</p>
<p>आदरणीय बागडे जी, कुंडलिया के माध्यम से लिए गए संकल्प के लिए हार्दिक बधाई |</p>