"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 26 - Open Books Online2024-03-29T09:12:40Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/maha26?commentId=5170231%3AComment%3A298201&x=1&feed=yes&xn_auth=noछुप-छुप दालानों में
चंदा के…tag:openbooks.ning.com,2012-12-10:5170231:Comment:2982012012-12-10T18:28:34.156Zडॉ. सूर्या बाली "सूरज"https://openbooks.ning.com/profile/02eamj4esk9aa
<p>छुप-छुप दालानों में </p>
<p>चंदा के तानो में </p>
<p>रातों में चुपके से </p>
<p>पत्तों के कानो में </p>
<p>ओस ओस दुःख अपना कह जाते दिन </p>
<p>बहुत सुंदर पंक्तियाँ ...</p>
<p>बहुत बढ़िया ! हार्दिक बधाई !</p>
<p>छुप-छुप दालानों में </p>
<p>चंदा के तानो में </p>
<p>रातों में चुपके से </p>
<p>पत्तों के कानो में </p>
<p>ओस ओस दुःख अपना कह जाते दिन </p>
<p>बहुत सुंदर पंक्तियाँ ...</p>
<p>बहुत बढ़िया ! हार्दिक बधाई !</p> बहुत बढ़िया ! हार्दिक बधाई !tag:openbooks.ning.com,2012-12-10:5170231:Comment:2981992012-12-10T18:27:03.649Zडॉ. सूर्या बाली "सूरज"https://openbooks.ning.com/profile/02eamj4esk9aa
<p>बहुत बढ़िया ! हार्दिक बधाई !</p>
<p>बहुत बढ़िया ! हार्दिक बधाई !</p> नमस्कार बागी जी ..
आपका बहुत…tag:openbooks.ning.com,2012-12-10:5170231:Comment:2981982012-12-10T18:26:22.033ZMAHIMA SHREEhttps://openbooks.ning.com/profile/MAHIMASHREE
<p>नमस्कार बागी जी ..</p>
<p>आपका बहुत -2 हार्दिक धन्यवाद / आप सभी विद्वजनो की सराहना और प्रोत्साहना की मुझे भी हमेशा प्रतीक्षा रहती है /</p>
<p>रचना को पसंद करने के लिए आभारी हूँ / सादर</p>
<p>नमस्कार बागी जी ..</p>
<p>आपका बहुत -2 हार्दिक धन्यवाद / आप सभी विद्वजनो की सराहना और प्रोत्साहना की मुझे भी हमेशा प्रतीक्षा रहती है /</p>
<p>रचना को पसंद करने के लिए आभारी हूँ / सादर</p> मूंग फलियाँ , सब के मन भाई
स…tag:openbooks.ning.com,2012-12-10:5170231:Comment:2981972012-12-10T18:26:00.968Zडॉ. सूर्या बाली "सूरज"https://openbooks.ning.com/profile/02eamj4esk9aa
<p>मूंग फलियाँ , सब के मन भाई </p>
<div>सर्द रतियाँ , चल औढें रजाई ...वाह वाह राजेश कुमारी जी ॥बहुत सुंदर वर्णन। मज़ा आ गया गया।इस रचना विधा से मैं बिलकुल अंजान हूँ...लेकिन बहुत मज़ा आया...जैसे कोई छ्ते बहर की ग़ज़ल हो ...</div>
<p>मूंग फलियाँ , सब के मन भाई </p>
<div>सर्द रतियाँ , चल औढें रजाई ...वाह वाह राजेश कुमारी जी ॥बहुत सुंदर वर्णन। मज़ा आ गया गया।इस रचना विधा से मैं बिलकुल अंजान हूँ...लेकिन बहुत मज़ा आया...जैसे कोई छ्ते बहर की ग़ज़ल हो ...</div> वाह वाह ...क्या मस्त मुक़ाबला…tag:openbooks.ning.com,2012-12-10:5170231:Comment:2982962012-12-10T18:23:05.591Zडॉ. सूर्या बाली "सूरज"https://openbooks.ning.com/profile/02eamj4esk9aa
<p>वाह वाह ...क्या मस्त मुक़ाबला चल रहा है......जय हो लक्षमण जी और अरुन जी की ....</p>
<p>वाह वाह ...क्या मस्त मुक़ाबला चल रहा है......जय हो लक्षमण जी और अरुन जी की ....</p> आदरणीय अविनाश सर ..
आपका बहुत…tag:openbooks.ning.com,2012-12-10:5170231:Comment:2984642012-12-10T18:22:14.294ZMAHIMA SHREEhttps://openbooks.ning.com/profile/MAHIMASHREE
<p>आदरणीय अविनाश सर ..</p>
<p>आपका बहुत -2 धन्यवाद / सदैव आपका प्रोत्साहन मुझे मिलता है / आभारी हूँ /</p>
<p>आदरणीय अविनाश सर ..</p>
<p>आपका बहुत -2 धन्यवाद / सदैव आपका प्रोत्साहन मुझे मिलता है / आभारी हूँ /</p> सूरज छत पर आय,पत्नी जा उपर ब…tag:openbooks.ning.com,2012-12-10:5170231:Comment:2984632012-12-10T18:21:23.270Zsatish mapatpurihttps://openbooks.ning.com/profile/satishmapatpuri
<p>सूरज छत पर आय,पत्नी जा उपर बैठे,</p>
<p>छत पर बाल सुखाय,कौन अब रोटी थेपे/</p>
<p>उस पर हमें बुलाय,लिए सब कपडे मैले,</p>
<p>धो कर वहीं सुखाय,धुले सब कपडे गीले// ..</p>
<p>जाड़ में हाड़ का कंपकंपाना तो अपनी जगह है , पर कंपकंपाते हाड़ के बीच हास्य ने गज़ब ढा दिया अशोक साहेब , मज़ा आ गया ... बधाई कुबूल करें .</p>
<p>सूरज छत पर आय,पत्नी जा उपर बैठे,</p>
<p>छत पर बाल सुखाय,कौन अब रोटी थेपे/</p>
<p>उस पर हमें बुलाय,लिए सब कपडे मैले,</p>
<p>धो कर वहीं सुखाय,धुले सब कपडे गीले// ..</p>
<p>जाड़ में हाड़ का कंपकंपाना तो अपनी जगह है , पर कंपकंपाते हाड़ के बीच हास्य ने गज़ब ढा दिया अशोक साहेब , मज़ा आ गया ... बधाई कुबूल करें .</p> sunder Dr. PRACHI JItag:openbooks.ning.com,2012-12-10:5170231:Comment:2983982012-12-10T18:19:14.951ZAVINASH S BAGDEhttps://openbooks.ning.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p>sunder Dr. PRACHI JI</p>
<p>sunder Dr. PRACHI JI</p> अच्छी रचना महिमा जी, ओ बी ओ प…tag:openbooks.ning.com,2012-12-10:5170231:Comment:2982952012-12-10T18:18:29.687ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>अच्छी रचना महिमा जी, ओ बी ओ पर आपकी रचनाओं का इन्तजार सदैव रहता है | सुन्दर अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें |</p>
<p>अच्छी रचना महिमा जी, ओ बी ओ पर आपकी रचनाओं का इन्तजार सदैव रहता है | सुन्दर अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें |</p> पिंड खजूर खा अब खून बढाए, मल…tag:openbooks.ning.com,2012-12-10:5170231:Comment:2983972012-12-10T18:16:58.986Zडॉ. सूर्या बाली "सूरज"https://openbooks.ning.com/profile/02eamj4esk9aa
<p><span>पिंड खजूर खा अब खून बढाए, </span>मल तेल बदन पर बैठे धूप में, विटामिन डी भरपूर मिल जाए.....वाह वाह लक्ष्मण जी क्या बढ़िया सलाह है.....सुंदर और निरोग तन के लिए।</p>
<p>हार्दिक बधाई !</p>
<p><span>पिंड खजूर खा अब खून बढाए, </span>मल तेल बदन पर बैठे धूप में, विटामिन डी भरपूर मिल जाए.....वाह वाह लक्ष्मण जी क्या बढ़िया सलाह है.....सुंदर और निरोग तन के लिए।</p>
<p>हार्दिक बधाई !</p>